उत्तर- अकबर उदार एवं विनम्र प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था। उसके दिल में जनता के प्रति अनोखा प्रेम था। वह दूसरे धर्मों का आदर करता था। अपनी इसी उदार नीति एवं धर्मनिरपेक्षता से उसने भारतीयों का दिल जीत लिया था। उसने भारत के राजपूत राजाओं से वैवाहिक एवं राजनीतिक संबंध स्थापित किए थे। उसने राजपूत राजकुमारी से विवाह किया था। उसका बेटा जहाँगीर, जो अकबर का उत्तराधिकारी था, राजपूत माँ का बेटा था। उसमें भारतीयों के गुण थे। इसी प्रकार जहाँगीर का बेटा शाहजहाँ की माँ भी राजपूत थी। उसमें भी भारतीयता के गुण थे। भारत ही उनका घर था। इसलिए यह कहना उचित है कि अकबर के उत्तराधिकारी तुर्क-मंगोल होने की अपेक्षा भारतीय अधिक थे।
उत्तर- अकबर ने अपने दरबार में बहुत सूझ-बूझ वाले लोगों के समूह को एकत्रित किया हुआ था। यह समुदाय उन लोगों का था, जो अकबर के आदर्शों के प्रति समर्पित थे। इन लोगों में फैजी एवं अबुलफज़ल नाम के दो प्रसिद्ध भाई, बीरबल, राजा, मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना आदि शामिल थे। अकबर ने एक नए एवं समन्वित धर्म को आरंभ किया था। उसमें कई धर्मों की अच्छी बातों को सम्मिलित किया गया था। इसलिए अकबर जितना मुसलमानों में प्रसिद्ध था, उतना ही हिंदुओं में भी प्रसिद्ध था। अकबर को एक सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि इससे उसके विरोधी बहुत कम रह गए थे।
उत्तर- अकबर एक उदार हृदयी व्यक्ति था। उसने एक ऐसे शासन की व्यवस्था की थी, जो न केवल मुसलमानों के लिए होकर पूरे भारत एवं सभी धर्मों के लोगों के लिए था। उसे अकबर की शासन-व्यवस्था नहीं, अपितु भारतीय शासन-व्यवस्था कहा जा सकता है।
उत्तर- अकबर एक दूरदर्शी शासक था। वह चाहता था कि धर्म के नाम पर भी किसी प्रकार की कोई हिंसा न हो। वह भारत में धार्मिक एकता स्थापित करना चाहता था। इसलिए उसने सभी धर्मों के अच्छे गुण लेकर ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म की स्थापना की।
उत्तर- पुर्तगाली जेसुइट अकबर के दरबार से बहुत प्रभावित था। उसने अकबर के विषय में लिखा है कि अकबर की दिलचस्पी बहुत-सी बातों में थी और वह सबके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता था। उसे सैनिक एवं राजनीतिक विषयों का पूरा ज्ञान था, साथ ही यांत्रिक कलाओं का भी। न जाने उसकी जिज्ञासा केवल एक बिंदु पर क्यों रुक गई? वह केवल इस्लाम के साथ राष्ट्रीय धर्म और लोगों के रीति-रिवाज़ों का मेल करवाकर राष्ट्रीय एकता कायम करना चाहता था। वह अपनी इसी इच्छा में ही व्यस्त रहा। इसलिए उसकी जिज्ञासा के अन्य पक्ष धुंधले पड़ गए थे।
उत्तर- एशिया में मुगल बादशाहों का यश इसलिए फैला था कि उनकी वास्तु-कला का कोई मुकाबला नहीं कर सकता था। मगलों के शासनकाल में अत्यधिक संदर भवनों का निर्माण हआ। ये भवन दक्षिण के मंदिरों से भि विश्वभर में अपने ही प्रकार की इमारत है। ताजमहल आज भी विश्व के लोगों के आकर्षण का केंद्र है।
