Class 10 Physical Education Chapter 2 – भोजन एवं पोषण
NCERT Solutions Class 10 Physical Education Chapter 2. भोजन एवं पोषण – जो उम्मीदवार 10th कक्षा में पढ़ रहे है उन्हें भोजन एवं पोषण के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है .इसके बारे में 10th कक्षा के एग्जाम में काफी प्रश्न पूछे जाते है . इसलिए यहां पर हमने एनसीईआरटी कक्षा 10 शारीरिक शिक्षा अध्याय 2. (भोजन एवं पोषण) का सलूशन दिया गया है .इस NCERT Solutions For Class 10 Physical Education 2 . Food and Nutritionकी मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इसलिए आप Ch.2 भोजन एवं पोषण के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
अथवा
भोजन से आप क्या समझते हैं? इसके कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर- भोजन या आहार का अर्थ (Meaning of Food or Diet)- खाने से हमारा शारीरिक विकास और शरीर में गर्मी व शक्ति पैदा होती है। भोजन से शरीर कई कार्य कर सकता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है। “भोजन” शब्द सभी खाद्य पदार्थों को शामिल करता है जो खाए जाते हैं या जो हमारे शरीर को पोषित करते हैं। हमें इससे ऊर्जा मिलती है, जो हमें कई शारीरिक कार्यों में मदद करती है।
भोजन को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि, “भोजन वह ठोस व तरल पदार्थ है जो ग्रहण किए जाने पर शरीर में निम्नलिखित कार्यों में से एक या एक-से-अधिक कार्य कर सकने में समर्थ हो
(i) शरीर को ताप या ऊर्जा प्रदान करे।
(ii) शरीर की वृद्धि अर्थात् टूटी-फूटी कोशिकाओं की मुरम्मत और नई कोशिकाओं का निर्माणको
(iii) शरीर की क्रियाओं को नियमित रखें।”
भोजन के कार्य अथवा आवश्यकता (Functions or Need of Food)-प्रत्येक प्रकार की क्रिया किसी-न-किसी शक्ति द्वारा ही संभव होती है। शरीर की क्रिया करने के लिए शरीर भोजन पदार्थों से शक्ति प्राप्त करता है। भोजन शरीर को केवल ऊर्जा ही प्रदान नहीं करता अपित शरीर के और भी बहुत सारे कार्य करता है जिनका वर्णन इस प्रकार है
1.शरीर की वृद्धि और विकास (Growth and Development of Body)- भोजन शरीर को विकसित और बढ़ावा देता है। जब बच्चा पैदा होता है, उसके शरीर का आकार छोटा होता है। शरीर भी हल्का होता है। आरंभ में भोजन के रूप में दूध पीता है। उसका शरीर बढ़ने लगता है। बाद में कई खाद्य पदार्थों का उपयोग करता है। वह अपनी आयु के साथ बड़ा होता है। शरीर भी अधिक वजन उठाता है। इस वृद्धि में भोजन में प्रोटीन और अन्य घटक महत्वपूर्ण हैं।
2. भोजन शरीरको शक्ति दता है (Food provides energy to body)- क्रिया शक्ति के बिना असंभव है। भोजन के तत्त्वों से ऊर्जा प्राप्त करके शरीर कार्य कर सकता है। शरीर को अधिक शक्ति देने के लिए संतुलित भोजन खाना भी आवश्यक है। पेटोल या किसी अन्य शक्ति से प्रत्येक मशीन को क्रियाशील करने के लिए भोजन की जरूरत होती है।
3. भोजन शरीर में गर्मी पैदा करता है (Food provides heat to bodv)- शरीर भोजन के तत्त्वों को इधन के रूप म जलाकर गर्मी प्राप्त करता है। शरीर के आन्तरिक और बाहरी कार्यों के लिए यह गर्मी अनिवार्य है।
4. भोजन निर्जीव सैलों को सजीव करता है (Food rebuilding of Dead Cells)- शरीर के सैल निर्जीव होते रहते हैं, जब तक कि वह अपने जीवन को पूरा नहीं करता। शरीर को मजबूत बनाने के लिए भोजन नए सैल बनाता है। शरीर के कई सैल इन शारीरिक कार्यों के दौरान टूट जाते हैं। भोजन उन टूटे-फूटे सैलो को भरता है और शरीर को फिर से काम करने के लिए तैयार करता है जब व्यक्ति विश्राम करता है।
