NCERT Solutions For Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 6 – अंतिम दौर – एक
NCERT Solutions For Class 8 Hindi (Bharat Ki Khoj ) Chapter 6. अंतिम दौर – एक – जो उम्मीदवार आठवी कक्षा में पढ़ रहे है उन्हें अहमदनगर का किला के बारे में पता होना बहुत जरूरी है .अंतिम दौर – एक कक्षा 8 के हिंदी के अंतर्गत आता है. इसके बारे में 8th कक्षा के एग्जाम में काफी प्रश्न पूछे जाते है .इसलिए यहां पर हमने एनसीईआरटी कक्षा 8th हिंदी भारत की खोज अध्याय 6 (अंतिम दौर – एक ) का सलूशन दिया गया है .इस NCERT Solutions For Class 8 Hindi Chapter 6. Antim Daur Ek की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इसलिए आप Ch.1 अंतिम दौर – एक के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
अंतिम दौर एक पाठ संबंधी प्रश्नोत्तर
उत्तर- विदेशी शासकों का भारत में आना कोई नई घटना नहीं थी, किंतु ब्रिटिश शासकों से पहले के शासक भारत का ही हिस्सा बन गए थे। वे भारत को अपना देश मानने लगे थे। ब्रिटिश शासन का भारत में आना ऐसी पहली घटना थी कि ब्रिटिश शासक भारत में नहीं अपितु भारत से सुदूर रहते थे। भारत ऐसे शासन-संचालन में बँध गया था कि जिसका संचालन केंद्र भारत की धरती पर नहीं था। कहने का भाव है कि भारत के लिए कानून-व्यवस्था इंग्लैंड में बिना भारतीयों के परामर्श से बनती थी। इसलिए भारत के लिए यह एक अनोखी घटना थी।
उत्तर- अंग्रेज़ शासक बहुत चुस्त एवं चालाक थे। उन्होंने अपने लाभ के लिए भारतवर्ष में भारतीय आम जनता और शासक वर्ग के बीच एक ऐसे वर्ग को जन्म दिया जो उनके कहे अनुसार चल सके। उनमें ज़मींदार, राजा, पटवारी, गाँव के मुखिया व ऊपर के कर्मचारी आदि थे। ये सरकार के पिछलग्गू थे। ये साधारण जनता से धन बटोरकर अंग्रेज़ों को लाभ पहुँचाते थे।
उत्तर- अंग्रेज़ी शासनकाल में अंग्रेजी स्वार्थों की सुरक्षा के लिए जिले के प्रमुख पद पर जिला मजिस्ट्रेट या डिप्टी कलेक्टर को नियुक्त किया जाता था।
उत्तर- मालगुजारी एक प्रकार से चुंगी कर होता था जो गाँवों से शहर में लाए जाने वाले माल पर लगाया जाता था। उस कर को देने के पश्चात् ही माल नगर या शहर में ब्रिकी हेतु लाया जा सकता था।
उत्तर- भारतवर्ष में प्राकृतिक संपदा व साधनों की कमी नहीं थी। किंतु अंग्रेज़ी शासन ने आर्थिक नीतियाँ इस प्रकार बनाई हुई थी जिससे भारत का अधिक-से-अधिक धन ब्रिटेन में पहुँच जाए, इसलिए यहाँ के प्राकृतिक साधनों का लाभ आम जनता की अपेक्षा अंग्रेज़ सरकार को ही होता था। यही कारण है कि भारतवर्ष अमीर एवं साधन संपन्न होने पर भी भारत की आम जनता गरीब थी।
उत्तर- भारतीय जनता में चेतना जागृत करने का श्रेय अंग्रेजों को दिया जाता है क्योंकि अंग्रेज़ों ने यहाँ पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने के लिए लोगों को शिक्षित करना ही उचित समझा। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने शिक्षा का प्रसार किया। भारतीय जनता ने शिक्षित होने पर ही आधुनिक युग को समझा और दासता के बंधन से मुक्त होने का प्रयास किया।