उत्तर- आरंभ में भले ही मुसलमान भारत में अजनबी रहे हों, किंतु उन्होंने शीघ्र ही अपने आप को भारत के वातावरण में ढाल लिया था। इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह पड़ा कि हिंदू और मुसलमानों में पारस्परिक मेल-जोल बढ़ा, जिससे दोनों की आदतें, रहन-सहन का ढंग एवं कलात्मक रुचियाँ एक-सी हो गईं। व्यापार एवं उद्योग भी समान हो गए। हिंदू मुसलमानों को भारत का अंग समझने लगे थे। वे एक-दूसरे के त्यौहारों, विवाह-शादियों में शरीक होने लगे थे। वे एक ही भाषा बोलते थे। उस समय देश की बोलचाल की भाषा में हिंदी-फारसी के शब्दों का अधिक प्रयोग किया जाता था। दोनों की आर्थिक समस्याएँ भी एक-समान थीं। इतना कुछ होने पर भी साधारण जनता में वैवाहिक संबंध बहुत कम ही बन सके थे।
उत्तर- अब्दुल रहीम खानखाना अकबर के दरबार के अमीरों में से एक थे और उनके संरक्षक के पुत्र थे। वे अरबी, फारसी एवं संस्कृत तीनों भाषाओं के ज्ञाता थे। उनकी हिंदी कविता का स्तर बहुत ऊँचा था। उनके हिंदी भाषा में रचित दोहे आज भी भारतीय जनता में प्रसिद्ध है। उन्होंने विभिन्न विषयों पर स्वच्छंदपूर्ण दोहे लिखे थे। रहीम की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे स्वतंत्र भाव से लिखते थे। मेवाड़ का राणा प्रताप, जो सदा अकबर का विरोधी रहा और उसने कभी मुगल साम्राज्य के सामने घुटने नहीं टेके थे, उसकी भी रहीम ने प्रशंसा की। .
उत्तर- औरंगज़ेब अपने पूर्वजों से कई दृष्टिकोणों से भिन्न था। उसके पूर्वजों ने खुले दिल से हिंदुओं को अपनाया था। उन्होंने हिंदू-मुसलमान प्रशासन की नींव रखी थी। किंतु औरंगज़ेब हिंदुओं के खिलाफ हो गया। उसने अपने पूर्वजों द्वारा किए गए सभी उदार कार्यों पर पानी फेर दिया था। वह धार्मिक दृष्टि से अत्यंत कट्टर था। उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगा दिया था। उसने हिंदू मंदिरों को तुड़वा दिया था। उसका यह कार्य हिंदुओं के लिए असहनीय था। इसलिए अनेक हिंदू उसके खिलाफ खड़े हो गए। कदम-कदम पर उसे भारतीय राजाओं का विरोध सहन करना पड़ा। इस प्रकार औरंगज़ेब अपने प
उत्तर- औरंगज़ेब की नीतियाँ अत्यंत संकीर्ण और स्वार्थपूर्ण थीं। उसकी गलत नीतियों के कारण ही पंजाब के सिख और पश्चिम के मराठे उसके खिलाफ खडे हो गए। उसके शासनकाल में किसान भी बहत दखी थे। अच्छा शासक नहीं समझते थे। औरंगजेब के काल में उससे पहले के शासकों द्वारा स्थापित सामाजिक एकता टूट गई हिंदू-मुसलमानों के बीच फिर धार्मिक दीवार खड़ी हो गई।
उत्तर- मराठे मध्य भारत के रहने वाले थे। वे शक्तिशाली एवं योद्धा जाति के थे। वे अपनी राजनीतिक एवं सैनिक व्यवस्था तथा आदतों में अत्यंत उदार थे। वे लोकतांत्रिक भावना वाले थे। अपने इन्हीं गुणों के कारण वे शक्तिशाली बन पाए थे। उन्होंने अपनी सेना में बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों के लोगों को सम्मिलित किया हुआ था। 1784 ई० में वारेन हेस्टिंग्ज़ ने लिखा था- “हिंदोस्तान और दक्खिन के तमाम लोगों में से केवल मराठों के मन में राष्ट्र प्रेम की भावना है, जिसकी गहरी छाप राष्ट्र के हर व्यक्ति के मन पर है।”
