ललद्यद का जीवन परिचय | Laldyad Ka Jivan Parichay
ललद्यद का जीवन परिचय, रचनाएं और भाषा शैली | Laldyad Biography In Hindi – इस लेख में, हम ललद्यद के जीवन के बारे में जानेंगे, जिसमें उनकी जन्म तिथि, उनका जन्म कहाँ हुआ था और उनकी मृत्यु कब हुई थी। और उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध कार्यों के बारे में भी जानेंगे।।
इसमें हम आपको ललद्यद का जीवन परिचय, काव्यगत विशेषताएँ, एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ के बारे में भी जानेंगे| ललद्यद का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
ललद्यद का जीवन परिचय (Laldyad Ka Jivan Parichay)
जीवन-परिचय– ललद्यद का नाम कश्मीरी संत कवियों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे अपने युग की कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत-कवयित्री थीं। उनका जन्म सन् 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पांपोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उनके जीवन के विषय में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। अन्य संत कवियों की भाँति ही उनके जीवन के विषय में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। ललद्यद को लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिफा आदि नामों से भी जाना जाता है। उनकी मृत्यु सन् 1391 के लगभग स्वीकार की गई है।
ललद्यद की प्रमुख रचनाएँ
ललद्यद की सभी काव्य-रचनाएँ ‘वाख’ शीर्षक के अंतर्गत उपलब्ध हैं। वस्तुतः ‘वाख’ उनकी काव्य-शैली है। जिस प्रकार हिंदी में कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाइयाँ तथा रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं; उसी प्रकार ललद्यद के ‘वाख’ प्रसिद्ध हैं।
ललद्यद की काव्यगत विशेषताएँ
ललद्यद के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह तत्कालीन जीवन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपने वाखों के माध्यम से. जाति एवं धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा दी है। उनके काव्य में समाज में एकता स्थापित करने की भावना पर बल दिया गया है
“थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।”
उनकी प्रवृत्ति खंडनात्मक न होकर मंडनात्मक थी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उन्होंने लोकमंगल की भावना को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का सर्वत्र विरोध किया है और प्रेम को सबसे बड़ा जीवन-मूल्य घोषित किया है।
संत-कवयित्री ललद्यद ने आत्मज्ञान को प्रमुखता दी है, क्योंकि आत्मज्ञान से ही स्वयं को एवं परमात्मा को जाना जा सकता है
“ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान”
ललद्यद की भाषा-शैली
ललद्यद की कविता लोगों के रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी है, जो समाज में एकता और प्रेम के महत्व पर जोर देती है। उन्होंने धार्मिक आडंबर का विरोध और आत्म-प्रचार पर ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति भी दिखाई है। संत-कवि ललद्यद ने आत्मज्ञान की महत्ता पर बल देते हुए कहा है कि स्वयं को जानकर ही हम ईश्वर को जान सकते हैं।
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Laldyad Ka Jivan Parichay – FAQ (ललद्यद से जड़े कुछ प्रश्न उत्तर)
ललद्यद का जन्म कब हुआ था?
कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत कवयित्री ललद्यद का जन्म सन् 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था।
ललद्यद की रचना का नाम क्या है?
ललद्यद की काव्य—शैली को वाख कहा जाता है। जिस तरह हिंदी में कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाई और रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं, उसी तरह ललद्यद के वाख प्रसिद्ध हैं।
ललद्यद का मृत्यु कब हुई?
उनकी मृत्यु सन 1391 ईस्वी के आसपास मानी जाती है।
ललद्यद का जन्म कहाँ हुआ था?
ललद्यद का जन्म 1320 के आस-पास कश्मीर स्थित पांपोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था
कवयित्री ललद्यद ने किस धर्म की शिक्षा ली थी?
उसने ईश्वर से एकनिष्ठ होकर प्रेम किया था और उसे अपने में स्थित पाया था (खुछुम पंडित पननि गरे)। ललद्यद को प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा अपने कुल-गुरु श्री सिद्धमोल से प्राप्त हुई। सिद्धमोल ने उसे धर्म, दर्शन, ज्ञान और योग सम्बन्धी विभिन्न ज्ञातव्य रहस्यों से अवगत कराया तथा गुरुपद का अपूर्व गौरव प्राप्त कर लिया।