NCERT Solutions for Class 7 Hindi बाल महाभारत कथा
NCERT Solutions For Class 7 Hindi बाल महाभारत कथा – आज हम आपको कक्षा 7 हिंदी बाल महाभारत कथा के प्रश्न-उत्तर (Baal Mahabharat Katha Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 7th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है . यहाँ एनसीईआरटी कक्षा 7 हिंदी (शीतयुद्ध का दौर) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप Class 7th Hindi बाल महाभारत कथा के प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.
Textbook | NCERT |
Class | Class 7 |
Subject | Hindi |
Chapter Name | बाल महाभारत |
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
शांतनु ने गंगा को यह वचन दिया होगा कि यदि वह उसकी संतान को जीवित रखना चाहेंगे तो गंगा पत्नी के रूप में उनके पास नहीं रहेगी । वह वहाँ से चली जाएगी। इसलिए वह अपनी संतान को जन्म देते ही गंगा की धारा में बहा देती थी। जब शांतनु ने देवव्रत को जीवित रखना चाहा तो गंगा शांतनु को छोड़कर चली गई थी।
हमारे विचार से युधिष्ठिर को राजा बनाना चाहिए था। हस्तिनापुर के राजा पांडु थे और युधिष्ठिर पांडु के बड़े पुत्र थे। पांडु ऋषि-दंपति की भूल से हत्या करने के कारण राज्य भीष्म और विदुर को सौंपकर अपनी पत्नियों कुंती और माद्री के साथ वन चले गए थे। वहीं उनके पाँच पुत्र हुए थे तथा वन में ही इनकी मृत्यु हो गई थी। पांडवों का पालन-पोषण सोलह वर्ष की आयु तक वन में ही हुआ था। इसलिए जब ऋषियों ने युधिष्ठिर आदि को हस्तिनापुर लाकर भीष्म पितामह के सुपुर्द किया तो भीष्म को युधिष्ठिर को राजा बनाना चाहिए था।
पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीतने के लिए श्रीकृष्ण को अपने पक्ष में कर लिया था। वे श्रीकृष्ण से सलाह करके युद्ध की योजना बनाते थे । युद्ध प्रारंभ करने से पहले युधिष्ठिर ने विपक्ष में होते हुए भी भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य आदि बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया था । वे युद्ध के प्रचलित नियमों का पालन कर रहे थे। कौरवों ने महारथियों के द्वारा युद्ध जीतने का प्रयास किया था । कर्ण ने कुंती को दिए हुए वचन का पालन करते हुए भीम को मारने की स्थिति में होते हुए भी नहीं मारा था ।
हमारे विचार से महाभारत के युद्ध को भीष्म पितामह रुकवा सकते थे । वे धृतराष्ट्र को हटाकर युधिष्ठिर को राजा बना देते तो यह युद्ध रुक सकता था। धृतराष्ट्र को राजा उन्होंने ही बनाया था जबकि राजा बनने का अधिकारी युधिष्ठिर था। वे अपने बाहुबल से दुर्योधन आदि को चुप करा सकते थे।
सीता स्वयंवर में रावण जब शिव-धनुष न उठा सका तो उसे मुँह की खानी पड़ी। भीम ने जैसे ही बकासुर को उठाकर ज़मीन पर पटका उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
सुरेश डींगे मारता रहता है, उससे होता कुछ भी नहीं है।
पवन नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है।
जब लाख कोशिश करने पर भी सुरेंद्र को नौकरी न मिली तो वह मन मसोस कर रह गया ।
उत्तर –
पृथा = कुंती,
गांगेय = भीष्म,
राधेय = कर्ण,
देवव्रत = भीष्म,
वासुदेव = कृष्ण,
कंक = युधिष्ठिर
उत्तर-
