NCERT Solutions For Class 8 Hindi Chapter 12 – सुदामा चरित
NCERT Solutions For Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित – जो उम्मीदवार आठवीं कक्षा में पढ़ रहे है उन्हें हिंदी विषय के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है .इसके बारे में 8th कक्षा के एग्जाम में काफी प्रश्न पूछे जाते है .इसलिए यहां पर हमने एनसीईआरटी कक्षा 8 हिंदी अध्याय 4. (सुदामा चरित)का सलूशन दिया गया है .इस NCERT Solutions For Class 8 Hindi Chapter 12. Sudama Charitra की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इसलिए आप Ch.4 सुदामा चरित के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
Class | 8 |
Subject | Hindi |
Book | वसंत |
Chapter Number | 12 |
Chapter Name | सुदामा चरित |
सुदामा चरित पाठ के अभ्यास के प्रश्न
कविता से
उत्तर- सुदामा की दीन दशा को देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत व्यथित हो गए। दूसरों पर दया करने वाले श्रीकृष्ण उनकी दयनीय दशा को देखकर स्वयं ही फूट-फूटकर रो पड़े। उन्होंने सुदामा के पैर धोने के लिए न तो परात को हाथ लगाया और न ही पानी को, अपितु अपने नयनों के आँसुओं से ही उनके पाँव धो डाले। इससे उनके मन की पीड़ा का पता चलता है।
उत्तर- इस पंक्ति में श्रीकृष्ण का अपने अभिन्न मित्र सुदामा के प्रति गहन प्रेम व्यक्त हुआ है। जब श्रीकृष्ण ने अपने बाल सखा सुदामा की दयनीय दशा देखी तो वे बहुत दुखी हुए। उनकी ऐसी बुरी हालत देखकर उनके दुख की कोई सीमा नहीं रही। ऐसे में वे सुदामा के पैर पानी से धोने की अपेक्षा अपने नयनों के आँसुओं से ही धो डालते हैं। यह उनका बाल सखा सुदामा के प्रति प्रेम भाव है जो आँसू बनकर सामने आता है। यही श्रीकृष्ण की मित्रता का आदर्श रूप है।
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर- (क) यह पंक्ति श्रीकृष्ण ने सुदामा से कही है।
(ख) जब सुदामा श्रीकृष्ण को अपनी पत्नी द्वारा भेजी गई चावलों की पोटली नहीं देते तब उन्होंने कहा कि तुम चोरी करने में बहुत निपुण हो। वे कहते हैं कि तुम अब भी बचपन की भाँति वस्तुओं को चुराकर अकेले ही खाना चाहते हो।
(ग) इस उपालंभ के पीछे द्वापर युग में घटी सुदामा एवं श्रीकृष्ण के मध्य की कथा है। वास्तव में घटना उस समय की है जब श्रीकृष्ण और सुदामा संदीपन ऋषि के आश्रम में पढ़ते थे। एक दिन गुरुमाता ने इन दोनों को चने देकर जंगल से लकड़ी तोड़कर लाने के लिए भेजा और कहा जब भूख लगे तो दोनों आपस में बाँटकर खा लेना। दोनों जंगल में लकड़ियाँ काटने चले गए। कुछ ही समय में जंगल में वर्षा होने लगी। दोनों पत्तों की ओट में छिपकर बैठ गए। दोनों को सर्दी लग रही थी और दोनों भूखे भी थे। इतने में सुदामा बिना कृष्ण को बताए चने चबाता रहा। श्रीकृष्ण को जब चने चबाने की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने सुदामा से पूछा क्या खा रहे हो तो सुदामा ने झूठ बोलते हुए कहा कि वह चने नहीं खा रहा, अपितु ठंड के कारण उसके दाँत कटकटा रहे हैं। अब भी सुदामा ने चावलों की पोटली को बगल में दबाया हुआ था। इसलिए श्रीकृष्ण ने उसे चोरी करने का उपालंभ दिया था।
उत्तर- जब तक सुदामा श्रीकृष्ण के पास रहा, उन्होंने उसकी बहुत सेवा की किंतु जब श्रीकृष्ण ने सुदामा को विदा किया तो उस समय उसकी कोई सहायता नहीं की। यह बात सुदामा को बहुत बुरी लगी। वे लौटते समय मार्ग में सोचते हैं कि श्रीकृष्ण के पास भले ही बहुत अधिक धन-दौलत है, परंतु इसने मेरे अभाव को मिटाने के लिए मुझे कुछ नहीं दिया। वे श्रीकृष्ण के ऐसे व्यवहार से खीझ उठते हैं क्योंकि उन्होंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी कि श्रीकृष्ण उन्हें खाली हाथ लौटा देंगे। सुदामा के मन में दुविधा उत्पन्न हो जाती है कि एक ओर तो उन्होंने उसका भव्य स्वागत किया और बहुत ही आदर-सत्कार से अपने पास रखा। विदाई भी सम्मानपूर्वक की किंतु विदाई के समय खाली हाथ क्यों भेज दिया। यही दुविधा सुदामा की खीझ का कारण भी बन जाती है।
उत्तर- जब सुदामा अपने गाँव लौटकर आए तो उन्होंने अपनी झोंपड़ी को खोजने का प्रयास किया किंतु उन्हें अपनी झोंपड़ी का पता न चल सका। क्योंकि श्रीकृष्ण की कृपा से सुदामा की झोंपड़ी सुंदर भव्य महल में बदल चुकी थी। अतः वे सोचने लगे कि वे कहीं गलती से द्वारका तो नहीं पहुंच गए। वे लोगों से सुदामा पांडे का घर पूछने लगे।