उत्तर- जब भारत में अंग्रेज़ी शासन कायम हुआ तो उन्हें विभिन्न विभागों में कार्य करने के लिए छोटे कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ी। यदि इन छोटे पदों पर अंग्रेज़ों को रखा जाता है तो उन्हें अधिक वेतन देना पड़ता। इस कठिनाई को देखते हुए भारतीयों को शिक्षित किया गया ताकि उन्हें कम वेतन पर कार्यालयों में काम करने हेतु क्लर्क मिल सकें। अतः स्पष्ट है कि अंग्रेज़ों का भारतीयों को शिक्षित करने के पीछे बहुत बड़ा स्वार्थ निहित था।
उत्तर- अंग्रेजी सरकार ने अपने सरकारी कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए भारत में अनेक क्षेत्रों को उन्नत करने के प्रयास किए। उनमें से प्रमुख हैं-नई तकनीक, रेलगाड़ी, छापाखाना, डाकतार विभाग आदि।
उत्तर- 18वीं शताब्दी में बंगाल में जिस प्रभावशाली व्यक्तित्व का उदय हुआ, वे थे-राजा राममोहन राय। वे नई विचारधारा वाले व्यक्ति थे। उन्हें भारतीय संस्कृति और विचारधारा की गहन जानकारी थी। उन्होंने अनेक भाषाएँ सीखी थीं। वे भारतीय जनता को पुरानी पंडिताऊ पद्धति से बाहर निकालना चाहते थे। वे अपने समय के महान समाज-सुधारक भी थे। उन्हीं के प्रयास से सती-प्रथा पर रोक लगी थी। वे भारतीय जनता को आधुनिक विचारधारा से जोड़कर उसमें नवीन चेतना का संचार करना चाहते थे। राजा राममोहन राय दिल्ली के सम्राट की ओर से इंग्लैंड भी गए थे।
उत्तर- सन् 1857 में भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की घटना घटी थी। बंगाल और पश्चिम भारत तथा बंबई में अंग्रेज़ी । शासन की नीतियों के कारण किसान आर्थिक बोझ के नीचे पिस रहा था। नया बुद्धिजीवी वर्ग अंग्रेज़ों की उदारता द्वारा प्रगति की उम्मीद लगाए बैठा था किंतु उत्तरी भारत में ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ। यहाँ के सूबों के राजाओं और सामंतों में विद्रोह की भावना बढ़ रही थी। सन् 1857 में मेरठ की सेना ने बगावत कर दी। विद्रोह की योजना खुफ़िया ढंग से बनाई गई थी। किंतु समय से पहले विद्रोह होने से योजना बिगड़ गई। यह सैनिक-विद्रोह न रहकर बाद में जन-आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में परिवर्तित हो गया। इस संघर्ष की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें हिंदुओं और मुसलमानों ने मिलकर भाग लिया था। यद्यपि इस जन-क्रांति ने ब्रिटिश शासन पर पूरा दबाव डाला तथापि अंत में संगठन एवं दूरदर्शिता के अभाव के कारण असफल रहा। इस क्रांति में तात्या टोपे, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। वह बीस वर्ष की आयु में ही लड़ते-लड़ते शहीद हो गई। अंग्रेज़ सेनानायकों ने भी उसकी बहादुरी की प्रशंसा की थी। इस महान क्रांति ने ब्रिटिश शासन को झकझोर कर रख दिया था। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार को अपने शासन का पुनर्गठन करना पड़ा।
उत्तर- स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर ने ‘द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ नामक पुस्तक लिखी थी। उन्होंने इस पुस्तक में सन् 1857 की महान क्रांति और प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की घटनाओं का सच्चा और यथार्थ वर्णन किया था। साथ ही अंग्रेज़ों की अन्यायपूर्ण नीतियों और उनके अत्याचारों का भी उल्लेख किया था। इसीलिए अंग्रेज़ सरकार ने इस पुस्तक को प्रकाशित होते ही ज़ब्त कर लिया था। .
