Class 9th Science Chapter 15. खाद्य संसाधनों में सुधार

Class 9th Science Chapter 15. खाद्य संसाधनों में सुधार

NCERT Solutions for Class 9th Science chapter- 15. खाद्य संसाधनों में सुधार – जो उम्मीदवार 9th कक्षा में पढ़ रहे है उन्हें रेशों से वस्त्र तक के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है .इसके बारे में 9th कक्षा के एग्जाम में काफी प्रश्न पूछे जाते है .इसलिए यहां पर हमने एनसीईआरटी कक्षा 9 विज्ञान अध्याय 15. (खाद्य संसाधनों में सुधार) का सलूशन दिया गया है .इस NCERT Solutions For Class 9 Science Chapter 15. Improvement in Food Resources की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इसलिए आप Ch.15 खाद्य संसाधनों में सुधार के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न | (Textual Questions)

प्रश्न 1. अनाज, दाल, फल तथा सब्ज़ियों से हमें क्या प्राप्त होता है ?

उत्तर- अनाज हमें कार्बोहाइड्रेट प्रदान करते हैं जो शरीर के पोषण के लिए बहुत उपयोगी हैं। ये हमें गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा तथा ज्वार से प्राप्त होते हैं। इनसे हमें ऊर्जा मिलती है। दालों से हमें प्रोटीन प्राप्त होती है। यह चना, मटर, उड़द, मूग, अरहर और मसूर में होती है। फलों और सब्जियों से विटामिन, खनिज लवणों के अतिरिक्त कुछ मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा भी प्राप्त होती है।

प्रश्न 1. जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं ?

उत्तर- फसलें हमारे जीवन की आधार हैं। वे जैविक और अजैविक कारकों से प्रभावित होती हैं। इनसे उनका उत्पादन और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

(i) जैविक कारकों का प्रभाव-तरह-तरह के रोग, कीट तथा निमेटोड फसलों को प्रभावित करते हैं। सूक्ष्म जीव खाद्यान्नों को बहुत अधिक खराब करते हैं। इनके कारण अनाज के भार में कमी, अंकुरण न होना, बदरंग हो जाना, तापन तथा विषाक्त पदार्थों का उत्पन्न होना हो सकता है। फफूद, खमीर तथा जीवाणु का इन्हें पर्याप्त हानि पहुंचाते हैं। चूहे तथा पक्षी भी खाद्य पदार्थों को बहुत हानि पहुंचाने का कार्य करते हैं।

(ii) अजैविक कारकों का प्रभाव-सूखा, क्षारता, जलाक्रांति, गर्मी, ठंड और पाला के कारण फसल उत्पादन कम हो जाता है। इनसे अनाज में संक्रमण बढ़ जाता है। एंजाइम, कीट और अन्य सूक्ष्म जीव भी इन कारकों से प्रभावित होकर अनाज को अधिक क्षति पहुंचाते हैं। सूखा पड़ने से फसलें नष्ट हो जाती हैं तो जलाक्रांति से भी उनकी जड़ें गल जाती हैं। अत्यधिक गर्मी, ठंड और पाला भी उपज को प्रभावित करते हैं

प्रश्न 2. फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या हैं ?

उत्तर- पशुओं के लिए चारा तभी अधिक होगा जब चारे वाली फसलों की शाखाएं सघन होंगी। अनाज के लिए पौधे बौने होने चाहिए ताकि उनके लिए कम पोषकों की आवश्यकता हो। फसलों में ऐसे सुधारों के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान सहायक सिद्ध होती है।

प्रश्न 1. वृहत् पोषक क्या हैं और इन्हें वृहत् पोषक क्यों कहते हैं ?

उत्तर- वृहत् पोषक उन्हें कहते हैं जो पौधों को अपने पोषण के लिए अधिक मात्रा में चाहिए होते हैं। इनकी संख्या छह है और इन्हें ये मिट्टी से प्राप्त करते हैं। वृहत् पोषक हैं-नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, जिंक, कॉपर, मॉलिबेडेनम्।

प्रश्न 2. पौधे अपना पोषण कैसे प्राप्त करते हैं ?

