Class 12th History Chapter 1. ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ
NCERT Solutions forClass 12th History Chapter- 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ :– जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है ,उन सब का सपना होता है कि वे बारहवी में अच्छे अंक से पास हो ,ताकि उन्हें आगे एडमिशन या किसी नौकरी के लिए फॉर्म अप्लाई करने में कोई दिक्कत न आए .इसलिए आज हमने इस पोस्ट में एनसीईआरटी कक्षा 12 इतिहास अध्याय 1 (ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ) का सलूशन दिया गया है जोकि एक सरल भाषा में दिया है .क्योंकि किताब से कई बार विद्यार्थी को प्रश्न समझ में नही आते .इसलिए यहाँ NCERT Solutions History For Class 12th Chapter 1 Bricks, Beads and Bones दिया गया है. जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है उन्हें इसे अवश्य देखना चाहिए . इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप Ch .12 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | HISTORY |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
भोजन | उपलब्ध कराने वाले समूह |
(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद। (2) मांस तथा मछली (3) गेहूँ, जौ, दाल, सफ़ेद चना, बाजरा, चावल, तिल जैसे खाद्य-पदार्थ। | संग्रहक। आखेटक (शिकारी) समुदाय। कृषक समूह। |
अथवा
“हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधान, विशेष संस्कृति के लोगों के बीच आर्थिक और सामाजिक भिन्नताएँ प्रकट करते हैं।” अपने उत्तर की पुष्टि दो साक्ष्यों के आधार पर कीजिए।
पुरातत्वविद् हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता कई प्रकार से लगाते हैं। इसके लिए वे मुख्यतः निम्नलिखित भिन्नताओं को आधार बनाते हैं|
शवाधान– शवाधानों में मृतकों को दफ़नाते समय उनके साथ विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ रखी जाती थीं। ये वस्तुएँ बहुमूल्य भी हो सकती हैं और साधारण भी। हड़प्पा स्थलों के जिन गर्गों में शवों को दबाया गया था, वहाँ भी यह भिन्नता दिखाई देती है। बहुमूल्य वस्तुएँ मृतक की मजबूत आर्थिक स्थिति को व्यक्त करती हैं, जबकि साधारण वस्तुएँ उसकी साधारण आर्थिक स्थिति की प्रतीक हैं।
विलासिता की वस्तुएँ– सामाजिक भिन्नता को पहचानने की एक अन्य विधि है-पुरावस्तुओं का अध्ययन। पुरातत्वविद् इन्हें मोटे तौर पर उपयोगी तथा विलास की वस्तुओं में वर्गीकृत करते हैं। पहले वर्ग में उपयोग की वस्तुएँ शामिल हैं। इन्हें पत्थर अथवा मिट्टी आदि साधारण पदार्थों से आसानी से बनाया जा सकता है। इनमें चक्कियाँ, मृदभांड, सूइयाँ, झाँवा आदि शामिल हैं। ये वस्तुएँ प्रायः सभी बस्तियों में पाई गई हैं। पुरातत्वविद् उन वस्तुओं को कीमती मानते हैं, जो दुर्लभ हों अथवा महँगी हों या फिर स्थानीय स्तर पर न मिलने वाले पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों से बनी हों। इस दृष्टि में फ़यॉन्स के छोटे पात्र कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था। जिन बस्तियों में ऐसी कीमती वस्तुएँ मिली हैं, वहाँ के समाजों का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा रहा होगा।
1 ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया और फिर इसके साथ घर बनाए गए थे। प्रत्येक घर के गंदे पानी की निकासी एक पाईप से होती थी जो सड़क और गली की नाली से जुड़ी होती थी।
2. शहरों में नक्शों से जान पड़ता है कि सड़कों और गलियों को लगभग एक ग्रिड प्रणाली से बनाया गया था और वह एक दूसरे को समकोण काटती थी।
3. जल निकासी कि प्रणाली बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह कई छोटी बस्तियों में भी दिखाई पड़ती हैं। उदहारण के लिए लोथल में आवासों के बनाने के लिए जहाँ कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया हैं वहीँ नालियों को पक्की ईंटों से बनाया गया हैं।
मनके बनाना हड़प्पा सभ्यता के लोगों की एक अति महत्त्वपूर्ण शिल्प क्रिया थी। यह मुख्यत: चन्हुदड़ो में प्रचलित थी।
प्रयुक्त सामग्री-मनके बनाने के लिए भिन्न-भिन्न पदार्थ प्रयोग में लाए जाते थे। इनमें सुंदर लाल रंग का कार्निलियन, जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज़ आदि पत्थर; ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ और शंख, फ़यॉन्स तथा पकी मिट्टी आदि शामिल थी।
