अथवा
प्रोटीन क्या है? इसके कार्य तथा इसकी कमी व अधिकता से होने वाली हानियों बताएँ।
अथवा
प्रोटीन के प्रकार बताते हुए इसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-प्रोटीन का अर्थ (Meaning of Protein)- यूनानी शब्द प्रोटिन है। इसका मतलब है कि पहले आओ। यह एक कार्बनिक यौगिक है जो ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और कार्बन से बना है। सल्फर, फॉस्फोरस, ताँबा, लोहा और अन्य खनिज-लवण प्रोटीन के कुछ समूहों में शामिल हैं। Protein जीवन है। कोशिकाएं हर जीवित वस्तु का निर्माण करती हैं। कोशिकाओं में प्रोटीन और प्रोटोप्लाज्म होते हैं। इसलिए प्रोटीन को शारीरिक वृद्धि, टूटी-फूटी कोशिकाओं की मुरम्मत और नई कोशिकाओं का निर्माण करना चाहिए।
प्रकार (Types)-प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं
1. वनस्पति-जन्य प्रोटीन (Vegetable Protein)-जो प्रोटीन वनस्पति से प्राप्त होती है, उसे वनस्पति-जन्य प्रोटीन कहते हैं। वनस्पति प्रोटीन मूंगफली, सोयाबीन, मटर, दालें, गेहूँ, बादाम, पिस्ता, काजू, अखरोट, बाजरा आदि से प्राप्त होती है।
2. पशु-जन्य प्रोटीन (Animal Protein)-जो प्रोटीन पशु-जन्य अथवा पशुओं से प्राप्त होती है, उसे पशु-जन्य प्रोटीन कहते हैं। यह मांस, अंडे, मछली, बकरे की कलेजी, दूध, पनीर आदि से प्राप्त होती है।
लाभ/कार्य (Functions/Advantages)-प्रोटीन के लाभ/कार्य निम्नलिखित हैं
(i) प्रोटीन हमारे शरीर के टूटे-फूटे सैलों (कोशिकाओं) की मुरम्मत करता है।
(ii) यह शरीर का निर्माण करता है।
(iii) यह हमारे शरीर में काम करने की शक्ति उत्पन्न करता है।
(iv) इससे शरीर का तापमान ठीक रहता है।
(v) यह शरीर में घूमने वाले तत्त्वों का आना-जाना अपने नियंत्रण में रखता है।
हानियाँ (Disadvantages)-प्रोटीन की कमी व अधिकता से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं
(i) प्रोटीन की कमी से बच्चों को क्वांशियोरकॉर नामक रोग हो जाता है।
(ii) प्रोटीन की कमी से शरीर शिथिल हो जाता है।
(iii) प्रोटीन की अधिकता से शरीर में मोटापा आ जाता है।
(iv) प्रोटीन की अधिकता से जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है।
(v) प्रोटीन की अधिकता से गुर्दो पर बोझ पड़ने के कारण इनमें कई प्रकार की खराबी आ जाती है
(vi) प्रोटीन की कमी से चमड़ी खुरदरी एवं खुश्क हो जाती है।
(vii) प्रोटीन की कमी से शारीरिक सैलों का पोषण रुक जाता है। .
