NIOS Class 10th Business Studies Chapter 18. उपभोक्ता संरक्षण
NIOS Class 10 Business Studies Chapter 18. उपभोक्ता संरक्षण – आज हम आपको एनआईओएस कक्षा 10 व्यवसाय अध्ययन पाठ 18 उपभोक्ता संरक्षण के प्रश्न-उत्तर (Consumer Protection Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 10th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है. यहाँ एनआईओएस कक्षा 10 व्यवसाय अध्ययन अध्याय 18 (उपभोक्ता संरक्षण) सेवाएं) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10th Business Studies 18 उपभोक्ता संरक्षणके प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 10 Business Studies Chapter 18 Solution – उपभोक्ता संरक्षण
प्रश्न 1. उपभोक्ता संरक्षण का क्या अर्थ है?
उत्तर – व्यापार से जुड़ी अनियमितताओं से आम उपभोक्ता की हिफाजत के लिए उठाये जाने वाले कदम या आवश्यक उपाय। उपभोक्तावाद की तरह इसे भी एक आंदोलन माना जा सकता है।
प्रश्न 2. उपभोक्ताओं के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर-व्यापार में अपनाये जाने वाले गलत और अनुचित तरीके तथा उनसे बचने में आम उपभोक्ताओं की लाचारी के कारण ही उपभोक्ता के हितों को सुरक्षित करने के उपायों की आवश्यकता पड़ती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि खराब वस्तु के कारण अथवा सेवा की कमी के कारण होने वाली हानि से उनको बचाना, एक उपभोक्ता का मूलभूत अधिकार है। परन्तु इसके बावजूद अज्ञानता या जागरूकता के अभाव के कारण उपभोक्ता अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए उपभोक्ता बाजार में अच्छी किस्म की वस्तु को चुनने का अधिकार होता है परन्तु भ्रमिक विज्ञापनों के कारण वह सही वस्तु के चयन में असफल हो जाता है और हल्की गुणवत्ता वाली चीज खरीद लेता है।
कभी-कभी उपभोक्ता किसी उत्पाद की गुणवत्ता की पुष्टि करने में अपने आप को असमर्थ पाता है। चालाक दुकानदार अपनी मीठी बातों से उसे आसानी से ठग सकता है। कभी-कभी यदि दवाई खरीदते समय जल्दी के कारण हम एक्सपायरी डेट को ठीक से नहीं पढ़ पाते तो दुकानदार जो कहता है उसे मान लेते हैं। अब यदि दवा का असर नहीं होता तो हम फिर डाक्टर के पास जाते हैं और उनसे कोई दूसरी दवा लिखने का अनुरोध करते हैं। हम बिल्कुल भूल जाते हैं कि हमने जो दवाई खरीदी थी, उसकी अवधि समाप्त हो गयी थी। इसलिए उसका असर नहीं हुआ।
कभी-कभी लोग अपनी निजी या निराधार मान्यताओं के कारण ठगे जाते हैं। जैसे कुछ लोगों का विश्वास होता है कि की अच्छी कीमत का अर्थ बेहतर गुणवत्ता । ऐसे में यदि विक्रेता ने किसी उत्पाद के गुणवत्ता का अच्छी होने की सिफारिश कर दी तो हम उसकी ऊँची कीमत देने में भी संकोच नहीं करते। कुछ लोगों का यह भी विश्वास होता है कि विदेशी वस्तुएं अच्छी होती हैं। वे इन वस्तुओं की ऊँची कीमत देने को तैयार हो जाते हैं।
पैकेटों में बिकने वाले तैयार खाद्य पदार्थ जैसे आलू के चिप्स स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं होते। परन्तु बच्चे इन चीजों को खरीदते हैं, क्योंकि ये स्वादिष्ट होते हैं। शीतल पेय के कुछ ब्रांड युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि टेलीविजन पर नजर आने वाले इनके विज्ञापनों में नामी गिरामी फिल्मी कलाकार होते हैं। उनकी कही गई बातों का उनके ऊपर काफी असर होता है । इस प्रकार स्पष्ट है हम एक स्वादिष्ट फायदेमंद पेय के रूप में चीनी और नमक के साथ ताजे नींबू पानी का स्वाद और महत्त्व बिल्कुल भूल ही गये हैं।
