Class 10 Physical Education Chapter 1 – पर्यावरणीय स्वास्थ्य

प्रश्न 9. ध्वनि या शोर प्रदूषण (Noise Pollution) पर विस्तृत नोट लिखें।
अथवा
ध्वनि प्रदूषण के स्रोतों, कारणों तथा इसकी रोकथाम के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
ध्वनि प्रदूषण क्या है? इसके क्या कारण हैं? इसे कैसे रोका जा सकता है?

उत्तर- ध्वनि/शोर प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Noise Pollution)’शोर’ (Noise) शब्द लैटिन भाषा में से लिया गया है। शोर चाहे थोडा हो या ज्यादा यह मनुष्य के संवेग और व्यवहार पर प्रभाव डालता है। अत: जब ध्वनि अवांछनीय हो या कानों और मस्तिष्क में हलचल उत्पन्न करें, तो उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। यह एक ऐसा अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव के जीवन पर हानिकारक प्रभाव डालता है। डॉ० वी० राय के अनुसार, “अनचाही ध्वनि जो मानवीय सुविधा व गतिशीलता में हस्तक्षेप करती है, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।”
ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Noise Pollution)-ध्वनि प्रदूषण के स्रोत निम्नलिखित हैं
1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)-ध्वनि के प्राकृतिक स्रोतों में ज्वालामुखी का फटना, बिजली का कड़कना, बादलों का गरजना, आंधी-तूफान, समुद्री लहरों की आवाज, तेज गति की पवनें आदि शामिल है।
2. मानवीय स्रोत (Human Sources)-ध्वनि के मानवीय स्रोतों में औद्योगिक मशीनें, स्वचालित वाहन, डायनामाइड विस्फोट युद्धाभ्यास. पुलिस द्वारा गोलियां चलाने का प्रशिक्षण, लाऊड-स्पीस, रेडियो, टी०वी०, विवाहों व अन्य अवसरों पर बजने वाले बैण्ड-बाजे, आतिशबाजी, खनन, भवन निर्माण व सड़क निमाण आदि शामिल हैं।

ध्वनि प्रदूषण के कारण (Causes of Noise Pollution)- ध्वनि प्रदूषण के कारण निम्नलिखित हैं
(i) कारखानों में मशीनें बहुत अधिक ध्वनि पैदा करती हैं जिससे ध्वनि प्रदूषण फैलता है।
(ii) यातायात वाहनों (मोटरगाड़ियों, रेलों, जहाजों) के द्वारा ध्वनि प्रदूषण होता है।
(iii) शादियों, पर्यों में उपयोग किए जाने वाले लाऊड-स्पीकर एवं पटाखे आदि ध्वनि प्रदूषण के कारण हैं।
(iv) तेज चलने वाली आँधी-तूफानों से और युद्धाभ्यासों से ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।

ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के उपाय (Measures of Prevention of Noise Pollution)-आज के युग में ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है। इसकी रोकथाम तभी हो सकती है यदि लोगों को इससे होने वाले शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभावों की जानकारी दी जाए। ध्वनि प्रदूषण को निम्नलिखित तरीकों से रोका जा सकता है
(i) रिहायशी बस्तियों की तरफ भारी वाहनों का यातायात बन्द कर देना चाहिए।
(ii) जहाँ शोर-प्रदूषण हो वहाँ रिहायशी बस्तियाँ नहीं बनने देनी चाहिएँ।
(ii) ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए सख्त कानून बनाया जाना चाहिए।
(iv) बड़े-बड़े उद्योग, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे आवासीय क्षेत्रों से संतुलित दूरी पर होने चाहिएँ।
(v) समाचार-पत्रों, रेडियो, टी०वी० आदि के माध्यम से लोगों को ध्वनि प्रदूषण के दुष्परिणामों से अवगत करवाना चाहिए।
(vi) जिन उपकरणों से अधिक ध्वनि निकलती है उनमें उत्तम तकनीक का प्रयोग करके उचित आवाज की जानी चाहिए।

प्रश्न 10. मृदा-प्रदूषण पर विस्तारपूर्वक नोट लिखें।
अथवा
मृदा-प्रदूषण किसे कहते हैं? इसके मुख्य कारण क्या हैं? इसे नियंत्रित करने के उपाय बताइए।
अथवा
मृदा-प्रदूषण किसे कहते हैं? कौन-कौन से प्राकृतिक व भौतिक कारक मृदा को प्रदूषित करते हैं? इसे नियन्त्रित करने के उपाय समझाइए।
अथवा
भूमि-प्रदूषण से क्या अभिप्राय है? भूमि-प्रदूषण के प्रभावों व रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- भूमि/मृदा-प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Land or Soil Pollution)- मनुष्य के हस्तक्षेप एवं दुरुपयोग द्वारा जब मृदा में ऐसे भौतिक, जैविक एवं रासायनिक परिवर्तन हो जाएँ जिनसे उसकी वास्तविक गुणवत्ता एवं उत्पादकता का ह्रास हो, तो उसे भूमि या मृदा-प्रदूषण कहते हैं।
मृदा-प्रदूषण के कारण (Causes of Soil Pollution)मृदा-प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं

(i) भूमि में रासायनिक पदार्थों; जैसे जस्ता, कीटनाशक, दवाइयाँ, रासायनिक खाद आदि अधिक मात्रा में डालने से मृदा-प्रदूषण होता है।
(ii). उद्योगों से निकलने वाले कूड़े-कर्कट में बहुत से हानिकारक रासायनिक तत्त्व होते हैं जो वायु व पानी के माध्यम से मिट्टी में पहुंचकर उसे प्रदूषित कर देते हैं।
(iii) बढ़ती जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वनों की कटाई लगातार बढ़ती जा रही है जिसका दुष्परिणाम यह है कि भूक्षरण की समस्याएँ निरंतर बढ़ रही हैं।
(iv) भूमि का जल-स्तर कम होने से भूमि प्रदूषित होती है।
(v) दूषित जल को जब सिंचाई के काम में उपयोग किया जाता है तो इससे भूमि की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(vi) घरेलू कूड़ा-कर्कट भूमि को निरंतर प्रदूषित कर रहा है, क्योंकि घरेलू कूड़े में काँच, प्लास्टिक व पॉलिथीन आदि पदार्थ भूमि के लिए हानिकारक होते हैं।
(vii) अम्लीय वर्षा के कारण भी मृदा का अपक्षय होता है।
(viii) कृषि में रासायनिक पदार्थों व खनन गतिविधियों से भी भूमि प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।

मृदा-प्रदूषण के प्रभाव ( Effects of Soil Pollution)-मटा-प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित है
(i) दृपित भूमि के बैक्टीरिया मानव शरीर में पहँचकर अनेक बीमारियाँ; जैसे पेचिश, हैजा, टायफाइड फैलाते हैं।
(ii) भूमि में काटनाशक दवाइयों के प्रयोग से फसलों या अनाजों में भी अनेक विषैले तत्त्व पैदा हो जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
(iii) मृदा-प्रदूषण से भृमि की गुणवत्ता एवं उपजाऊ शक्ति लगातार कम होती जाती है।
(iv) मृदा-प्रदूषण से भृक्षरण की समस्याएँ निरंतर बढ़ती जाती हैं।

मृदा-प्रदूषण की रोकथाम/नियंत्रण के उपाय (Measures of Prevention/Control of Soil Pollution)- मृदा प्रदूषण को रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएँ
(i) मृदा-प्रदूषण को रोकने के लिए वायु-प्रदूषण एवं जल-प्रदूषण को रोकना चाहिए।
(ii) भृमि में रासायनिक पदार्थों (उर्वरकों व कीटनाशकों) का कम-से-कम उपयोग करना चाहिए। इनके स्थान पर जैव नियंत्रण विधि अपनानी चाहिए।
(iii) टास पदार्थों; जैसे टिन, ताँवा, लोहा, काँच आदि को मृदा में नहीं दबाना चाहिए।
(iv) पॉलिथीन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
(v) खेती वाली भूमि में गोबर से बनी खाद का प्रयोग करना चाहिए।
(vi) वनों (जंगलों) के संरक्षण हेतु सख्त कानून बनाए जाने चाहिएं, ताकि वनों की अवैध कटाई पर रोक लगाई जा सके।
(vii) वृक्षारोपण का अधिक-से-अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
(viii) ठोस पदार्थों को गलाकर या चक्रीकरण द्वारा नवीन उपयोगी वस्तुएँ वनानी चाहिएँ।

प्रश्न 11. वायु-प्रदूषण (Air Pollution) पर संक्षिप्त नोट लिखें।
अथवा
वायु-प्रदूषण क्या है? वायु-प्रदूषण के कारणों एवं रोकथाम के उपायों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
वायु-प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? वायु-प्रदूषण के प्रभावों तथा नियंत्रण के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
वायु-प्रदूषण के क्या कारण हैं? इसे कैसे रोका जा सकता है?