(viii) प्रोटीन की कमी से शरीर कमजोर हो जाता है।
प्रश्न 9. पोषक तत्त्वों की कमी से होने वाले रोगों को सूचीबद्ध करें।
अथवा
पोषक तत्त्वों के अभाव में शरीर में होने वाले रोगों और उनके लक्षणों का विवरण दें।
अथवा
विटामिनों एवं खनिज लवणों की कमी से होने वाले रोगों और उनके लक्षणों का विवरण दें।[/su_note]
उत्तर- विटामिनो एवं खनिज लवणों की कमी से होने वाले रोग एवं उनके लक्षण निम्नलिखित तालिका में दर्शाए गए हैं
– पोषक तत्त्व रोगों के नाम
रोगों के लक्षण विटामिन ‘ए’ या रेटिनॉल | रतौंधी या कॉर्निया
आँखों की रोशनी कमजोर होना, अंधेरे में कम दिखाई देना, आँसू ग्रंथियों का सूख जाना अर्थात् आँखों में सूखापन आ
जाना आदि। विटामिन ‘बी’
माँसपेशी क्षीणता, बेरी-बेरी, भूख न लगना, अधिक थकान महसूस होना, आँखों में जलन (बी कॉम्प्लेक्स) त्वचा रोग, रक्त-क्षीणता होना, होंठों का फटना आदि। विटामिन ‘सी’
स्कर्वी, आंतरिक रक्तस्राव दाँत एवं हड्डियों का कमजोर होना, मसूड़े कमजोर होना तथा (एस्कॉर्बिक अम्ल)
उनमें सूजन आ जाना, पैरों एवं जोड़ों में दर्द होना आदि। विटामिन ‘डी’ रिकेट्स (सूखारोग),
हड्डियाँ कमजोर होना, पेट का बढ़ना, बालों का झड़ना, बालों (केल्सीफेरॉल)
ऑस्टियोमलेरिया (Osteomalaria), | का सफेद होना आदि।
ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) विटामिन ‘ई’ बाँझपन. नपुंसकता
प्रजनन क्षमता में कमी होना, माँसपेशियाँ कमजोर होना आदि। (टोकोफेरॉल) विटामिन ‘के’ | रक्त का थक्का न जमना शरीर की रक्त जमाने की क्षमता का कमजोर होना आदि। (नैफ्थोक्विनॉन) प्रोटीन क्वाशियोरकर, प्लेग्रा
संपूर्ण शरीर में सूजन आना, भूख न लगना, बालों का झड़ना। लोहा (आयरन) अनीमिया (अरक्तता)
शरीर कमजोर होना, शरीर में रक्त न बनना, भूख न लगना,
जल्दी थकान महसूस होना आदि। आयोडीन घेघा (गॉयटर)
गले में सूजन आना, गले की ग्रंथि का फूल जाना आदि। कैल्शियम व फॉस्फोरस | अस्थि क्षीणता, दंतक्षय हड्डियाँ व मांसपेशियाँ कमजोर होना, दाँतों की मांसपेशियाँ
कमजोर होना आदि। कार्बोज/शर्करा मैरास्मस
पेट का फूल जाना, त्वचा में पीलापन आ जाना, जिगर को कोशिकाएँ कमजोर होना आदि।।