5. भोजन शारीरिक प्रणालियों के कार्यों को रखने में सहायता करता है (Food helps the body systems for their proper functioning)- शरीर की कई प्रणालियाँ, जैसे श्वास प्रणाली, रक्त संचार प्रणाली और पाचन प्रणाली, अपना काम खुद करती हैं। इन प्रणालियों के ठीक काम करने के लिए विटामिन और खनिज लवण आवश्यक हैं। भोजन इस आवश्यकता से पूरा होता है। भोजन से प्राप्त किसी रस की कमी से शरीर की समूची प्रणाली प्रभावित होती है। इसलिए हमेशा स्वस्थ भोजन खाने पर जोर देना चाहिए।
6. भोजन शरीर की बीमारियों से सुरक्षा करता है (Food protects our body against Diseases)- भोजन शरीर के सुरक्षा प्रबन्ध को मजबूत करता है जिससे शरीर बीमारी के बुरे प्रभावों से बचा रहता है।
7. अन्य कार्य (Other Functions)-जीवन को बनाए रखने के लिए हमें भोजन की आवश्यकता होती है, क्योंकि इससे हमें ऊर्जा मिलती है। भोजन हमारे शरीर में निम्नलिखित कार्य भी करता है
(i) सभी व्यक्तियों की कुछ भावनात्मक आवश्यकताएँ भी होती हैं; जैसे स्नेह, अपनापन, आदर-सत्कार। भोजन से इन भावनात्मक आवश्यकताओं की भी पूर्ति होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई अच्छा कार्य करने पर बच्चे को माँ द्वारा कोई अच्छा व्यंजन बनाकर खिलाया जाए तो बच्चा उस कार्य को और अधिक अच्छी तरह से करने के लिए उत्साहित होता है।
(ii) यह हमारी भूख-प्यास को मिटाकर हमें आनंद एवं संतुष्टि प्रदान करता है।
अथवा
पोषण को परिभाषित कीजिए। पोषण और स्वास्थ्य में परस्पर संबंध स्पष्ट करें।
उत्तर- पोषण/पोषक तत्त्व का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Nutrition/Nutrients)- हमारे शरीर के लिए प्रत्येक खाद्य पदार्थ में विशिष्ट तत्व होते हैं। पोषक तत्त्व (Nutrients) इन आवश्यक पदार्थों का नाम है। हमारे शारीरिक कार्यों को चलाने, अंगों के बनने व विकसित होने और रोगों से बचाने में ये पोषक तत्त्व महत्वपूर्ण हैं। मानव शरीर के पूरे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए विभिन्न पोषक तत्वों की अलग-अलग मात्रा की आवश्यकता होती है। इनकी पोषण (Nutrition) पर्याप्त होती है और संतुलित होती है। इन परिभाषाओं में से कुछ वैज्ञानिकों ने पोषण को परिभाषित किया है:
1. डी०एफ० टर्नर (D.E. Turmer) ने पोषण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है-“पोषण उन प्रक्रियाओं का संयोजन है जिनके द्वारा जीवित प्राणी भोज्य पदार्थों को प्राप्त कर, पोषक तत्त्वों का उपयोग शारीरिक कार्यों को संपन्न करने के लिए, अपने अंगों की वृद्धि एवं उनके पुनर्निर्माण के लिए करते हैं।”
2. जेई० पार्क (J.E. Park) के शब्दों में, “पोषण से अभिप्राय उस गतिशील प्रक्रिया से है, जिसमें लिए गए भोजन का उपयोग शरीर को पोषण प्रदान करने के लिए किया जाता है।”
शालाओं से स्पष्ट होता है कि ‘पोषण’ शब्द का अर्थ उस गतिशील प्रक्रिया से है जिसमें सेवन किए गए भोजन का उपयोग शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु किया जाता है।
पोषक स्वास्थ्य परस्पर संबंध (Relations between Nutrition and Health)-पोषण हमारे जीवन की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसके बिना जीवित रहना असम्भव है। हम जो भोजन करते हैं उसी से हमारा स्वास्थ्य बना रहता है, उसी से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। पोषण के अंतर्गत हम निम्नलिखित क्रियाओं का अध्ययन करते हैं