कई वस्तुओं के निर्माता अक्सर पैकिंग पर गुणवत्ता की स्तरीय प्रामाणिकता का मानक I. S. I. जैसा चिह्न लगा देते हैं जो कि कड़ी जाँच-परख के बाद ही लगाया जाने वाला प्रामाणिक चिह्न होता है। इसी प्रकार यदि पैक किया सामान इस पर अंकित वजन से कम होता है, तो खरीदने से पहले हमेशा इसमें वजन की पुष्टि कर पाना बहुत कठिन होता है। कभी-कभी तो तोलने की मशीनें भी गलत होती हैं।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि उपभोक्ताओं को, वस्तुओं के त्रुटिपूर्ण होने या सेवा में कमी होने की स्थिति के इलाज के रूप में अपने लिए सुलभ उपायों की सही जानकारी नहीं है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि उपभोक्ताओं को ऐसी अनुचित व्यापारिक गतिविधियों से बचाने के उपाय करना क्यों आवश्यक है, जिनसे उनका आर्थिक नुकसान तो होता है, वे उनके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकती हैं।
प्रश्न 3. उपभोक्ता को दिन-प्रतिदिन आनेवाली विभिन्न समस्याओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – अनैतिक और बेईमान व्यापारी कई प्रकार से उपभोक्ता को धोखा दे सकते हैं। इनमें व्यापारी, डीलर, उत्पादक, निर्माता और सेवा प्रदाता सभी आते हैं। नीचे कुछ अनुचित गतिविधियों की व्याख्या की गई है जिन्हें उपभोक्ता को दिन-प्रतिदिन अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
1. मिलावट अर्थात् बेची जा रही वस्तु में उससे घटिया क्वालटी की चीज मिला देना। इस प्रकार की मिलावट अनाज, मसालों, चाय की पत्ती, खाद्य तेलों और पेट्रोल (केरोसिन की मिलावट ) में की जाती है।
2. नकली चीजों की बिक्री अर्थात् असली उत्पाद के बदले उपभोक्ताओं को ऐसी चीज की बिक्री करना जिसकी कोई खास कीमत नहीं है। ऐसा अक्सर दवाओं और स्वास्थ्य रक्षक उत्पादों के साथ होता है। ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें इंजेक्शन में केवल पानी मिला पाया गया है या ग्लूकोज के पानी की बोतल में आसुत (डिस्टिल्ड) जल पाया गया है।
3. नाप-तोल के गलत पैमानों का इस्तेमाल – व्यापारियों द्वारा अपनाया जाने वाला एक और अनुचित तरीका है। तोलकर बिकने वाली चीजें, जैसे-सब्जी, अनाज, चीनी और दालें (या नाप कर (लीटर) बेची जाने वाली चीजें, जैसे- कपड़े या सूट पीस वगैरह कभी-कभी अपने वास्तविक तोल या नाप कम पाई जाती हैं।
4. जाली माल की बिक्री- चीजों पर जिस बेहतर क्वालिटी का निशान दिया गया है, वास्तव में सामान का उसके अनुरूप न होना । जैसे स्थानीय तौर पर बनायी गयी चीजों को भी विदेशों से आयातित बताकर ऊँचे दाम पर बेचना ।
5. जब कोई आवश्यक वस्तु – खुले बाजार में उपलब्ध नहीं करायी जाती और जानबूझकर व्यापारी इसे गायब कर देते हैं तो इसे जमाखोरी कहा जाता है। इसका उद्देश्य होता है उस चीज का कृत्रिम अभाव पैदा कर उसकी कीमत बढ़ाना। इस तरह से जमा किये गये सामान को चोरी-छिपे, ऊँची कीमत पर बेचना कालाबाजारी कहलाता है। कभी-कभी जब किसी उत्पाद की आपूर्ति कम होती है तो इस तरह के अनुचित तरीके अपनाये जाते हैं।
6. टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद करने वालों को कभी-कभी बिक्री की पूर्व शर्तों के अनुसार कुछ अन्य वस्तुएँ भी खरीदनी पड़ती हैं या उनसे इस वर्ष का बिक्री के बाद सेवा शुल्क का अग्रिम भुगतान करने को कहा जा सकता है। आपने नये गैस कनेक्शन के साथ गैस स्टोव की बिक्री की शर्त सुनी होगी। अब जिन उपभोक्ताओं के पास पहले से गैस कनेक्शन हैं, जाहिर है कि उनके पास गैस स्टोव भी है। अब वे नये कनेक्शन के लिए गैस स्टोव का दूसरा सेट खरीदना नहीं चाहेंगे।
7. बिना कोई अतिरिक्त मूल्य लिये कुछ वस्तुओं की अगली खरीद पर उपहार प्राप्त करने के लिए कूपन देने के अतिरिक्त कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनसे उपभोक्ताओं को उत्पाद क्रय करने के लिए प्रेरित किया जाता है। अक्सर बेची जा रही वस्तु का मूल्य बढ़ाकर ही उपहार दिये जाते हैं। कभी-कभी डीलर उपभोक्ता के बीच प्रतियोगिता या लॉटरी की भी घोषणा करता है, जबकि उसकी नीयत इनाम देने की कभी नहीं होती । इस प्रकार की प्रतियोगिता पर धन लगाने से अच्छा होगा कि यह धन वस्तु के मूल्य को कम करने तथा गुणवत्ता सुधार पर लगाया जाये ।
8. भ्रामक विज्ञापनों के जरिये भी उपभोक्ताओं को छला जाता है। ऐसे विज्ञापन किसी उत्पाद या सेवा को बेहतर गुणवत्ता स्तर का होने का दावा करते हैं और इस उत्पाद या सेवा के उपयोगिता का झूठा आश्वासन देते हैं।
9. हल्के स्तर के उत्पादों की बिक्री-ऐसी वस्तुएं बेचना जो गवत्ता के घोषित स्तर या मानक स्तर, विशेषकर सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं होतीं । ऐसे उत्पादों में प्रेशर कुकर, स्टोव, बिजली के हीटर या टोस्टर, रसोई गैस सिलेण्डर आदि हैं।
प्रश्न 4. उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित विभिन्न पक्षों के नाम बताइए। उपभोक्ता के हितों की रक्षा में उनकी भूमिका को समझाइए ।
उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण से सम्बन्धित निम्नलिखित तीन पक्ष हैं-
(क) उपभोक्ता,
(ख) व्यापारी तथा
(ग) सरकार ।
इन तीनों पक्षों की उपभोक्ता संरक्षण की दृष्टि से भूमिका नीचे स्पष्ट की गयी है-
(क) उपभोक्ता – स्वयं की सहायता सर्वोत्तम सहायता है। इसीलिए उपभोक्ताओं को जहाँ तक संभव हो सके, अपने हितों का स्वयं ध्यान रखना चाहिये और बाजार के हथकंडों से अपनी रक्षा करनी चाहिये। इसके लिए आवश्यक है कि वे अपने अधिकारों और उनके इस्तेमाल के बारे में जानें। उन्हें व्यापारियों की समझ के भरोसे नहीं रहना चाहिये। उपभोक्ताओं को इससे सम्बन्धित जानकारी या सूचना पाने का अधिकार है और साथ ही अपनी बातें सुने जाने का अधिकार भी है। उन्हें स्थानीय उपभोक्ता संघों द्वारा उपभोक्ताओं के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिये और सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओं को उपभोक्ताओं के अधिकारों और उनके संरक्षण के लिए उपलब्ध कानूनों के सम्बन्ध में बतलाने के लिए आमंत्रित करना चाहिये।
(ख) व्यापारी – व्यापारी वर्ग अर्थात् उत्पादक, वितरक, डीलर, थोक विक्रेता और खुदरा विक्रेता सभी अपने हित में उपभोक्ताओं के अधिकारों का पूरा सम्मान करें। उन्हें उचित मूल्य पर उत्तम किस्म की वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिये। अनुचित तरीकों की रोकथाम के लिए व्यापारी संघों, वाणिज्य और उद्योग परिसंघों, और निर्माता संघों को अपने सदस्यों के खिलाफ उपभोक्ताओं की शिकायतें सुननी चाहिए और गलत कार्य करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करनी चाहिए। (ग) सरकार – सम्पूर्ण समाज के हित में सरकार को उपभोक्ता संरक्षण को दायित्व मानना चाहिए। उपभोक्ता के हितों की रक्षा के उचित कानून बनाने चाहिए तथा मौजूदा कानूनों में आवश्यक सुधार करना चाहिए। सरकार द्वारा केन्द्र और राज्य स्तर पर गठित नीति-निर्धारक निकायों में उपभोक्ता संघों के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिये। सरकार ने इस दिशा में समय-समय पर कई कदम उठाये भी हैं।