उत्तर- स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे। उन्हें भारत की विरासत पर गर्व था। वे प्राचीन एवं नवीन विचारधारा को जोड़ने वाली महान कड़ी थे। वे अत्यंत शालीन एवं गरिमामय व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने भारतीय जनता को जगाने का महान प्रयास किया था, जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली थी। उन्होंने भारत की ओर से अंतर्राष्ट्रीय धर्म-सम्मेलन में भाग लेकर भारत के धार्मिक दृष्टिकोण से विश्व को अवगत करवाया था। वे जातिगत भेदभाव के विरुद्ध थे। वे मानव की दुर्बलता को पाप समझते थे। उन्होंने निडर बनने का संदेश दिया था। वे अंधविश्वासों में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने उस हर बात का विरोध किया जो हमें कमजोर बनाती है तथा उसे तुरंत त्यागने पर भी बल दिया। वे मानते थे कि अंधविश्वासी होने से तो नास्तिक होना अच्छा है। आज उनके विचार हिमालय से कन्याकुमारी तक प्रसिद्ध हैं।
उत्तर- भारतीय धर्म में रूढ़िवादी रीति-रिवाजों के होने के कारण राजा राममोहन राय ने समाज सुधारवादी आधार पर अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने इस उद्देश्य से ब्रह्म-समाज की स्थापना की। उनके शिष्य केशवचंद्र ने इस धर्म को ईसाई धर्म का रूप ही दे डाला अर्थात् उसमें ईसाई धर्म के नियमों को स्वीकृति दे दी। फलस्वरूप यह कुछ ही भारतीयों तक सीमित रह गया।
उत्तर- उन्नीसवीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, ऐनी बेसेंट, सर सैयद अहमद खाँ, अबुल कलाम आज़ाद, गोपाल कृष्ण गोखले एवं बाल गंगाधर तिलक मुख्य समाज सुधारक हुए। इन्होंने अंग्रेज़ी शासन के प्रभाव के होते हुए भी लोगों की विचारधारा को बदलना चाहा। उनमें राष्ट्रीयता की भावना भरकर उन्हें धार्मिक कर्म-कांडों से हटाना चाहा।
उत्तर- स्वामी दयानंद उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम भाग में हुए। वे एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय धार्मिक विचारों को वेदों की ओर मोड़ दिया था। वे वेदों को भारतीय धर्म का आधार बताते थे। उनका नारा था-वेदों की ओर लौटो। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की जिसके माध्यम से अपने विचारों को जनता तक पहुँचाया। दयानंद सरस्वती के विचारों का प्रसार मुख्य । रूप से पंजाब और संयुक्त प्रदेश में हुआ। इनके विचारों ने मध्य वर्ग के हिंदुओं को विशेष रूप से प्रभावित किया। सरस्वती जी ने लड़कों और लड़कियों में कोई भेद नहीं माना। उन्होंने नारी शिक्षा पर भी बल दिया। जातिगत भेदभाव का खंडन करते हुए दलित वर्ग को ऊपर उठाने का महान प्रयास किया। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों तथा धार्मिक रूढ़ियों का जोरदार शब्दों में खंडन. किया।
उत्तर- रवींद्रनाथ टैगोर महान साहित्यकार एवं संवेदनशील व्यक्ति थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश-हित के लिए अर्पित किया। उन्होंने साहित्य रचना के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। स्वदेशी आंदोलन में तो उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वे ब्रिटिश सरकार के विरोधी थे। जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के बाद उन्होंने अपनी ‘सर’ की उपाधि भी लौटा दी थी। वे भारत को आधुनिक विचारों से जोड़ने के पक्ष में थे। वे विदेशों के ज्ञान को भारत में और भारत के ज्ञान का प्रचार विदेशों में करने में सफल रहे। उनकी विचारधारा उपनिषदों से प्रभावित थी। उन्होंने लोगों को संकीर्ण भावना को त्यागने और मानवीय भावनाओं को अपनाने का महान संदेश दिया।
उत्तर- सन् 1857 की क्रांति के बाद भारत के मुसलमान असमंजस में थे क्योंकि वे निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि वे ब्रिटिश सरकार के साथ थे या फिर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदुओं के साथ। इसका परिणाम यह हुआ कि एक नए वर्ग का जन्म हुआ, जिसका लाभ उठाकर अंग्रेज़ सरकार ने अपना स्वार्थ सिद्ध किया।
उत्तर- ‘आर्य समाज’ एक सामाजिक आंदोलन था। इसका जन्म इस्लाम और ईसाई धर्मों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ था, विशेषकर इस्लाम की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप। यह सुधारवादी आंदोलन का रूप धारण करके आगे बढ़ा था। इसने धर्म परिवर्तन करके हिंदू धर्म में पुनः प्रवेश करने की प्रथा का आरंभ किया। इसमें जातिगत भेदभाव का खंडन किया गया तथा लड़के-लड़की के भेद को भी समाप्त किया गया। नारी शिक्षा पर भी बल दिया गया। दलितों की स्थिति को सुधारने का बेड़ा भी आर्य समाज ने उठाया था। अंग्रेज़ सरकार आर्य समाज के आंदोलन से प्रभावित हुए बिना न रह सकी। इसलिए उसने इस आंदोलन को राजनीतिक एवं क्रांतिकारी आंदोलन माना।
