NIOS Class 12 Environmental science Chapter 21 सतत कृषि की संकल्पना
NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 21. सतत कृषि की संकल्पना – आज हम आपको एनआईओएस कक्षा 12 पर्यावरण विज्ञान पाठ 21 सतत कृषि की संकल्पना के प्रश्न-उत्तर (Concept of Sustainable Agriculture Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है. यहाँ एनआईओएस कक्षा 12 पर्यावरण विज्ञान अध्याय 21 (सतत कृषि की संकल्पना) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 12th Environmental Science 21 सतत कृषि की संकल्पना के प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 21 Solution – सतत कृषि की संकल्पना
प्रश्न 1. सतत कृषि की परिभाषा दीजिए।
उत्तर- सतत कृषि, कृषि की वह व्यवस्था है जिससे आज की जनसंख्या के लिए पर्याप्त भोजन पैदा किया जा सकता है। बिना मृदा की उर्वरता कम किए तथा बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए ।
प्रश्न 2. सतत कृषि के तीन लाभों को बताइए ।
उत्तर- सतत कृषि में तीन लाभ हैं- (i) यह पर्यावरण के स्तर का संरक्षण करती है।
(ii) प्राकृतिक संपदा का कुशल प्रयोग करती है। (iii) उत्पादन व लाभ के स्तर को कायम रखती है।
प्रश्न 1. फसलों का चक्रीकरण भूमि के स्तर को कैसे बेहतर बनाता है?
उत्तर- फसलों के चक्रीकरण में मुख्य फसल के साथ दूसरा पौधा (फलीदार पौधा) लगाने से मृदा का उपजाऊपन बढ़ता है, भूमि की ऊपरी सतह को मृदा अपरदन से बचाती है तथा पीड़कों व रोगों से रक्षा करता है।
प्रश्न 2. ‘बहुसंवर्धन’ तथा ‘बहुशस्योत्पादन’ में क्या अंतर है?
उत्तर – बहुसंवर्धन प्रणाली के अंतर्गत एक ही खेत में उन कई किस्मों के पौधों को एक साथ उगाया जाता है, जो अलग-अलग समयावधि में परिपक्व होते हैं। बहुशस्यों उत्पादन प्रणाली में भिन्न पौधे एक ही वर्ष के दौरान एक ही खेत में एक के बाद एक उगाए जाते हैं। यह कीटों व बीमारियों से रक्षा करती है, भूमि का उपजाऊपन बढ़ाती है तथा मृदा अपरदन कम करती है।
प्रश्न 3. जैव उर्वरकों को परिभाषित कीजिए और उसके प्रयोग के दो महत्त्वपूर्ण लाभों को बताइए ।
उत्तर – जैव उर्वरक ऐसे पौधों से विकसित पोषक तत्व हैं, जिन्हें शैवाल, बैक्टीरिया, कवक जैसे जीवों से निकाला जाता है जिनका मृदा एवं पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता ।
लाभ
(i) जैव उर्वरकों के उपयोग से रासायनिक खादों पर होने वाले खर्च में कमी आती है।
(ii) रासानिक खादों से मानव शरीर पर होने वाले हानिकारक प्रभाव से बचा जा सकता है।
(iii) पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है।
प्रश्न 4. कृषि में राइजोबियम और नीले-हरे शैवाल की क्या भूमिकाएँ हैं?
उत्तर – राइजोबियम – राइजोबियम बैक्टीरिया फलीदार पौधों की जड़ों में रहता है जोकि वायु की नाइट्रोजन से मिलकर भूमि को नाइट्रोजन तत्त्व से भरपूर कर देता है, जो कि पौधों के विकास के लिए बहुत लाभदायक है।
नीले-हरे शैवाल – नीले-हरे शैवाल जैसे नॉस्टॉक तथा एनाबिना स्वतंत्रतापूर्वक रहने वाले प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीव हैं। ये वातावरण की नाइट्रोजन से मिलकर भूमि को नाइट्रोजन तत्त्व से भर देते हैं। राइजोबियम व नीले-हरे शैवाल दोनों बायोफर्टिलाइजर के रूप में कार्य करते हैं।
प्रश्न 5. उन दो महत्त्वपूर्ण कृषि निवेशों के बारे में बताइए, जिन्हें जैव कृषि में प्रयोग नहीं किया जाता ।
उत्तर- रासायनिक उर्वरक तथा पीड़कनाशकों का जैव कृषि में बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता।
प्रश्न 6. IPM क्या है और उसका उद्देश्य क्या है ?
उत्तर – IPM का अर्थ है एकीकृत पीड़क प्रबंधन | इस विधि में हानिकारक रासायनिक पीड़कनाशकों का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता, परन्तु जैविक कृषि पीड़कों का कीटाणुओं को समाप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य पीड़कों को पूर्ण रूप से नष्ट करना नहीं होता अपितु उनको एक आर्थिक रूप से सहिष्णु स्तर पर कायम करना है।
प्रश्न 7. जीन स्थानांतरण तकनीक द्वारा किस प्रकार के बेहतर स्तर के पौधों की किस्मों का निर्माण किया जा सकता है?