(i) मनुष्य द्वारा ग्रहण किए गए भोजन की पाचन क्रिया।
(ii) पचे हुए पौष्टिक तत्त्वों की रक्त में अवशोषण की क्रिया।
(iii) अवशोषित पोषक तत्त्वों की शारीरिक कोशिकाओं द्वारा उपयोग की क्रिया।
इन प्रक्रियाओं से हमारे शरीर को कार्य करने की ऊर्जा मिलती है, जिससे शरीर विकसित होता है। पोषण विज्ञान बताता है कि शरीर को कौन से पोषक तत्व चाहिए। किन पदार्थों से ये पोषक तत्त्व कितनी मात्रा में प्राप्त हो सकते हैं? मानव शरीर इन पोषक तत्त्वों का उपभोग करके स्वस्थ व निरंतर क्रियाशील रहता है।
हमारा स्वास्थ्य हमारी खाने की आदतों, मात्रा और स्वच्छता पर निर्भर करता है। हमारा अच्छा पोषण हमारी शारीरिक वृद्धि और जीवन भर स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है। शरीर को पर्याप्त पौष्टिक भोजन न मिलने से वह पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता। वास्तव में, पोषक तत्वों पर हमारा स्वास्थ्य निर्भर करता है। भोजन में पर्याप्त पोषक तत्त्व मिलने से हमारा शरीर विकसित होता है और हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इससे स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य और पोषण परस्पर संबंधित हैं।
अथवा
संतुलित आहार या भोजन के आवश्यक तत्त्वों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर- संतुलित भोजन या आहार का अर्थ (Meaning of Balanced Food or Diet)-भोजन या आहार से मिलने वाले रासायनिक पदार्थ हमारे शरीर के विकास व वृद्धि के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन तत्त्वों के अभाव में हमारे शरीर का पूर्ण विकास नहीं हो पाता। अत: पौष्टिक या संतुलित आहार वह आहार है जिसमें पोषक तत्त्व; जैसे प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज-लवण, पानी आदि निर्धारित एवं पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
संतुलित आहार के तत्त्व या अवयव (Elements or Components of Balanced Diet)-पौष्टिक या संतुलित आहार के आवश्यक तत्त्व/अवयव निम्नलिखित हैं
1. प्रोटीन (Proteins)-प्रोटीन एक कार्बनिक यौगिक है जो फॉस्फोरस, ऑक्सीजन, गंधक, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और कार्बन से बना है। प्रोटीन क्षतिग्रस्त ऊतकों को पुनर्जीवित करने में भी मदद करता है। शरीर प्रोटीन बनाता है और इससे ऊर्जा मिलती है। भोजन में प्रोटीन की कमी से शरीर में ऊर्जा की कमी होती है और शरीर की वृद्धि भी कम होती है।
2. वसा (Fats)- वैज्ञानिक भाषा में, “वसा” शब्द तेल और वसा दोनों को शामिल करता है। वसा, या चर्बी, को छूने पर चिकना होने के कारण चिकनाई भी कहा जाता है। वसा पानी में घुलनशील कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक मिश्रण है। शरीर को वसा से ऊर्जा मिलती है। शरीर के लिए आवश्यक विटामिन ‘ए’, ‘डी’ और ‘के’ को यह संभालती है। यह बालों और त्वचा को चिकना बनाता है। यह शरीर को सर्दी से भी बचाता है।
3. कार्बोहाइडेट्स या कार्बोज (Carbohydrates)-कार्बोहाइड्रेट्स को ‘कार्बोज’ भी कहा जाता है। इनसे अभिप्राय कार्बनिक यौगिकों के उस समूह से है जिसमें तीन तत्त्वों; जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन का सम्मिश्रण होता है। कार्बोज ऊर्जा के सस्ते प्राप्ति-स्रोत माने जाते हैं। ये शरीर में शक्ति या ऊर्जा तथा गमी पैदा करते हैं और शरीर में जमा होकर जरूरत पड़ने पर शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
