Class 12th History Chapter 13. महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन

Class 12th History Chapter 13. महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन

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TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHISTORY
ChapterChapter 13
Chapter Nameमहात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन
CategoryClass 12 History Notes In Hindi
MediumHindi

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TextualQuestions)

प्रश्न 1. महात्मा गांधी ने खुद को आम जनता जैसा दिखाने के लिए क्या किया?

उत्तर– महात्मा गांधी सादा जीवन और उच्च आदर्शों के स्वामी थे। उन्होंने खुद को आम जनता जैसा दिखाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए
(1) वह आम लोगों के बीच घुल-मिलकर रहते थे। उनके मन में उनके कष्टों के प्रति हमदर्दी थी। इसलिए वे उनके प्रति सहानुभूति जताते थे।
(2) वे साधारण लोगों जैसे वस्त्र पहनते थे। धोती उनकी विशेष पहचान थी। इसके विपरीत अन्य राष्ट्रवादी नेता प्रायः पश्चिमी शैली के वस्त्र पहनते थे।
(3) वे प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा कातते थे। इस प्रकार उसने आम जनता के श्रम को गौरव प्रदान किया।
(4) उन्होंने आम लोगों की तरह सादा जीवन व्यतीत किया और तड़क-भड़क से दूर रहे।
(5) वे आम लोगों की ही भाषा बोलते थे।

प्रश्न 2. किसान महात्मा गांधी को किस तरह से देखते थे?

उत्तर– किसान महात्मा गांधी का अत्यधिक सम्मान करते थे और उन्हें एक चमत्कारिक व्यक्तित्व का स्वामी मानते थे। वे गांधीजी को ‘गांधी बाबा’, ‘गांधी महाराज’ अथवा ‘महात्मा’ जैसे अलग-अलग नामों से पुकारते थे। वास्तव में गांधीजी भारतीय किसान के लिए एक उधारक के समान थे जो उनकी ऊँचे करों तथा अधिकारियों के दमन से सुरक्षा कर सकते थे। उनका मानना था कि गांधीजी उनके जीवन में मान-मर्यादा और स्वायत्तता वापस लाने वाले व्यक्ति हैं। गरीब किसानों के बीच गांधीजी की अपील को उनकी साधारण जीवन-शैली और उनके द्वारा धोती तथा चरखे के प्रयोग से बहुत बल मिला। जाति से महात्मा गांधी एक व्यापारी थे, जबकि पेशे से वह एक वकील थे। परंतु अपनी सादा जीवन-शैली तथा हाथों से काम करने के प्रति लगन के कारण वे गरीब किसानों से अत्यधिक सहानुभूति रखते थे। दूसरी ओर गरीब किसान उनकी ‘महात्मा के समान पूजा करते थे।

प्रश्न 3. नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था ?

उत्तर– नमक कानून के अनुसार नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार प्राप्त था। प्रत्येक भारतीय घर में नमक का प्रयोग होता था, परंतु उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया था। इस प्रकार उन्हें दुकानों से ऊँचे दाम पर नमक खरीदने के लिए बाध्य किया गया। अतः नमक कानून के विरुद्ध जनता में काफ़ी असंतोष था। गांधी जी भी नमक कानून को सबसे घृणित कानून मानते थे। इस तरह नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया। गांधीजी इस कानून को तोड़कर जनता में व्याप्त असंतोष को अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एकजुट करना चाहते थे।

प्रश्न 4. राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अख़बार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों है ?

उत्तर– अंग्रेज़ी तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं में छपने वाले समकालीन अख़बार राष्ट्रीय आंदोलन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये अख़बार महात्मा गांधी की गतिविधियों पर नज़र रखते थे और उनके बारे में समाचार छापते थे। ये अख़बार इस बात का भी संकेत देते हैं कि आम भारतीय गांधीजी के बारे में क्या सोचते थे। परंतु अख़बारी ब्योरों को एकदम सत्य नहीं मान लेना चाहिए। ये पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं थे। इन अख़बारों को प्रकाशित करने वाले ऐसे लोग थे जिनकी अपनी राजनीतिक सोच और अपना दृष्टिकोण था। उनके विचारों से ही यह निश्चित होता था कि क्या प्रकाशित किया जाएगा तथा घटनाओं की रिपोर्टिंग किस तरह की जाएगी। इसलिए लंदन से निकलने वाले अख़बारों के विवरण भारतीय राष्ट्रवादी अख़बारों में छपने वाली रिपोर्टों में मेल नहीं हो सकता था।
अंग्रेजी अख़बारों में प्रायः ऐसे अफ़सरों की आशंकाओं और बेचैनियों की झलक भी मिलती है जो किसी आंदोलन को नियंत्रित करने में सफ़ल नहीं हो पा रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आता था कि गांधीजी को गिरफ्तार किया जाए या नहीं क्योंकि गिरफ्तारी का परिणाम शासन के लिए घातक भी सिद्ध हो सकता था। अतः इन अख़बारों की रिपोर्टों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना अनिवार्य है।

प्रश्न 5. चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया ?