उत्तर- वायु-प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Air Pollution)-जब वायु में निश्चित मात्रा से अधिक विषैली और हानिकारक गैसें तथा धूलकण मिल जाते हैं, तो उसे वायु-प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-W.H.O.) के अनुसार, “विश्व जनसंख्या का लगभग पाँचवाँ भाग वायु-प्रदूषण के खतरनाक स्तर का सामना कर रहा है।”

वायु-प्रदूषण के कारण (Causes of Air Pollution)-निम्नलिखित कारणों से वायु प्रदूषित होती है
(i) तेज हवाओं से ऊपर उठी धृल, गलियों और सड़कों को साफ करने से उठे धूल-कण हवा में लटकते रहते हैं।
(ii) कारखानों एवं वाहनों द्वारा छोड़े गए धुएँ के कारण वायु प्रदूषित होती है।
(iii) कीटनाशक तथा उर्वरक पदार्थ वायु में मिल जाते हैं और लटकते कणों के रूप में वहीं मौजूद रहते हैं। ये भी वाय को प्रदूषित करते हैं।
(iv) खुले में घरेलू कूड़ा फेंकने से भी वायु प्रदूषित होती है।
(v) लकडी, ईधन, कृड़ा, पटाखे और अन्य पदार्थों को जलाने से वायु-प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।
(vi) तेलशोधक, धातृशोधक एवं रासायनिक उद्योगों आदि से निकलने वाली जहरीली गैसें वायु को दूषित करती हैं। (vii) तंबाक का उपयोग विभिन्न प्रकार से धूम्रपान करने के लिए किया जाता है। धूम्रपान से वायुमंडल में धुआँ लगातार फैलता रहता है जो वायु को प्रदृषित करता है।

वायु-प्रदूषण के प्रभाव ( Effects of Air Pollution)-वायु-प्रदूषण के दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं
i) दषित वाय का हमारे शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे हमें कई प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं जैसे दमा. कैंसर, त्वचा रोग, एलर्जी आदि।
(ii) ऑक्सीजन की कमी से निमोनिया एवं फे(फड़ों का कैंसर भी हो सकता है।
(iii) वायु-प्रदूषण से तापमान में वृद्धि होती है जिसका वनस्पति जगत् पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(iv) वायु-प्रदूषण का विनाशकारी प्रभाव अम्लीय वर्षा है। अम्लीय वर्षा बहुत हानिकारक होती है। यह संगमरमर व चूना पत्थर से बनी इमारतों को हानि पहुंचाती है। यह वर्षा फसलों को भी हानि पहुंचाती है।

वायु-प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय (Measures to Control of Air Pollution)-वायु-प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
(i) शहर या गांव के आस-पास प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारखानों को लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
(ii) प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों की चिमनियाँ ऊंची होनी चाहिएँ, क्योंकि ये अधिक प्रदूषण फैलाती हैं। (iii) कारखानों और वाहनों द्वारा निकाले जाने वाले धुएँ को नियंत्रित करने के उपाय किए जाने चाहिएँ।
(iv) कीटनाशक एवं उर्वरकों से वायु प्रदूषित होती है। इसलिए इनका उपयोग कम-से-कम करना चाहिए।
(v) घरेलू कूड़े-कर्कट को खुले में न फेंककर किसी गड्डे आदि में फेंकना चाहिए।
(vi) ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों; जैसे वाहनों में संपीड़ित प्राकृतिक गैस (C.N.G.) और सौर ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए।
(vii) वाहनों में सोसारहित पेट्रोल का उपयोग करना चाहिए।
(vii) पेड़-पौधे वायु को शुद्ध रखने में सहायक होते हैं, इसलिए अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना चाहिएं।

प्रश्न 12. जल-प्रदूषण क्या है? जल-प्रदूषण के कारणों व नियंत्रण या बचाव के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
जल-प्रदूषण के प्रभावों एवं रोकथाम के उपायों का उल्लेख करें।
अथवा
जल-प्रदूषण क्या है? इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

उत्तर- जल-प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Water Pollution)-सारे जीव-जंतुओं के जीवित रहने के लिए जल का लगातार मिलते रहना बहुत आवश्यक है। जल में घुलनशील व अघुलनशील अशुद्धियों या पदार्थों के मिल जाने से जल का दूषित होना जल-प्रदूषण (Water Pollution) कहलाता है।

जल- प्रदूषण के कारण (Causes of Water Pollution)-जल-प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(i) मल प्रवाह और घर के कूड़ा-कर्कट से अधिकांश जल प्रदूषित होता है। बदलते हुए जल की अपेक्षा खड़ा जल जल्दी .. प्रदूषित होता है और इसमें से दुर्गंध आनी शुरू हो जाती है।

(ii) उद्योगों के फालतू रासायनिक पदार्थों को बहते हुए जल में बहा दिया जाता है ताकि इनसे छुटकारा पाया जा सके। ये रासायनिक पदार्थ जल को जहरीला बनाते हैं और जल में रह रहे जानवरों के लिए खतरा पैदा करते हैं।

