उत्तर- मानव में वहन तंत्र के प्रमुख दो घटक हैं-रुधिर और लसीका।
1. फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन का परिवहन करना।
2. रुधिर के श्वेत रक्त कणिकाएं हानिकारक बैक्टीरियाओ, मृतकोशिकाओं तथा रोगाणुओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देता है।
3. पहिकाएं तथा फाइब्रिनोजिन नामक प्रोटीन रक्त में उपस्थित होती है जो रक्त का थक्का जमने में सहायक होते हैं।
4. विभिन्न प्रकार के एंजाइमों का परिवहन करता है।
5. विभिन्न प्रकार के हॉर्मोनों का परिवहन करना।
6. छोटी आँतों से परिजय भोज्य पदार्थों का अवशोषण भी रक्त प्लाज्मा द्वारा होता है जिसे यकृत और विभिन्न ऊतकों में भेज दिया जाता है।
7. शरीर के तापक्रम को उष्मा वितरण द्वारा नियंत्रित रखना।
8. विभिन्न ऊतकों में कार्बन-डाइऑक्साइड को एकत्रित करके उसका फेफड़ों तक परिवहन करना।
9. विभिन्न प्रकार के उत्सर्जी पदार्थों का उत्सर्जन हेतु वृक्कों तक पहुँचाना।
10. उपाचय में बने विषैले एवं हानिकारक पदार्थों को एकत्रित करके अहानिकारक बनाने के लिए यकृत में भेजना।
1. लसिका ऊतकों तक भोज्य पदार्थों का संवहन करती है।
2. शरीर के घाव भरने में सहायक होती है।
3. पचे वसा का अवशोषण करके शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती है।
4. ऊतकों से उत्सर्जी पदार्थों को एकत्रित करती है।
5. हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके शरीर की रक्षा करती है।
उत्तर-स्तनधारी तथा पक्षियों में उच्च तापमान को बनाए रखने के लिए अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित रुधिर को हृदय के दायें और बायें भाग से आपस में मिलने से रोकना परम आवश्यक है। इस प्रकार का बंटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति करता है।
उत्तर- उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के प्रमुख ऊतक दो प्रकार के हैं
(a) जाइलम ऊतक (दारू)- यह एक जटिल ऊतक है जो जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाता है।
(b) फ्लोएम ऊतक – यह एक वहन ऊतक है जो खाद्य पदार्थों (शर्करा), जो पत्तों द्वारा संश्लेषित होती है तथा हार्मोन जो तने की चोटी में संश्लेषित होते हैं, को पौधे के उन भागों में स्थानांतरित करता है जहाँ उनकी आवश्यकता होती है।
अथवा
पौधों में भोजन तथा दूसरे पदार्थों के स्थानांतरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर- पादप में जल और खनिज लवण का वाहन जाइलम ऊतक द्वारा होता है। जड़, तना तथा पत्तों में उपस्थित वाहिनिकाएँ तथा वाहिकाएँ आपस में जुड़कर जल संवहन वाहिकाओं का एक जाल बनाती हैं जो पादप के सभी भागों से जुड़ा होता है। जड़ों की कोशिकाएँ मृदा के संपर्क में होती हैं तथा वे सक्रिय रूप से जल तथा खनिजों को (आयन के रूप में) प्राप्त करती हैं। यह जड़ और मृदा के मध्य आयन सांद्रण में एक अंतर उतपन्न करता है। इस अंतर को समाप्त करने के लिए मृदा से जल जड़ में प्रवेश कर जाता है। यह जल के स्तंभ का निर्माण करता है जो लगातार ऊपर की ओर धकेला जाता है।
अथवा
पादपों में पत्तियों द्वारा निर्मित भोजन का वहन किस प्रकार होता है ? समझाइए।
उत्तर- पादपों की पत्तियाँ प्रकाश संश्लेषण क्रिया से अपना भोजन तैयार करती हैं और वह वहाँ से पादप के अन्य भागों में भेजा जाता है। प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है। यह कार्य संवहन ऊतक के फ्लोएम नामक भाग के द्वारा किया जाता है। पत्तिया भोजन तैयार करती है | फ्लोएम वाहिकाए के द्वारा पात्तियो से भोजन स्थानांतरण पूरे पौधे में होता है .
