भारत में राष्ट्रवाद Class 10th Social Science Chapter 2 Solution
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पाठ्यपुस्तक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?
उत्तर- उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन ने लोगों एक ऐसा माध्यम दिया जिससे विविध प्रकार के लोग एकता के सूत्र में बंध पाये। इसलिए हम कह सकते हैं कि उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी।
उत्तर. पहले विश्व युद्ध ने भारत के लोगों के लिए भारी आर्थिक समस्या खड़ी कर दी। इसके अलावा, भारतीय लोगों की ब्रिटिश सेना में जबरन भर्ती ने भी लोगों को उपनिवेशी शासकों के खिलाफ कर दिया। यह राष्ट्रवादी नेताओं के लिए बड़ा ही अनुकूल समय था जब वे लोगों को उपनिवेशी शासकों के विरोध में जाने के लिए उकसा सकते थे। इस तरह से प्रथम विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में अच्छा योगदान किया।
उत्तर. यह ऐक्ट इसलिये बनाया गया था ताकि सरकार के पास राजनैतिक गतिविधियों को कुचलने के लिए असीम शक्ति मिल जाये। रॉलैट ऐक्ट के अनुसार राजनैतिक कैदियों को बिना ट्रायल के ही दो साल तक के लिये कैद किया जा सकता था। इसलिए भारत के लोग रॉलट एक्ट के खिलाफ थे।
उत्तर. गांधीजी ने महसूस किया कि चौरी-चौरा घटना जैसे कई स्थानों पर आंदोलन हिंसक होता जा रहा है1921 के अंत आते आते, कई स्थानों पर आंदोलन नियंत्रण से बाहर हो चुका था और हिंसक रूप लेने लगा था। इसलिए फरवरी 1922 में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय ले लिया।
अथवा
गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह के विचार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर. महात्मा गांधी ने जन आंदोलन का एक नायाब तरीका निकाला जिसे सत्याग्रह का नाम दिया गया। यह इस सिद्धांत पर आधारित था कि यदि कोई सही मुद्दे के लिए लड़ रहा है तो फिर उस लड़ाई के लिए लाठी या गोली की ताकत की जरूरत नहीं है। गांधीजी का मानना था कि एक सत्याग्रही किसी भी लड़ाई को अहिंसा से जीत सकता है। इसके लिए बदले की भावना या हिंसा की भावना की कोई जरूरत नहीं है।
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
(ख) साइमन कमीशन
उत्तर (क) जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड – अमृतसर, 13 अप्रैल 1919: अंग्रेजी जेनरल डायर ने जलियाँवाला बाग में मेला देखने आये निर्दोष लोगों पर गोली चलाने के आदेश दिये। बाहर जाने के सारे रास्ते बंद कर दिये गये थे ताकि अंग्रेजी ताकत के गुस्से से कोई न बच सके। इस गोलीकांड में कई लोगों की जान चली गई और उनसे कई गुना अधिक लोग घायल हो गये।
(ख) साइमन कमीशन – साइमन कमीशन 1928 में भारत पहुँचा। इस कमीशन (आयोग) में कोई भी सदस्य भारतीय नहीं था। जब यह कमीशन भारत पहुँचा तो इसका जगह-जगह काली झंडियाँ दिखाकर और ‘साइमन गो बैक’ (साइमन कमीशन वापस जाओ) के नारों से स्वागत किया गया। इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के साथ-साथ भारत की अन्य पार्टियों ने भी भाग लिया।
उत्तर भारत माता की छवि और जर्मेनिया की छवि में जो समानता है वह है मातृभूमि को एक महिला के रूप में दिखाना। दोनों तस्वीरों में महिला को पारंपरिक परिधानों से सजाया गया है तथा उनके हाथों में कुछ रूपक दर्शाए गये हैं। ये रूपक स्वतंत्रता, उदारवाद, शांति और ऊर्जा के प्रतीक हैं।
उत्तर – असहयोग आंदोलन में किसान, आदिवासी, बागान मजदूर, छात्र, वकील, सरकारी कर्मचारी, महिलाएँ, आदि शामिल हुई थीं। इनमे से तीन का विवरण नीचे दिया गया है:
किसान:किसानों का विरोध अधिक मालगुजारी और तालुकदार और जमींदारों द्वारा लगाये गये अन्य शुल्कों के खिलाफ था। किसानों की माँग थी कि मालगुजारी को कम किया जाए, बेगार को समाप्त किया जाए और जमींदारों का बहिष्कार किया जाए।
आदिवासी:आदिवासियों ने महात्मा गांधी के स्वराज का अपना ही अर्थ निकाला था। आदिवासियों को जंगल में पशु चराने और वहाँ से फल और जलावन लेने की मनाही थी। इस तरह से जंगल के नए कानून उनकी आजीविका के लिए खतरा साबित हो रहे थे। सरकार उन्हें सड़क निर्माण में बेगार करने के लिए बाधित कर रही थी। आदिवासी मानते थे कि इस आंदोलन से उन्हें उन सब समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।
बागान मजदूर:इंडियन एमिग्रेशन एक्ट 1859 के अनुसार बागान में काम करने वाले मजदूरों को बिना अनुमति के बागान छोड़ने की मनाही थी। जब असहयोग आंदोलन की खबर चारों ओर फैलने लगी तो बादान के कई मजदूरों ने वहाँ के अफसरों की आज्ञा मानने से इनकार कर दिया।
उत्तर – नमक एक शक्तिशाली प्रतीक था जिसे हर व्यक्ति से जोड़ा जा सकता था। नमक का इस्तेमाल हर तबके का आदमी समान रूप से करता था। गरीबों के लिए नमक कर को समाप्त करने का मतलब था दाम में गिरावट। किसी व्यवसायी के लिए इसका मतलब था कि वे ऐसे कई अन्य करों की समाप्ति की उम्मीद कर सकते थे जिससे उनका व्यवसाय प्रभावित हो रहा था।
उत्तर – पारंपरिक तौर पर एक महिला की भूमिका घर चलाने की मानी जाती है। लेकिन असहयोग आंदोलन में भाग लेकर मैं राष्ट्र निर्माण में भागीदारी कर सकूंगी। यह मेरे लिए किसी प्रोत्साहन से कम नहीं था। जब मैंने लाठी चार्ज में घायल व्यक्तियों की सेवा की तो मेरा हृदय उल्लास से भर गया। ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने ही भाई बंधुओं की सेवा कर रही थी।
उत्तर – मुस्लिम लीग के नेता मानते थे कि मुसलमानों का भविष्य हिंदू बहुल देश में सुरक्षित रखने के लिए पृथक निर्वाचिका की जरूरत थी। वह अपने समुदाय के लोगों के लिए बेहतर राजनैतिक शक्ति की इच्छा रखते थे। भारत में दलितों के उत्पीड़न का लंबा इतिहास रहा है। इसलिए दलितों के नेताओं को आशंका थी की सवर्णों के हाथ में सत्ता आने से दलितों की स्थिति और भी खराब होगी। इसलिए वे दलितों के लिए पृथक निर्वाचिका की मांग कर रहे थे। लेकिन गांधीजी का मानना था कि पृथक निर्वाचिका मुसलमानों और दलितों को मुख्य धारा से दूर ले जायेगी। इसलिए राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर बँटे हुए थे।
प्रथम विश्व युध्द और द्वितीय विश्व युध्द,, के कारण तथा प्रभाव और जानकारी
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