(iii) कीटनाशक दवाइयाँ तेज रासायनिक पदार्थों से परिपूर्ण होती हैं जो कीड़े मारने के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। साधारणतया किसानों द्वारा इनका प्रयोग आवश्यकता से अधिक किया जाता है। खेतों का जल जिसमें कीटनाशक दवाइयाँ मिली होती हैं,
बहकर झीलों, तालाबों, नहरों और नदियों में चला जाता है और उनके जल को प्रदूषित कर देता है।

(iv) आज के युग में खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा प्रायः रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाता है। इन खादों में नाइट्रेट और फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है। खेतों में सिंचाई और वर्षा के कारण ये खादें बहकर नदियों और तालाबों में मिल जाती हैं और उनके जल को दूषित कर देती हैं।

जल-प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Water Pollution)-जल-प्रदूषण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं
(i) दूषित जल पीने से हमें पीलिया, हैजा, मियादी बुखार आदि अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं।
(ii) दूषित जल में जल-जीवों के लिए खुराक की कमी होने के कारण इनकी संख्या में कमी आ जाती है।
(ii) वनस्पति एवं कृषि पर भी जल-प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दूषित जल पेड़-पौधों की जड़ों को नष्ट कर देता है और उनका विकास रुक जाता है।

जल-प्रदूषण के नियंत्रण या बचाव के उपाय (Measures of Control or Prevention of Water Pollution)-जल को दूषित होने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
(i) प्रकृति प्रदूषित जल को धूप, हवा और गर्म मौसम द्वारा साफ करती है। घरेलू और औद्योगिक जल एक तालाब में इकट्ठा कर लिया जाता है। इसमें काई और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, जो जहरीले पदार्थों को खा जाते हैं। यह जल प्रयोग करने के योग्य हो जाता है। इस जल को बिना किसी खतरे के कृषि में प्रयोग किया जा सकता है। जल में रहने वाली मछलियाँ भी जल को शुद्ध करने में सहायता करती हैं।

(ii) रासायनिक पदार्थ; जैसे फिटकरी, चूना और पोटैशियम परमैंगनेट, क्लोरीन आदि का प्रयोग करके जल को प्रदूषित होने का जा सकता है । फिटकरी अशद्ध जल को नीचे बिठा देती है। चना जल के भारीपन को दूर करता है। क्लारान व लाल दवाई जल के जीवाणुओं को नष्ट करती हैं।

(iii) काटनाशक दवाइयों और खादों को समय के अनसार पयोग में लाकर और कम-से-कम मात्रा में प्रयोग करक जल का प्रदूषित होने से रोका जा सकता है।

(iv) जल का प्रदूषित होने से रोकने के लिए सख्त कानन का होना बहत जरूरी है। इसके साथ-साथ सामाजिक आर औद्योगिक इकाइयाँ बहते हुए जल में व्यर्थ पदार्थ न फेंकें, जिससे जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है।

प्रश्न 13. स्वास्थ्य शिक्षा से क्या अभिप्राय है? इसकी महत्ता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित कीजिए। इसकी हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है? वर्णन कर।
अथवा
आधुनिक समाज में स्वास्थ्य शिक्षा के महत्त्व का वर्णन करें।

उत्तर- स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ व परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Health Education)-स्वास्थ्यशिक्षा उन सभी आदतों को शामिल करती है जो किसी व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य की जानकारी देती हैं। इसमें व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध है। यह शिक्षा स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों के बारे में बताती है जो एक व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करते हैं, जो स्वस्थ जीवन शैली, आदतों और व्यवहार का निर्माण करते हैं। यह एक ऐसी शिक्षा है जिसके बिना व्यक्ति का पूरा ज्ञान अधूरा रहता है। इस तरह, स्वास्थ्य शिक्षा सब कुछ है जो लोगों को अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं।

1. डॉ० थामस वुड (Dr. Thomas Wood) के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”
2. सोफी (Sophie) के कथनानुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े व्यवहार से संबंधित है।”

स्वास्थ्य शिक्षा की महत्ता या उपयोगिता (Importance or Utility of Health Education)-स्वास्थ्य शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने कहा था-“एक कमजोर आदमी जिसका शरीरया मन कमजोर है वह कभी भी मजबूत काया का मालिक नहीं बन सकता।” इसलिए स्वास्थ्य की हमारे जीवन में विशेष उपयोगिता है। स्वस्थ व्यक्ति ही समाज, देश आदि के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसलिए हमें अपने स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति को स्वास्थ्य से संबंधित विशेष जानकारियाँ प्रदान करती है, जिनकी पालना करके व्यक्ति संतुष्ट एवं सुखदायी जीवन व्यतीत कर सकता है। अत: स्वास्थ्य शिक्षा हमारे लिए निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है