मेरे विचार में महाभारत कथा में सबसे अधिक अन्याय कर्ण के साथ हुआ है। उसे जन्म देते ही उसकी माँ ने त्याग दिया । वह धनुष-विद्या में निपुण है फिर भी उसे अर्जुन के साथ मुकाबला नहीं करने दिया गया । कुंती उसे पहचानकर भी नहीं पहचानती परंतु जब युद्ध प्रारंभ होता है तो उसे अपना बेटा कहकर पांडवों पर वार करने से रोकती है। इंद्र ब्राह्मण के वेश में आकर उसके जन्मजात कवच और कुंडल ले जाते हैं । अंत में श्रीकृष्ण उसे निहत्था होते हुए भी अर्जुन से मरवा देते हैं । इस प्रकार कर्ण के साथ सदा अन्याय
ही होता रहा है।
महाभारत के युद्ध में अधर्म पर धर्म की विजय हुई थी। पांडवों की जीत इसलिए हुई क्योंकि वे अपने उचित अधिकार के लिए लड़ रहे थे । यह एक व्यक्ति की जीत न होकर सिद्धांतों की विजय थी ।
मेरे विचार से महाभारत की कथा में सबसे अधिक वीर अभिमन्यु था। जब कौरवों के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए कोई भी पांडव तैयार नहीं हुआ अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ दिया । उसे चक्रव्यूह से निकलना नहीं आता था
फिर भी उसने कौरवों के महारथियों से डट कर मुकाबला किया । निहत्थे होते हुए भी उसने रथ के पहिए से लड़ाई लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुआ।
(ख) दुर्योधन ने कहा, ” अगर बराबरी की बात तो मैं आज ही कर्ण को अंग देश का राजा बनाता हूँ ।”
(ग) धृतराष्ट्र ने दुर्योधन से कहा, “बेटा, मैं तुम्हारी भलाई के लिए कहता हूँ कि पांडवों से वैर न करो। वैर दुःख और मृत्यु का कारण होता है । “
(घ) द्रौपदी ने सारथी प्रातिकामी से कहा, “रथवान ! जाकर उन हारने वाले के खिलाड़ी से पूछो कि पहले वह अपने को हारे थे या मुझे।”
उत्तर – (क) शांतनु एक ऐसे व्यक्ति हैं जो उचित – अनुचित का विचार करके ही कोई कार्य करते हैं। वे उदार तथा सज्जन व्यक्ति हैं। (ख) दुर्योधन के इस कथन से स्पष्ट है कि वह ऐसा व्यक्ति है जो अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकता है। अर्जुन से बदला लेने के लिए ही वह कर्ण को अंग देश का राजा बनाता है ।
(ग) धृतराष्ट्र अपनी संतान को बहुत प्रेम करने वाले पिता हैं इसलिए वे नहीं चाहते कि पांडवों से दुश्मनी करके दुर्योधन को हानि पहुँचे। उन्हें पांडवों के शक्तिशाली होने तथा अपने पुत्रों के कमज़ोर होने का भी ज्ञान है।
(घ) द्रौपदी इस कथन से उसका आत्मविश्वास, स्वाभिमान तथा विद्वता का पता चलता है। वह बहुत ही समझदार महिला है।
युधिष्ठिर ने सत्य ही कहा था कि ‘अश्वत्थामा मारा गया, मनुष्य नहीं हाथी’ क्योंकि उसी समय भीम ने अश्वत्थामा नामक हाथी को मारा था । यह दूसरी बात है कि जब युधिष्ठिर ने यह शब्द कहे उस समय द्रोणाचार्य ने केवल यह
सुना था ‘अश्वत्थामा मारा गया’ ‘मनुष्य नहीं हाथी’ शब्द वे इसलिए नहीं सुन सके थे, क्योंकि पांडव सेना ने शोर मचा दिया था ।
- युद्ध आपसी द्वेष और ईर्ष्या से होते हैं।
- युद्ध में अनेक परिवार उजड़ जाते हैं। युद्ध में अनेक लोग विकलांग हो जाते हैं।
- युद्ध के बाद अनेक बीमारियाँ फैल जाती हैं।
- युद्ध के कारण अनेक स्त्रियाँ विधवा हो जाती हैं ।
- युद्ध के कारण आर्थिक प्रगति रुक जाती है।
- युद्ध के कारण खाद्य सामग्री का अभाव हो जाता है ।
- युद्ध मानवता के विनाश का कारण है 1
(ख) यदि ऐसा कोई पात्र तुम्हारे स्थान पर तुम्हारे मित्र के पास हो, तो तुम क्या करोगे ?