4. खनिज-लवन (Minerals) खनिज-लवण हमारे भोजन में बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये विभिन्न रासायनिक पदार्थ हैं जो प्रकृति में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। हमारे शरीर को पोटीन और सनल लवण भी चाहिए। खनिज-लवणों का प्रतिशत हमारे शरीर में होता है। खनिज-लवणों को बचाने वाले भोज्य पटा कहा जाता है। हमारे शरीर को कई खनिज-लवण चाहिए, जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, लोहा, मैग्नीशियम, आयोडीन, क्लोरीन और पोशियल गंधक। ये हमारी हड्डियों, माँसपेशियों और दाँतों को मजबूत बनाते हैं। इनसे हमारा शरीर मजबूत होता है और हमारी क्षमता बढ़ती है।
5. विटामिन (Vitamins)-हमारे शरीर को विटामिन (खनिज-लवण, प्रोटीन, वसा, कार्बोज) और कुछ अतिरिक्त रसायन चाहिए। विटामिन शरीर में कई प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं क्योंकि वे उत्प्रेरक हैं। ये हमारी शरीर को ऊर्जा या शक्ति देते हैं और कई बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं। इसलिए इन्हें जावन तत्त्व, सुरक्षात्मक तत्त्व आदि भी कहा जाता है। ये शरीर को विकसित करने में मदद करते हैं। आँखों की रोशनी इनसे बढ़ती है। हड्डियां इनसे मज़बूत बनती हैं।
6. पानी (Water)- हमारे जीवन का आधार पानी है। हमारा जीवन इसके बिना संभव नहीं है। यह सबसे अधिक मात्रा में भोजन में पाया जाता है। यह ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से बना है। इसमें सोडियम और पोटैशियम जैसे खनिज-लवण भी हैं। जल को पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण भोजन भी कहा जाता है। यह हमारे शरीर के हर हिस्से तक आपूर्ति करता है और खराब पदार्थों को बाहर निकालता है। यह शरीर का तापमान नियंत्रित करके आर रक्त बनाने में मदद करता है। इसकी कमी से शरीर कई बीमारियों से पीड़ित हो सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।
7. फोकट पदार्थ (Roughages)-सलाद, लस्सी, सब्जियों के छिलके और अन्य व्यर्थ पदार्थों की तरह, फोकट पदार्थ या रूक्षांश कहलाते हैं। हम कुछ खराब पदार्थ खाते हैं; जैसे सब्जियों के पत्ते, दालों के छिलके और आटे का छानबूरा विभिन्न सब्ज़ियाँ छिलकों के साथ बनाई जा सकती हैं, लेकिन बनाते समय छिलके उतार दिए जाते हैं। बहुत से लोगों को पता नहीं है कि फोकट पदार्थों में साधारण भोजन से अधिक पोषक तत्व हैं जो शरीर को फायदेमंद हैं।
उत्तर- हमारे जीवन के लिए भोजन अति-आवश्यक होता है। इसके बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। अंतः जो भोजन (आहार) हम करते हैं, उसका पूरा-पूरा फायदा उठाने के लिए हमें कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना चाहिए। भोजन करने संबंधी आवश्यक नियम या निर्देश निम्नलिखित हैं
(i) प्रातः का नाश्ता हल्का तथा जल्दी हज़म होने वाला होना चाहिए।
(ii) दोपहर के भोजन के पश्चात् थोड़ी देर आराम तथा रात के भोजन के पश्चात् थोड़ी सैर करनी आवश्यक है।
(iii) रात के भोजन के बाद चाय, कॉफी से परहेज करना चाहिए।
(iv) रात को सोने से कम-से-कम दो घण्टे पहले भोजन करना चाहिए।
(v) भोजन करने के पश्चात् दाँतों को ब्रश या कुल्ला करके साफ कर लेना चाहिए।
(vi) भोजन न अधिक खाना चाहिए और न ही कम, बल्कि उचित मात्रा में ही खाना चाहिए।
(vii) भोजन सदा नियमित समय के अनुसार करना चाहिए।