मनके बनाने की प्रक्रिया– भिन्न-भिन्न प्रकार के मनके भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा बनाए जाते थे। उदाहरण के लिए कार्निलियन के मनके बनाने की प्रक्रिया में अग्रलिखित चरण शामिल थे
(1) कार्निलियन का लाल रंग प्राप्त करने के लिए पीले रंग के कच्चे माल तथा मनकों को उत्पादन के विभिन्न चरणों में आग में पकाया जाता था।
(2) पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में ही तोड़ लिया जाता था और फिर शल्क निकालकर इन्हें अंतिम रूप दिया जाता था।
(3) आखिरी चरण में मनकों की घिसाई की जाती थी और इनमें छेद किए जाते थे। इन पर पॉलिश होने के बाद मनके तैयार हो जाते थे।
उत्तर–मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता का एक अनूठा तथा अति महत्त्वपूर्ण शहर था। यद्यपि इसकी खोज हड़प्पा नगर के बाद हुई थी, तो भी यह शहर अपनी विशिष्टताओं के कारण बहुत ही विख्यात है। इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है
एक नियोजित शहरी केंद्र-मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केंद्र था। इसे दो भागों में बाँटा गया था। इनमें से एक भाग छोटा था जिसे ऊँचाई पर बनाया गया था। दूसरा भाग बड़ा था और उसे नीचे बनाया गया था। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचले शहर का नाम दिया है। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ भी संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनाई गई थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था जो इसे निचले शहर से अलग करती थी।
प्लेटफार्म: इस नगर की यह विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण किया जाता होगा। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन। इसकी पूर्व योजना का पता ईंटों से भी लगता है। यह ईंटें भट्टी में पक्की हुई, धुप में सुखी हुई, अथवा एक निश्चित अनुपात की होती थीं। इस प्रकार की ईंटें सभी हड्डपा बस्तियों में प्रयोग में लायी गयी थीं।
गृह स्थापत्य: (i) मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। घरों की बनावट में समानता पाई गयी है। ज्यादातर घरों में आँगन होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। (ii) हर घर का ईंटों से बना अपना एक स्नानघर होता था जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थी।
दुर्ग: दुर्ग में कई भवन ऐसे थे जिनका उपयोग विशेष सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया गया था। निम्नलिखित दो संरचनाएं सबसे महत्वपूर्ण थीं: (i) मालगोदाम,(ii) विशाल स्नानागार। इसकी विशिष्ट संरचनाओं के साथ इनके मिलने से इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि इसका प्रयोग किसी प्रकार के विशेष आनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।
नालियों की व्यवस्था: मोहनजोदड़ो नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत नियोजित तरीके से किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। प्रत्येक घर के गंदे पानी की निकासी एक पाईप से होती थी जो सड़क गली की नाली से जुड़ा होता था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों से नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवशयक था।
सड़कें और गालियाँ: जैसे ज्ञात होता है कि सड़कें और गालियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 चौड़ी थीं, इससे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। बाकि सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गालियाँ एक गलियारें 1.2 मीटर या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के निर्माण से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता में कई प्रकार का शिल्प-उत्पादन होता था। इसके लिए विभिन्न प्रकार के कच्चे मालों की जरूरत पड़ती थी। इनमें से मुख्य कच्चे मालों की सूची नीचे दी गई है
(1) कार्निलियन (सुंदर लाल रंग का), (2) जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न) ,(3) सफ़टिक (4) क्वार्ट्ज़ ,(5) शंख (6) सेलखड़ी (एक प्रकार का पत्थर) ,(7) ताँबा ,(8) काँसा ,(9) सोना ,(10) मिट्टी (11) लाजवर्द मणि ,(12) अस्थियाँ ,(13) जिप्सम ,(14) फ़यॉन्स ,(15) विविध प्रकार की लकड़ियाँ तथा पत्थर ।
कच्चा माल प्राप्ति के तरीके-मिट्टी, साधारण लकड़ी जैसे कुछ माल स्थानीय रूप से उपलब्ध थे परंतु पत्थर, बढ़िया लकड़ी तथा धातु जलोढ़क मैदान से बाहर के क्षेत्रों से मँगवाने पड़ते थे। इसके लिए हड़प्पावासी कई तरीके अपनाते थे; जो निम्नलिखित थे|
