Class 12th History Chapter 9. शासक और इतिवृत्त मुग़ल दरबार

Class 12th History Chapter 9. शासक और इतिवृत्त मुग़ल दरबार

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TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHISTORY
ChapterChapter 9
Chapter Nameशासक और इतिवृत्त मुग़ल दरबार
CategoryClass 12 History Notes In Hindi
MediumHindi

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TextualQuestions) |

प्रश्न 1. मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुग़लों के शासनकाल में पांडुलिपियों की रचना से जुड़े विविध कार्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- मुग़ल दरबार में पांडुलिपि की रचना का मुख्य केंद्र शाही किताबख़ाना था। किताबख़ाना एक लिपिघर था जहाँ बादशाह की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था तथा नई पांडुलिपियों की रचना की जाती थी। पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले लोग भाग लेते थे
(i) कागज़ बनाने वाले,
(ii) पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने वाले,
(iii) पाठ की नकल करने के लिए सुलेखक,
(iv) पृष्ठों को चमकाने के लिए कोफ़्तगार,
(v) पाठ के दृश्यों को चित्रित करने के लिए चित्रकार,
(vi) पन्नों को इकट्ठा करके उन्हें अलंकृत आवरण में बाँधने के लिए जिल्दसाज़। तैयार पांडुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु तथा बौद्धिक संपदा माना जाता था। वास्तव में ये आकर्षक पांडुलिपियाँ अपने संरक्षक मुग़ल बादशाह की शक्ति को दर्शाती थीं।

प्रश्न 2. मुग़ल दरबार से जुड़े दैनिक-कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता/शक्ति को प्रतिपादित किया होगा?

उत्तर- मुगल दरबार से जुड़े दैनिक कार्यों तथा विशेष उत्सवों का मुख्य केंद्र बिंदु बादशाह ही होता था। अत: प्रत्येक कार्य तथा उत्सव बादशाह की शक्ति तथा सत्ता को ही प्रतिपादित करता था। इस संबंध में निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं|

1. दरबार में अनुशासन-दरबार में सभी दरबारियों का स्थान बादशाह द्वारा ही निर्धारित किया जाता था। जब बादशाह सिंहासन पर बैठ जाता था तो किसी को भी अपनी जगह से कहीं और जाने की अनुमति नहीं होती थी। न ही कोई बादशाह की अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था। दरबार के नियमों का उल्लंघन करने वालों को तुरंत दंडित किया जाता था।

2. अभिवादन के तरीके-शासक को किए गए अभिवादन का तरीका व्यक्ति के दर्जे को दर्शाता था। अधिक झुककर अभिवादन करने वाले व्यक्ति का दर्जा अधिक ऊँचा माना जाता था। अभिवादन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत लेटना था। शाहजहाँ के शासनकाल में इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम तथा जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।

3. झरोखा दर्शन-यह प्रथा अकबर ने आरंभ की थी। इसके अनुसार बादशाह अपने दिन का आरंभ सूर्योदय के समय कुछ धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था। इसके बाद वह पूर्व की ओर मुँह किए एक छोटे छज्जे अर्थात् झरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों की भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए इंतज़ार कर रही होती थी। इसे झरोखा दर्शन कहते थे। इसका उद्देश्य शाही सत्ता के प्रति जन-विश्वास को बढ़ावा देना था। |

4. विशेष अवसर-सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, ईद, शब-ए-बारात तथा होली जैसे विशेष अवसरों पर दरबार का वातावरण सजीव हो उठता था। इसके अतिरिक्त मुग़ल शासक फानूस में तीन मुख्य त्योहार मनाया करते थे—सूर्यवर्ष और चंद्रवर्ष के अनुसार शासक का जन्मदिन तथा वसंतागमन पर फ़ारसी नववर्ष नौरोज़। जन्मदिन पर शासक को विभिन्न वस्तुओं से तोला जाता था तथा बाद में ये वस्तुएँ दान में बाँट दी जाती थीं।
मुग़ल दरबार के लिए विवाह के अवसर विशेष महत्त्व रखते थे। इन अवसरों पर सज्जा-धज्जा तथा व्यय की गई अपार धन-राशि बादशाह की प्रतिष्ठा को चार चाँद लगा देती थी।
अन्य-(i) बादशाह का दरबार तथा राजसिंहासन मुग़ल शक्ति का मूल आधार था। (ii) छतरी राजतंत्र का प्रतीक थी।