उत्तर- शिवाजी मराठा सम्राट थे। इनका जन्म 1627 ई० में हुआ था। इनकी माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी को देशभक्त, बहादुर और पराक्रमी बनाने का श्रेय उनकी माता को जाता है। बाल्यकाल से ही इनकी माता ने इन की भावना कूट-कूट कर भरी थी। शिवाजी पहाड़ी क्षेत्र के सख्त जान लोगों के आदर्श छापामार नेता थे। इनके घुड़सवार दूर-दूर तक छापे मारते थे। इन्होंने मुगल साम्राज्य के दूर-दूर तक फैले क्षेत्रों पर चौथ कर लगाया। इन्होंने मराठों को एक शक्तिशाली सेना का रूप दिया। शिवाजी ने अपने राज्य में मुसलमानों को अत्यधिक नौकरियाँ दीं। 1680 ई० में महान मराठा नेता शिवाजी का निधन हो गया, लेकिन मराठा शक्ति तब तक बढ़ती गई, जब तक भारत पर उसका प्रभुत्व नहीं हो पाया।
उत्तर- औरंगज़ेब बड़ा ही निर्दयी एवं कठोर स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसकी मृत्यु 1707 ई० में हुई थी। उसके पश्चात् सौ वर्षों तक भारत पर अधिकार करने के लिए विभिन्न जातियों में युद्ध होते रहे। भारत पर अधिकार पाने वालों में प्रमुख चार दावेदार थे भारतीयों में मराठे, हैदरअली, उसका बेटा टीपू सुल्तान और विदेशियों में फ्रांसीसी और अंग्रेज़। इन सबमें शक्तिशाली मराठे थे। अनुमान लगाया जाता था कि मराठे ही पूरे भारत पर अपना अधिकार करेंगे।
उत्तर- नादिरशाह ईरान का शासक था। उसने दिल्ली पर आक्रमण दिल्ली को लूटने के लिए किया था। उसने दिल्ली का बेशुमार धन लूटा जिसमें प्रसिद्ध ‘तख्ने ताऊस’ भी था। उसकी लूटमार से दिल्ली के शासक अत्यधिक कमज़ोर हो गए।
उत्तर- नादिरशाह के हमले के निम्नलिखित परिणाम निकले थे
(क) मराठों की शक्ति बढ़ना-नादिरशाह के हमलों से दिल्ली के शासक अत्यंत कमज़ोर पड़ गए थे। मराठों ने दिल्ली और पंजाब पर भी अपना प्रभुत्व जमा लिया था।
(ख) मुगल साम्राज्य का अंत-नादिरशाह के हमलों और लूटमार से मुगलों की रही-सही शक्ति भी नष्ट हो गई थी। उनमें विरोधियों का मुकाबला करने का साहस नहीं रह गया था।
(ग) अफगानिस्तान का भारत से अलग होना-अफ़गानिस्तान लंबे समय से भारत का हिस्सा बना हुआ था, किंतु नादिरशाह के आक्रमणों से वह उसके राज्य का हिस्सा बन गया था।
उत्तर- सर्वप्रथम क्लाइव ने 1757 ई० में बंगाल का प्लासी का युद्ध जीत लिया। इससे बंगाल और बिहार पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। दक्षिण में अंग्रेज़ों ने फ्रांसीसियों को हरा दिया था। 1799 ई० में मैसूर के टीपू सुल्तान को अंग्रेज़ों ने पराजित किया और मैसूर पर भी अपना अधिकार कर लिया। दूसरी ओर उन्होंने मराठों की आपसी फूट का लाभ उठाकर, उन्हें एक-एक करके हरा दिया। 1804 ई० में मराठों ने अंग्रेज़ों के सामने हार मान ली थी।
उत्तर- महाराजा रणजीत सिंह पंजाब का शासक था। उनका नाम इतिहास में सदा आदर से लिया जाएगा। जिस समय पंजाब की जनता भयभीत एवं त्रस्त थी, उसी समय उन्होंने मानवीय विचारों को आधार बनाकर पंजाब में अपना साम्राज्य कायम किया था। बाद में उनके साम्राज्य का विस्तार कश्मीर और सरहदी सूबों तक फैल गया था। महाराजा रणजीत सिंह को खून-खराबा अर्थात् हिंसा बिल्कुल पसंद नहीं थी। यहाँ तक कि उन्होंने अपने शासनकाल में कभी किसी को मौत की सज़ा नहीं दी थी। वे केवल युद्ध में ही शत्रु से लड़ते थे। उनका शासन शांतिपूर्ण रहा था। उनके शासन का मुख्य आधार मानवीय विचार एवं मानवीय मूल्य थे।