(viii) भोजन करने के बाद कसरत या कठोर परिश्रम नहीं करना चाहिए।
(ix) भोजन खाने से पहले हाथों को साबुन से साफ कर लेना चाहिए।
(x) भोजन खूब चबाकर खाना चाहिए।
(xi) नाश्ते, दोपहर के खाने और रात के खाने में एक-सा अंतर होना चाहिए। नाश्ते और दोपहर के भोजन में कम-से-कम पाँच घण्टे का अंतर होना चाहिए।
(xii) ढीले कपड़े पहनने के बाद खाने की टेबल पर बैठना चाहिए और भोजन खुश होकर खाना चाहिए।
(xiii) भोजन बहुत गर्म या ठंडा नहीं खाना चाहिए और उसके साथ कोई तरल पदार्थ या जल नहीं लेना चाहिए। भोजन करने के आधे घण्टे बाद तरल पदार्थों या पानी का सेवन किया जा सकता है। ‘
(xiv) भोजन करने का स्थान साफ-सुथरा होना चाहिए तथा भोजन मौसम के अनुसार खाना चाहिए।
(rv) भोजन करते समय न तो बातें करनी चाहिएँ और न ही कुछ पढ़ना चाहिए।
अथवा
भोजन पकाने की कौन-कौन-सी मुख्य विधियाँ हैं? वर्णन करें।
उत्तर- पकाया हुआ भोजन स्वादिष्ट होता है । पकाने से खाद्य पदार्थों को अधिक देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है और पकने के बाद भोजन मलायम हो जाता है जिसको चबाने में आसानी रहती है। इसलिए भोजन पकाना आवश्यक है।
भोजन को पकाने के साधन या विधियाँ (Means Methods of Cooking the Food) आजकल भोजन पकाने के लिए बहुत से साधनों या विधियां प्रचालित हैं लेकिन इनमें सामान्य रूप में उपयोग में आने वाली विधियां निम्नलिखित है
1 भाप द्वारा पकाना (Steaming) भाप द्वारा पकाना भोजन पकाने का सबसे उत्तम साधन है। भाप द्वारा पकाया गया भोजन स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिए लाभदायको हाता है । इस विधि से भोजन के पौष्टिक तत्त्व भी नष्ट नहीं होते। इस विधि में भोजन अधिक जल्दी पक जाता है क्योंकि प्रैशर कुकर आदि में भाप का दबाव अधिक होता है।
2. भूनना (Roasting)- भोजन को भूनने के लिए सीधा आग पर रखा जाता है; जैसे सोया चाप को सीधा आग पर भूनकर पकाया जा सकता है जो कि खाने में स्वादिष्ट लगती है परंतु अधिक भुनने से भोजन के तत्व नष्ट हो जाते हैं
3. उबालना (Boiling)विधि में भोजन को पानी में उबालकर पकाया जाता है जिससे विटामिन और खनिज लवण पानी में घोलकर नष्ट हो जाते हैं अधिकांश सब्जियां दालें चावल आदि उबल कर पाए जाते हैं
4. तलना (Frying)-तलने से भी भोजन के तत्त्व काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं । तेल या घा क सभा भाजन के तत्त्व काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं। तेल या घी को कड़ाही में डालकर गर्म करने के बाद उसमें पूरियाँ, पकौड़े, मटर, समोसे आदि तले जाते हैं। तला हुआ भोजन जल्दी हज़म नही होता।
5. सेंकना (Baking)- चल्हे या भट्री इस तरह से खाना पकाया जाता है। भोजन को इस तरह से पकाने से उसका स्वाद अच्छा रहता है। भी कम मात्रा में पोषक तत्त्व नष्ट होते हैं। इसी विधि को रोटी, डबलरोटी आदि बनाने में भी प्रयोग किया जाता है, लेकिन कई बार इस विधि से भोजन कच्चा रह जाता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भाप द्वारा (steaming) भोजन तैयार करना सबसे अच्छा है। इस प्रक्रिया से पकाया गया भोजन स्वादिष्ट होता है और उसके पोषक तत्व नहीं नष्ट होते हैं।
अथवा
विटामिन से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के विटामिन्स का वर्णन करें।
अथवा
विटामिनों से होने वाले लाभों तथा कमी से होने वाली हानियों का उल्लेख करें।
अथवा