उत्तर– चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि यह मानव श्रम तथा उसके महत्त्व का प्रतीक था। गांधी का मानना था कि आधुनिक युग में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रम को हटा दिया है। इससे गरीबों का रोज़गार छिन गया है। इससे आम लोग निष्क्रिय बनते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में चरखा राष्ट्र को नया जीवन प्रदान करेगा। यह मानव-श्रम के लिए गौरव को फिर से जीवित करेगा और जनता को स्वावलम्बी बनाएगा। इससे भी अधिक चरखा गरीबों को पूरक आय प्रदान करेगा। गांधीजी के अनुसार मशीनों के प्रयोग से धन का भी कुछ हाथों में केंद्रीयकरण होता जा रहा है। इसे रोकने के लिए भी मानव-श्रम आवश्यक है। इसलिए गांधीजी स्वयं प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा चलाते थे और अन्य राष्ट्रवादियों तथा जनसाधारण को भी ऐसा करने की प्रेरणा देते थे।

प्रश्न 6. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ?
अथवा
असहयोग आंदोलन के कारणों, कार्यक्रम, प्रगति तथा महत्त्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
असहयोग आंदोलन के कारण व इसके भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान की समीक्षा कीजिए। गांधीजी ने खिलाफ़त को इसके साथ क्यों जोड़ा?

उत्तर–असहयोग आंदोलन 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया गया। यह अंग्रेज़ी शासन तथा सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध एक व्यापक जन-प्रतिरोध था। आंदोलन क्यों चलाया गया, यह कैसे चला तथा इसके क्या परिणाम निकले-आंदोलन के ये सब पहलू इसी बात की पुष्टि करते हैं।
महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन–सविनय अवज्ञा और उससे आगे ।

कारण तथा परिस्थितियाँ-(1) भारतीयों ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजों को पूरा सहयोग दिया था। परंतु महायुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों ने भारतीय जनता का खूब शोषण किया।
(2) प्रथम महायुद्ध के दौरान भारत में प्लेग आदि महामारियाँ फूट पड़ीं। परंतु अंग्रेजी सरकार ने उसकी ओर कोई ध्यान न दिया।
(3) गांधीजी ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने का प्रचार इस आशा से किया था कि वे भारत को स्वराज्य प्रदान करेंगे। परंतु युद्ध की समाप्ति पर ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी की आशाओं पर पानी फेर दिया।
(4) 1919 ई० में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पास कर दिया। इस काले कानून के कारण जनता में रोष फैल गया।
(5) रॉलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक विशाल जनसभा हुई। अंग्रेजों ने एकत्रित भीड़ पर गोलियाँ चलाईं जिससे हजारों लोग मारे गए।
(6) सितंबर, 1920 ई० में कांग्रेस ने अपना अधिवेशन कोलकाता में बुलाया। इस अधिवेशन में ‘असहयोग आंदोलन’ का प्रस्ताव रखा गया जिसे बहुमत से पास कर दिया गया।
असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम अथवा उद्देश्य-असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम की रूप-रेखा इस प्रकार थी
(1) विदेशी माल का बहिष्कार करके स्वदेशी माल का प्रयोग किया जाए।
(2) ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गयी उपाधियाँ तथा अवैतनिक पद छोड़ दिए जाएँ।
(3) स्थानीय संस्थाओं में मनोनीत भारतीय सदस्यों द्वारा त्याग-पत्र दे दिए जाएँ।
(4) सरकारी स्कूलों तथा सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए न भेजा जाए।
(5) ब्रिटिश अदालतों तथा वकीलों का धीरे-धीरे बहिष्कार किया जाए।
(6) सैनिक, क्लर्क तथा श्रमिक विदेशों में अपनी सेवाएँ अर्पित करने से इंकार कर दें।

महत्त्व अथवा स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान–(1) असहयोग आंदोलन के कारण कांग्रेस ने सरकार से सीधी टक्कर ली।
(2) भारत के इतिहास में पहली बार जनता ने बढ़-चढ़कर इस आंदोलन में भाग लिया।
(3) असहयोग आंदोलन में ‘स्वदेशी’ का खूब प्रचार किया गया। फलस्वरूप देश में उद्योग-धंधों का विकास हुआ। सच तो यह है कि गांधीजी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन ने भारत के स्वाधीनता संग्राम को नयी दिशा प्रदान की।
(4) यह आन्दोलन स्वशासन के लिए एक प्रशिक्षण बिन्दु था।
(5) इस आन्दोलन से गांधी जी भारतीय जन-मानस के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे।
असहयोग आंदोलन तथा खिलाफ़त-गांधीजी को आशा थी कि असहयोग को खिलाफ़त के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय हिंदू और मुसलमान आपस में मिलकर औपनिवेशिक शासन का अंत कर देंगे। इसलिए उन्होंने खिलाफ़त को असहयोग आंदोलन के साथ मिलाया। इन आंदोलनों ने निश्चय ही राष्ट्रीय आंदोलन को एक व्यापक जन-आंदोलन का रूप दे दिया।

प्रश्न 7. गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?