उत्तर- सुदामा का जीवन बहुत ही गरीबी में बीता था। वह गरीबी से तंग आकर पत्नी के कहने पर अपने बाल सखा श्रीकृष्ण के पास सहायता के लिए गया था। श्रीकृष्ण ने यद्यपि उसे प्रत्यक्ष रूप में कुछ नहीं दिया, इसलिए उसके मन में निराशा का भाव जागृत हुआ था। किंतु जब उसने अपने गाँव में जाकर देखा तो पाया कि वहाँ सब कुछ बदल गया था। उसकी झोंपड़ी के स्थान पर सोने का महल खड़ा था। उसमें हर प्रकार की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध थीं। पहले उसके पाँवों में पहनने को जूते नहीं थे, किंतु अब उसके पास सवारी के लिए हाथी थे। पहले कठोर जमीन पर रात कटती थी, अब नरम बिस्तर पर भी नींद नहीं आती। पहले उसे खाने को मोटा अनाज भी नहीं मिलता था किंतु अब श्रीकृष्ण की कृपा से प्राप्त अंगूर भी अच्छे नहीं लगते। यह सब भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से हुआ था।
कविता से आगे
उत्तर- महाभारत में द्रुपद और द्रोणाचार्य के प्रसंग से उनकी मित्रता एवं शत्रुता का पता चलता है। ये दोनों गुरु भाई थे। राजा द्रुपद बहुत अमीर था और द्रोणाचार्य बहुत निर्धन थे। राजा द्रुपद ने कहा कि जब मैं राजा बन जाऊँगा तो आधा राज्य तुम्हें दे दूंगा। कुछ समय पश्चात् द्रुपद राजा तो बन जाता है किंतु अपने मित्र को दिया हुआ वचन भूल जाता है। द्रोणाचार्य ने अपने जीवन में गरीबी के कारण बहुत दुख सहन किए थे। वे सहायता के लिए राजा द्रुपद के पास जाते हैं किंतु वह गरीब ब्राह्मण का अपमान करके उसे दरबार से बाहर निकलवा देता है। दूसरी ओर श्रीकृष्ण अपने गरीब मित्र सुदामा का आदर करते हैं। उसकी प्रत्यक्ष सहायता न करके भी उसके जीवन को धन-धान्य एवं सांसारिक वैभव से परिपूर्ण कर देते हैं। ऐसा श्रीकृष्ण इसलिए करते हैं कि कहीं उनकी मित्रता की भावना में कोई अंतर न आ जाए। इस प्रकार महाभारत की इन दोनों कथाओं में बहुत अंतर है। श्रीकृष्ण की मित्रता आदर्श मित्रता का उदाहरण है।
उत्तर- यह बात पूर्णतया सत्य है कि आज व्यक्ति उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर अपने निर्धन माता-पिता व भाई-बंधुओं से नजरें फेरने लग जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चरित’ एक चुनौती खड़ी करता है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। अपितु जन्म देने वाले माता-पिता व भाई-बंधुओं से मिल-जुलकर रहना चाहिए। श्रीकृष्ण और सुदामा दोनों गुरु भाई थे। श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बन गए। किंतु उनका बाल सखा सुदामा गरीबी के कारण कष्टमय जीवन व्यतीत करता रहा। जब सुदामा श्रीकृष्ण के पास सहायता के लिए गया तो श्रीकृष्ण ने अमीरी-गरीबी के भेदभाव के बिना उसे गले से लगा लिया था। उसके बिना कहे ही उसकी इतनी सहायता की कि उसकी गरीबी उसके आसपास भी नहीं रही। अतः ‘सुदामा चरित’ हमें बताता है कि हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को सदा निभाते रहना चाहिए।
अनुमान और कल्पना
उत्तर- यदि हमारा कोई अभिन्न मित्र कई वर्षों के पश्चात् हमें मिलने आए तो हमें अपार प्रसन्नता होगी। उसे मिलते ही हमें अपने पुराने समय की एक-एक घटना याद आने लगेगी। हमें अपने मित्र से उसके वर्तमान जीवन के विषय में भी जानकारी प्राप्त होगी।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत ॥
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
उत्तर- रहीम ने इस दोहे में बताया है कि जब मनुष्य के पास धन-दौलत या संपत्ति होती है तो बहुत-से लोग उसके मित्र बन जाते हैं किंतु जो विपत्ति के समय साथ देते हैं, वही सच्चे मित्र कहलाते हैं। _ ‘सुदामा चरित’ पर यह दोहा पूर्णतया खरा उतरता है क्योंकि श्रीकृष्ण एवं सुदामा दोनों बचपन के मित्र हैं। श्रीकृष्ण बड़ा होकर द्वारका का राजा बन जाता है। सुदामा गरीब ही रहता है। पत्नी के कहने पर सुदामा अपने मित्र श्रीकृष्ण के पास सहायता के लिए जाता है तो श्रीकृष्ण उसका बहुत ही आदर-सत्कार करते हैं। उसकी दीन दशा को देखकर बहुत दुखी होते हैं। जब सुदामा घर लौटते हैं तो देखते हैं कि झोंपड़ी के स्थान पर श्रीकृष्ण ने सोने का महल बनवा दिया और उसमें सब सुख-सुविधाएँ भी उपलब्ध करवा दी थीं। यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से श्रीकृष्ण ने सुदामा की कोई सहायता नहीं की ताकि उसमें हीन-भावना न आ जाए। इससे पता चलता है कि रहीम का दोहा सुदामा चरित पर खरा उतरता है।
भाषा की बात
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।
उत्तर- “कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।”