उत्तर- पौधे अपना पोषन हवा, पानी और मिट्टी से प्राप्त करते हैं। हवा से इन्हें ऑक्सीजन तथा कार्बन प्राप्त होते हैं, पानी से हाइड्रोजन मिलती है तथा मिट्टी से 13 पोषक प्राप्त होते हैं जिनमें से 6 वृहत् पोषक तथा 7 सूक्ष्म पोषक होते हैं। पौधे जड़ों के माध्यम से मिट्टी से पोषक प्राप्त करते हैं, जो पानी में मिलकर जड़ों से अवशोषित होते हैं।

प्रश्न 1. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए।

उत्तर –

खाद (Manure)उर्वरक (Fertilizer)
1) ये गोबर तथा गले-सड़े पौधों जैसे प्राकृतिक पदार्थों से बनती हैं।

(2) ये मुख्यतः कार्बनिक पदार्थ हैं।

(3) ये अधिक स्थान घेरते हैं। इसलिए इनका स्थानांतरण तथा भंडारण असुविधाजनक है।

(4) ये नमी के अवशोषण से खराब नहीं होते।

(5) इनमें पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाशियम जैसे पोषक तत्व अधिक मात्रा में नहीं होते।

(6) खादें पोषक विशेष नहीं होतीं। ये केवल मिट्टी

के सामान्य प्रभाव को पूरा कर सकती हैं।

(7) खादें मिट्टी को ह्यूमस प्रदान करती हैं।

(8) खादें मिट्टी के गठन को प्रभावित करती हैं। जिससे मिट्टी में पौधों को थामे रखने की क्षमता प्रदान करा देती हैं।

(9) खादें जल में अघुलनशील होती हैं जिससे फसली पौधों द्वारा इनका अवशोषण धीरे-धीरे होता

हैं।

(1) ये कृत्रिम पदार्थ हैं जो कारखानों में तैयार किए

जाते हैं।

(2) ये मुख्यत: अकार्बनिक पदार्थ हैं।

(3) ये कम स्थान घेरते हैं। इसलिए इनका स्थानांतरण तथा भंडारण सुविधाजनक है।

(4) ये नमी का अवशोषण करके खराब हो जाते हैं

(5) इनमें पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाशियम जैसे पोषक तत्व बहुत अधिक मात्रा में होते हैं।

(6) उर्वरक पोषक विशेष होते हैं। नाइट्रोजन युक्त, फॉस्फोरस तथा पोटाशियम युक्त उर्वरक मिट्टी में मिला देने से कोई भी वांछित पोषक तत्व प्राप्त किया जा सकता है।

(7) उर्वरक मिट्टी को ह्यूमस प्रदान करते हैं।

(8) उर्वरक मिट्टी के गठन (Texture) को प्रभावित नहीं करते।

(9) उर्वरक जल में घुलनशील होने के कारण फसली पौधों द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिए जाते हैं।

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा ? क्यों ?
(अ) किसान उच्च कोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई न करें अथवा उर्वरक का उपयोग न करें।
(ब) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(स) किसी अच्छी किस्म के बीज प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियां अपनाए।

उत्तर- (स) किसान अच्छी किस्म के बीज प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियां अपनाएं। इनसे अच्छी फसल की प्राप्ति होगी। अच्छे बीजों का चयन इस आधार पर करना चाहिए कि वे अनुकूल परिस्थितियों में उग सकें। संकरण विधि से प्राप्त ऐसे बीजों का चयन किया जाना चाहिए जो रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधिता गुणों से युक्त हों। उनमें उत्पादन की गुणवत्ता तथा उच्च उत्पादन क्षमता होनी चाहिए। अच्छे गुणों वाली जीन से युक्त बीज ही उपयुक्त होते हैं। सिंचाई आवश्यकतानुसार नियमित रूप से की जानी चाहिए। सिंचाई की कमी से फसल उत्पाद कम प्राप्त होते हैं। उर्वरकों के प्रयोग से फसल की प्रकृति के अनुसार नाइट्रोजन, पोटैशियम तथा फॉस्फोरस तत्व मिट्टी में मिलाए जा सकते हैं जिससे उर्वरकता बढ़ती है और अच्छी फसल प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 1. फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियां तथा जैव नियंत्रण क्यों अच्छा समझा जाता है ?

उत्तर- फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियां तथा जैव नियंत्रण अति आवश्यक है। तरह-तरह के जैविक और अजैविक कारक फसल को खराब कर देते हैं जिस कारण उत्पादक और व्यापारी को आर्थिक हानि होने के साथसाथ मानसिक आघात भी पहुंचता है। इन निरोधक विधियों और जैव नियंत्रण को न अपनाने से निम्नलिखित क्षति होती

(i) फसल की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
(ii) फसल का वज़न कम हो जाता है।
(iii) अंकुरण की क्षमता कम हो जाती है। इन सब कारणों से उत्पाद की कीमत कम हो जाती है।

प्रश्न 2. भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं ?

