मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Class 10th Social Science Chapter 5 Solution
NCERT Solutions For Social Science Class 10th Chapter 5. मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया –बहुत से विद्यार्थी हर साल 10th की परीक्षा देते है ,लेकिन बहुत से विद्यार्थी के अच्छे अंक प्राप्त नही हो पाते जिससे उन्हें आगे एडमिशन लेने में भी दिक्कत आती है .जो विद्यार्थी 10th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यहां पर एनसीईआरटी कक्षा 10 विज्ञान अध्याय 5 (मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया) के लिए सलूशन दिया गया है.यह जो Class 10th Chapter 5 Print Culture and the Modern World दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है .ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए . इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है.पादप में जनन के बारे में जानकारी होना हमारे सामान्य ज्ञान के लिए भी महत्वपूर्ण है .इसलिए आप Ch. 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया प्रश्नोत्तर विज्ञान को अच्छे से पढ़े .
पाठ्यपुस्तक प्रश्नोत्तर
(क) वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
उत्तर- ‘वुडब्लॉक या काठ की तख्ती’ वाली छपाई चीन में होती थी। मार्कोपोलो नामक एक महान् खोजी यात्री काफ़ी समय तक चीन में रहा। वह 1295 में वापस इटली लौटा और अपने साथ तख्ती की छपाई की तकनीक लाया। इस प्रकार 1295 के बाद यूरोप में भी छपाई की यह तकनीक अपनाई जाने लगी।
उत्तर- मार्टिन लूथर एक धर्म सुधारक था जिसने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी 95 स्थापनाएँ लिखीं . जल्द ही लूथर के लेख बड़ी तादाद में छापे और पढ़े जाने लगे | कुछ ही हफ़्तों में न्यू टेस्टामेंट के लूथर के तजुर्वे के अनुवाद की 5000 प्रतियाँ बिक गई, और तीन महीने के अंदर दूसरा संस्करण निकलना पड़ा . यह देखकर इतिहासकार भी अब यह मानने लगे कि मुद्रण से नया बौद्धिक माहौल बन गया है ।
अथवा
मुद्रण के विकास ने रोमन कैथोलिक चर्च में किस प्रकार असंतोष उत्पन्न किया? उसने इस समस्या का क्या समाधान किया?
उत्तर- प्रिंट के कारण बाइबिल की नई व्याख्या लोगों तक पहुँची और लोग चर्च की शक्ति पर सवाल उठाने लगे। इसलिए रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरु कर दी।
उत्तर- सरकारें जिस तरह से प्रिंट को नियंत्रित करने और कुचलने की कोशिश करती हैं उससे प्रिंट की शक्ति का अंदाजा हो जाता है। अंग्रेजी हुकूमत ने भारत में छपने वाली किताबों और अखबारों पर लगातार नजर रखनी शुरु कर दी और प्रेस को नियंत्रण में लाने के लिए कई कानून भी बनाए। इसलिए गांधी जी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
(क) गुटेनबर्ग प्रेस
(ख) छपी किताब को लेकर रैस्मस के विचार
(ग) वर्नाक्यूलर या देशी प्रेस एक्ट।
उत्तर (क) गटेनबर्ग प्रेस: – गुटेनबर्ग किसी व्यापारी के बेटे थे। अपने बचपन से ही उन्होंने जैतून और शराब की प्रेस देखी थी। उसने पत्थरों पर पॉलिस करने की कला भी सीखी थी। उसे सोने के जेवर बनाने में भी महारत हासिल थी और वह लेड के साँचे भी बनाता था जिनका इस्तेमाल सस्ते जेवरों को ढ़ालने के लिए किया जाता था।
इस तरह से गुटेनबर्ग के पास हर वह जरूरी ज्ञान था जिसका इस्तेमाल करके उसने प्रिंटिंग टेक्नॉलोजी को और बेहतर बनाया। उसने जैतून के प्रेस को अपने प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल बनाया और अपने साँचों का इस्तेमाल करके छापने के लिए अक्षर बनाये। 1448 इसवी तक गुटेनबर्ग ने अपने प्रिंटिंग प्रेस को दुरुस्त बना लिया था। उसने अपने प्रेस में सबसे पहले बाइबिल को छापा।
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार : इरैस्मस लैटिन (1468-1536) पुनर्जागरण काल का एक महान् लतीनी विद्वान् था. वह कैथोलिक सुधारक था.उसने प्रिटिंग प्रैस का पक्ष लिया | उसने छापेखाने के बारे में गहरी चिंता को अभिव्यक्त किया था | 1508 ई. में इन नई पुस्तकों के विचारों को विश्व के कोने-कोने में पहुँचाना चाहता था