उत्तर- जीन स्थानांतरण तकनीक द्वारा उत्पन्न पौधों की किस्में शाकनाशकों और पीड़कनाशकों के प्रहार से जूझने में सक्षम होती हैं, उनमें कीटों एवं बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता होती है। तथा बेहतर पोषक स्तर वाले होते हैं।
प्रश्न 8. ‘गोल्डन राइस’ क्या है ?
उत्तर- ‘गोल्डन राइस’ एक ट्रांसजेनिक चावल है जिसमें विटामिन ‘ए’ की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो कि जीवन को सुरक्षित करती है।
सतत कृषि की संकल्पना के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. सतत कृषि को परिभाषित कीजिए और उसकी आवश्यकता का कारण बताइए ।
उत्तर- सतत कृषि का अर्थ है भोजन, रेशे तथा अन्य पौधे व जीवों से प्राप्त होने वाले उत्पाद जो बिना भूमि की उत्पादकता को कम करने या पर्यावरण को भारी नुकसान पहुँचाए बिना आज की जनसंख्या को पर्याप्त खाद्यान्न एवं लाभ प्रदान कर सकते हैं। इस तरह की कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है, जिससे आगामी पीढ़ियों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। सतत कृषि प्रणाली कम-से-कम प्रदूषित करती है। क्योंकि कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता बीजों को जीन स्थानांतरण तकनीक का उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों जैसे फसली-चक्रीकरण बहुसंवर्धन पशुपालन कृषि से विविध किस्मों के पौधों का उत्पादन करना जैव विविधता को बचाता है और स्वस्थ पर्यावरण बनाता है।
प्रश्न 2. शहरों में जनसंख्या वृद्धि के दो सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभावों का उल्लेख करिए ।
उत्तर- जनसंख्या वृद्धि प्राकृतिक संसाधन पर बहुत दबाव डालता है। शहरी लोगों को घर, भोजन, पानी, यातायात ऊर्जा, खनिज और अन्य साधनों की आवश्यकता से अधिक दोहन और अपक्षीर्णन होता है। पीने का पानी खराब है। संसाधनों का उच्च उपभोग बहुत अधिक अपशिष्ट पैदा करता है। कम मात्रा में भोजन दे सकते हैं।
प्रश्न 3. उपलब्ध पौधों की किस्मों को बेहतर बनाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर – उपलब्ध पौधों की किस्मों को बेहतर बनाना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि उच्च उत्पादकता वाले पौधों, खाद्य फसलों के पोषक तत्त्वों, रोगों और पीड़कों से बचने वाले पौधों और गर्मी, सर्दी, सूखा और पानी से बचने वाले पौधों का विकास हो सके।
प्रश्न 4. जीन स्थानांतरण तकनीक के लागू करने से उत्पन्न होने वाले किन्हीं चार प्रकार के पौधों का वर्णन कीजिए |
उत्तर – पौधों में जीन स्थानांतरण एक स्पीशीज से दूसरी में किया जाता है। यह स्थानांतरण एक ही किंगडम जैसे पौधे से पौधे और भिन्न किंगडम जैसे बैक्टीरिया से पौधे दोनों में हो सकता है।
(i) Bt कॉटन के पौधे से Bt जीन का स्थानांतरण किया जाता है। यह पौधा सब कीटों के प्रहार से संरक्षित हो जाता है। इस जीन का उपयोग मक्का, आलू, टमाटर, तंबाकू आदि में किया जा सकता है।
(ii) गोल्डन चावल में विटामिन ‘ए’ पोषक तत्त्व भरपूर मात्रा में होता है। अधिक नमक की मात्रा व बाढ़ के प्रति संरक्षण संबंधी जीनों को इस चावल में इस प्रकार डाला गया कि उत्पादकता बढ़ी व पीड़कनाशकों के प्रयोग में भी भारी कमी आई है।
(iii) टमाटर के पकने की प्रक्रिया को धीमा करने में लिए एक जीवाणु की जीन का टमाटर के पौधे में स्थानांतरण किया जाता है।
(iv) पौधों पर सर्दी के मौसम के प्रभाव को कम करने के लिए आर्कटिक सागर में पाई जाने वाली मछली के खून से जीन स्थानांतरण किया जाता है।
प्रश्न 5. IPM की प्रक्रियाओं के लक्ष्य व उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए |
उत्तर- IPM का मतलब एकीकृत पीड़क प्रबंधन है। यह अपने बच्चों को नियंत्रित करने का सबसे संपोषित उपाय है। इस प्रक्रिया में पारितंत्र के अभिन्न अंग प्रत्येक फसल की किस्म और उस पर वार करने वाले पीड़ित हैं। IPM सिस्टम का लक्ष्य न केवल पीड़ित जनसंख्या को पूर्ण रूप से समाप्त करना है, बल्कि पौधों को आर्थिक रूप से नष्ट होने से बचाना है। IPM का उद्देश्य खेतों की देखभाल के दौरान जैविक तरीकों का उपयोग करना है यदि पीड़कों की संख्या आवश्यकता से अधिक होती है।
प्रश्न 6. GMO क्या हैं? दो उदाहरण देते हुए संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर- GMO (Genetically Modified Organism) ऐसे जीव हैं जिन्हें जेनेटिक पदार्थ कृषिकीय जैव प्रौद्योगिकी या जनन तकनीकी या आनुवांशिक इंजीनियरी से विकसित किया जाता है। ये जीव मुख्यतः सूक्ष्मजीव होते हैं, जैसे-बैक्टीरिया, यीस्ट तथा कीट, पौधे, मछली व स्तनधारी होते हैं। आनुवंशिक इंजीनियरी की तकनीकों का प्रयोग करके बड़ी संख्या में कृषि व सजावटी पौधों को परिवर्तित किया जा सकता है। GMO द्वारा विकसित पौधों में कीटों व बीमारियों से जूझने की रोधक क्षमता होती है, पौधों में पोषक तत्त्वों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है तथा फलों व सब्जियों के संरक्षण की अवधि में वृद्धि होती है।
प्रश्न 7. पीड़कों का जैविक प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रण क्या है ?