1. बस्तियाँ स्थापित करना-हड़प्पावासी उन स्थानों पर बस्तियाँ स्थापित करते थे, जहाँ कच्चा माल आसानी से उपलब्ध था। उदाहरण के लिए नागेश्वर और बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था। ऐसे ही कुछ अन्य पुरास्थल थे-सुदूर अफ़गानिस्तान में शोर्तुघई। यह स्थल अत्यंत कीमती माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि के स्रोत के निकट स्थित था। इसी प्रकार लोथल कार्निलियन (गुजरात में भड़ौच), सेलखड़ी (दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से) और धातु (राजस्थान से) के स्रोतों के निकट स्थित था।
2. अभियान भेजना-अभियान भेजना कच्चा माल प्राप्त करने की एक अन्य नीति थी। उदाहरण के लिए राजस्थान के खेतड़ी अंचल में ताँबे तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजे गए। इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के साथ संपर्क स्थापित किया जाता था। इन प्रदेशों में यदा-कदा मिलने वाली हड़प्पाई पुरावस्तुएँ इन संपर्को की संकेतक हैं। खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्वविदों ने गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है। यहाँ ताँबे की वस्तुओं की विशाल संपदा मिली थी। संभवत: इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे।
पुरातत्वविद प्राचीन स्थलों का उत्खनन करके विभिन्न वस्तुएँ प्राप्त करते हैं और विभिन्न वैज्ञानिकों की मदद से उनका अन्वेषण, व्याख्या और विश्लेषण करके कुछ निष्कर्ष निकालते है l
पुरातत्वविद निम्नलिखित तरीके से अतीत का पुनर्निर्माण करते है:
1. पुरातत्व के वस्तुओं की पहचान एक विशेष प्रक्रिया के जरिये की जाती है l यहाँ एक महत्वपूर्ण हडप्पा स्थल मोहनजोदड़ों में हुए उत्खननों में अवतल चकियाँ बड़ी सख्यां में मिली और ऐसा प्रतीत होता है की अनाज पिसने का ये एक मात्र साधन था यें चकियाँ कठोर, कंकरीले, अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से निर्मित थी जिन्हें मिट्टी में जमा कररखा जाता था ताकि इन्हें हिलने से रोका जा सके l
2. दो मुख्या प्रकार की चक्कियां मिली है जिसमे पहेली चक्की में दो पत्थर को आपस में रगड़ा जाता था जिससे निचला पत्थर खोकला हो जाता था जिन्हें मसालों और जड़ी बूटी को पिसने में प्रयिग किया जाता था और दूसरी चक्की में केवल सालन या तरी बनाने में उपयोग किया जाता था
3. नैके-ने खोजी गई वस्तुओं की तुलना आजकल की चक्कियो से बनी l
4. पुरातत्वविद सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताओं को जानने के लिय कई विधि का प्रयोग करते थे इन्हीं विधियौं में से एक शवाधानों का अध्यन करते थे जैसा की मिस्त्र के कई पिरामिडों में से कई पिरामिड राजकीय शावाधन थे l जहाँ बड़ी मात्र में धन दफनाया जाता था l
5. ऐसीं पुरावस्तु का अध्यन जिन्ही पुरातत्वविद मोटे तौर पर भिन्नताओ को पहचानने में करते ते जो की एक अन्य विधि है l
6. प्रस्तर पिण्ड, पुरे शंक, तथा ताँबा अयस्क जैसे कचा माल; ओजार; आपूर्ण वस्तुएँ ;त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट जो की शिल्प कार्य के संकेतकों में से एक थे पुरातत्वविद श्लिप-उत्पादन के केन्द्रों को पहचानने के लिए इनसब का प्रयोग करते थे l
हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हडप्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था।
ह्नीलर ने सिंधु प्रदेश के लोगों के शासन को ‘मध्यम वर्गीय जनतंन्त्रात्मक शासन’ कहा और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया।
स्टुअर्ट पिग्गॉट महोदय ने कहा ‘मोहनजोदाड़ों का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक’ था।
मैके के अनुसार ‘मोहनजोदड़ो का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथों था।
सैंधव-सभ्यता का विनाश
सैधव-सभ्यता के पतन के संदर्भ में ह्नीलर का मत पूरी तरह से अमान्य हो चुका है। हरियूपिया का उल्लेख जो ऋग्वेद में प्राप्त है उस ह्नीलर ने हड़प्पा मान लिया और किले को पुर और आर्या के देवता इंद्र को पुरंदर (किले को नष्ट करने वाला) मानकर यह सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया कि सैंधव नगरों का पतन आर्यो के आक्रमण के कारण हुआ था। ज्ञातव्य है कि ह्नीलर का यह सिद्धान्त तभी खंडित हो जाता है जब सिंधु-सभ्यता को नागरीय सभ्यता घोषित किया जाता है। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त नर कंकाल किसी एक की समय के नहीं है जिनमें व्यापक नरसंहर द्योतित हो रहा है।
बहुत अच्छा!
Pat
Very good