1. स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान (Knowledge about Health)- पुराने समय में बच्चों और आम लोगों में स्वास्थ्य संबंधी बहुत अज्ञानता थी, लेकिन आज रेडियो, टीवी, अखबारों और पत्रिकाओं ने शारीरिक बीमारियों और उनकी रोकथाम, मानसिक चिंताओं और उन पर नियंत्रण के बारे में लोगों को वैज्ञानिक जानकारी दी है। स्वास्थ्य जानकारी से लोगों का जीवन सुखमय और आरामदायक हो गया है।

2. स्वास्थ्यप्रद आदतों का विकास (Development of Healthy Habits)- बालक को स्वास्थ्यप्रद आदतों को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर साफ-सफाई का ध्यान, सुबह जल्दी उठना, रात को जल्दी सोना, खाने-पीने तथा शौच का समय निश्चित होना ऐसी स्वास्थ्यप्रद आदतों को अपनाने से व्यक्ति स्वस्थ तथा दीर्घायु रह सकता है। यह स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा ही सम्भव है।

3. सामाजिक गुणों का विकास (Development of Social Qualities)-स्वास्थ्य शिक्षा एक व्यक्ति को सामाजिक गुणों को विकसित करके एक बेहतर नागरिक बनाने में मदद करती है। स्वास्थ्य शिक्षा ने व्यक्तित्व विकास और कई गुणों का विकास किया है, जैसे सहयोग, त्याग-भावना, साहस, विश्वास, नियंत्रण, संवेगों पर नियंत्रण और सहनशीलता।

4.प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान करना (To Provide FirstAid Information)- स्वास्थ्य शिक्षा से व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा सिखाया जा सकता है, जिसमें प्राथमिक चिकित्सा के सामान्य सिद्धान्तों और विभिन्न परिस्थितियों (जैसे साँप के काटने, डूबने, जलने, अस्थि टूटने आदि) की जानकारी दी जाती है. ये दुर्घटनाएँ कहीं भी, कभी भी हो सकती हैं और जीवन को खतरे में डाल सकती हैं। स्वास्थ्य शिक्षा ही ऐसी जानकारी दे सकती है।

5.स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक आदतों को बढ़ाने में सहायक (Helpful in Increase the Desirable Health Habits)स्वास्थ्य शिक्षा जीवन के सिद्धांतों एवं स्वास्थ्य की अच्छी आदतों का विकास करती है; जैसे स्वच्छ वातावरण में रहना, पौष्टिक व संतुलित भोजन करना आदि।

6. जागरूकता एवं सजगता का विकास (Development of Awareness and Alertness)-स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा एक स्वस्थ व्यक्ति सजग एवं जागरूक रह सकता है। उसके चारों तरफ क्या घटित हो रहा है उसके प्रति वह हमेशा सचेत रहता है । ऐसा व्यक्ति अपने कर्तव्यों एवं अधिकारों के प्रति सजग एवं जागरूक रहता है।

7. वीमारियों से बचाववरोकथाम के विषय में सहायक (Helpful Regarding Prevention and Controlof Diseases)स्वास्थ्य शिक्षा संक्रामक-असंक्रामक बीमारियों से बचाव व उनकी रोकथाम के विषय में हमारी सहायता करती है। इन बीमारियों के फैलने के कारण, लक्षण तथा उनसे बचाव व इलाज के विषय में जानकारी स्वास्थ्य शिक्षा से ही मिलती है।

8. शारीरिक विकृतियों को खोजने में सहायक (Helpful in Discovering Physical Deformities)-स्वास्थ्य शिक्षा शारीरिक विकृतियों को खोजने में सहायक होती है। यह विभिन्न प्रकार की शारीरिक विकृतियों के समाधान में सहायक होती है।

9. मानवीय संबंधों को सुधारना (Improvement in Human Relations)-स्वास्थ्य शिक्षा अच्छे मानवीय संबंधों का निर्माण करती है। स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थियों को यह ज्ञान देती है कि किस प्रकार वे अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों व समुदाय के स्वास्थ्य के लिए कार्य कर सकते हैं।

10. सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive View)-स्वास्थ्य शिक्षा से व्यक्ति की सोच काफी विस्तृत होती है। वह दूसरे व्यक्तियों के दृष्टिकोण को भली भाँति समझता है। उसकी सोच संकीर्ण न होकर व्यापक दृष्टिकोण वाली होती है।