उत्तर- अन्य जीवों का उपयोग करके जैविक प्रक्रियाओं द्वारा पीड़कों (कीट, माइट और अन्य पौधे की बीमारियाँ) का नियंत्रण किया जाता है। ये जीव प्राकृतिक रूप से रोगजनक, परजीवी या परभक्षी हो सकते हैं। यह IPM का एकमात्र हिस्सा है। तीन जैविक प्रक्रियाएँ हैं: परभक्षी, परजीवी और रोगजनक। रेड स्पाइडर काइट, उदाहरण के लिए, पीड़क खीरे के पौधे पर रहता है। खाने वाले परभक्षी जीव इसे चलाते हैं।
उन हार्मोनों का उपयोग कीटों के सामान्य जीवन चक्र में बाधा डालता है, उन्हें और अधिक परिपक्व होने और प्रजनन करने से रोकता है।
प्रश्न 8. वे कौन से दो मुख्य आइटम हैं जिनका सामान्य कृषि में काफी प्रयोग है, परन्तु जैविक कृषि में नहीं ?
उत्तर- कृषि में सामान्यतः कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग मृदा स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जो फसलों की उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता को कम करता है। जैव कृषि में इनका इस्तेमाल नहीं किया जाता। जैव कृषि पूरी तरह से फसलों के चक्रीकरण, पौधों के अवशेष, पशुओं की खाद, फलीदार पौधों की हरी खाद, कृषि के जैविक अपशिष्ट पदार्थ और जैव उर्वरक पर निर्भर करती है।
प्रश्न 9. कृषि में नीले-हरे शैवाल किस प्रकार मदद करते हैं?
उत्तर- नीले-हरे शैवाल जैसे नोस्टॉक और ऐनाबेना स्वतंत्र जीवी हैं जो प्रकाश संश्लेषित जीव हैं और वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। धान के खेतों में, जो पानी से भरे रहते हैं, ये नीले-हरे शैवाल नाइट्रोजन जैव उर्वरक का कार्य करते हैं।
प्रश्न 10.बायोफर्टिलाइजर या जैविक खाद को परिभाषित कीजिए और कृषि में होने वाले उसके उपयोगों को बताइए ।
उत्तर – जैविक खाद, बैक्टीरिया, शैवाल और कवक जैसे जीवों से निकाले गए पोषक तत्त्वों को पौधों से बनाते हैं। इनका भूमि या पर्यावरण पर कोई खराब प्रभाव नहीं है। जब वे बीजों, पौधों या मृदा में मिलाया जाता है, तो वे फसल (पौधों) की उत्पादकता को बढ़ाते हैं, भूमि की उपजाऊपन को बढ़ाते हैं और प्रदूषण को कम करते हैं। प्राकृतिक तरीकों से, जैविक खाद पौधों को पोषण देते हैं, जैसे वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर करना, मृदा में फास्फोरस को विलेयशील बनाना, जैविक पदार्थों का विघटन करना या सल्फर को ऑक्सीकृत करना।
जैविक खाद का उपयोग करने से रासायनिक खाद और पीड़कनाशकों का उपयोग कम होता है। मृदा को कार्बनिक बनाने के अलावा, जैविक खाद में सूक्ष्म जीव प्राकृतिक पोषण को बरकरार रखते हैं। जैविक खाद का उपयोग मृदा का पोषण रखता है और स्वस्थ पौधे बनाता है। हम कह सकते हैं कि जैविक खाद पर्यावरण को खराब करने के बिना रासायनिक खाद और पीड़कनाशकों को कम करते हैं और पौधों को पोषण से भरपूर करते हैं।
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