प्रश्न 3. मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
मुग़ल साम्राज्य के शाही परिवार के विशिष्ट अभिलक्षणों की पहचान कीजिए।

उत्तर- मुग़ल परिवार में बादशाह की पत्नियाँ और उपपत्नियाँ उसके नज़दीकी तथा दूर के रिश्तेदार, महिला सेविकाएँ तथा गुलाम होते थे। शासक वर्गों में बहुविवाह-प्रथा व्यापक रूप से प्रचलित थी।
अगहा तथा अगाचा- (1) मुग़ल परिवार में शाही परिवारों से आने वाली स्त्रियों (बेगमों) तथा अन्य स्त्रियों (अगहा) जो कुलीन परिवारों में से नहीं थीं, में अंतर रखा जाता था। दहेज (मेहर) के रूप में (पर्याप्त) नकदी और बहुमूल्य वस्तुएँ लाने वाली बेगमों को अपने पतियों से स्वाभाविक रूप से अगहाओं की तुलना में अधिक ऊँचा दर्जा और सम्मान दिया जाता था।
(2) राजतंत्र से जुड़ी महिलाओं में उपपत्नियों ( अगाचा) की स्थिति सबसे निम्न थी। इन्हें नकद मासिक भत्ता तथा अपने-अपने दर्जे के अनुसार उपहार मिलते थे।
(3) वंश आधारित पारिवारिक ढाँचा पूरी तरह स्थायी नहीं था। यदि पति की इच्छा हो और उसकी चार पत्नियाँ न हों तो अगहा और अगाचा भी बेगम की स्थिति पा सकती थीं। ऐसी स्त्रियों को प्रेम तथा मातृत्व विधिवत् रूप से विवाहित पत्नियों के दर्जे तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुग़ल दरबार (लगभग सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियाँ))
गुलाम-पत्नियों के अतिरिक्त मुग़ल परिवार में अनेक महिला तथा पुरुष गुलाम होते थे। वे साधारण से साधारण कार्यों से लेकर कौशल, निपुणता तथा बुद्धिमत्ता के कार्य करते थे। गुलाम हिजड़े (ख्वाजासर) परिवार के अंदर और बाहर के जीवन में रक्षक, नौकर और व्यापार में रुचि रखने वाली महिलाओं के एजेंट होते थे।

प्रश्न 4. वे कौन-से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर के क्षेत्रों के प्रति मुग़ल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया?

उत्तर– उपमहाद्वीप के बाहर के क्षेत्रों के प्रति मुग़ल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान करने वाले मुख्य मुद्दे निम्नलिखित थे|

1. सामरिक महत्त्व की चौकियों पर नियंत्रण- मुग़ल राजाओं तथा ईरान एवं तूरान के पड़ोसी देशों के बीच राजनीतिक संबंध हिंदुकुश पर्वतों द्वारा निर्धारित सीमाओं के नियंत्रण पर निर्भर करते थे। भारतीय उपमहाद्वीप में आने के इच्छुक सभी विजेताओं को उत्तर भारत तक पहुँचने के लिए हिंदुकुश को पार करना पड़ता था। अत: मुग़लों की सदा यह नीति रही कि इस संभावित खतरे से बचाव के लिए सामरिक महत्त्व की चौकियों विशेषकर काबुल तथा कंधार पर नियंत्रण रखा जाए। कंधार सफ़ावियों (ईरान) और मुग़लों के बीच झगड़े की जड़ था। यह किला-नगर आरंभ में हुमायूं के अधिकार में था। 1595 में अकबर ने इसे पुन: जीत लिया था। यद्यपि सफ़ावियों ने मुग़लों के साथ अपने राजनीतिक संबंध बनाए रखे तथापि वे कंधार पर अपना दावा करते रहे। 1613 में जहाँगीर ने ईरानी शासक शाह अब्बास के दरबार में एक दूत भेजा। इसका उद्देश्य कंधार पर मुग़ल अधिकार की वकालत करना था। परंतु यह शिष्टमंडल अपने उद्देश्य में असफल रहा। 1622 में एक सफ़ावी सेना ने कंधार पर घेरा डाल दिया। मुग़ल सेना पूरी तरह से तैयार नहीं थी। अत: वह पराजित हुई और उसे किला तथा नगर सफ़ावियों को सौंपने पड़े।