अथवा
कार्बोहाइड्रेट्स से होने वाले लाभ तथा इनकी कमी व अधिकता से होने वाली हानियों का वर्णन करें।
उत्तर- कार्बोहाइड्रेट्स का अर्थ (Meaning of Carbohydrates)-कार्बोहाइड्रेट्स को कार्बोज’ भी कहा जाता है। इनका अभिप्राय उस कार्बनिक यौगिकों के समूह से है जो तीन तत्त्वों; जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन का सम्मिश्रण है। इनसे शरीर को ऊष्मा प्राप्त होती है और ये ऊर्जा के सस्ते प्राप्ति-स्रोत माने जाते हैं।
प्राप्ति-पदार्थ (Sources)- कार्बोहाइड्रेट्स चावल, गेहूँ. आम, केला, ग्लूकोज, साग, मक्का, ज्वार, जौं, बाजरा, चीनी, गुड़, शक्कर, आलू, शक्करकंदी, खजूर आदि से मिलते हैं।
कार्य/लाभ (Advantages)-कार्बोहाइड्रेट्स के कार्य/लाभ निम्नलिखित हैं
(i) कार्बोहाइड्रेट्स शरीर में शक्ति एवं गर्मी पैदा करते हैं।
(ii) ये शरीर की मांसपेशियों को मजबूत एवं सुदृढ़ बनाते हैं।
(iii) ये प्रोटीन एवं वसा की बचत में सहायता प्रदान करते हैं।
(iv) ये शरीर के ताप को सामान्य करने में सहायक होते हैं।
(v) ये भोजन को स्वादिष्ट बनाने में सहायक होते हैं।
(vi) ये आमाशय व आंतड़ियों की सफाई में भी सहायक होते हैं।
(vii) ये पाचन प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
हानियाँ (Disadvantages)-कार्बोहाइड्रेट्स की कमी व अधिकता से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं
(i) कार्बोहाइड्रेट्स की अधिक मात्रा से शुगर की बीमारी हो जाती है।
(ii) इनको अधिक मात्रा से शरीर में मोटापा आ जाता है।
(iii) इनकी कमी से जोड़ों में दर्द होने लगता है।
(iv) इनकी कमी से रक्त प्रवाह में रुकावट आ सकती है।
(v) इनकी कमी से आँतों की पूरी सफाई नहीं हो पाती और आमाशय में तेजाबी पदार्थों की वृद्धि से शरीर कमजोर हो जाता है।
(vi) इनकी कमी से शरीर में अम्लता की मात्रा बढ़ जाती है।
(vii) इनकी कमी से त्वचा रोग, हृदय रोग तथा मधुमेह रोग हो जाता है।
अथवा
शरीर में पाए जाने वाले खनिज-लवणों का वर्णन करें।
अथवा
खनिज-लवण हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं? इनकी कमी से क्या-क्या हानि हो सकती है?
