Class 12th History Chapter 12. औपनिवेशिक शहर
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Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | HISTORY |
Chapter | Chapter 12 |
Chapter Name | औपनिवेशिक शहर |
Category | Class 12 History Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)
उत्तर- औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स शहरीकरण के विकास की गति को जानने के लिए सँभालकर रखे जाते थे। इनसे निम्नलिखित बातों का पता चलता था
(1) जनसंख्या में हो रही वृद्धि की दर क्या है?
(2) शहर की व्यापारिक गतिविधियों में क्या परिवर्तन आ रहे हैं?
(3) सामाजिक जीवन किस प्रकार बदल रहा है?
(4) शहर के और अधिक विकास के लिए क्या किया जाना चाहिए? (5) बढ़ते शहरों में जीवन की गति और दिशा को कैसे नियंत्रित किया जाए?
अथवा ”
19वीं शताब्दी की जनगणनाओं का सावधानी से अध्ययन करने पर शहरीकरण के कुछ दिलचस्प रुझान सामने आते हैं।” इस कथन का तथ्यों के आधार पर समर्थन कीजिए।
उत्तर- औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनसंख्या के आँकड़े बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं
(1) ये आँकड़े शहरीकरण की गति को दर्शाते हैं। हमें पता चलता है कि 1800 के बाद शहरीकरण की गति धीमी रही। पूरी 19वीं शताब्दी तथा 20वीं शताब्दी के पहले दो दशकों में शहरी जनसंख्या का अनुपात लगभग स्थिर रहा।
(2) ये लोगों के लिंग, जाति, धर्म, शिक्षा के स्तर आदि की जानकारी देते हैं।
(3) ये हमें उस समय के लोगों के व्यवसायों के बारे में बताते हैं।
(4) ये उस समय के रंग-भेद के प्रतीक हैं। उदाहरण के लिए गोरे ‘व्हाइट टाउन’ में रहते थे, जबकि भारतीय ‘ब्लैक टाउन’ में अस्वास्थ्यकर वातावरण में रहते थे।
(5) जनसंख्या के आँकड़े मृत्यु-दर तथा बीमारियों से मरने वाले लोगों की संख्या बताते हैं।
(6) ये आँकड़े स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव को दर्शाते हैं।
उत्तर- ‘व्हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन भारतीयों पर अंग्रेजों की जातीय श्रेष्ठता के प्रतीक थे। अंग्रेज़ गोरी चमड़ी वाले थे और उन्हें व्हाइट (White) कहा जाता था, जबकि भारतीयों को काले (black) लोग माना जाता था।
व्हाइट टाउन-‘व्हाइट टाउन’ औपनिवेशिक शहरों के वे भाग थे जहाँ केवल गोरे लोग रहते थे। छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों पर विकसित किया गया तथा छावनियों में यूरोपीयों के अधीन भारतीय सैनिक तैनात किए जाते थे। ये इलाके मुख्य शहर से अलग परंतु जुड़े हुए होते थे। चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों, परेड मैदान और चर्च आदि से लैस ये छावनियाँ यूरोपीय लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल थीं। व्हाइट टाउन व्यवस्थित शहरी जीवन का प्रतीक था।
ब्लैक टाउन-ब्लैक टाउन में भारतीय रहते थे। ये अव्यवस्थित थे तथा गंदगी और बीमारी का स्रोत थे। इन्हें अराजकता एवं उपद्रव का केंद्र माना जाता था।
उत्तर-प्रमुख भारतीय व्यापारी काफ़ी धनी थे। वे पढ़े-लिखे भी थे। वे चाहते थे कि वे भी अंग्रेज़ों की तरह ‘वाइट टाउन’ जैसे साफ-सुधरे इलाकों में रहें और उन्हें भी समाज में उचित सम्मान प्राप्त हो। इस उद्देश्य से उन्होंने निम्नलिखित पग उठाए:
1. उन्होंने औपनिवेशिक शहरों अर्थात् बंबई, कलकत्ता और मद्रास में एजेंटों तथा बिचौलियों के रूप में काम करना शुरू कर दिया।
2. उन्होंने ब्लैक टाउन में बाजारों के आस-पास परंपरागत ढंग के दालानी मकान बनवाए। उन्होंने भविष्य में पैसा लगाने के लिए शहर के अंदर बड़ी-बड़ी ज़मीनें भी ख़रीद ली थीं।