2. ऑटोमन साम्राज्य : तीर्थयात्रा और व्यापार-ऑटोमन साम्राज्य के साथ मुग़लों के संबंधों का उद्देश्य ऑटोमन नियंत्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों तथा तीर्थयात्रियों के स्वतंत्र आवागमन को निर्बाध बनाए रखना था। यह हिजाज अर्थात् ऑटोमन अरब के उस भाग के लिए विशेष रूप से सत्य था जहाँ मक्का और मदीना के महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल स्थित थे। मुग़ल बादशाह प्रायः इस क्षेत्र के साथ अपने संबंधों को धर्म एवं वाणिज्य के मामलों से जोड़ते थे। वह लाल सागर के बंदरगाह अदन और मोखा को बहुमूल्य वस्तुओं का निर्यात करते थे। इनकी बिक्री से प्राप्त आय को उस प्रदेश के धर्मस्थलों तथा फ़कीरों में दान में बाँट दिया जाता था। परंतु औरंगजेब को जब अरब भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग का पता चला तो उसने भारत में ही उसके वितरण पर बल दिया क्योंकि उसका मानना था कि यह भी वैसा ही ईश्वर का घर है जैसे कि मक्का ।”

3. मुग़ल दरबार में जेसुइट धर्म प्रचारक- यूरोप को भारत के बारे में जानकारी जेसुइट धर्म प्रचारकों, यात्रियों, व्यापारियों आदि के विवरणों से हुई। मुग़ल दरबार के यूरोपीय विवरणों में जेसुइट वृत्तांत सबसे पुराने हैं। 15वीं शताब्दी के अंत में पुर्तगाली व्यापारियों ने देश के तटीय नगरों में व्यापारिक केंद्रों का जाल स्थापित किया। पुर्तगाली राजा भी सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट) के धर्म प्रचारकों की सहायता से ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में रुचि रखता था। 16वीं शताब्दी में भारत आने वाले जेसुइट शिष्टमंडल व्यापार और साम्राज्य निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा थे।

प्रश्न 5. मुग़ल साम्राज्य के प्रांतीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केंद्र किस प्रकार से प्रांतों पर : नियंत्रण रखता था?
अथवा
मुग़ल साम्राज्य के प्रांतीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की व्याख्या कीजिए। मुग़ल अभिजात-वर्ग को मुग़ल शासन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ क्यों माना जाता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– प्रशासन की सुविधा के लिए मुग़ल साम्राज्य को प्रांतों में बाँटा गया था। प्रांतीय शासन का मुखिया गवर्नर (सूबेदार) होता था जो अपनी रिपोर्ट सीधे बादशाह को भेजता था।
सरकार–प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बँटा हुआ था। सरकार की सीमाएँ प्राय: फ़ौजदारों के अधीन आने वाले क्षेत्रों की सीमाओं से मेल खाती थीं। इन प्रदेशों में फ़ौजदारों को विशाल घुड़सवार सेना तथा तोपचियों के साथ रखा जाता था।

परगना-परगना (उप-ज़िला) स्तर पर स्थानीय प्रशासन की देख-रेख तीन अर्ध-वंशानुगत अधिकारियों द्वारा की जाती थी। ये अधिकारी थे-कानूनगो (राजस्व आलेख रखने वाला), चौधरी (राजस्व का संग्रह करने वाला) और काजी।
शासन के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों, लेखाकारों, लेखा-परीक्षकों, संदेशवाहकों तथा अन्य कर्मचारियों का एक बड़ा सहायक समूह होता था। ये मानकीकृत नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार कार्य करते थे तथा बड़ी संख्या में लिखित आदेश तथा वृत्तांत तैयार करते थे। सभी प्रशासनिक इकाइयों में फ़ारसी को शासन की भाषा बना दिया गया था। परंतु ग्राम-लेखों के लिए स्थानीय भाषाओं का प्रयोग किया जाता था।

अभिजात वर्ग का महत्त्व-अभिजात वर्ग मुग़ल राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ था। यह मुग़ल राज्य के अधिकारियों का दल था। अभिजात वर्ग में भरती विभिन्न नृ-जातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। इस बात का ध्यान रखा जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके। मुग़लों के अधिकारी-वर्ग को फूलों के गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था जो अपनी वफ़ादारी द्वारा बादशाह से बँधे हुए थे। साम्राज्य निर्माण के आरंभिक वर्षों से ही तूरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे। इनमें से कुछ हुमायूँ के साथ भारत आए थे, जबकि कुछ बाद में मुग़ल दरबार में आए। सभी सरकारी अधिकारियों के दर्जे और पदों में दो तरह के संख्या-आधारित पद (मनसब) होते थे-जात तथा सवार। ‘जात’ मनसबदार के पद और वेतन का सूचक था, जबकि सवार यह सूचित करता था कि मनसबदार को अपनी सेना में कितने घुड़सवार रखने होंगे। 17वीं शताब्दी में 1000 या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार उमरा कहलाते थे।