विटामिन क्या है? ये कितने प्रकार के होते हैं? इनके प्राप्ति-स्रोतों व कार्यों का वर्णन करें।
अथवा
वसा में घुलनशील विटामिन के नाम बताइए तथा इनका विस्तृत वर्णन करें।
अथवा
जल में घुलनशील विटामिन के नाम बताइए तथा इनका विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर- विटामिन का अर्थ (Meaning of Vitamin)- हमारे शरीर को विटामिन, प्रोटीन, वसा, कार्बोज और खनिज-लवणों के अतिरिक्त कुछ अन्य पदार्थों की भी जरूरत होती है, जो शरीर की गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने में मदद करते हैं और रोगों को रोकते हैं। हमारे जीवित रहने के लिए विटामिन्स (Vitamins) शब्द का अर्थ “विटा” है, जिसका अर्थ है “गपिन”. ये अनेक शरीरों को उत्प्रेरक के रूप में ऊर्जा या शक्ति प्रदान करते हैं और शरीर को रोगों से भी बचाते हैं। इसलिए इन्हें जीवन तत्त्व, सुरक्षात्मक तत्त्व आदि भी कहा जाता है।
प्रकार (Types)- घुलनशीलता के आधार पर विटामिनों को निम्नलिखित दो वर्गों में विटामिनों को निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा जा सकता है
1. वसा में घलनशील विटामिन (Fat Soluble Vitamins)-जो विटामिन जल में न पल विटामिन (Fat soluble Vitamins)जा विटामिन जल में न घुलकर वसा (चर्बी) में सरलता से गील विटामिन कहते हैं; जैसे ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ आदि विटामिन वसा में घलते हैं।
2. जल में घुलनशील विटामिन (Water Soluble Vitamins)-जो विटामिन वसा या चर्बी आदि में न घलकर पानी में सरलता स घुल जाते हैं. उन्हें जल में घुलनशील विटामिन कहते हैं; जैसे विटामिन बी कॉम्प्लेक्स’ औरती में पलने इन विटामिनों का विवरण इस प्रकार है
विटामिन ‘ए’ [Vitamin ‘A’]
प्राप्ति के साधन (Sources)-विटामिन ‘ए’ मक्खन, पनीर, अंडे की जर्दी, दूध, दही, मछली, मटर, पालक, केला, संतरा, अनानास, गाजर, पपीता आदि में पाया जाता है।
कार्य/लाभ (Functions/Advantages)-(i) विटामिन ‘ए’ आँखों की ज्योति में वृद्धि करता है ।
(ii) यह अस्थिपिंजर को मजबूत करने एवं मुलायम ऊतकों की वृद्धि में सहायक होता है ।
हानियाँ (Disadvantages)-(i) विटामिन ‘ए’ की कमी से आँखों के रोग: जैसे रतौंधी (Night Blindness) हो जाते हैं।
(ii) इसकी कमी से गुर्दे में पत्थरी बनने की संभावना अधिक हो जाती है।
(iii) इसकी कमी से त्वचा सख्त और खुरदरी हो जाती है और फेफड़े कमजोर हो जाते हैं।
विटामिन ‘बी’ |Vitamin ‘B’|
विटामिन ‘बी’ कई प्रकार के विटामिनों का सम्मिश्रण है। इस कारण यह विटामिन ‘बी कॉम्प्लेक्स’ के नाम से जाना जाता है। इसमें विटामिन ‘बी, ‘. ‘बी ‘, ‘बी ‘ और ‘बी ‘ आदि शामिल होते हैं।
प्राप्ति के साधन (Sources)-विटामिन ‘बी’ सारे अनाजों, छिलके वाली दालों, आटे की खमीर, अंगूर, मछली, अडे, मांस, कलेजी, दूध, पनीर, खजूर, सोयाबीन, बंदगोभी, प्याज, पालक, टमाटर, शलगम, सलाद आदि में पाया जाता है।
कार्य/लाभ (Functions/Advantages)-(i) विटामिन ‘बी’ माँसपेशियों, हड्डियों व स्नायुओं को मजबूत करते हैं।
(ii) ये चर्म रोग से रक्षा करते हैं।
(iii) इनसे हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
(iv) ये कब्ज को दूर करते हैं और भोजन को पचाने में सहायक होते हैं।
हानियाँ (Disadvantages)-(i) विटामिन ‘बी’ की कमी से भूख नहीं लगती और शरीर का भार कम होने लगता है। (ii) इनकी कमी से बेरी-बेरी, अरक्तता, जीभ पर छाले पड़ना आदि रोग हो जाते हैं।
(iii) इनकी कमी से पाचन-शक्ति कमजोर हो जाती है। .