3. अपने अंग्रेज़ स्वामियों को प्रभावित करने के लिए वे त्योहारों पर रंगीन भोजों का आयोजन करते थे।
4. समाज में अपनी उच्च स्थिति को दर्शाने के लिए उन्होंने मंदिर भी बनवाए।
5. मद्रास में कुछ दुभाषा व्यापारी ऐसे भारतीय थे जो स्थानीय भाषा और अंग्रेज़ी, दोनों ही बोलना जानते थे। वे भारतीय समाज तथा गोरों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।
6. संपत्ति इकट्ठा करने के लिए वे सरकार में अपनी पहुँच का प्रयोग करते थे।
7. ब्लैक टाउन में परोपकारी कार्यों और मंदिरों को संरक्षण प्रदान करने के कारण समाज में उनकी स्थिति काफ़ी मज़बूत थी।
उत्तर- मद्रास को बहुत-से गाँवों को मिलाकर विकसित किया गया था। धीरे-धीरे भिन्न-भिन्न प्रकार के आर्थिक कार्य करने वाले कई समुदाय आकर मद्रास में बस गए। यूरोपवासी व्हाइट टाउन में रहते थे जिसका केंद्र फोर्ट सेंट जार्ज अथवा सेंट जार्ज किला था। अंग्रेज़ों की सत्ता मज़बूत होने के साथ-साथ यूरोपीय निवासी किले से बाहर जाने लगे। गार्डन हाउसेज़ (बगीचों वाले मकान) सबसे पहले माउंट रोड और पूनामाली रोड पर बनने शुरू हुए। ये सड़कें क़िले से छावनी तक जाती थीं। इस दौरान संपन्न भारतीय भी अंग्रेज़ों की तरह रहने लगे थे। परिणामस्वरूप मद्रास के इर्द-गिर्द स्थित गाँवों का स्थान बहुत-से नए उपशहरी प्रदेशों ने ले लिया। यह इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि संपन्न लोग परिवहन सुविधाओं की लागत वहन कर सकते थे। परंतु ग़रीब लोग अपने काम की जगह के निकट स्थित गाँवों में ही रहते थे। मद्रास के बढ़ते शहरीकरण का परिणाम यह हुआ कि इन गाँवों के बीच वाले प्रदेश शहर में समा गए। इस प्रकार मद्रास में शहरी तथा ग्रामीण तत्व आपस में घुल-मिल गए और मद्रास दूर-दूर तक फैली एक अल्प सघन आबादी वाला अर्धग्रामीण शहर बन गया।
अथवा
भारत में 18वीं शताब्दी के दौरान शहरी केंद्रों के इतिहास विशेष रूप से व्यापार क्षेत्र में आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- (1) 18वीं शताब्दी में नगरों का मध्यकालीन स्वरूप बदलने लगा। राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगरों का पतन तथा नए नगरों का विकास होने लगा। मुग़ल सत्ता के पतन के साथ ही उसके शासन से जुड़े नगरों का भी पतन हो गया। मुग़ल राजधानियाँ, दिल्ली और आगरा अपना राजनीतिक प्रभुत्व खो बैठी। दूसरी ओर नई क्षेत्रीय शक्तियों के विकास से क्षेत्रीय राजधानियों-लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपटनम, पूना (आज का पुणे), नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर (आज का तंजावुर) का महत्त्व बढ़ गया।
(2) व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग मुग़ल केंद्रों से इन नयी राजधानियों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे।
(3) नए राज्यों के बीच निरंतर लड़ाइयों के कारण भाड़े के सैनिकों को भी रोज़गार मिलने लगा।
(4) कुछ विशेष स्थानीय लोगों तथा उत्तर भारत में मुग़ल साम्राज्य से जुड़े अधिकारियों ने भी इस अवसर का उपयोग ‘कस्बे’ और ‘गंज’ (एक प्रकार का छोटा स्थायी बाज़ार) आदि नयी शहरी बस्तियाँ बसाने में किया। परंतु राजनीतिक विकेंद्रीकरण का प्रभाव सभी जगह एक जैसा नहीं था। कई स्थानों पर नए सिरे से आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ीं। परंतु कुछ अन्य स्थानों पर युद्ध, लूट-मार तथा राजनीतिक अनिश्चितता के कारण आर्थिक पतन की स्थिति पैदा हो गई।