प्रश्न 6. उदाहरण सहित मुग़ल इतिहासों के विभिन्न अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।

उत्तर- मुग़ल इतिहासों के विभिन्न अभिलक्षणों का वर्णन इस प्रकार है
1. दरबारी लेखक-मुग़ल इतिहास, जिन्हें इतिवृत्त भी कहा जाता है, मुग़ल दरबारियों द्वारा लिखे गए थे। इनमें संबंधित बादशाह के समय का लेखा-जोखा दिया गया है। इसके अतिरिक्त उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों से भी बहुत-सी जानकारियाँ दी गई हैं।
2. कालक्रम अनुसार घटनाएँ-मुग़ल इतिहासों में दी गई घटनाएँ कालक्रम अनुसार हैं। ये एक ओर मुग़ल राज्य की संस्थाओं की जानकारी देते हैं, तो दूसरी ओर उन उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हैं जिन्हें मुग़ल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे। इस प्रकार ये इतिवृत्त हमें इस बात की झलक देते हैं कि शाही विचारधाराएँ किस प्रकार रची तथा प्रचारित की जाती थीं। |
3. रंगीन चित्र-मुग़ल इतिहास रंगीन चित्रों से सुसज्जित हैं, जिनमें से कई कलाकारों की कल्पना पर आधारित हैं। ये चित्र मुग़ल दरबार तथा परिवार के विभिन्न पहलुओं की झाँकी प्रस्तुत करते हैं।
4. दरबार तथा बादशाह के इतिहास में समानता-अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर औरंगजेब के शासनकाल पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक अकबरनामा, शाहजहाँनामा, आलमगीरनामा यह संकेत देते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में साम्राज्य एवं दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।
5. भाषा-अकबरनामा’ जैसे मुग़ल इतिहास फ़ारसी में लिखे गए थे, जबकि बाबर के संस्मरणों का ‘बाबरनामा’ के नाम से तुर्की से फ़ारसी में अनुवाद किया गया था।

6. मुग़ल इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत-मुग़ल शासकों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये इतिवृत्त मुग़ल साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने मुग़ल राज्य का एक प्रबुद्ध राज्य के रूप में चित्रण करने के उद्देश्य से लिखे गए थे। इनका उद्देश्य मुग़ल शासन का विरोध करने वाले लोगों को यह बताना भी था कि उनके सभी विरोधों का असफल होना निश्चित है। शासक यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासन का विवरण उपलब्ध रहे।

प्रश्न 7. शासक और इतिवृत्त : मुग़ल दरबार’ नामक अध्याय में दी गई दृश्य-सामग्री किस हद तक अबुल फ़ज़ल द्वारा किए गए ‘तसवीर’ के वर्णन से मेल खाती है?

उत्तर- इस अध्याय में दी गई दृश्य-सामग्री मुख्य रूप से रंगीन चित्र हैं। बुलंद दरवाज़ा जैसे कुछ भवनों को भी दर्शाया गया है। यह दृश्य-सामग्री अबुल फ़ज़ल द्वारा किए गए ‘तसवीर’ के वर्णन से काफ़ी सीमा तक मेल खाती है।
(1) ये चित्र दर्शाई गई चीजों का सटीक चित्रण है।
(2) ये मुग़ल बादशाहों की चित्रकला तथा वास्तुकला में गहरी रुचि को व्यक्त करते हैं। उन्होंने इस कला को प्रोत्साहन देने के लिए हर संभव प्रयत्न किया। इस कार्य के लिए उन्होंने शाही कार्यशाला स्थापित की हुई थी।
(3) दिए गए चित्रों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उस समय सर्वाधिक उत्कृष्ट कलाकार उपलब्ध थे। उनकी कृतियों को उन यूरोपीय चित्रकारों की अनुपम कलाकृतियों के समक्ष रखा जा सकता है जिन्होंने विश्व में अत्यधिक ख्याति प्राप्त कर ली थी।
(4) चित्रों के सजीव रंग चित्र को इतना सजीव कर देते हैं कि ऐसा लगता है कि उनमें चित्रित व्यक्ति बोल रहे हों।