प्रश्न 14. स्वास्थ्य का क्या अर्थ है? इसके विभिन्न पहलुओं या रूपों का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वास्थ्य को परिभाषित कीजिए। इसके आयामों या पक्षों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Health)- स्वास्थ्य से हर कोई परिचित है। स्वास्थ्य अक्सर पारस्परिक व रूढ़िगत संदर्भों में बीमारी की अनुपस्थिति से संबंधित होता है, लेकिन यह स्वास्थ्य का विस्तृत अर्थ नहीं है। स्वास्थ्य एक व्यक्ति का लक्षण है कि वह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ है और उसके सभी शारीरिक संस्थान सुचारू हैं। इसका मतलब न केवल कोई बीमारी या शारीरिक कमजोरी नहीं होना है, बल्कि पूरी तरह से स्वस्थ होना भी है, मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से। यह एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति का मन या आत्मा खुश रहता है और उसका शरीर बीमार नहीं है। ये परिभाषाएं विभिन्न चिकित्सकों ने दी हैं:
1. जे०एफ० विलियम्स ( J.E. Williams) के अनुसार, “स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जिससे व्यक्ति दीर्घायु होकर उत्तम सेवाएँ प्रदान करता है।”

2. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-W.H.O.) के अनुसार, “स्वास्थ्य केवल रोग या विकृति की अनुपस्थिति को नहीं, बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक सुख की स्थिति को कहते हैं।”

3. वैवस्टर्स विश्वकोप (Webster’s Encyclopedia) के कथनानुसार, “उच्चतम जीवनयापन के लिए व्यक्तिगत, भावनात्मक और शारीरिक स्त्रोतों को संगठित करने की व्यक्ति की अवस्था को स्वास्थ्य कहते हैं।”

4. रोजर बेकन (Roger Bacon) के अनुसार, “स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन और दुर्बल तथा रुग्ण शरीर आत्मा का कारागृह है।” .

5. इमर्जन (Emerson) के अनुसार, “स्वास्थ्य ही प्रथम पूँजी है।” संक्षेप में, स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है जिसमें वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसमें उसके शारीरिक अंग, आंतरिक तथा बाहरी रूप से अपने पर्यावरण से व्यवस्थित होते हैं।

स्वास्थ्य के विभिन्न पहलू या आयाम (Aspects or Dimensions of Health)-स्वास्थ्य एक गतिशील प्रक्रिया है जो हमारी जीवन-शैली को प्रभावित करता है। इसके विभिन्न आयाम या पहलू अग्रलिखित हैं

1.शारारिक स्वास्थ्य (Physical Healthy शारीरिक स्वास्थ्य संपर्ण म्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसका हमें व्यक्तिगत स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त हो
जानकारी प्राप्त होती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि उसके सभी नागरिक संस्थान सुचारू रूप से कार्य करते हों। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को न केवल शरीर के विभिन्न अंगों की रचना एवं उनक काया का जानकारा हाना चाहिए, आपतु उनको स्वस्थ रखने की भी जानकारी होनी चाहिए। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समात्र व टा के विकास एव प्रगति में भी सहायक होता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने शारीरिक स्वास्थ्य को उनम बनान हतु मालत एवं पौष्टिक भोजन, व्यक्तिगत सफाई, नियमित व्यायाम व चिकित्सा जाँच और नशीले पदार्थों के निषेध आदि की या ध्यान देना चाहिए।

2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)-मानसिक या बौद्धिक स्वास्थ्य सबसे अच्छा है। क्योंकि मन की खुशी और शांति, या तनावमुक्ति, मानसिक स्वास्थ्य का मूल है। यदि कोई व्यक्ति अशांत और चिंतित रहेगा, तो उसका विकास पूरा नहीं होगा। आधनिक युग में मानव जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि उसका जीवन निस्तर तनाव, दबाव और चिंताओं से घिरा रहता है। परन्तु जिन लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है और आज की दुनिया में भी खुद को चिंतामुक्त महसूस करते हैं, मानसिक स्वास्थ्य बौद्धिक विकास और जीवन के अनुभवों से सीखने की क्षमता को बढ़ाता है। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य की कमी से न केवल मानसिक रोग होते हैं, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी खराब होता है और शारीरिक कार्य करने की क्षमता भी कम होती है। इसलिए सकारात्मक सोच रखना चाहिए, तनाव और दवाव से दूर रहना चाहिए और पर्याप्त विश्राम करना चाहिए।

3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health)- स्वास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सामाजिक स्वास्थ्य है। व्यक्ति की सामाजिक सुरक्षा इसे निर्धारित करती है। यह व्यक्ति को व्यक्तिगत संबंधों में खुश रहने की क्षमता में वद्धि करता है। व्यक्ति एक सामाजिक जीव है, इसलिए वह समाज के नियमों और मूल्यों का पालन करता है। सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह है जो अपने परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है। सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति विचारशील, वैज्ञानिक, आत्मनिर्भर और जागरूक होता है। वह कई सामाजिक गुणों, जैसे आत्म-संयम, धैर्य, बंधुत्व और आत्म-विश्वास से भरपूर है। वह समाज, देश, परिवार और जीवन के प्रति सकारात्मक और रचनात्मक है।