(ग) वर्नाक्यूलर या देशी प्रेस एक्ट: वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को 1878 में पारित किया गया। इस कानून ने सरकार को वर्नाकुलर प्रेस में समाचार और संपादकीय पर सेंसर लगाने के लिए अकूत शक्ति प्रदान की। राजद्रोही रिपोर्ट छपने पर अखबार को चेतावनी दी जाती थी। यदि उस चेतावनी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हा तो फिर ऐसी भी संभावना होती थी कि प्रेस को बंद कर दिया जाये और प्रिंटिंग मशीनों को जब्त कर लिया जाये।
(क) महिलाएँ
(ख) ग़रीब जनता
(ग) सुधारक।
उत्तर उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने लगभग हर क्षेत्र में बदलाव ला दिए। महिलाएँ, ग़रीब लोग तथा समाज-सुधारक कोई भी इन बदलावों से अछूता न रहा।
(क) महिलाएँ: महिलाओं के जीवन और संवेदनाओं पर कई लेखकों ने लिखना शुरु किया। इसके कारण मध्यम वर्ग की महिलाओं में पढ़ने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी। कई ऐसे पिता या पति आगे आये जो स्त्री शिक्षा पर जोर देते थे। कुछ महिलाओं ने घर पर रहकर ही शिक्षा प्राप्त की, जबकि कुछ अन्य महिलाओं ने स्कूल जाना भी शुरु किया।
(ख) गरीब जनता: मद्रास के शहरों में उन्नीसवीं सदी में सस्ती और छोटी किताबें आ चुकी थीं। इन किताबों को चौराहों पर बेचा जाता था ताकि गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकें। बीसवीं सदी के शुरुआत से सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना शुरु हुई जिसके कारण लोगों तक किताबों की पहुँच बढ़ने लगी। कई अमीर लोग अपने क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से पुस्तकालय बनाने लगे। इससे गरीब लोग भी किताबें पढ़ने लगे और बदलती दुनिया के बारे में जानने लगे। इससे इतना फायदा हुआ कि कई मजदूरों ने भी किताबें लिखीं।
(ग) सुधारकः प्रिंट ने समाज सुधारकों का काम आसान कर दिया। उनके नये विचार अब आसानी से जन मानस तक पहुँच सकते थे। पुरानी मान्यताओं पर खुल कर बहस संभव हो गया। इससे समाज को काफी फायदा हुआ।
उत्तर- प्रिंट के कारण ज्ञानोदय के विचारकों के विचार लोकप्रिय हुए। इन विचारकों ने परंपरा, अंधविश्वास और निरंकुशवाद की कड़ी आलोचना की। प्रिंट के कारण संवाद और वाद-विवाद की नई संस्कृति का जन्म हुआ। अब आम आदमी भी मूल्यों, संस्थाओं और प्रचलनों पर विवाद करने लगा और स्थापित मान्यताओं पर सवाल करने लगा। इन सब बदलावों से कुछ लोगों को लगने लगा त्था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा।
उत्तर – रूढ़िवादी लोगों को लगता था कि किताबें पढ़ने से लोगों के दिमाग फिर जाएँगे। यूरोप के कैथलिक चर्च को लगता था कि लोग उसकी अवहेलना करना शुरु कर देंगे। भारत के रूढ़िवादियों को लगता था कि लोग पारंपरिक मान्यताओं को तोड़ने लगेंगे और उससे सामाजिक विध्वंस हो जायेगा। इसलिए ऐसे लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित थे।
उत्तर -मद्रास के शहरों में उन्नीसवीं सदी में सस्ती और छोटी किताबें आ चुकी थीं। इन किताबों को चौराहों पर बेचा जाता था ताकि गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकें। बीसवीं सदी के शुरुआत से सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना शुरु हुई जिसके कारण लोगों तक किताबों की पहुँच बढ़ने लगी। कई अमीर लोग अपने क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से पुस्तकालय बनाने लगे। इससे गरीब लोग भी किताबें पढ़ने लगे और बदलती दुनिया के बारे में जानने लगे। इससे इतना फायदा हुआ कि कई मजदूरों ने भी किताबें लिखीं।
उत्तर – प्रिंट संस्कृति से लोगों में संवाद की संस्कृति का विकास हुआ। समाज सुधार के नये विचारों को अब बेहतर तरीके से लोगों तक पहुँचाया जा सकता था। गांधीजी ने अखबारों के माध्यम से स्वदेशी के अर्थ को अधिक शक्तिशाली तरीके से व्यक्त करना शुरु किया। भारत में स्थानीय बोलचाल की भाषाओं में कई अखबार प्रकाशित होने लगे। इससे भारत के जनमानस में राष्ट्रवाद की भावना को फैलाने में काफी मदद मिली। कई दमनकारी नीतियों के बावजूद प्रिंट संस्कृति एक ऐसा आंदोलन था जिसे रोका नहीं जा सकता था।