उत्तर– गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन लंदन में हुआ। इनका उद्देश्य भारतीयों को सत्ता में भागीदार बनाना था। पहला गोलमेज़ सम्मेलन नवंबर, 1930 में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए। इसी कारण यह बैठक असफल रही। जनवरी, 1931 में गांधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया। अगले ही महीने वायसराय के साथ उनकी कई लंबी बैठकें हुईं। इन्हीं बैठकों के बाद गांधी-इर्विन समझौता’ हुआ। इसकी शर्ते थीं (1) सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेना। (2) सभी कैदियों की रिहाई और (3) तटीय प्रदेशों में नमक बनाने की अनुमति देना। रैडिकल राष्ट्रवादियों ने इस समझौते की आलोचना की क्योंकि गांधीजी वायसराय से भारतीयों के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता का आश्वासन नहीं ले पाए थे।
1931 के अंत में दूसरा गोलमेज़ सम्मेलन आयोजित हुआ। इसमें गांधीजी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे। उनका कहना था कि उनकी पार्टी भारत का प्रतिनिधित्व करती है। परंतु उनके इस दावे को तीन पार्टियों ने चुनौती दी। मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है। रजवाड़ों का दावा था कि कांग्रेस का उनके नियंत्रण वाले भू-भाग पर कोई प्रभुत्व नहीं है। तीसरी चुनौती बी० आर० अंबेडकर की ओर से थी। उनका कहना था कि गांधीजी और कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
फलस्वरूप लंदन में हुए इस सम्मेलन का कोई भी परिणाम नहीं निकला। इसलिए गांधीजी को खाली हाथ लौटना पड़ा।

प्रश्न 8. महात्मा गांधीजी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
अथवा
महात्मा गांधी के आगमन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आधार को किस प्रकार व्यापक बनाया ? व्याख्या कीजिए।
अथवा
1917 से 1922 तक महात्मा गांधी के एक लोकप्रिय नेता के रूप में कार्यों का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर– संकेत-महात्मा गांधी ने निम्नलिखित तरीकों से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आधार को व्यापक बनाया और 1922 तक इसके स्वरूप को एकदम परिवर्तित कर दिया था।
(1) महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन केवल व्यावसायियों तथा बुद्धिजीवियों का ही आंदोलन नहीं रह गया था। अब इसमें हजारों की संख्या में किसान, श्रमिक तथा कारीगर भी भाग लेने लगे थे। |
(2) गांधीजी ने सामान्य लोगों जैसा जीवन अपनाया। उन्होंने गरीब मज़दूरों तथा किसानों जैसे वस्त्र पहने। उनका रहन-सहन भी उन्हीं के जैसा था।
(3) उन्होंने स्वयं चरखा चलाया और दूसरों को चरखा चलाने के लिए प्रेरित किया। सूत कातने के कार्य ने गांधीजी को पारंपरिक जाति-व्यवस्था में प्रचलित मानसिक श्रम तथा शारीरिक श्रम के बीच की दीवार को तोड़ने में सहायता दी।
(4) गांधीजी ने किसानों तथा अन्य निर्धन लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयास किया।
(5) गांधीजी के चमत्कारों के बारे में फैली अफ़वाहों ने उनकी लोकप्रियता को घर-घर तक पहुँचा दिया। अत: बड़ी संख्या में लोग राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए।
(6) उनके नेतृत्व में देश के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नई शाखाएँ खुलीं। रजवाड़ों में राष्ट्रवादी सिद्धांत को बढ़ावा देने के : लिए प्रजामंडलों की स्थापना की गई।
(7) गांधीजी ने राष्ट्रवादी संदेश का प्रसार अंग्रेजी भाषा की बजाय मातृभाषा में करने पर बल दिया।
(8) राष्ट्रीय आंदोलन के आधार को मजबूत बनाने के लिए गांधीजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
(9) उनके आकर्षक व्यक्तित्व के कारण देश के विभिन्न भागों तथा वर्गों से आए अनेक प्रतिभाशाली नेता राष्ट्रीय आंदोलन का अंग बन गए।
(10) उन्होंने इस बात पर बल दिया कि स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए त्रुटि रहित समाज का होना अनिवार्य है।

महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन के अति लघु उत्तरीय प्रश्न

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