(5) व्यापार तंत्रों में परिवर्तन ने भी शहरी केंद्रों के रूपांतरण को प्रभावित किया। यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों ने पहले ही विभिन्न स्थानों पर अपने आधार स्थापित कर लिए थे (i) पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी में (ii) डचों ने 1605 में मछलीपटनम में (iii) अंग्रेजों ने 1639 में मद्रास में तथा (iv) फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी (आज का पुडुचेरी) में। व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केंद्रों के आस-पास नगरों का विकास होने लगा।
(6) अठारहवीं शताब्दी के अंत तक स्थल-आधारित साम्राज्यों का स्थान शक्तिशाली जल-आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया। अब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद जैसी शक्तियाँ समाज के स्वरूप को परिभाषित करने लगीं।
(7) अठारहवीं शताब्दी के मध्य से परिवर्तन का एक नया चरण आरंभ हुआ। व्यापारिक गतिविधियों के अन्य स्थानों पर केंद्रित हो जाने से सत्रहवीं शताब्दी में विकसित सूरत, मछलीपटनम तथा ढाका पतनोन्मुख हो गए।
उत्तर- (1) नदी या समुद्र के किनारे आर्थिक गतिविधियों से गोदियों और घाटियों का विकास हुआ।
(2) समुद्र किनारे गोदाम, वाणिज्यिक कार्यालय, जहाज़रानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियाँ, यातायात डिपो तथा बैंकों की स्थापना होने लगी।
(3) कंपनी के मुख्य प्रशासनिक कार्यालय समुद्र तट से दूर बनाए गए। कलकत्ता में स्थित राइटर्स बिल्डिंग इसी तरह का एक कार्यालय था। यहाँ “राइटर्स” से अभिप्राय क्लर्कों से है। यह ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते महत्त्व का संकेत था।
(4) किले की चारदीवारी के आसपास यूरोपीय व्यापारियों और एजेंटों ने यूरोपीय शैली के भव्य मकान बना लिए थे। कुछ यूरोपीयों ने शहर की सीमा से सटे उपशहरी इलाकों में बागीचा घर (Garden House) बना लिए थे।
(5) शासक वर्ग के लिए नस्ली विभेद पर आधारित क्लब, रेसकोर्स और रंगमंच भी बनाए गए।
(6) टाउन हॉल, सार्वजनिक पार्क, रंगशालाएँ तथा सिनेमा हॉल जैसे सार्वजनिक स्थल भी सामने आए। ये स्थान लोगों के लिए मनोरंजन तथा मेल-जोल के महत्त्वपूर्ण केंद्र थे।
उत्तर-19वीं शताब्दी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली मुख्य चिंताएँ निम्नलिखित थीं
(1) एक अन्य विद्रोह की आशंका-1857 के विद्रोह के बाद भारत में अंग्रेज़ लगातार किसी अन्य विद्रोह की आशंका में रहने लगे। उन्हें लगता था कि शहरों की ओर अच्छी तरह रक्षा करना ज़रूरी है और अंग्रेज़ों को “देशियों” (Natives) के खतरे से दूर सुरक्षित तथा पृथक् बस्तियों में रहना चाहिए। अतः पुराने कस्बों के इर्द-गिर्द चरागाहों और खेतों को साफ़ कर दिया गया। “सिविल लाइन्स” के नाम से नए शहरी इलाके विकसित किए गए। इन इलाकों में केवल गोरों को बसाया गया।
(2) छावनियों की सुरक्षा–छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों पर विकसित किया गया। छावनियों में यूरोपीयों के अधीन भारतीय सैनिक तैनात किए जाते थे। ये इलाके मुख्य शहर से अलग थे, परंतु शहर से जुड़े हुए होते थे। चौड़ी सड़कों, बड़े बगीचों में बने बंगलों, बैरकों परेड का मैदान
और चर्च आदि से लैस ये छावनियाँ यूरोपीय लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल थीं। साथ ही ये अव्यवस्थित भारतीय कस्बों के विपरीत व्यवस्थित शहरी जीवन का एक नमूना भी थीं।
(3) ब्लैक टाउन का दूषित वातावरण-अंग्रेज़ों की दृष्टि में ‘ब्लैक टाउन’ न केवल अराजकता और उपद्रव का केंद्र थे, वे गंदगी और बीमारी का स्रोत भी थे। अतः वे इन क्षेत्रों में नहीं रहना चाहते थे।