प्रश्न 5. उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा पारित विभिन्न अधिनियमों के नाम बताइए ।
उत्तर – उपभोक्ता के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से कई कानून बनाए हैं। इन कानूनों के उद्देश्यों की संक्षिप्त व्याख्या नीचे की गयी है-
1. कृषि उत्पाद ( श्रेणीकरण और विपणन) अधिनियम, 1937- इस अधिनियम में कृषि उत्पादों के गुणवत्ता स्तर को प्रमाणित करने और उन्हें श्रेणीकृत करने का प्रावधान है। इन उत्पादों पर भारत सरकार के कृषि विपणन विभाग की गुणवत्ता प्रमाण सील ‘एगमार्क’ लगाया जा सकता है।
2. औद्योगिक (विकास और नियमन) कानून, 1951 – इस कानून में उत्पादन और उत्पादित वस्तुओं के वितरण पर नियंत्रण का प्रावधान है। इस कानून के अनुसार केंद्र सरकार, किसी भी ऐसे उद्योग की जाँच का आदेश जारी कर सकती है। जिसके उत्पादन में भारी कमी आयी है या उत्पाद की गुणवत्ता में स्पष्ट गिरावट आई हो या उत्पाद के मूल्य में अनुचित वृद्धि हुई है। आवश्यक जाँच और छानबीन के पश्चात सरकार स्थिति के सुधार हेतु उचित निर्देश दे सकती है।
3. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 – इस कानून के अन्तर्गत सरकार को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक हित में किसी भी वस्तु को आवश्यक वस्तु घोषित कर दे। इसके बाद सरकार इस वस्तु के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण तथा व्यापार को नियंत्रित कर सकती है। इसके तहत मुनाफाखोरी और काला बाजारियों जैसी असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ कार्यवाही का भी प्रावधान है।
4. खाद्य पदार्थ मिलावट रोकथाम अधिनियम, 1954 – यह कानून पहली जून 1955 से लागू हुआ। इसके अन्तर्गत खाद्य वस्तुओं में मिलावट के लिए कड़े दण्ड का प्रावधान है। ऐसी मिलावट के लिए, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो तथा, जिससे मृत्यु तक हो सकती हो, उम्र कैद और साथ में 3000/- रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
5. माप-तौल मानक अधिनियम, 1956 – इस अधिनियम में देश भर में तौल के लिए भार तथा लम्बाई के मानक पैमाने का प्रयोग करने की व्यवस्था है, लम्बाई मापने के लिए मीटर तथा भार तोलने के लिए किलोग्राम को प्राथमिक इकाई माना गया है।
6. एकाधिकार और प्रतिबंधित व्यापार अधिनियम, 1969-1983 और फिर 1984 में संशोधित इस अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता या उपभोक्ताओं के समूह प्रतिबंधित और अनुचित व्यापारिक गतिविधियों के बारे में शिकायतें दर्ज कराकर, जाँच कराने के अधिकार का उपयोग कर सकते हैं। सरकार ने एक एकाधिकार और प्रतिबंधित व्यापार आयोग (Monopolies and Restrictive Trade Practices Commission) का गठन किया है, जिसे आवश्यक छानबीन और जाँच के बाद उपभोक्ताओं की शिकायतें निपटाने का अधिकार दिया गया है।
