Class 10th Science Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
NCERT Solutions for Science Class 10th Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन – जो विद्यार्थी 10वीं में पढ़े रहे है वह सभी चाहते है की वह अच्छे अंको से पास हो .बहुत से विद्यार्थियों को साइंस के प्रश्नों उत्तरों में दिक्कत आती है .जिससे वह अच्छे अंक नहीं ले पाते .इसलिए हम आपको हमारी इस साईट पर दसवीं के सभी Chapter के प्रश्न उत्तरों को आसन भाषा में समझाया गया .इसलिए जो विद्यार्थी 10th में पढ़ रहे है ,उन्हें इस पोस्ट में Class 10th Chapter 2 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन के बारे आसन भाषा में बतया गया है ,ताकि विद्यार्थी को आसानी से समझ आ जाए .इसलिए 10th के विद्यार्थी को इस Chapter को ध्यान से पढना चाहिए ,ताकि उसे एग्जाम में अच्छे अंक प्राप्त क्र सके .
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)
उत्तर-
- व्यर्थ बहते जल की बर्बादी रोक कर।
- सोच-समझ कर विद्युत् उपकरणों का इस्तेमाल करके। (
- पॉलीथीन का इस्तेमाल न करना।
- नालियों में रसायन तथा इस्तेमाल किया हुआ तेल न डाल कर।
- जल संरक्षण को बढ़ावा देकर।
- सीसा रहित पैट्रोल का प्रयोग करके।
- ठोस कचरे का कम-से-कम उत्पादन कर।
- धुआँ रहित वाहनों का प्रयोग करके।
- पुन: चक्रण हो सकने वाली वस्तुओं का इस्तेमाल करके।
- तेल से चालित वाहनों का कम-से-कम इस्तेमाल करके।
- वनों की कटाई पर रोक लगाकर।
- 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मना कर।
- वृक्षारोपण।
ऐसे ही कई तरीकों को अपनाकर हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं.
उत्तर-इसका सिर्फ एक ही लाभ होता है, मनुष्य की संतुष्टि. मनुष्य अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए पेड़ पौधों को काट रहा है और जिससे कि पर्यावरण असंतुलित हो रहा है.संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य की परियोजनाओं को कुछ सोच-समझ कर ही बनाना चाहिए।
उत्तर-प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन लंबी अवधि को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए ताकि आगे आने वाली पीढ़ियां इन संसाधनों का इस्तेमाल कर पाए. कम अवधि के लाभ के लिए पेड़ों को काटा जाता है लेकिन लंबी अवधि को ध्यान में रखते हुए हमें दोबारा पेड़ों को लगाना चाहिए.वनों की कटाई से कृषि, आवासीय और औद्योगिक कार्यों के लिए भूमि प्राप्त हो सकती है लेकिन इससे भूमि कटाव की समस्या और पर्यावरण की सुरक्षा नहीं रह सकती।
उत्तर-आर्थिक विकास का पर्यावरण संरक्षण के साथ सीधा संबंध है। अगर संसाधनों का वितरण असमान होगा तो यह गरीबी का सबसे मुख्य कारण बनेगा. और अगर संसाधनों का वितरण समान होगा तो इससे एक शांतिपूर्ण समाज की स्थापना हो सकती है. कुछ स्वार्थी लोगों के कारण चोरी से वनों की कटाई की जाती है .जिससे कि हमारे पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान होता है.
प्रश्न 1. हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए ? अथवा पर्यावरण में वनों की क्या भूमिका हैं ?
उत्तर-वन एवं वन्य जीवन को निम्नलिखित कारणों से सुरक्षित रखना चाहिए
- वन्य प्राणियों से ऊन, अस्थियाँ, सींग, दाँत, तेल, वसा, त्वचा आदि प्राप्त करने के लिए।
- धन प्राप्ति के अच्छे स्रोत के रूप में।
- मृदा अपरदन एवं बाढ़ पर नियंत्रण करने के लिए।
- प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए।
- वृक्षों के वायवीय भागों से पर्याप्त मात्रा में जल का वाष्पन होता है जो वर्षा के स्रोत का कार्य करते हैं।
- स्थलीय खाद्य श्रृंखला की निरंतरता के लिए।
- फल, मेवे, सब्ज़ियाँ तथा औषधियाँ प्राप्त करने के लिए।
- इमारती तथा जलाने वाली लकड़ी प्राप्त करने के लिए।
- प्राणियों की प्रजाति को बनाये रखने के लिए।
- पर्यावरण में गैसीय संतुलन बनाने के लिए।
- वन्य जीवों को आश्रय प्रदान करने के लिए।
वन्य जीवन का संरक्षण राष्ट्रीय पार्क तथा पशुओं और पक्षियों के लिए शरण स्थल बनाने से किया जा सकता है।पशुओं का शिकार करने की निषेध आज्ञा का कानून प्राप्त करके किया जा सकता है। |
उत्तर- पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए वन्य जीवन का संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
- वनों को काटने से रोका जाना चाहिए.
- पेड़ पौधों की सुरक्षा करनी चाहिए.
- ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए.
- शिकारियों के लिए कड़े से कड़े कानून बनाए जाने चाहिए ताकि वह किसी भी वन्य पशु का शिकार ना करें.
- हर साल बहुत वन आग के कारण जल जाते हैं. वहां पर नए पेड़ लगाए जाने चाहिए और उनकी देखभाल की जानी चाहिए.
- वनों की अधिक चराई से बचाना चाहिए.
उत्तर-हमारे निवास क्षेत्र के आस-पास बारिश के पानी को जोहड़ तालाबों में इकट्ठा करने का प्रचलन है. भमिगत टैंकों में भी जल संग्रहण का प्रचलन था।
उत्तर-पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था
(1) लद्दाख के क्षेत्रों में जिंग द्वारा जल संरक्षण किया जाता है, जिसमें बर्फ के ग्लेशियर को रखा जाता है जो दिन के समय पिघल कर जल की कमी को पूरा करता है।
(2) बाँस की नालियाँ-जल संरक्षण की यह प्रणाली मेघालय में सदियों पुरानी पद्धति है। इसमें जल को बॉस | की नालियों द्वारा संरक्षित करके उन्हें पहाड़ों के निचले भागों में उन्हीं बाँस की नालियों द्वारा लाया जाता है।
मैदानी क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था
(1) तमिलनाडु क्षेत्र में बारिश के पानी को किसी टैंक में इकट्ठा किया जाता है और जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है.
(2) बावरियाँ –ये राजस्थान में पाए जाते हैं। ये छोटे-छोटे तालाब हैं जो प्राचीन काल में बंजारों द्वारा पीने के पानी की पूर्ति करने के लिए बनाए जाते थे.
पठारी क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था
(1) भंडार – ये महाराष्ट्र में पाए जाते हैं, जिसमें नदियों के किनारे ऊंची दीवारें बनाकर बड़ी मात्रा में पानी को इकट्ठा किया जाता है.
(2) जोहड़ – ये पठारी क्षेत्रों की जमीन पर पाए जाने वाले प्राकृतिक छोटे खड्डे होते हैं। जो कि बारिश के पानी को इकट्ठा करने में के काम आता है.
उत्तर-नई दिल्ली शहर में जलापूर्ति का मुख्य साधन नदी है। यमुना नदी का पानी पाइपों के द्वारा दिल्ली शहर | में लाया जाता है। कुछ पानी शहर के अंदर ही बोर द्वारा जमीन से निकाला जाता है। सभी निवासियों के लिए जल की आपूर्ति नहीं हो पाती।