उत्तर- भंडारण के दौरान जैविक और अजैविक कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं। जैविक कारक हैं :- कीट, कुंतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु। अजैविक कारक हैं-भंडारण के स्थान पर उपयुक्त नमी और ताप का असंतुलन। पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों ?

उत्तर- पशुओं की नस्ल सुधार के लिए लंबे समय तक दुग्ध स्रावण काल वाली जर्सी, ब्राउन स्विस जैसी नस्लों तथा रोगों के प्रति प्रतिरोधिता में अच्छी देशी नस्लों रेडसिंधी तथा साहीवाल में संकरण कराया जाता है ताकि संकर पशु में दोनों अधिक दुग्ध स्रावण काल तथा रोगों की प्रतिरोधिता के गुण हों।

प्रश्न 1. निम्नलिखित कथन के उपयोग की विवेचना कीजिए
“यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम हैं। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते।”

उत्तर- यह कथन पूर्ण रूप से सत्य है। कुक्कटों का गेहूं, चावल, ज्वार, जौ, बाजरा आदि के दले हुए दानों के साथ हड्डी चूरा, व्यर्थ मांस खाद्य आदि खाने के लिए दिए जाते हैं। जो प्रायः मानवों के द्वारा प्रयुक्त नहीं किए जाते। कुक्कट इन्हें खाकर इनका अंडों और मांस में संश्लेषण करते हैं तथा उच्च कोटि के पोषक पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तित कर देते हैं। उनके अंडों में 36% पीतक तथा 64% प्रोटीन होती है उनके मांस में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन होते हैं।

प्रश्न 1. पशु पालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में क्या समानता है ?

उत्तर- पशु पालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में समानता है। दोनों में ही संकरण से श्रेष्ठ जातियां प्राप्त | की जाती हैं ताकि उनसे मानव के लिए उपयोगी खाद्य प्राप्त किए जा सकें जो मात्रा और गुणवत्ता में श्रेष्ठ हों। दोनों को ही अनेक कारणों से अनेक रोग हो जाते हैं जिनसे बचाव के लिए उचित प्रबंध किए जाने आवश्यक हैं। दोनों के पालन में आहार की ओर ध्यान देना परम आवश्यक है। इससे उनकी मृत्यु दर कम हो जाती है तथा उत्पादों की गुणवत्ता बनी रहती है। उनके आवास में उचित ताप, स्वच्छता और प्रबंधन की समान रूप से आवश्यकता होती है। संक्रामक रोगों से बचाने के लिए दोनों को टीका लगवाना आवश्यक है।

प्रश्न 2. ब्रौलर और अंडे देने वाली लेयर में क्या अंतर है ? उनके प्रबंधन के अंतर को भी स्पष्ट करें।

उत्तर- ब्रौलर मांस प्रदान करते हैं जबकि लेयर अंडे देते हैं। लेअर को रहने के लिए पर्याप्त स्थान, प्रकाश और पौष्टिक दोनों देना चाहिए जबकि ब्रौलर को प्रोटीन, वसा तथा विटामिन A और K से युक्त कुक्कुट आहार देना चाहिए। ब्रौलर की मृत्यु दर कम है लेकिन लेयर की मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक होती है। ब्रौलर 6-7 सप्ताह में ही मांस के लिए उपयोग में लाया जा सकता है, जबकि लेयर 20 सप्ताह के बाद अंडे दे सकता है।

प्रश्न 1. मछलियाँ कैसे प्राप्त की जाती हैं ?

उत्तर- मछली समुद्री जल और ताजे जल दोनों से प्राप्त की जाती है। ताजा जल नदियों और तालाबों में होता है। मछली पकड़ना और मछली संवर्धन समुद्र तथा ताजे पानी के पारिस्थितिक तंत्र में किया जाता है। मछली पकड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के जालों का उपयोग मछली पकड़ने वाली नाव से किया जाता है। सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि गंभीरता मापी से खुले समुद्र में मछलियों के बड़े समूहों का पता लगाकर उन्हें जालों से पकड़ लिया जाता है।

प्रश्न 2. मिश्रित मछली संवर्धन के क्या लाभ हैं ?