उत्तर – (क) यदि मेरे पास ऐसा ‘अक्षयपात्र’ हो तो मेरी मौज आ जाएगी। जब मन चाहेगा उससे मनचाहा भोजन लेकर स्वयं भी खाऊँगा और परिवार तथा मित्रों को भी खिलाऊँगा । हमारे घर की खाद्य समस्या अपने आप ही सुलझ जाएगी तथा माता जी को खाना बनाने की मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। इसी के साथ मैं भूखे व गरीब लोगों को भी भोजन कराऊँगा।
(ख) यदि ऐसा ‘ अक्षयपात्र’ मेरे मित्र के पास हुआ तो मैं बहुत प्रसन्न हो जाऊँगा। मैं अपने मित्र को प्रेरित करूँगा कि वह अपने इस पात्र से सभी गरीब-भूखे लोगों का पेट भरे, जिससे देश की खाद्यान्न समस्या सुलझ जाएगी।
(क) गंगा के चले जाने से शांतनु का मन विरक्त हो गया ।
(ख) द्रोणाचार्य ने द्रुपद से कहा,
‘जब तुम राजा बन गए, तो ऐश्वर्य के मद में आकर तुम मुझे भूल गए ।”
(ग) दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से कहा,
“पिताजी, पुरवासी लोग तरह-तरह की बातें करते हैं । ”
(घ) स्वयंवर मंडप में एक वृहदाकार धनुष रखा हुआ था ।
(ङ) चौसर का खेल कोई हमने तो ईजाद किया नहीं ।
उत्तर – (क) विरक्त उदासीन, उदासी से भर गया ।
(ख) मद = मस्ती, आनंद, खुशी, नशा ।
(ग) पुरवासी = शहर में रहने वाले लोग।
(घ) वृहदाकार = बहुत बड़े आकार का, विशाल ।
(ङ) ईजाद = किसी नई वस्तु का निर्माण करना, आविष्कार ।
‘महाभारत कथा’ के चौंतीसवें खंड ‘युधिष्ठिर की चिंता और कामना’ प्रसंग के अंतर्गत भीम और कर्ण के बीच हुए युद्ध का प्रसंग मुझे बहुत अच्छा लगा है। इस युद्ध में भीम उत्तेजना और उग्रता की मूर्ति बने हुए युद्ध कर रहे थे परंतु कर्ण धैर्य, व्यवस्था के साथ और शांत भाव से भीम के प्रहारों का उत्तर दे रहे थे। कर्ण ने भीम के रथ के घोड़ों, सारथी को मार दिया तथा रथ को तोड़-फोड़ दिया। भीम का धनुष भी कट गया तो वह ढाल-तलवार से लड़ने लगा। कर्ण ने उसकी ढाल भी काट दी और भीम को खूब परेशान करने लगा। भीम क्रोध में भरकर कर्ण पर रथ के टूटे पहिए, मरे हुए घोड़े- हाथी आदि फेंकने लगा । कर्ण स्वयं को बचाते रहे पर उन्होंने चाहते हुए भी भीम को नहीं मारा क्योंकि उन्होंने माता कुंती को वचन दिया था कि वे युद्ध में अर्जुन के अतिरिक्त अन्य किसी पांडव को नहीं मारेंगे। इस प्रकार अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए कर्ण ने हाथ आए शत्रु को भी नहीं मारा । इसलिए यह प्रसंग मुझे अच्छा लगा है।
महाभारत के युग में छापेखाने का आविष्कार नहीं हुआ होगा । इसलिए रचनाओं को सुरक्षित रखने के लिए रचनाओं को कंठस्थ कराया जाता होगा । इस प्रकार परंपरा से रचनाएँ कंठस्थ होने के कारण जीवित रहती होंगी। आज के ज़माने में कंठस्थ करने की आदत बहुत अच्छी नहीं है। मुद्रित पुस्तकें पर्याप्त संख्या में मिल जाती हैं। अब तो सी० डी०, इंटरनेट आदि पर भी पाठ्य सामग्री मिल जाती । फिर भी हमें आवश्यक जानकारी अवश्य ही स्मरण रखने के लिए कुछ भाग तो कंठस्थ करना ही पड़ता है ।
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