उत्तर- खनिज-लवण (Minerals)-हमारे भोजन के आवश्यक तत्त्वों में खनिज-लवणों का विशेष महत्त्व है। ये विभिन्न रासायनिक तत्त्व हैं जो पर्याप्त मात्रा में प्रकृति में विद्यमान हैं। हमारे शरीर को जितनी आवश्यकता वसा, प्रोटीन, विटामिन, पानी की है उतनी ही खनिज-लवणों की भी है। हमारे शरीर में लगभग 4% खनिज-लवण हैं। खनिज-लवणों को रक्षात्मक भोज्य पदार्थ माना जाता है। हमारे शरीर के आवश्यक खनिज-लवण निम्नलिखित हैं
कैल्शियम और फॉस्फोरस [Calcium and Phosphorus] प्राप्ति के साधन (Sources)-कैल्शियम और फॉस्फोरस दूध, दही, पनीर, मछली, अंडे, हरी सब्जियों, गेहूँ का दलिया, दालों, सोयाबीन, बादाम, मूंगफली, ताजे फलों आदि से प्राप्त होते हैं।
लाभ (Advantages)-(i) कैल्शियम और फॉस्फोरस दाँतों व हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक होते हैं।
(ii) ये दिल व दिमाग के लिए बहुत लाभदायक होते हैं।
iii) ये शरीर की वृद्धि एवं विकास में सहायक होते हैं।
(iv) ये अम्ल एवं क्षार के संतुलन को बनाए रखने में भी सहायक होते हैं।
हानियाँ (Disadvantages)-(i) कैल्शियम और फॉस्फोरस की कमी से शरीर की हड्डियाँ व दाँत कमज़ोर हो जाते हैं।
(ii) इनकी कमी से दिमागी कमज़ोरी और थकावट महसूस होने लगती है।
सोडियम [Sodium]
प्राप्ति के साधन (Sources)-सोडियम मूली, आलूबुखारा, गाजर, भिंडी, शलगम, नारियल आदि से मिलता है। लाभ (Advantages)-(i) सोडियम से भोजन स्वादिष्ट बनता है।
(ii) यह भोजन पचाने में सहायक होता है और शरीर में पानी का संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होता है।
(iii) यह रक्त-प्रवाह में सहायक होता है।
(iv) यह अम्ल एवं क्षार के संतुलन को बनाए रखने में भी सहायक होता है।
हानियाँ (Disnudvantages)-10 सोगिया की कमी से शारीरिक शक्ति पर प्रतिफल प्रभाव पड़ता है।
(ii) इसकी कमी से उप रक्तचाप, गुर्दे की बीमारियों आदि हो जाती है।
लोहा |Iron|
प्राप्ति के साधन (Sources)-लोहा साग, मेथी, पदीना, आला, गाजर, सोगानीन, फोला, गौरा, सूखे मेये आदि में पाया जाता है।
लाभ (Advantages)-(i) लोला हमारे शरीर में रक्त के लाल रगताणुगों का निर्माण करता है।
(ii) यह रक्त को साफ करता है।
हानियाँ (Disndvantages)-(1) लोहे की कमी से रयत के लाल रगताणु कम हो जाते हैं।
(ii) इसकी कमी से भरक्तता रोग हो जाता है।
पोटैशियम |Potassium]
प्राप्त क साधन (Sources)-पोटेशियम, शालाबखारा, गली, करेला, बंदगोभी, शलगम, नींब, नाशपाती और नारियल आदि से मिलता है।
लाभ (Advantages)-(i) इसके द्वारा जिगर और हदय को ताकत मिलती है।
(ii) इससे कम दूर होती है।
(ii) इससे घाव शीघ्र ठीक हो जाते हैं।
हानियाँ (Disadvantages)-(i) पोटैशिगम की कमी से गौसपेशिगौ कगणोर हो जाती हैं।
(ii) इसकी कमी से शरीर में फुर्तीलापन नहीं रहता।
आयोडीन [lodine]
प्राप्ति के साधन (Sources)-आपोडीन दूध, पालाक, लहसुन, प्याज, टमाटर, सेब, समुद्री नमक, समुद्री मछली आदि से । मिलता है।
लाभ (Advantages)-(i) आयोडीन से गले की अंथियों में रस बनता है, जो शरीर का भार व शक्ति बढ़ाने में आवश्यक होता है।
(ii) यह थाइराइड ग्रंथि की क्रियाशीलता के लिए बहुत आवश्यक है।
हानियाँ (Disndvantages)-(i) आयोडीन की कमी से शरीर में फ्षा रोग हो जाता है।
(ii) इसकी कमी से त्वचा मोटी और खुरदरी हो जाती है।
मैग्नीशियम |Magnesium]
प्राप्ति के साधन (Sources)-मैग्नीशियम, संतरा, आलूबुखारा, गेहूँ, पालक, टमाटर, ककड़ी आदि में पागा जाता है।
लाभ (Advantages)-(1) मैग्नीशियम हमारे शरीर की मांसपेशियों को मजबूत एवं लचीला बनाता है।
(ii) यह चर्म रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करता है।
हानियाँ (Disndvantages)-(i) मैग्नीशियम की कमी से कब्बा या दस्त आदि रोग हो जाते हैं।
(ii) इसकी कमी से चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ जाती हैं।
क्लोरिन [Chlorine)
प्राप्ति के साधन (Sources)-क्लोरीन नमक, पालक, गाजर, बंदगोभी, टमाटर, प्याज आदि में अधिक मात्रा में पाई जाती है।
लाभ (Advantages)-(i) क्लोरीन शरीर से व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालने में सहायता करती है।
(ii) यह चर्षी घटाने में सहायक होती है।
(iii) यह पानी के जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक होती है।
हानि (Disadvantage)-क्लोरीन की कमी से आमाशय कमजोर हो जाता है।
अथवा
भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाते समय कौन-कौन-सी बातें ध्यान में रखनी चाहिएँ? .