7. कालाबाजारी की रोकथाम और आवश्यक वस्तु आपूर्ति अधिनियम, 1980 – इस कानून का मुख्य उद्देश्य कालाबाजारी की रोकथाम और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाये रखने के लिए दोषी लोगों को हिरासत में लेने की व्यवस्था करना है। इस कानून के उद्देश्य के खिलाफ, किसी भी प्रकार का काम करने वाले व्यक्ति को अधिकतम 6 महीने तक ही कैद हो सकती है।
8. भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986- इस अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता हितों को बढ़ावा देने के लिए और उनके संरक्षण के एक कारगर उपाय के तौर पर भारतीय मानक संस्थान के स्थान पर भारतीय मानक ब्यूरो का गठन किया गया। इसकी दो मुख्य गतिविधियाँ हैं- उत्पादों के लिए गुणवत्ता मानकों का निर्धारण करना और BIS चिह्न योजना के जरिये उनको प्रमाणित करना।
9. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986- इस अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता बड़े पैमाने पर हो रही व्यापारिक धांधलियों के लिए कानून संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं। यह अधिनियम अन्य कानूनों की अपेक्षा उपभोक्ता को अधिक व्यापक संरक्षण प्रदान करता है। इसमें न केवल वस्तुओं और उत्पाद बल्कि बैंकिंग, बीमा, परिवहन, टेलीफोन विद्युत या अन्य ऊर्जा आपूर्ति, आवास, मनोरंजन, और आमोद-प्रमोद जैसी अनेक सेवाएं भी शामिल हैं। इस अधिनियम में केंद्र और राज्य स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना का भी प्रावधान है। उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए इस अधिनियम में अर्द्ध-न्यायिक प्रणाली की व्यवस्था है। इसमें उपभोक्ता विवाद निपटाने के लिए जिला फोरम, राज्य और राष्ट्रीय आयोग होते हैं। इन्हें उपभोक्ता अदालत कहा जा सकता है।
प्रश्न 6. उपभोक्ता अदालतों में कोई भी शिकायत दर्ज कराते समय किन-किन सूचनाओं की आवश्यकता होती है?
उत्तर – उपभोक्ता अदालतों में कोई भी शिकायत दर्ज कराते समय निम्नलिखित सूचनाओं की आवश्यकता होती है-
(i) शिकायत कर्त्ता का नाम, पता और विवरण ।
(ii) विरोधी पक्ष या पक्षों का नाम, पता और विवरण ।
(iii) शिकायत से सम्बन्धित तथ्य तथा यह जानकारी की मामला कब और कहां हुआ।
(iv) शिकायत में दर्ज आरोपों के समर्थन में दस्तावेज, यदि कोई हो तो (जैसे केश – मीमो, रसीद आदि) ।
(v) यह ब्यौरा कि शिकायतकर्त्ता किस प्रकार की राहत चाहता है।
शिकायत पर शिकायतकर्त्ता या उसके अधिकृत एजन्ट के हस्ताक्षर होने चाहिए।
प्रश्न 7. अदालत, उपभोक्ता को किस प्रकार की राहत प्रदान कर सकती है?
उत्तर- अदालत उपभोक्ता को निम्नलिखित में से एक या एक से अधिक राहतों के आदेश दे सकता है-
1. वस्तुओं और सेवाओं में कमी को दूर करना ।
2. वस्तुओं के बदले दूसरी वस्तु देना, सेवाओं को बहाल करना ।
3. वस्तु के लिए चुकायी गयी कीमत या सेवाओं के लिए चुकायी गयी अतिरिक्त शुल्क की वापसी ।
4. हानि या नुकसान के लिए मुआवजा दिलाना। अतिरिक्त शुल्क की वापसी ।
प्रश्न 8. विभिन्न उपभोक्ता अदालतों के अधिकार क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत गठित न्यायिक व्यवस्था में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता अदालतें हैं। इन्हें क्रमश: जिला फोरम, राज्य उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (राज्य आयोग ) तथा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (राष्ट्रीय आयोग) के रूप में जाना जाता है। कोई भी उपभोक्ता या उपभोक्ता संघ वस्तु की कीमत के आधार पर और यदि मुआवजा चाहिए तो उसके दावे के साथ जिला, राज्य या राष्ट्रीय फोरम में अपनी लिखित शिकायतें दर्ज करा सकता है।