4. संवेगात्मक या भावनात्मक स्वास्थ्य (Emotional Health)-संवेगात्मक स्वास्थ्य में व्यक्ति के संवेग शामिल हैं, जैसे डर, गुस्सा, सुख, क्रोध, दुःख, प्यार आदि। इसमें एक स्वस्थ व्यक्ति अपने संवेगों पर पूरी तरह से नियंत्रण रखता है। वह हर समय नियंत्रित रहता है। वह अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखता है और हार-जीत पर अपने परिवार, दोस्तों और अन्य लोगों से जुड़ा रहता है। यदि कोई अपने संवेगों पर नियंत्रण रखता है, तो वह कठिन परिस्थितियों में भी स्वयं को संभाल सकता है और निरंतर विकास की ओर बढ़ सकता है।

5. आध्यात्मिक स्वास्थ्य (Spiritual Health)- आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह है जो नैतिक मूल्यों का पालन करता है, दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, न्याय और सत्य में विश्वास रखता है और दूसरों को किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता। ऐसा व्यक्ति अपने व्यक्तिगत मूल्यों से जुड़ा हुआ है। दूसरों के प्रति सहानुभूति रखना, सहयोग करने की इच्छा रखना आदि आध्यात्मिक स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण पहलू हैं। आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए योग और ध्यान सबसे अच्छे उपाय हैं। इनसे आंतरिक खुशी और आत्मिक शांति मिल सकती है।

प्रश्न 15. स्वास्थ्य क्या है? इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
स्वास्थ्य से आपका क्या अभिप्राय है? स्वास्थ्य के महत्त्व का विस्तृत उल्लेख कीजिए।

उत्तर-स्वास्थ्य का अर्थ (Meaning of Health)-सामान्यतया स्वास्थ्य से अभिप्राय वीमारी की अनुपस्थिति से लगाया जाता है, परंतु यह स्वास्थ्य का विस्तृत अर्थ नहीं है। स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है, जिसमें वह मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसके सभी शारीरिक संस्थान व्यवस्थित रूप से सुचारु होते हैं। इसका अर्थ न केवल वीमारी अथवा शारीरिक कमजोरी की अनुपस्थिति है, अपित शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना भी है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति का मन या आत्मा प्रसन्नचित्त और शरीर रोग-मुक्त रहता है।
स्वास्थ्य का महत्त्व या उपयोगिता (Importance or Utility of Health)-अच्छे स्वास्थ्य के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनसार काम नहीं कर सकता। अस्वस्थ व्यक्ति समाज की एक लाभदायक इकाई होते हुए भी बोझ-सा बन जाता है। एक प्रसिद्ध कहावत है-“स्वास्थ्य ही धन है।” यदि हम संपूर्ण रूप से स्वस्थ हैं तो हम जिंदगी में बहुत-सा धन कमा सकते हैं।
अच्छे स्वास्थ्य का न केवल व्यक्ति को लाभ होता है, बल्कि जिस समाज या देश में वह रहता है, उस पर भी इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। साइरस के अनुसार, “अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझ-दोनों जीवन के सबसे बड़े आशीर्वाद हैं।” इसलिए स्वास्थ्य का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है; जैसे..
(i). स्वास्थ्य मानव व समाज का आधार स्तंभ है। यह वास्तव में खुशी, सफलता और आनंदमयी जीवन की कुंजी है।
(ii) – अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति समाज व राष्ट्र के लिए उपयोगी होते हैं।
(iii) स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अरस्तू ने कहा-“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।” इस कथन से भी …… हमारे जीवन में स्वास्थ्य की उपयोगिता व्यक्त हो जाती है।
(iv) स्वास्थ्य व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुधारने व निखारने में सहायक होता है।
(v) स्वास्थ्य से हमारा जीवन संतुलित, आनंदमय एवं सुखमय रहता है।
(vi) स्वास्थ्य हमारी जीवन-शैली को बदलने में हमारी सहायता करता है।
(vii) किसी भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य व आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। यदि किसी देश के नागरिक ….. – शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे तो उस देश का आर्थिक विकास भी उचित दिशा में होगा।
(viii) स्वास्थ्य से हमारी कार्यक्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
(ix) अच्छे स्वास्थ्य से हमारे शारीरिक अंगों की कार्य-प्रणाली सुचारू रूप से चलती है।