उत्तर- मिश्रित मछली संवर्धन से देशी-विदेशी मछलियां पाई जा सकती हैं। ऐसे तंत्रों से अधिक मात्रा में मछली प्राप्त होती है। एक ही तालाब में 5 या 6 मछली की जातियों को बढ़ाया जा सकता है। मछलियां एक स्थान पर रहकर पानी की अलग-अलग सतहों से भोजन प्राप्त करती हैं। ग्रास कार्य जाति की मछलियां तो खरपतवार तक खा लेती हैं। मछलियों में आहार के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं होती। तालाब के हर भाग में स्थित आहार का उपयोग हो जाता है।

प्रश्न 1. मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधु मक्खी में कौन-से ऐच्छिक गुण होने चाहिएं ?

उत्तर- (i) मधु मक्खी में मधु एकत्र करने की क्षमता अधिक होनी चाहिए।
(ii) उसे डंक कम मारना चाहिए।
(iii) प्रजनन तीव्रता से करना चाहिए।
(iv) अपने छत्ते में अधिक समय तक रहें।
(v) स्वयं को दुश्मनों से बचा सके।

प्रश्न 2. चरागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे संबंधित हैं ?

उत्तर- चरागाह वह विस्तृत घास और अन्य वनस्पतियों से भरा स्थान है जहां पर मधु मक्खियां फूलों से मकरंद और पराग इकट्ठा करती हैं। जिस चरागाह में जितने अधिक और भिन्न प्रकार के फूल होंगे उतनी ही किस्में मधु के स्वाद की भी होंगी इसलिए मधु उत्पादन का चरागाह से संबंध है।

अभ्यास के प्रश्न

प्रश्न 1. फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन करो जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।

उत्तर- फसल उत्पादन की जिस विधि से अधिक पैदावार प्राप्त हो सकती है, वह अंतरा फसलीकरण है। इस विधि में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ किसी खेत में निर्दिष्ट पैटर्न पर उगाया जाता है। कुछ पंक्तियों में एक प्रकार की फसल तथा उनके एकांतर में स्थित दूसरी । पंक्तियों में दूसरी प्रकार की फसल उगाते हैं। उदाहरण

(i) सोयाबीन + मक्का (ii) बाजरा + लोबिया।

फसलों का चुनाव उनकी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। वे आवश्यकताएं भिन्न-भिन्न होनी चाहिए ताकि पोषकों का उपयोग अधिक से अधिक हो सके। इस विधि से सभी फसल के पौधों में पीडकों और रोगों को फैलने से रोका जा सकता है।

प्रश्न 2. खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग क्यों करते हैं ? अतरा फसलकिरण

उत्तर- खेतों में खाद का उपयोग मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ा कर पोषक हेतु किया जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है और उसकी रचना में सुधार होता है। इसके कारण रेतीली मिट्टी में पानी को रखने की क्षमता बढ़ जाती है तथा चिकनी मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की अधिक मात्रा पानी को निकालने में सहायता करती है जिससे पानी इकट्ठा नहीं होता। उर्वरकों के प्रयोग से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम की मात्रा मिट्टी में बढ़ जाती है जिससे पौधों में कायिक वृधि अच्छी होती है तथा उन्हें स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 3. अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ हैं ?

उत्तर- अंतराफसलीकरण से एक साथ किसी खेत से दो या दो से अधिक फसलों को प्राप्त किया जा सकता है। इससे पोषक तत्वों का अधिकतम उपयोग हो पाता है। इससे पीड़कों और रोगों को फसल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है और अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित तरीके से तरह-तरह की फसलों को फसल चक्र के अंतर्गत उगाया जाता है। परिपक्वन काल के आधार उचित फसल चक्र को अपनाने से वर्ष में दो-तीन फसलों का अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

इससे निम्नलिखित लाभ होते हैं

1. मिट्टी की उर्वरकता होती है।
2. उत्पादन में वृद्धि होती है।
3. खेत को खाली नहीं छोड़ना पड़ता।
4. एक ही खेत में फ़सलों की अदला-बदली हो जाती है।
5. मृदा में पोषक तत्व नियंत्रित रहते हैं और मृदा की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
6. नाइट्रोजन वर्ग के उर्वरकों की बचत होती है।
7. पीड़कों के नियंत्रण में सहायता प्राप्त होती है।
8. फ़सलें रोगों से बच जाती हैं।
9. कीटों में वृद्धि पर रोक लगती है।

प्रश्न 4. आनुवंशिक फेरबदल क्या है ? कृषि प्रणालियों में यह कैसे उपयोगी है?