यदि वस्तु या सेवाओं की कीमत या मुआवजे का दावा 20 लाख रुपये से अधिक नहीं है, तो इन शिकायतों का फैसला जिला फोरम के अधिकार क्षेत्र में आता है। राज्य आयोग को 20 लाख रुपये से ऊपर और एक करोड़ तक के मामलों की सुनवाई का अधिकार है। जिला फोरम के आदेशों के विरुद्ध अपीलों पर भी राज्य आयोग सुनवाई करता है। एक करोड़ रुपये से अधिक समस्त दावे और मामले राष्ट्रीय आयोग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इसके साथ ही इसे जिला फोरम और राज्य आयोगों के आदेशों के खिलाफ दायर अपीलों को निपटाने का भी अधिकार है, परन्तु राष्ट्रीय आयोग के आदेशों के विरुद्ध यदि अपील करनी हो, तो उच्चतम न्यायालय में जाना होगा।
प्रश्न 9. उपभोक्ता संरक्षण में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – गैर-सरकारी संगठन लोगों के ऐसे समूह हैं, जो बिना किसी आर्थिक लाभ के जनकल्याण को बढ़ावा देने का काम करते हैं । इन संगठनों का अपना संविधान और अपने नियम होते हैं। ये सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त होते हैं। गैर-सरकारी संगठनों ने उपभोक्ता आंदोलन के एक अंग के रूप में विभिन्न गतिविधियाँ चलाई हैं। उपभोक्ता संरक्षण की दृष्टि से ये निम्नलिखित कार्य करते हैं-
1. उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करना तथा लोगों को उपभोक्ता समस्याओं और समाधानों के बारे में गोष्ठियों, कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिये जानकारी देना ।
2. उपभोक्ताओं को कानूनी कार्रवाई करने में सहयोग देना अर्थात् कानूनी परामर्श प्रदान करना ।
3. उपभोक्ता संरक्षण परिषदों तथा अन्य निकायों के प्रतिनिधि के उपभोक्ताओं के पक्ष की पैरवी करना ।
4. अपनी जाँच – व्यवस्थाओं या प्रयोगशालाओं में, उत्पादों की तुलनात्मक जाँच करके, प्रतियोगी ब्रांडों की सम्बन्धित गुणवत्ता का मूल्यांकन करना तथा जाँच के परिणामों को प्रकाशित करना ताकि उपभोक्ताओं को सजग ग्राहक बनाया जा सके।
5. समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करके, पाठकों तक उपभोक्ता समस्याओं कानूनी जानकारी तथा उपभोक्ताओं की रुचि की अन्य सूचनाएँ देना ।
6. ऐसे सुझाव और सिफारिशें प्रस्तुत करना, जिन पर सरकारी अधिकारियों को नीति निर्धारण और उपभोक्ताओं के हित में किये जाने वाले प्रशासनिक उपाय करते हुए विचार करना चाहिये ।
7. कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने कई मामलों में उपभोक्ता अधिकारों को लागू करने में, जन हित याचिकाओं का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है।
प्रश्न 10. उपभोक्ता की शिकायतों के निवारण की प्रक्रिया को समझाइए |
उत्तर – एक उपभोक्ता या उपभोक्ताओं का संघ दोषी व्यापारी
के विरुद्ध अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। शिकायत उस जिले फोरम में दर्ज करायी जा सकती है, जहाँ यह मामला हुआ या जहाँ विरोधी पक्ष रहता या राज्य सरकार या केन्द्र शासित प्रदेश की सरकार द्वारा अधिसूचित राज्य आयोग के समक्ष अथवा नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आयोग के समक्ष दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत दर्ज कराने का कोई शुल्क नहीं है। शिकायत, शिकायतकर्त्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से या उसके अधिकृत एजेंट द्वारा दर्ज करायी जा सकती है या डाक से भेजी जा सकती है। निम्नलिखित सूचनाओं सहित शिकायत की पाँच प्रतियाँ जमा कराई जानी चाहिये-