विटामिन ‘सी’ [Vitamin ‘C’]
प्राप्ति के साधन (Sources)-विटामिन ‘सी’ रसदार व खट्टे फलों में पाया जाता है; जैसे नींबू, आँवला, संतरा, अनानास, माल्टा, मौसमी आदि। इसके अतिरिक्त यह हरी पत्तेदार सब्जियों; जैसे बंदगोभी, पालक, सरसों का साग, शलगम, टमाटर आदि में भी पाया जाता है।
कार्य/लाभ (Functions/Advantages)-(i) विटामिन ‘सी’ से रक्त नलियाँ ठीक रहती हैं और यह रक्त को साफ करने में सहायक होता है।
(ii) यह दाँतों के मसूढ़ों को मजबूत करता है।
(iii) यह घावों और टूटी हड्डियों को जल्दी ठीक करता है।
हानियाँ (Disadvantages)-(i) विटामिन ‘सी’ की कमी से स्कर्वी नामक रोग और दाँतों में पायरिया रोग हो जाता है।
(ii) इसकी कमी से हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं और मसूड़ों से रक्त बहने लगता है।
विटामिन ‘डी’ [Vitamin ‘D’]
प्राप्ति के साधन (Sources)-विटामिन ‘डी’ अंडे की जर्दी, मछली के तेल, दूध, घी, मक्खन आदि में अधिक मात्रा में पाया जाता है। विटामिन ‘डी’ सूर्य की किरणों से स्वयं ही शरीर में पैदा होता रहता है।
कार्य/लाभ (Functions/Advantages)-(i) विटामिन ‘डी’ हड्डियों और दाँतों को मजबूत बनाता है।
(ii) यह शरीर में फॉस्फोरस और कैल्शियम अम्ल को पचाने का कार्य करता है। की यह बच्चों के विकास के लिए बहुत आवश्यक है।
हानियाँ (Disadvantages)-(1) पिटामिन ‘डी’ की कमी से बच्चे रिकेट्स नामक रोग का शिकार हो जाते हैं।
(ii) इसका कमी से शारीरिक विकास रडिया नरमय कमशोर हो जाती है।
(iii) इसकी कमी से मिरगी और सोकडा जैसे रोग हो जाये हैं।
(iv) इसकी कमी से सिर के बाल सफेद होने लगते हैं।
विटामिन ‘ई’ |Vitamin ‘E’|
प्राप्ति के साधन (Sources)–विटामिन ‘ई’ चने की दाल, दलिया, तेलों, अंडे की जर्दी, मादाम, पिस्ता, गेहूं, शहद, बंदगोभी, गाजर, सलाद, मटर, प्याज, फूलगोभी, अंकुरित बीजों आदि में पाया जाता है।
कार्य/लाभ (Functions/Advununges)- (i) विटामिन ‘ई’ नपंसकता और बाँझपन को रोकता है।
(ii) यह संतान उत्पन्न की शक्ति में वृद्धि करता है।
हानिया (Disadvantages)- विटामिन ई की कमी से शरीर पर फोडे-फनसियाँ निकल आती है।
(i) इसकी कमी से पुरुषों में नपंसकता और स्त्रियों में बाँझपन हो जाता है।
(ii) इसकी कमी से गर्भपात भी हो सकता है।
विटामिन ‘के’ [Vitamin ‘K’]
प्राप्ति के साधन (Sources)-विटामिन ‘के’ हरी सब्जियों जैसे पालक, सरसों का साग, मेथी, बंदगोभी, टमाटर, अंडे की जर्दी, सोयाबीन तथा मछली, आलू, माँस आदि से प्राप्त होता है।
कार्य लाभ (Functions/Advantages)-(i) विटामिन ‘के’ जख्मों से बह रहे रक्त को रोकता है अर्थात् यह रक्त का थक्का जमाने में सहायक होता है।
