परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
उत्तर- लेखक के उद्विग्न हृदय की पीड़ा कविता के माध्यम से उर्दू और अंग्रेजी में ही अभिव्यक्त होती थी। बच्चन जैसे प्रतिष्ठित कवि से परिचय होने के पश्चात् लेखक हिंदी लेखक की ओर प्रवृत्त हुए। बच्चन ने लेखक को इलाहाबाद लाकर उनके एम० ए० के दोनों वर्षों का जिम्मा उठा लिया था। विभिन्न पत्रिकाओं में लेखक की छपी रचनाओं की प्रशंसा कर बच्चन ने लेखक को हिंदी लेखन को प्रेरित किया। उनके ‘अभ्युदय’ में प्रकाशित सॉनेट को बच्चन ने विशेष तौर पर पसंद कर उसे खालिस सॉनेट कहा। हिंदी लेखन के क्षेत्र में बच्चन ही उनकी प्रेरणा बने । बच्चन की कविताओं के उच्च घोषों का लेखक पर प्रभाव पड़ा और यही भाव उसके जीवन का लक्ष्य बन गया। बच्चन अपने नवीन प्रयोगों के विषय में लेखक को बताते थे। लेखक भी उन प्रकारों का प्रयोग अपनी कविताओं में करते थे। लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है-”निश्चय ही हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में बच्चन मुझे घसीट लाए थे।” बच्चन की सहायता और निरंतर अभ्यास से लेखक हिंदी लेखन में निपुण होते गए। उन्होंने कविता के साथ-साथ कहानी एवं निबंध के क्षेत्र में भी कार्य किया।
उत्तर- बच्चन और लेखक देहरादून में साथ-साथ थे। बड़ा भयंकर तूफान आया था। बड़े-बड़े पेड़ सड़कों पर बिछ गए थे। टीन की छतें उड़ गई थीं। बच्चन उस तूफान में एक गिरते हुए पेड़ के नीचे आने से बाल-बाल बचे थे।
लेखक ने उस दिन स्पष्ट देखा था कि उस तूफान से बढ़ कर एक ओर तूफान था जो उनके मन और मस्तिष्क से गुजर रहा था। वे पत्नी के वियोग को झेल रहे थे। उनकी पत्नी उनकी अर्धांगिनी ही नहीं उनके संघर्षों और आदर्शों की संगिनी भी थी। इस पीड़ा को झेलते हुए भी वे साहित्य साधना में लीन थे।
लेखक ने उनकी समय का पाबंद होने की घटना का उल्लेख भी किया है। इलाहाबाद में भारी बरसात हो रही थी। बच्चन को स्टेशन पहुँचना था। मेजबान के लाख रोकने पर भी बच्चन नहीं रुके। भारी बरसात में उन्हें कोई सवारी नहीं मिली। बच्चन ने बिस्तर काँधे पर रखा और स्टेशन की ओर चल पड़े। उन्हें जहाँ पहुँचना था वहाँ सही समय पर पहुँचे।
उत्तर- करोल बाग से कनाट प्लेस के रास्ते में लेखक कभी तो अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति चित्रों के रूप में करता तो कभी कविताओं के माध्यम से करता। उस समय लेखक को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि ये कविताएं कहीं छपेंगी। केवल अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति और मन की मौज के लिए वह चित्र बनाता और कविताएं लिखता था। लेखक हर चेहरे, हर चीज़ और हर दृश्य को गौर से देखता और अपनी ड्राइंग का तत्त्व खोज लेता। अपनी कल्पनाशीलता के माध्यम से लेखक किसी भी दृश्य, किसी भी चेहरे को अपनी ड्राइंग और कविता का आधार बना लेता।
उत्तर- लेखक में अद्भुत कल्पनाशीलता थी। उसमें अपने आप को आस-पास के दृश्यों और चित्रों में खो देने की अद्भुत शक्ति थी। इन्हीं से वह अपनी कविताओं और चित्रों के लिए तत्व प्राप्त करता था। यह सब होते हुए भी लेखक उद्विग्न था क्योंकि उसकी पत्नी का देहांत टी० बी० के कारण हो चुका था। दिल्ली में वह एकदम अकेला था। एकाकीपन की पीड़ा उसके हृदय में खिन्नता भरती जा रही थी। अपने इसी एकाकीपन को वह अपने चित्रों और कविताओं द्वारा भरने की चेष्टा करता। किसी से अधिक न मिलने-जुलने के कारण आंतरिक पीड़ा को किसी से बांट भी न पाता। इसी कारण वह उद्विग्न रहता था।
उत्तर- लेखक को किसी ने कुछ व्यंग्य मरे वाक्य कह दिए थे। उन वाक्यों से लेखक मन को बहुत चोट पहुँची। इसलिए उन्होंने जीवन में कुछ करने का निश्चय किया। वे जिस हालत में बैठे थे, उसी हालत में दिल्ली के लिए चल दिए। उनकी जेब में पाँच-सात रुपए थे। उनका दिल्ली आने का कारण आहत मन और कुछ कर दिखाने की चाह थी।
उत्तर- लेखक अपनी जीवन में कुछ करना चाहता था। उसने पेंटिंग करने का निर्णय लिया। पेंटिंग की शिक्षा के लिए उन्होंने उकील आर्ट में दाखिला लेने के लिए सोचा। वे उकील आर्ट स्कूल गए, वहाँ उनका इम्तिहान लिया गया। उनका शौक और हुनर देखकर, उनको बिना-फीस के आर्ट स्कूल में दाखिला मिल गया।
उत्तर- लेखक जब घर से चला था उसकी जेब में पाँच-सात रुपए थे। उकील आर्ट स्कूल में बिना फीस के दाखिला हो गया था। लेखक अपना गुजारा चलाने के साइन बोर्ड पेंट करता था या फिर कभी-कभी लेखक के भाई तेज बहादुर उन्हें कुछ रुपए भेज देते थे। इस तरहे लेखक की आर्थिक स्थिति विशेष अच्छी नहीं थी।
उत्तर- उन दिनों लेखक का मन उदास रहता था यद्यपि वह अपने चित्रों और कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करता था परंतु मन का एकाकी पन समाप्त नहीं होता था। इसका कारण यह था कि लेखक अपनी पत्नी को खो दिया था अर्थात् उनकी पत्नी की टी० बी० से मृत्यु हो गई थी। इसलिए उसे अकेलापन अधिक कचोटता था। वह अपने कमरे में आकर अपने अकेलेपन से लड़ता और बोर होता था।
प्रश्न 9. लेखक में क्या बुरी आदत थी ?