(i) शिकायतकर्त्ता का नाम, पता तथा विवरण ।
(ii) विरोधी पक्ष या पक्षों का नाम, पता तथा विवरण ।
(iii) शिकायत से सम्बन्धित तथ्य और यह जानकारी कि मामला कब और कहाँ हुआ।
(iv) शिकायत में दर्ज आरोपों के समर्थन में दस्तावेज, यदि कोई हो तो (जैसे केश मीमो, रसीद आदि) और
(v) यह ब्यौरा कि शिकायतकर्त्ता किस प्रकार की राहत चाहता है। शिकायत पर शिकायतकर्त्ता या उसके अधिकृत प्रतिनिधि (एजेंट) के हस्ताक्षर होने चाहिये। यह जिला फोरम, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष को संबोधित होनी चाहिए। कोई भी शिकायत, मामला उठने की तिथि से दो वर्ष की अवधि के भीतर दायर की जानी चाहिए।
यदि शिकायत दर्ज कराने में देर होती है और सम्बन्धित फोरम या आयोग इसे क्षम्य मान लेता है, तो विलम्ब का कारण रिकॉर्ड किया जाना चाहिये। जहाँ तक संभव हो शिकायतों पर विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस ग्रहण करने के तीन मास के भीतर फैसला कर दिया जाना चाहिए।
उन मामलों में जहाँ उत्पादों की, प्रयोगशाला में जाँच या विश्लेषण की व्यवस्था हो, निपटान की समय-सीमा पाँच मास की होती है। फोरम या आयोग शिकायतों की प्रकृति, उपभोक्ता द्वारा मांगी गयी राहत तथा मामलों के तथ्यों के अनुरूप, निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक राहतों का आदेश दे सकता है-
(i) वस्तुओं में त्रुटि / सेवाओं में कमी को दूर करना ।
(ii) वस्तुओं के बदले दूसरी वस्तु देना, सेवाओं को बहाल करना।
(iii) वस्तु के लिए चुकायी गयी कीमत या सेवाओं के लिए चुकायी गयी अतिरिक्त शुल्क की वापसी ।
(iv) हानि या नुकसान के लिए मुआवजा दिलाना। अतिरिक्त शुल्क की वापसी।
उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. उपभोक्ता संरक्षण के साधन एवं विधियाँ बताइये।
उत्तर-1. लोक अदालत,
2 . जनहित याचिकाएँ..n
3. शिकायत निवारण फोरम एवं उपभोक्ता संरक्षण,
4. जागरूकता कार्यक्रम,
5. उपभोक्ता संगठन,
6. उपभोक्ता कल्याण कोष,
7. वैधानिक उपाय।
प्रश्न 2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत शिकायत कौन दर्ज करा सकता है?
उत्तर-शिकायत निम्न व्यक्ति दर्ज करा सकते हैं-
1. केन्द्रीय अथवा कोई भी राज्य सरकार,
2. उपभोक्ता की मृत्यु के पश्चात उसके कानूनी उत्तराधिकारी,
3. उपभोक्ता,
4. कोई भी मान्यता प्राप्त स्वयंसेवी उपभोक्ता संगठन,
5. समान हित रखने वाले एक या अधिक उपभोक्ता।
प्रश्न 3. दावा करने की समय सीमा क्या होती है?
उत्तर-दावा करने की समय सीमा दावा करने का कारण पैदा होने की तिथि से दो वर्ष के भीतर तक मान्य है।
प्रश्न 4. फैसले की समय सीमा क्या होती है?
उत्तर-फैसले की समय सीमा नोटिस ग्रहण करने के तीन माह के भीतर तथा प्रयोगशाला में जाँच की आवश्यकता होने पर पाँच महीने होती है।
प्रश्न 5. एक दुकानदार ने यह कहकर आपको मसाले बेचे कि वह शुद्ध हैं। लेकिन प्रयोगशाला में जाँच के पश्चात उन्हें मिलावटी पाया गया। एक उपभोक्ता के रूप में दुकानदार के इस गलत कार्य के लिये आप क्या कार्यवाही करेंगे?