प्रश्न 8. मुग़ल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके संबंध किस तरह बने ?
अथवा
भारत में मुगल शासकों द्वारा अभिजात-वर्ग में विभिन्न जातियों और धार्मिक समूहों के लोगों की भर्ती क्यों की जाती थी? व्याख्या कीजिए।

उत्तर-मुग़ल राज्य का महत्त्वपूर्ण स्तम्भ अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकारों ने सामूहिक रूप से अभिजात वर्ग की संज्ञा से अभिहित किया है। अभिजात वर्ग में भर्ती विभिन्न नृ-जातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। इससे यह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा ने हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके। मुगलों के अधिकारी-वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था जो वफ़ादारी से बादशाह के साथ जुड़े हुए थे। साम्राज्य के आरंभिक चरण से ही तुरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे। इनमें से कुछ हुमायूँ के साथ भारत चले आए थे। कुछ अन्य बाद में मुगल दरबार में आए थे।

1560 से आगे भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों-राजपूतों व भारतीय मुसलमानों (शेखज़ादाओं) ने शाही सेवा में प्रवेश किया। इनमें नियुक्त होने वाला प्रथम व्यक्ति एक राजपूत मुखिया आंबेर का राजा भारमल कछवाहा था जिसकी पुत्री से अकबर का विवाह हुआ था। शिक्षा और लेखाशास्त्र की ओर झुकाव वाले हिंदू जातियों के सदस्यों को भी पदोन्नत किया जाता था। इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल का है जो खत्री जाति का था। जहाँगीर के शासन में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए। जहाँगीर की राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रानी नूरजहाँ (1645) ईरानी थी। औरंगजेब ने राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया।

फिर भी शासन में अधिकारियों के समूह में मराठे अच्छी-खासी संख्या में थे। अभिजात-वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक ज़रिया थी। सेवा में आने का इच्छुक व्यक्ति एक अभिजात के जरिए याचिका देता था जो बादशाह के सामने तजवीज प्रस्तुत करता था। अगर याचिकाकर्ता को सुयोग्य माना जाता था तो उसे मनसब प्रदान किया जाता था। मीरबख्शी (उच्चतम वेतनदाता) खुले दरबार में बादशाह के दाएँ ओर खड़ा होता था तथा नियुक्ति और पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था; जबकि उसका कार्यालय उसकी मुहर व हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश तैयार करता था।

प्रश्न 9. राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्वों की पहचान कीजिए।

उत्तर– मुगल साम्राज्य में राजत्व पूर्ण रूप से नया नहीं था। जैसा कि अबुल फजल बताते हैं कि ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी (1191 ई.) ने सर्वप्रथम राजत्व के विचार को प्रस्तुत किया था। इस विचार के अनुसार बादशाह को सीधा ईश्वर अर्थात फर-ए-इज़ादी द्वारा प्रदत्त शक्तियों का मसीहा माना जाता है। राजा अपनी प्रजा के आध्यात्मिक मार्गदर्शन के स्रोत होते हैं। चित्रकारों द्वारा प्रदर्शित प्रभामंडल राजा के इसी रूप का समर्थन करते हैं। एक अन्य तत्व सुलह-ए-कुल की नीति थी, जिसमें एक ऐसा आदर्श राज्य बनाने की कल्पना की गयी थी जहां सभी धर्मों यथा- हिंदू, मुस्लिम, जैन सौहार्द पूर्ण रहें और आपस में लड़ाई न करें। अबुल फजल तो इस नीति को प्रबुद्ध शासन के लिए मूलभूत आवश्यकता मानते थे। इसी के चलते अकबर ने जजिया कर और तीर्थ यात्रा कर भी समाप्त कर दिया था। बादशाह को परोपकार की मूर्ति के रूप में देखा जाने लगा। अबुल फजल प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबंध के रूप में बताते हैं। बादशाह अपनी प्रजा के जीवन, धन, सम्मान व विश्वास की रक्षा के लिए जिम्मेदार होता है। इसके बदले में प्रजा को राजा की आज्ञाओं का पालन करना होता है। केवल न्याय पूर्ण संप्रभु ही दैवीय मार्गदर्शन व शक्ति सत्ता को समझ पाते थे। इस प्रकार उपरोक्त सभी तत्वों ने मुगल साम्राज्य को एक आदर्श राज्य बनाने का प्रयास किया। हालांकि मुगल साम्राज्य के पतन के समय यह आदर्श भाव कम होने लग गया था।

शासक और इतिवृत्त मुगल दरबार के अति लघु उत्तरीय प्रश्न

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