उत्तर- जय सिंह जयपुर का शासक था। जय सिंह अत्यधिक चतुर एवं अवसरवादी था। अंग्रेज़ों की इतनी उथल-पुथल में भी उसका राज्य सुरक्षित रहा। राजनेता होने के साथ-साथ वह गणितज्ञ, खगोल विज्ञानी और नगर निर्माण कला में निपुण था। वह इतिहास के अध्ययन में भी रुचि लेता था। उसने जयपुर नगर को विदेशी नक्शों के आधार पर बसाया था। उसने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस एवं मथुरा में बड़ी-बड़ी वेधशालाओं का निर्माण करवाया था। जय सिंह का युग युद्धों का युग था, किंतु फिर भी उसने अपने राज्य में अनेक ऐसे कार्य किए जो वर्तमान में भी सराहनीय हैं।
उत्तर- ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापारिक लोगों की कंपनी थी। इसका संबंध इंग्लैंड से था। मराठों को युद्ध में हराने के बाद इस कंपनी ने भारत में दूर-दूर तक अपने राज्यों का विस्तार कर लिया। अब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की सबसे शक्तिशाली कंपनी बन गई थी। व्यापारियों की कंपनी होने के कारण वह धन कमाने पर तुली हुई थी। जब कंपनी चारों ओर से धन कमाने में लगी हुई थी तब उसकी इस प्रवृत्ति को देखकर एक विदेशी विद्वान एडम स्मिथ ने सन् 1776 में अपनी पुस्तक ‘द वैल्थ ऑफ़ नेशंस’ में लिखा-“एकमात्र व्यापारियों की कंपनी की सरकार किसी भी देश के लिए सबसे बुरी सरकार है।”
उत्तर-1660 ई० में इंग्लैंड में रायल सोसाइटी की स्थापना की गई थी। इसने विज्ञान की प्रगति में अपनी पर्ण रुचि दि थी। इसने विज्ञान की प्रगति में अपनी पूर्ण रुचि दिखाई। सौ साल बाद कपडे बनने की मशीन ढरकी का आविष्कार हुआ। इसके बाद एक-एक करके कातने की कला. इंजन और मशीन का निर्माण हुआ। ऐसे आविष्कारों से इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति-सी आ गई। अब वस्तुएँ शीघ्रता से और पहले से अधिक संख्या में तैयार होने लगी थीं। मशीनों द्वारा वस्तुओं का निर्माण होने के कारण उनमें पहले की अपेक्षा सफाई भी बहुत अधिक थी।
उत्तर- इस समय इंग्लैंड मुख्यतयाः दो रूपों में विभाजित था। एक ओर तो शेक्सपीयर, मिल्टन, शालीन बातों वाला, लेखन और बहादुरी के करनामों वाला, राजनीतिक क्रांति, स्वाधीनता हेतु संघर्ष करने वाला, विज्ञान और तकनीकी में उन्नति करने वाला इंग्लैंड था एवं दूसरी ओर बर्बर दंड संहिता, नृशंस व्यवहार वाला, सामंतवाद और प्रतिक्रियावाद वाला इंग्लैंड था। ये दोनों साथ-साथ ही रहे। इन्हें एक-दूसरे से अलग करना संभव नहीं था।
नयी समस्याएँ के बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर
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Class 8 Hindi Chapter 4 दीवानों की हस्ती
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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 1 – अहमदनगर का किला
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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 3 – सिंधु घाटी सभ्यता
Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 4 – युगों का दौर
Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 5 – नयी समस्याएँ
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