उत्तर-यदि उपभोक्ता को लगे कि व्यवसायी ने उसके साथ कोई अन्याय किया है- (क) अनुचित व्यापार या प्रतिबंधात्मक व्यापार की कार्यवाही की है या (ख) कोई दोषपूर्ण माल बेचा है या (ग) दी गई सेवा में कोई कमी छोड़ी है या (घ) ज्यादा कीमत वसूल की है या (ङ) जीवन और सम्पत्ति की दृष्टि से घातक माल या सेवा प्रदान की है, तो वह न्याय पाने के लिये यथाशीघ्र या तो प्रत्यक्ष व्यवसायी को तथा स्थानीय उपभोक्ता संरक्षण फोरम को या उपयुक्त अर्द्ध-न्यायिक शिकायत निवारण एजेंसी को, इसकी लिखकर शिकायत करें, प्रमाण पेश करें और राहत प्राप्त करें।
उपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण एवं प्रवर्तन के लिए पूरे विश्व में सक्रिय है। कुछ प्रमुख उपभोक्ता
संगठन हैं, जो उपभोक्ताओं की समस्या को लेकर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
* सी.ई.आर.सी. (उपभोक्ता शिक्षण एवं अनुसंधान केन्द्र)
* वी.ओ.आई.सी.ई. (उपभोक्ता शिक्षण के हितार्थ स्वयं
* सेवी संगठन), नई दिल्ली
* सी.जी.एस.आई. (भारतीय उपभोक्ता पथप्रदर्शन समिति), मुम्बई
* सी.ए.जी. (उपभोक्ता कार्यवाही समूह), चेन्नई
* सी.यू.टी.एस. (उपभोक्ता यूनिटी एवं ट्रस्ट सोसायटी), जयपुर
* कॉमन कोज, दिल्ली
* उपभोक्ता शिक्षण केन्द्र, हैद्राबाद
* कर्नाटक उपभोक्ता सेवा सोसायटी, बैंगलोर
* केरल राज्य उपभोक्ता समन्वय कमेटी, कोचीन।
ये संगठन विभिन्न उत्पादों के संबंध में आँकड़े जुटाते हैं एवं उनकी जाँच करते हैं, ब्रोचर एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं वितरण करते हैं, उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रम चलाते हैं, उपभोक्ताओं की ओर से शिकायतें, मुकदमा एवं लिखित याचिका दायर करते हैं।
प्रश्न 6. आपके मित्र ने विद्युत उपकरण की दुकान से एक ‘छत का पंखा’ खरीदा है। जब उसने इसे अपने घर में लगाया तो उसने पाया कि यह काम नहीं कर रहा था। दुकानदार इसके बदले दूसरा पंखा देने अथवा पैसा देने के लिये इनकार कर रहा है। अपनी शिकायत निवारण हेतु आपका मित्र कहाँ शिकायत दर्ज करा सकता है तथा उसकी प्रक्रिया क्या होगी? समझाइये।
उत्तर-अपनी शिकायत निवारण हेतु मेरा मित्र अपनी शिकायत जिला फोरम में कर सकता है, क्योंकि वस्तु की कीमत या क्षतिपूर्ति का दावा 20 लाख रुपये से अधिक नहीं है। एक शिकायत व्यक्तिगत रूप से या अधिकृत प्रतिनिधि या डाक द्वारा की जा सकती है। एक सादे कागज पर शिकायत से सम्बन्धित आवश्यक साक्ष्य प्रलेखों के साथ लिखित रूप में शिकायत की जाती है। इसमें शिकायतकर्ता एवं दूसरे पक्ष का विवरण सहित पूर्ण पता एवं शिकायत से संबंधित तथ्यों का एवं शिकायत कब और कहाँ शुरू हुई, का वर्णन किया जाता है। दावा करने का कारण पैदा होने की तिथि से दो वर्ष के अंदर उपभोक्ता को शिकायत दर्ज करानी होती है। यथासंभव
शिकायतों पर विरोधी पक्ष पर नोटिस ग्रहण करने के तीन माह के भीतर फैसला हो जाता है परन्तु जिन मामलों में उत्पाद जाँच की आवश्यकता होती है उनमें पाँच महीने तक का भी समय लग सकता है। जिला फोरम के फैसले से संतुष्ट न होने पर पीड़ित पक्ष आदेश पारित होने के बाद तीस दिन के भीतर राज्य कमीशन के समक्ष अपील कर सकता है। उपभोक्ता को जिला फोरम या आयोग द्वारा एक या अधिक राहतों का आदेश दिया जा सकता है-
1. दोषपूर्ण वस्तु के बदले दूसरी वस्तु।
2. हानि के लिए मुआवजा ।
3. अनुचित एवं प्रतिबंधित व्यापार क्रियाओं एवं उनकी पुनरावृत्ति पर रोक लगाना।
4. पीड़ित पक्ष को उचित लागत का प्रावधान।
5. जोखिमपूर्ण वस्तुओं को प्रस्तावित बिक्री से हटाना।
6. वस्तु के लिये चुकाई गई कीमत की वापसी।
7. वस्तु में त्रुटि को दूर करना।
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