Class 8 Social Science History Chapter 9 – राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन
NCERT Solutions For Class 8th History Chapter 9 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन– हर विद्यार्थी का सपना होता है कि वे अपनी कक्षा में अच्छे अंक से पास हो ,ताकि उन्हें आगे एडमिशन या किसी नौकरी के लिए फॉर्म अप्लाई करने में कोई दिक्कत न आए . जो विद्यार्थी आठवीं कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यहां परएनसीईआरटी कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 9. (राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन) के लिए सलूशन दिया गया है.जोकि एक सरल भाषा में दिया है .क्योंकि किताब से कई बार विद्यार्थी को प्रश्न समझ में नही आते .इसलिए यहाँ NCERT Solutions For Class 8 Social Science History Chapter 9 The Making of the National Movement दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है .ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए .इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए निचे आपको एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 9 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तकदिया गया है .
कक्षा: | 8th Class |
अध्याय: | Chapter 9 |
नाम: | राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन |
भाषा: | Hindi |
पुस्तक: | हमारे अतीत III |
NCERT Solutions for Class 8 इतिहास (हमारे अतीत – III) Chapter 9 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक
अध्याय के सभी प्रश्नों के उत्तर
इन दशकों में लोग निम्नलिखित कारणों से ब्रिटिश शासन से असंतुष्ट थे
(1) अंग्रेज़ भारतीय संसाधनों पर कब्जा जमाए हुए थे।
(2) अंग्रेज़ भारतीय लोगों को अपना गुलाम मानने लगे थे।
(3) अंग्रेज़ों के कानूनों और नीतियों से भारतीयों का अहित हो रहा था।
(4) भारतीय लोग आर्थिक रूप से कमजोर होते जा रहे थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अवसरों से वंचित लोगों के पक्ष में बोल रही थी। कांग्रेस ने अंग्रेज़ी शासकों से माँग की कि विधान परिषदों में भारतीयों को ज्यादा जगह दी जाए। उसकी माँग थी कि सिविल सेवा के लिए लंदन के साथ-साथ भारत में भी परीक्षा आयोजित की जाए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गरीब काश्तकारों और जमींदारों का पक्ष लेते हुए माँग की कि गरीबी और अकाल पड़ने के कारण गरीब लोगों की हालत खराब हो गई है इसलिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उनके लगान माफ करने की माँग की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीयों के कामों में दखलअंदाजी करने वाले वन प्रशासन की वजह से वनवासियों की बढ़ती मुसीबतों के बारे में भी बहुत सारे प्रस्ताव पारित किए।
पहले विश्व युद्ध से भारत पर निम्नलिखित आर्थिक असर पड़े
(1) इस युद्ध की वजह से ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा व्यय में भारी वृद्धि हुई थी।
(2) युद्ध पर हुए खर्चे को निकालने के लिए अंग्रेजों ने निजी आय और व्यावसायिक मुनाफे पर कर बढ़ा दिया था।
(3) युद्ध की वजह से ज़रूरी चीजों की कीमतों में भारी उछाल आया और इससे आम लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गई।
(4) युद्ध के दौरान भारतीय उद्योगों का विस्तार हुआ और भारतीय व्यावसायिक समूह विकास के लिए और अधिक अवसरों की माँग करने लगे।
1940 में मुसलिम लीग ने अपने एक प्रस्ताव में यह माँग की थी कि देश के पश्चिमोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए ‘स्वतंत्र राज्यों’ का गठन किया जाए। मुसलिम लीग 1930 के दशक के आखिरी सालों से मुसलमानों और हिंदुओं को अलग-अलग ‘राष्ट्र’ मानने लगी थी।
मध्यमार्गी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वे नेता थे जिनका कांग्रेस की स्थापना के बाद आरंभिक 20 सालों में संगठन पर प्रभुत्व रहा। गोपालकृष्ण गोखले, व्योमेशचंद्र बैनर्जी, सुरेंद्रनाथ बैनर्जी और फिरोजशाह मेहता प्रमुख मध्यमार्गी नेता थे।
ये नेता अंग्रेजों के खिलाफ विनय-प्रार्थना की नीति पर चलकर संघर्ष करना चाहते थे। ये नेता चाहते थे कि अंग्रेजी राज के अंतर्गत भारतीयों को अधिक-से-अधिक सुविधाएँ प्राप्त हों, उन्हें निर्वाचित संस्थाओं में तथा सिविल सर्विस में स्थान प्राप्त करने का अवसर मिले।
1890 के दशक तक बहुत-से लोग कांग्रेस की राजनीतिक कार्यविधियों पर सवाल खड़ा करने लगे थे। बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र में विपिनचंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे नेता ज़्यादा आमूल परिवर्तनवादी उद्देश्य और पद्धतियों के अनुसार कार्य करने लगे थे। उन्होंने “निवेदन की राजनीति” के लिए नरमपंथियों की आलोचना की और आत्मनिर्भरता तथा रचनात्मक कार्यों के महत्त्व पर जोर दिया। उनका कहना था कि लोगों को सरकार के “नेक” इरादों पर नहीं बल्कि अपनी ताकत पर भरोसा करना चाहिए : लोगों को स्वराज के लिए लड़ना चाहिए। तिलक ने नारा दिया-“स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा!”