उत्तर- लेखक में एक बहुत बुरी आदत थी कि वह पत्रों का जवाब नहीं देते थे। यह नहीं था कि उन्हें पत्रों का जवाब सूझता नहीं था परंतु उन्हें पत्र लिखने की आदत नहीं थी। वे सैंकड़ों पत्रों के जवाब मन ही मन लिखकर हवा में साँस के साथ बिखेर देते थे।
उत्तर- लेखक अपने एकाकी जीवन के साथ तालमेल बैठाने का प्रयास कर रहा था। वह कुछ महीने दिल्ली में रहने के बाद देहरादून आ गया था। देहरादून में अपनी सुसराल की केमिस्टस एवं ड्रगिस्ट्स की दुकान पर क्पांउंडरी सीखने लगा। धीरे-धीरे उन्हें टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखे नुस्खा को पढ़ने में महारत हासिल हो गई थी।
उत्तर- लेखक को कम बोलने की आदत थी। वह अपनी आंतरिक भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने से कतराते थे। दूसरे लोगों को उनके एकाकीपन और आंतरिक भावनाओं से कोई मतलब नहीं था। वे बड़ों के सामने जुबान नहीं खोलते थे इसीलिए वे अपनी आंतरिक पीड़ा से जूझते हुए अकेले रहते थे। अपनी इसी आदत के कारण वे एकाकी अनुभव करते थे।
उत्तर- सन् 1930 की बात है उन दिनों बच्चन जी के मन और मस्तिष्क में अलग ही तरह का तूफान चल रहा था। इसका कारण यह था कि उनके जीवन में सहयोग देने वाली अर्धांगिनी उन्हें मंझछार में छोड़ कर चली गई थी। उनकी पत्नी उनके भावुक आदर्शों, उत्साहों और संघर्ष की युवासंगिनी थी। वह उनके सपनों का साकार करने वाली साथिन थी। जो उनको छोड़ कर जा चुकी थी। उस समय बच्चन जी अंदर से टूट गए थे परंतु वे ऊपर से कठोर तथा उच्च मनोबल के थे।
उत्तर- एक बार बच्चन जी देहरादून आए थे। उस समय लेखक अपने सुसराल की केमिस्ट की दुकान पर नौकरी कर रहा था। वे उसकी कला को परख कर वहाँ से चलने के लिए बोल पड़े। उन्हें लगा यदि ये यहाँ रहेगा तो टी० बी० की दवाई बाँटते-बाँटते वह एक दिन इसी तरह मर जाएगा।
उत्तर- इलाहबाद में बच्चन जी ने लेखक का दाखिला एम० ए० में करवा दिया था। पंत जी की कृपा से उसे इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिल गया। उस समय लेखक के मन में आया कि वह उसे केवल हिंदी में कविता लिखनी है। उसने हिंदी कविता गंभीरता से लिखनी आरंभ कर दी।
उत्तर- लेखक का जन्म जाट परिवार में हुआ था। जहाँ पर भाषा की कोई दीवार उनके हृदय या मस्तिष्क को घेर लेती है। उन्हें अफ़सोस इस बात का था कि वे जमकर कोई भी साधना भाषा या शिल्प में नहीं कर सके।
उत्तर- लेखक पहले सन् 1933 में हिंदी में अपनी दो चार कविताएं लिख कर छपवा चुके थे। उसके बाद उन्होंने हिंदी में लिखना छोड़ दिया था। अब तीन साल बाद इलाहाबाद में साहित्यिक वातावरण में वह दुबारा लिखने के लिए तैयार हुए। पिछला सब कुछ भूल गए थे परंतु उन्होंने स्वयं को इस बात को लिए तैयार कर लिया था कि अपने ढंग से वे साहित्य क्षेत्र में काम करेंगे। इसके लिए स्वतंत्र रूप से आर्थिक रूप से निर्भर होना था। जिसके लिए उन्होंने काम करना शुरू कर दिया था।
उत्तर- लेखक लेखन कला में बच्चन जी से बहुत प्रभावित थे। वे लेखक कला में नए-नए प्रयोग करते थे। लेखक उनके नवीन प्रयोग से प्रभावित होकर उसमें कविता लिखने लगे थे। परंतु उन्हें उस प्रकार की लेखन कला में कठिनाई आती थी। उन्होंने निरंतर प्रयास से उसी प्रकार के प्रयोग कर कई रचनाएँ लिखी। उन्हें साहित्य क्षेत्र में स्थापित करने और लाने का श्रेय बच्चन जी को जाता है। इसीलिए लेखक बच्चन जी से बहुत प्रभावित हुआ।
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