उत्तर- भोजन पकाने की आवश्यकता (Need of Cooking the Food)- पकाया हुआ खाना स्वादिष्ट है। खाद्य पदार्थों को पकाने से अधिक देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है और भोजन पकने के बाद मुलायम हो जाता है और चबाने में आसान होता है। इसलिए भोजन पकाना चाहिए। स्वास्थ्य के लिए पका हुआ भोजन बहुत अच्छा है। यदि भोजन जरूरत से ज्यादा पकाया जाता है तो इससे उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, और यदि भोजन अच्छी तरह से पकाया जाता है तो इसका स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। ऐसा खाने से आपका स्वास्थ्य खराब हो सकता है। इसलिए भोजन को जरूरत से अधिक न पकाना चाहिए और न ही अधिक कच्चा रखना चाहिए। भोजन को ऐसे पकाना चाहिए कि उसके महत्वपूर्ण घटक नष्ट न हों।
भोजन पकाने के नियम (Rules Cooking the Food)- सभी भोज्य पदार्थ मल रूप में कच्चे खाने के योग्य नहीं होते। भोज्य पदार्थों को खाने योग्य बनाने हेतु पकाना आवश्यक है परन्तु इन्हें पकाते समय कुछ नियमों को ध्यान में रखना आवश्यक है। भाजन पकाने के नियम निम्नलिखित हैं
(i) रसोई साफ-सुथरी होनी चाहिए। इसमें मक्खी, मच्छर, कॉकरोच तथा छिपकलियाँ नहीं होनी चाहिएँ।
(ii) भोजन पकाते समय मीठे सोडे का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे भोजन में विटामिन-बी समूह के अधिक विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
(iii) भोजन तेज़ आँच पर अधिक देर तक नहीं पकाना चाहिए, क्योंकि इससे भी भोजन के अंदर विद्यमान विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
(iv) भोजन को आवश्यकतानुसार पकाना चाहिए, क्योंकि अधपका भोजन खाने में स्वादहीन होता है तथा न ही यह भोजन समुचित तरीके से पचता है।
(v) भोजन में लाल मिर्च का प्रयोग कम करना चाहिए, क्योंकि लाल मिर्च के अधिक प्रयोग से पेट के रोग लग सकते हैं।
(vi) भोजन पकाने वाली महिला/पुरुष नीरोग तथा साफ-सुथरे होने चाहिएँ। उनके हाथों के नाखून बढ़े हुए नहीं होने चाहिए। भोजन पकाने से पूर्व हाथों को साबुन आदि से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।
(vii) भोजन को सदैव साफ बर्तन में ही पकाना चाहिए।
(viii) सब्जियों को काटने से पूर्व अच्छी तरह से धो लेना चाहिए, क्योंकि कई बार सब्जियों पर कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव किए जाते हैं।
(ix) बिना छाने हुए आटे का प्रयोग अधिक लाभदायक होता है, क्योंकि छानने से कई पौष्टिक तत्त्व आटे से बाहर निकल जाते हैं।
(x) भोजन पकाते समय भोजन पकाने वाले बर्तन को खुला नहीं रखना चाहिए तथा बने हुए भोजन को भी ढककर रखना चाहिए।
(xi) भोजन को पकाते समय सिर को ढक लेना चाहिए ताकि खाना बनाते समय उसमें बाल न गिरे।
(xii) भोजन पकाते समय आवश्यकतानुसार पानी का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि अधिक पानी प्रयोग करने से भोजन के भीतर विद्यमान पौष्टिक तत्त्व समाप्त हो जाते हैं।
अथवा
हमें पानी की आवश्यकता क्यों पड़ती है? इसकी कमी से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-हमारे जीवन के लिए जल बहुत महत्वपूर्ण है। हमारा जीवन इसके बिना संभव नहीं है। तापमान और वातावरण पानी की मांग करते हैं। गर्मियों में अधिक प्यास होती है और सर्दियों में कम होती है। हालाँकि, आम तौर पर अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें हर दिन सात से आठ गिलास पानी पीना चाहिए। कुल मिलाकर, पानी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण और फायदेमंद है। जल के निम्नलिखित कार्य इसे सिद्ध करते हैं
(i) जल शरीर के प्रत्येक भाग में खुराक पहुँचाता है और शरीर से व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक होता है।
(ii) यह रक्त बनाने में सहायता करता है और रक्त प्रवाह को बनाए रखने में भी सहायक होता है।
(iii) यह खाने को घोल बनाकर पचाने में मदद करता है।