(ii) यह त्वचा के रोगों से शरीर की रक्षा करता है।
हानियाँ (Disadvantages)-(i) विटामिन ‘के’ की कमी से अनीमिया नामक रोग हो जाता है।
(ii) इसकी कमी से जख्मों से बहता रक्त जल्दी बंद नहीं होता।
अथवा
वसा से होने वाले लाभ तथा इनकी कमी ष अधिकता से होने वाली हानियों के बारे में लिखें
अथवा
चर्बी हमारे शरीर में क्या कार्य करती है? इसकी कमी व अधिकता से होने वाले नुकसान बताएँ।
उत्तर- वसाया चिकनाई का अर्थ (Meaning of Fats)- वैज्ञानिक भाषा में, “वसा” शब्द केवल तेल और वसा को बताता है। वसा, या चर्बी, को छूने पर यह चिकना होता है, इसलिए इसे “चिकनाई” भी कहा जाता है। यह पानी में अघुलनशील है और कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक मिश्रण है, लेकिन बहुत कम ऑक्सीजन है। यह खाना स्वादिष्ट बनाता है और शरीर को शक्ति देता है।
प्राप्ति-स्रोत (Sources)-वसा दो प्रकार की होती है जो निम्नलिखित स्रोतों में पाई जाती है
1. वनस्पति-जन्य वसा (Vegetable Fats)-प्राकृतिक संसाधनों अथवा वनस्पतियों से प्राप्त होने वाली वसा वनस्पति-जन्य वसा कहलाती है। यह वनस्पति घी, सरसों, मूंगफली, सोयाबीन आदि के तेल एवं तिलहन आदि से प्राप्त होती है।
2. पशु-जन्य वसा (Animal Fats)-यह वनस्पति-जन्य वसा से अधिक लाभदायक होती है। यह घी, दूध, मक्खन, पनीर, मछली के तेल, अंडे और माँस आदि से प्राप्त होती है।
कार्य/लाभ (Functions/Advantages)-वसा के कार्य/लाभ निम्नलिखित हैं
(i) वसा शरीर को ऊर्जा तथा माँसपेशियों को शक्ति प्रदान करती है।
(ii) यह विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ तथा ‘के’ को शरीर की आवश्यकतानुसार संभालकर रखती है अर्थात् उनके अवशोषण में सहायता करती है।
(iii) यह त्वचा तथा बालों को चिकना बनाती है।
(iv) यह शरीर के ताप को नियमित रखती है।
(v) यह शरीर को सर्दी लगने से बचाती है और शरीर को पुष्ट बनाती है।
(vi) यह शरीर के कोमल; अंगों जैसे गुर्दे, दिल आदि को सरक्षा प्रदान करने में सहायक होती है।
(vii) यह शरीर के सभी अंगों को बाहर की चोट से बचाती है।
(viii) यह भोजन को स्वादिष्ट बनाती है और काबोहाइड्रेट्स के पाचन में मदद करती है।
हानियाँ (Disadvantages)-वसा की कमी व अधिकता से होने वाली हानियों निम्नलिखित हैं
(i) वसा की कमी से त्वचा शुष्क हो जाती है।
(ii) इसकी कमी से शरीर में विटामिन ‘ए’, ‘डी’. ‘ई’ और ‘के’ की कमी हो सकती है।
(iii) इसकी अधिक मात्रा से शरीर में मोटापा आ जाता है।
(iv) इसकी अधिक मात्रा शरीर की पाचन-शक्ति खराब कर सकती है।
(v) इसकी अधिक मात्रा से शूगर की बीमारी, मधुमेह या पेट में पत्थरी आदि रोग हो जाते हैं।