अथवा
मानव वृक्क में मूत्र किस प्रकार बनता है ?
उत्तर-वृक्काणु वृक्क की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इस प्रकार है।
(i) वृक्काणु की संरचना- प्रत्येक वृक्काणु में एक कप की आकृति की संरचना होती है, जिसे बोमन संपुट कहते हैं। यह रक्त कोशिकाओं के जाल को घेरे रखती है। इसे कोशिकागुच्छ कहते हैं। बोमन सपूत से एक नलिकाकार संरचना निकलती है जिसे कुंडलित नलिका कहते हैं। यह नलिका फिर एक की आकृति की संरचना बनती है जिसे हेनले का लूप कहते हैं, जो एक और कुंडलित संरचना बनाती है, जिसे (DCT) कहते हैं। यह वाहिनी में जाकर मिलती है।
(ii) वृक्काणु का कार्य- वृक्क धमनी रक्त को बोमन संपुट के कोशिकागुच्छ में लेकर जाती है और रक्त को छाना जाता है। प्रारंभिक निस्यंद में कुछ पदार्थ; जैसे ग्लूकोज़, अमीनो अम्ल, लवण आयन, प्रचुर मात्रा में जल रह जाता है। उसमें कुछ सुक्रोज़/ग्लूकोज़ तथा कुछ यूरिया भी होता है। जैसे-जैसे निस्यंद कुंडलित नलिका और हैनले के लूप में से गुज़रता है, इसमें से कुछ उपयोगी पदार्थों को दोबारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा अधिक पानी, यूरिया और दूसरे व्यर्थ मूत्राशय में सूत्र के रुओ में एकत्रित कर लिए जाते हैं।
उत्तर– पादप उत्सृजन के लिए जंतुओं से बिलकुल भिन्न युक्तियाँ प्रयुक्त करते हैं।
- पौधे कुछ पदार्थों को व्यर्थ के रूप में आस-पास की मृदा में उत्सर्जित कर देते हैं।
- रात के समय पौधों के लिए O2एक व्यर्थ पदार्थ नहीं है, जबकि CO2एक व्यर्थ पदार्थ है।
- व्यर्थ पदार्थों गोंद तथा रेजिन के रूप में पुराने जाइलम ऊतक में एकत्रित हो जाते हैं।
- अनेक पादप व्यर्थ पदार्थ कोशिकाओं में रिक्तिकाओं में संचित हो जाते हैं। व्यर्थ पदार्थ पत्तों में भी एकत्रित हो जाते तो फिर गिर जाते हैं।
- यहाँ तक कि पौधे फालतू पानी को वाष्पोतसर्जन द्वारा वायु में छोड़ देते हैं।
- दिन के समय पौधों की कोशिकाओं में श्वसन कारण उतपन्न CO2एक व्यर्थ पदार्थ नहीं है, क्योंकि इसे प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रयुक्त कर लिया जाता है। दिन के समय अत्यधिक मात्रा में O2उत्पादित होती है, जो उसके स्वयं के लिए एक व्यर्थ पदार्थ होता है। उसे वायुमंडल में मुक्त कर दिया जाता है।
उत्तर- मूत्र बनने की मात्रा इस प्रकार नियंत्रित की जाती है कि जल की मात्रा का शरीर में संतुलन बना रहे। जल की बाहर निकलने वाली मात्रा इस आधार पर निर्भर करती है कि उसे कितना विलेय वर्त्य पदार्थ उत्सर्जित करना है। अतिरिक्त जल का वृक्क में पुनरावशोषण कर लिया जाता है और उसका पुन: उपयोग हो जाता है।
tq sir