गाँधी जी ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड और खिलाफ़त के मामले में हुए अत्याचार के विरुद्ध मिलकर 1920 में असहयोग आंदोलन चलाया और भारतीयों को स्वराज की माँग करने के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन ने देश भर में निम्नलिखित रूप धारण किए
(1) खेड़ा, गुजरात में पाटीदार किसानों ने अंग्रेज़ों द्वारा थोप दिए गए भारी लगान के विरुद्ध अहिंसक अभियान चलाया।
(2) तटीय आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के अंदरूनी भागों में शराब की दुकानों की घेरेबंदी कर दी गई।
(3) आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में आदिवासी और गरीब किसानों ने बहुत सारे “वन सत्याग्रह” किए।
(4) बहुत सारे वन गाँवों में किसानों ने स्वराज का ऐलान कर दिया क्योंकि उन्हें आशा थी कि “गाँधी राज” जल्दी ही स्थापित होने वाला है।
(5) सिंध और बंगाल में भी खिलाफत-असहयोग के गठबंधन ने जबरदस्त सांप्रदायिक एकता को जन्म दिया।
(6) पंजाब में सिखों के अकाली आन्दोलन भी असहयोग आन्दोलन से काफी घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ दिखाई दे रहा था ।
गाँधी जी को लोग एक तरह का मसीहा, एक ऐसा व्यक्ति मानने लगे थे जो उन्हें मुसीबतों और गरीबी से छुटकारा दिला सकता है . असम में तो “गाँधी जी की जय” के नारे लगाते हुए चाय बगान मजदूरों में अपनी बागानों की नौकरी छोड़ दी।
1930 में गाँधी जी ने ऐलान किया कि वह नमक कानून तोड़ने के लिए यात्रा निकालेंगे। उस समय नमक के उत्पादन और बिक्री पर सरकार का एकाधिकार होता था। महात्मा गाँधी और अन्य राष्ट्रवादियों का कहना था कि नमक पर कर वसूली करना पाप है क्योंकि यह हमारे भोजन का एक बुनियादी हिस्सा है। गाँधी जी ने नमक कानून को एक चुनौती के रूप में लेते हुए इसे तोड़ने का निर्णय लिया। नमक कानून को तोड़ने के लिए उन्होंने 12 मार्च, 1930 को अपने साबरमती आश्रम से 78 अनुयायियों के साथ पद यात्रा शुरू की। 240 किलोमीटर का सफर तय करके वे 6 अप्रैल 1930 को अरब सागर के तट पर स्थित दांडी नामक स्थान पर पहुंचे और समुद्र से पानी लेकर नमक बनाया और नमक कानून को भंग किया।
1937-47 के बीच की निम्नलिखित घटनाओं के कारण पाकिस्तान का जन्म हुआ
(1) 1937 के प्रांतीय असैंबलियों के चुनावों में मुसलिम लीग को बहुत कम सीटें मिलीं। इन चुनावों से मुसलिम लीग को इस बात का यकीन हो गया कि हिंदुस्तान में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं और किसी भी लोकतांत्रिक संरचना में उन्हें गौण भूमिका निभानी होगी।
(2) लीग को इस बात का भय था कि संभव है हिंदुस्तान में मुसलमानों को प्रतिनिधित्व ही न मिल पाए।
(3) 1937 में मुसलिम लीग संयुक्त प्रांत में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती थी परंतु कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
(4) 1940 के दशक के शुरुआती सालों में जब कांग्रेस के अधिकतर नेता जेलों में थे उस समय लीग ने अपना प्रभाव फैलाने के लिए तेजी से प्रयास किए।
(5) 1945 में अंग्रेजों के साथ हुई कांग्रेस और लीग की वार्ता में लीग ने प्रस्ताव रखा कि केवल उसे ही मुसलमानों का एकमात्र प्रतिनिधि माना जाए लेकिन कांग्रेस इससे सहमत नहीं थी।
(6) 1946 के प्रांतीय चुनावों में मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर लीग को बेजोड़ सफलता मिली।
(7) मुसलिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी माँग मनवाने के लिए 16 अगस्त, 1946 को “प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” मनाने का आह्वान किया जिसके कारण देश के अनेक भागों में सांप्रदायिक दंगे फैल गए।
(8) लाखों लोगों के कत्लेआम के बाद 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान का एक नए देश के रूप में निर्माण किया गया।