निष्कर्ष (Conclusion)- स्वास्थ्य एक निरंतर प्रक्रिया है जो हमारे शारीरिक संस्थानों और हमारी जीवन-शैली में आवश्यक और महत्वपूर्ण बदलाव करती है। किसी व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और सामाजिक खुशहाली और खुशी को व्यक्त करता है, साथ ही अच्छी स्वास्थ्य स्थिति से मुक्त होने पर भी। यह हमेशा अच्छा लगता है। वर्जिल कहते हैं, “स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। यही कारण है कि हमारे जीवन में स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य का महत्व बताते हुए महात्मा गाँधी ने कहा, “स्वास्थ्य ही असली धन है, न कि सोने या चाँदी के टुकड़े।”हमारा स्वास्थ्य बहुमूल्य है। जब हम इसे खो देते हैं, तभी हमें इसका मूल्य मालूम होता है।

प्रश्न 16. स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित कीजिए। इसके मुख्य उद्देश्यों पर प्रकाश डालें।

उत्तर- स्वास्थ्य शिक्षा की परिभाषाएँ (Definitions of Health Education)-स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किए हैं
1. डॉ० थॉमस वुड (Dr. Thomas Wood) के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”

2. प्रसिद्ध स्वास्थ्य शिक्षक ग्राऊंट (Grount) के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय है कि स्वास्थ्य के ज्ञान को शिक्षा द्वारा व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार में बदलना है।”

3. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ रहने की स्थिति को कहते हैं न कि केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ या रोगमुक्त होने को।” …. इस प्रकार स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय उन सभी बातों और आदतों से है जो व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं।

स्वास्थ्य शिक्षा के मुख्य उद्देश्य (Main Objectives of Health Education)-स्वास्थ्य शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. सामाजिक गुणों का विकास (Development of Social Qualities)- स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति में अच्छे सामाजिक गुण विकसित करके उसे एक अच्छा नागरिक बनाना है। स्वास्थ्य शिक्षा ने व्यक्तित्व विकास और कई सामाजिक गुणों का विकास किया है, जैसे सहयोग, त्याग-भावना, साहस, विश्वास, नियंत्रण, संवेगों पर नियंत्रण और सहनशीलता।

2. सर्वपक्षीय विकास (All Round Development)-सर्वपक्षीय विकास से अभिप्राय व्यक्ति के सभी पक्षों का विकास करना है। वह शारीरिक पक्ष से बलवान, मानसिक पक्ष से तेज़, भावात्मक पक्ष से संतुलित, बौद्धिक पक्ष से समझदार और सामाजिक पक्ष से निपुण हो। सर्वपक्षीय विकास से व्यक्ति के व्यक्तित्व में बढ़ोतरी होती है। वह परिवार, समाज और राष्ट्र की संपत्ति बन जाता है।

3. उचित मनोवृत्ति का विकास (Development of Right Attitude)-स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य पूरा करने के लिए सकारात्मक सोच की बहुत जरूरत है। स्वास्थ्य संबंधी उचित मनोवृत्ति का विकास तभी हो सकता है, पर चमत्कार आ सकता है यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी आदतें और व्यवहार इस प्रकार बदल दे कि वे अपनी आवश्यकताओं का हिस्सा बन जाएँ. ऐसा करने से एक अच्छा समाज और देश बन सकता है।

4. स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान (Knowledge about Health)- पुराने समय में लोगों को स्वास्थ्य संबंधी बहुत कम जानकारी थी, लेकिन अब राडिया, टावा, अखबारों और पत्रिकाओं ने संकासकबीमारियों, मानसिक चिंताओं, उनकी रोकथाम और संतुलित भोजन के बारे में वैज्ञानिक जानकारी दी है। यह जानकारी उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की प्रेरणा देती है।

5. स्वास्थ्य सबधा नागरिक जिम्मेदारी का विकास (TODevelon Civic Sense about Health)-स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य छात्रों या व्यक्तियों में स्वास्थ्य संबंधी नागरिक जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व की भावना का विकास करता है। उन्हें नशीली वस्तुओं के सेवन, बुरी आदतों और सामाजिक अपराधों से दूर रहना चाहिए।

6.आथिक कुशलता का विकास (Development of Economic Efficiency)- स्वस्थ व्यक्ति आर्थिक कुशलता विकसित कर सकता है। योग्य व्यक्ति अपनी आर्थिक क्षमता बढ़ा नहीं सकता। जब एक स्वस्थ व्यक्ति की आर्थिक क्षमता बढ़ती है, तो देश की आर्थिक क्षमता भी बढ़ती है। इसलिए स्वस्थ नागरिक देश और समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। देश को बहुमूल्य संपत्ति कहना उचित नहीं होगा।

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