(4) सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंताएं- हैजा एवं प्लेग जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए शहरों की सफाई को नियमित रूप से संचालित करना।
(5) अग्नि की घटनाओं की चिंता-अंग्रेज़ अग्नि की घटनाओं से भी चिंतित थे। इसी आशंका के कारण 1836 में कलकत्ता में घास-फूस की झोंपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया। साथ ही, मकानों में ईंटों की छत अनिवार्य कर दी गई।
(6) शक्ति और श्रेष्ठता का प्रदर्शन-औपनिवेशिक शासक अपनी भारतीय प्रजा पर अपनी शक्ति तथा श्रेष्ठता की धाक जमाना चाहते थे। अतः गोरी बस्तियों में भवन निर्माण का कार्य यूरोपीय स्थापत्य शैलियों के अनुसार किया गया।
अथवा
औपनिवेशिक शासन में नए नगरों के सामाजिक जीवन में आए किन्हीं चार बदलावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- औपनिवेशिक शासन में नए नगरों के सामाजिक जीवन में कई महत्त्वपूर्ण बदलाव आए। इनमें से मुख्य बदलाव निम्नलिखित थे
1. यातायात के साधनों का विकास-घोड़ागाड़ी जैसे नए यातायात के साधन और बाद में ट्रामों तथा बसों के प्रचलन से लोग शहर के केंद्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। समय के साथ काम की और रहने का स्थान दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए। घर से दफ़्तर या फैक्ट्री जाना एक नए प्रकार का अनुभव बन गया।
2. मनोरंजन तथा मिलने-जुलने के नए सार्वजनिक स्थल-अब तक पुराने शहरों में लोगों में आपसी मेलजोल कम हो चुका था। परंतु टाउन हॉल, सार्वजनिक पार्क, रंगशालाओं तथा बीसवीं सदी में सिनेमा हॉलों जैसे सार्वजनिक स्थानों के निर्माण से शहरों में लोगों को मिलने-जुलने तथा मनोरंजन के नए अवसर मिलने लगे। शहरों में नए सामाजिक समूह बने तथा लोगों की पुरानी पहचानें लगभग समाप्त हो गईं।
3. मध्यवर्ग का विस्तार सभी वर्गों के लोग बड़े शहरों में आने लगे। क्लर्कों, शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, अकाउंटेंट्स की माँग बढ़ने लगी। परिणामस्वरूप “मध्यमवर्ग” बढ़ता गया। उनके पास स्कूल, कॉलेज और लाइब्रेरी जैसे नए शिक्षा केंद्रों तक अच्छी पहुँच थी। शिक्षित होने के नाते वे समाज और सरकार के बारे में अख़बारों, पत्रिकाओं और सार्वजनिक सभाओं में अपना मत व्यक्त कर सकते थे। इस प्रकार एक नया सार्वजनिक वातावरण तैयार हुआ।
4. महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन– महिलाओं की स्थितियों में परिवर्तन आना शुरू हो गया था और नए शहरो के विकास से महिलाओं के लिए भी नए अवसर उपलब्ध हो रहे थे। महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर अन्य क्षेत्रों में जैसे की फैक्ट्रियों में, घरों में नौकरानी के रूप में, शिक्षाकर्मी, रंगकर्मी, फिल्म अभिनेत्री के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगी थीं।
5. मेहनतकश, गरीबों अथवा कामगारों में वृद्धि-शहरों में मेहनतकश, गरीबों अथवा कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ग्रामीण इलाकों से गरीब रोज़गार की तलाश में लगातार शहरों की ओर जा रहे थे। कुछ लोगों को शहर नए अवसरों का स्रोत दिखाई देते थे। कुछ अन्य को एक भिन्न जीवनशैली का आकर्षण शहरों की ओर खींच रहा था। उनके लिए यह जीवन-शैली एक ऐसी चीज़ थी जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी।
औपनिवेशिक शहर के अति लघु उत्तरीय प्रश्न
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