(iv) यह शरीर के तापमान को नियमित रखता है।
(v) यह शरीर के सभी जोड़ों को ठीक ढंग से काम करने में मदद करता है।
(vi) यह भोजन को पचाने में सहायक होता है।
(vii) यह शरीर की कोशिकाओं के निर्माण में भी सहायक होता है।
हानियाँ (Disadvantages)-जल/पानी की कमी से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं
(i) जल की कमी से आमाशय भारी रहता है।
(ii) जल की कमी से व्यर्थ पदार्थ शरीर से बाहर नहीं निकल पाते, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है।
(iii) इसकी कमी से भोजन नहीं पचता और कब्ज रहने लगती है।
(iv) जोड़ों में दर्द रहने लगता है तथा जल्दी थकावट महसूस होती है।
(v) जल कम पीने से भूख कम लगती है।
(vi) इसकी कमी से गुर्दो में कई बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं।
(vii) इसकी कमी होने के कारण शरीर अधिक गर्मी अनुभव करता है।
(viii) इसकी कमी से निर्जलीकरण हो जाता है।
(ii) इसकी कमी से उत्सर्जन संस्थान के अंगों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
(x) इसकी कमी से मृत्यु तक भी हो सकती है।
उत्तर-1. प्रोटीन के प्राप्ति के साधन (Sources of Proteins)-कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, गंधक, फॉस्फोरस और नाइट्रोजन के रासायनिक संयोग से बने हुए मिश्रण को प्रोटीन कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है-(1) वनस्पति प्रोटीन, (ii) पशु प्रोटीन।
(i) वनस्पति प्रोटीन गेहूँ, बाजरा, मटर, मूंग, अरहर, चने, सोयाबीन, बादाम, अखरोट, मूंगफली, काजू, पिस्ता, बाजरा और मक्की आदि से प्राप्त होती है।
(ii) पशुओं से प्राप्त होने वाली प्रोटीन को पशु प्रोटीन कहते हैं। यह दूध, पनीर, अण्डे, जिगर, मछली, माँस, कलेजी से प्राप्त होती है।
प्रोटीन की उचित मात्रा (Proper Quantity of Proteins)-प्रोटीन की मात्रा बच्चों के लिए बहुत अनिवार्य है। एक वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों को प्रोटीन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। साधारण व्यक्ति को 70 ग्राम से 100 ग्राम तक प्रतिदिन प्रोटीन की मात्रा लेनी चाहिए।
2. कार्बोहाइड्रेट्स के प्राप्ति के साधन (Sources of Carbohydrates)- कार्बोहाइड्रेट्स भी ङ्केऑवसीजन, हाइड्रोजन और कार्बन का एक मिश्रण है । शरीर इससे ऊर्जा प्राप्त करता है। गन्ने का रस, शक्कर, गुड़, चीनी, शहद, खजूर, सूखे मेवे, अंगूर, आलू, अखरोट, शक्करकन्दी, मक्की, बाजरा, मसूर, जौं, चावल आदि इनके दो रूप हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स की उचित मात्रा (Proper Quantity of Carbohydrates)- हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा 50% से 60% तक होती है, क्योंकि कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को सबसे अधिक शक्ति और गर्मी देने वाली सबसे बढ़िया वस्तु है। एक साधारण आदमी को प्रतिदिन 400 ग्राम से 700 ग्राम कार्वोहाइड्रेट्स की मात्रा लेनी चाहिए।
3. वसा या चिकनाई के प्राप्ति के साधन (Sources of Fats)-यह पानी में अघुलनशील होती है और कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का सम्मिश्रण होती है। यह दो प्रकार की होती है जो निम्नलिखित स्रोतों में पाई जाती है
(i) प्राकृतिक संसाधनों अथवा वनस्पतियों से प्राप्त होने वाली वसा वनस्पति-जन्य वसा कहलाती है। यह सरसों, मूंगफली, नारियल तेल, अखरोट, बादाम, सोयाबीन एवं तिलहन आदि से प्राप्त होती है।
(ii) यह वनस्पति-जन्य वसा से अधिक लाभदायक होती है। यह घी, दूध, मक्खन, पनीर, मछली, अंडे और माँस आदि से प्राप्त होती है।
चिकनाई या वसा की उचित मात्रा (Proper Quantity of Fats)-वसा, या चिकनाई, भी शक्ति बनाता है। शरीर में होना बहुत जरूरी है। एक सामान्य व्यक्ति के भोजन में 50 से 70 ग्राम वसा होना चाहिए।
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