उत्तर- सर सैयद अहमद खाँ एक उत्साही समाज सुधारक थे। उन्होंने मुसलमानों की ब्रिटिश विरोधी भावना को कम करने की कोशिश की। उन्होंने अलीगढ़ कॉलेज की स्थापना की। उनका घोषित उद्देश्य था-‘भारत के मुसलमानों को ब्रिटिश ताज की योग्य और उपयोगी प्रजा बनाना।’ सर सैयद अहमद खाँ का प्रभाव मुसलमानों में उच्च वर्ग के कुछ लोगों तक ही सीमित था।
उत्तर- अबुल कलाम आज़ाद सुप्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम नेता थे। उन्होंने मुसलमानों में नई विचारधारा का विकास किया। सन् 1912 में मुसलमानों के दो साप्ताहिक पत्र निकले। उर्दू में ‘अल-हिलाल’ और अंग्रेज़ी में ‘द कॉमरेड’ । अल-हिलाल का आरंभ अबुल कलाम आज़ाद ने किया। उस समय वे कांग्रेस के वर्तमान सभापति के पद पर थे। वे पुराने नेताओं के सामंती, संकीर्ण धार्मिकता और अलगाववादी दृष्टिकोण से दूर थे। अपने इसी स्वभाव के कारण वे भारतीय राष्ट्रवादी माने गए। उन्होंने अपने विचारों की प्रस्तुति हेतु बोलचाल की उर्दू भाषा का प्रयोग किया ताकि आम जनता भी प्रभावित हो सके। अलीगढ़ कॉलेज की युवा शक्ति राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से रूढ़िवादी थी। उनका लक्ष्य निचले दर्जे की सरकारी नौकरी में प्रवेश पाना था लेकिन इसी कॉलेज में नए मुसलमान बुद्धिजीवियों का वर्ग भी पनपा जिन्होंने मुख्य रूप से ‘मुस्लिम लीग’ की नींव रखी। अबुल कलाम आज़ाद ने अपने प्रयत्नों से इसी मुस्लिम बुद्धिजीवियों के दिमाग में सनसनी पैदा की और उन्हें स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु उत्तेजित किया।
उत्तर- रवींद्रनाथ टैगोर महान शिक्षाविद् थे। इसलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में नया प्रयोग करने के लिए एक विशेष प्रकार के शिक्षा केंद्र की स्थापना की थी, जिसे उन्होंने ‘शांति-निकेतन’ नाम दिया। यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा पूर्ण सुविधाओं एवं प्राकृतिक संसाधनों द्वारा दी जाती थी। विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के चहुंमुखी विकास के लिए सभी संभव अवसर प्रदान किए जाते थे।
उत्तर- सर सैयद अहमद खाँ एक ऐसे नेता थे जो अंग्रेज़ों की सहायता से मुसलमानों को ऊपर उठाना चाहते थे। वे चाहते थे कि मुसलमान अंग्रेज़ी शिक्षा को ग्रहण करें। वे पूर्णतया अंग्रेज़ी सभ्यता से प्रभावित थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से शैक्षिक सहायता प्राप्त करने हेतु मुसलमानों में ब्रिटिश विरोधी भावना को कम करने का प्रयास किया था। उन्हें नेशनल कांग्रेस से दूर रहने का परामर्श भी दिया गया था।
उत्तर- सर सैयद अहमद खाँ मुस्लिम लोगों के विकास के लिए अंग्रेज़ों का विरोध नहीं करते थे। किंतु वे हिंदुओं के विरोधी या सांप्रदायिक दृष्टि से अलगाववादी नहीं थे। उनका मत था कि ‘हिंदू’ और ‘मुसलमान’ दो शब्द केवल धार्मिक अंतर स्पष्ट करने
के लिए हैं। वरन् सब लोग चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान यहाँ तक कि ईसाई भी जो इस देश में रहते हैं, एक ही राष्ट्र के लोग . हैं। वे सब भारतीय हैं।
उत्तर- ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना अलीगढ़ कॉलेज के उस वर्ग ने की थी, जो नए मुसलमान बुद्धिजीवियों का नेतृत्व कर रहा था। उन्होंने इसकी स्थापना मुसलमानों के हितों की रक्षा हेतु की थी।
अंतिम दौर एक पाठ के बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर
इस पोस्ट में आपको भारत की खोज के प्रश्न उत्तर Chapter 6 Class 8 Bharat Ki Khoj Class 8 Hindi Chapter 6 Question Answers एनसीईआरटी कक्षा 8 हिंदी – भारत की खोज अध्याय 6 अंतिम दौर – एक NCERT Class 8 Hindi Bharat ki Khoj Chapter 6 Antim Daur Ek भारत की खोज अंतिम दौर एक के प्रश्न उत्तर Chapter 6 अंतिम दौर एक प्रश्न उत्तर Class 8 Hindi Chapter अंतिम दौर – एक से संबंधित पूरी जानकारी दी गई है अगर इसके बारे में आपका कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके हम से जरूर पूछें और अगर आपको यह जानकारी फायदेमंद लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें.
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