उत्तर- आनुवंशिक फेरबदल पौधों में ऐच्छिक गुणों को डालने की प्रक्रिया है। इसके द्वारा रोग की प्रतिरोग प्रतिरोधकता, उर्वरक के प्रति अनुरूपता, उत्पादन की गुणवत्ता तथा उच्च उत्पादन क्षमता के गुणों की प्राप्ति की जा सकती है तथा फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इस विधि से विभिन्न आनुवंशिक गुणों वाले पौधों में संकरण करवाते हैं। यह संकरण अंतराकिस्मीय (विभिन्न किस्मों में), अंतरास्पीशीज़ (एक ही जीनस की दो विभिन्न स्पीशीज में) तथा अंतरावंशीय (विभिन्न जेनरा में) हो सकता है। इसके परिणाम से आनुवंशिकीय रूपांतरित फसलें प्राप्त हो सकती हैं। कृषि प्रणालियों में इस विधि ने बीजों की नई-नई किस्में तथा जातियां प्रदान की हैं जिससे अनाज उत्पाद बढ़ा है तथा किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

प्रश्न 5. भंडार गृहों ( गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है ?

उत्तर- भंडार गृहों में अनाज की हानि दो प्रकार से होती है
(i) जैविक कारण (ii) अजैविक कारण।

जैविक आधार पर कीट, कुंतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु फसलों की गुणवत्ता को खराब करते हैं तथा उनके वजन को कम कर देते हैं। इससे उत्पाद बदरंग हो जाता है। उसमें अंकुरण की क्षमता कम हो जाती है।

अजैविक आधार पर नमी और ताप का अभाव फसलों को खराब कर देते हैं। फसल में फफूदी उत्पन्न हो जाती

प्रश्न 6. किसानों के लिए पशु पालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं ?

उत्तर- किसानों के लिए पशु पालन प्रणालियाँ बहुत उपयोगी हैं। इससे उन्हें खेती के साथ-साथ पशुओं से भी आर्थिक लाभ होता है।

(i) खाद्य पदार्थ देने वाले– गाय, भैंस आदि पशुओं से दूध मिलता है। दूध मनुष्य का पूर्ण भोजन है और शरीर की समुचित वृद्धि के लिए इसमें सभी आवश्यक तत्व विद्यमान होते हैं।

(ii) खाद की प्राप्ति- सभी पालतू पशु जैसे-बैल, भैंस, बकरी, ऊंट, घोड़ा, गाय आदि के अपशिष्ट से हमें खाद प्राप्त होती है।

(iii) खेतों में कार्य एवं बोझा ढोना- बैल, घोड़े, खच्चर, ऊंट आदि पशु किसान की खेती का काम करते हैं तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोते हैं।

प्रश्न 7. पशु पालन के क्या लाभ हैं ?

उत्तर- (i) दुधारू पशुओं से दूध की प्राप्ति होती है।
(ii) अंडों की प्राप्ति पोल्ट्री से होती है।
(iii) मत्स्य पालन तथा कुक्कट पालन से मांस की प्राप्ति होती है।
(iv) जंतु अवशिष्ट खाद बनाने में काम आते हैं।
(v) मधुमक्खी से मधु तथा मोम मिलती है।
(vi) बैल आदि पशुओं को कृषि पद्धतियों में प्रयोग में लाया जाता है।
(vii) बोझा ढोने वाले पशु बोझा ढोते हैं।

प्रश्न 8. उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कट पालन, मछली पालन तथा मधु मक्खी पालन में क्या समानताएँ हैं ?

उत्तर- उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कट पालन, मछली पालन तथा मधु मक्खी पालन में उचित देख-रेख तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रति अनुकूलता आवश्यकता है। उनके संवर्धन के लिए उचित परिस्थितियां बनाई जानी चाहिएं।

प्रश्न 9. प्रग्रहण मत्स्यन, मेरी कल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अंतर है ?

उत्तर- • प्राकृतिक स्रोतों से मछली प्राप्त करने की विधि को प्रग्रहण मत्स्यन कहते हैं।
• व्यावसायिक उपयोग के लिए समुद्री मछलियों का संवर्धन मेरीकल्चर कहलाता है।
• जल संवर्धन में जलीय जीवों का उत्पादन शामिल है जिसके आर्थिक मूल्य अधिक होते हैं, जैसे- झींगा मछली, केंकड़ा, मछली इत्यादि।

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