NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 9. वनोन्मूलन

NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 9. वनोन्मूलन

NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 9 वनोन्मूलन – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 12 पर्यावरण विज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 12 पर्यावरण विज्ञान अध्याय 9 (वनोन्मूलन) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 9 Deforestation दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है. ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 12 Environmental Science Chapter 9 वनोन्मूलन के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 12 Environmental Science Chapter 9 Solution – वनोन्मूलन

प्रश्न 1. औषधि के लिए प्रयुक्त होने वाले पेड़ों के नाम के साथ-साथ उनके वानस्पतिक नाम तथा वे किस रोग के लिए प्रयुक्त होते हैं – एक सूची बनाइए ।
उत्तर

पौधावास्पतिक नामउपयोग
(i) सिनकोना (क्वीनीन) सिनकौना आफिसिनलिस मलेरिया के उपचार में
(ii) फाक्सग्लोवडिटिअलिस पर्सनपुसलापुराने हृदय रोग में
(iii) टेक्ससटेक्सस ब्रोविफोलियाकैंसर के उपचार में

प्रश्न 2. वनों के मुख्य कार्य क्या हैं?
उत्तर – वन मुख्यतः उत्पादक, सुरक्षात्मक और नियमन का कार्य करते हैं।

प्रश्न 3. काष्ठ पर आधारित कुछ उद्योगों की सूची बनाइए ।
उत्तर– काष्ठ पर आधारित कुछ उद्योग निम्न हैं- प्लाईवुड निर्माण, आरामशीन, कागज और लुगदी, संयोजित लकड़ी, दियासलाई, मानव निर्मित रेशे, खेल का सामान और पार्टिकल बोर्ड आदि ।

प्रश्न 4. वनोन्मूलन के कारणों की सूची बनाइए ।
उत्तर – वनोन्मूलन के मुख्य कारण कृषि, स्थानांतरित खेती, लकड़ी और जलावन की मांग, विकास परियोजनाओं के लिए भू-भाग और कच्चे माल की आवश्यकता तथा अन्य मानवीय गतिविधियां हैं।

प्रश्न 5. टिहरी पावर परियोजना कहाँ है?
उत्तर– टिहरी पावर परियोजना भागीरथ और भीलगंगा के संगम पर टिहरी शहर के पास है।

प्रश्न 6. उन भारतीय राज्यों की सूची बनाइए जहाँ खेती की स्थानांतरीय जुताई अभी भी अपनाई जाती है ।
उत्तर– भारतीय राज्य, जहाँ खेती की स्थानांतरीय जुताई अभी भी अपनाई जाती है-मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह हैं।

प्रश्न 7. आदिवासी समुदाय बिना जंगलों को हानि पहुँचाए वहाँ रहने के किस प्रकार योग्य हैं? कारण बताइए ।
उत्तर– आदिवासी लोग पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखकर कृषि करते हैं और शताब्दियों से यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।
(i) वे भू-भाग पर एक साथ अनेक फसले उगाते हैं और कुछ वर्षों के बाद उस भू-भाग का पुनः उद्धार और जंगल बनने के लिए छोड़ देते हैं।
(ii) जिन जंगलों में वे रहते हैं, वे उनके साथ सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रखते हैं और उसकी सुरक्षा और स्थायित्व का पूरा ध्यान रखते हैं।

प्रश्न 8. विकासशील देशों में कुल लकड़ी उत्पादन का कितना प्रतिशत ईंधन आवश्यकता पूर्ति के लिए प्रयोग में है?
उत्तर – विकासशील देशों में कुल लकड़ी उत्पादन का लगभग 82% ईंधन आवश्यकता पूर्ति के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 9. भारत की खतरे में पड़ी एक प्रजाति का नाम बताइए |
उत्तर – भारत में शेर जैसी पूँछ वाला बंदर खतरे में पड़ी एक प्रजाति है।

प्रश्न 10. वन्यजीवन में ह्रास के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर – वन्य जीवन में ह्रास के मुख्य कारण व्यावसायिक दोहन, कीटनाशकों का प्रयोग, असाधारण या बाह्य प्रजातियों का परिचय, निवास स्थानों की क्षति और उनमें विघ्न, जानवरों को पालतू बनाना आदि हैं।

प्रश्न 11. भारत से लुप्त हो चुके स्तनधारी का नाम बताओ।
उत्तर- भारत से लुप्त हो चुका स्तनधारी चीता है।

प्रश्न 12. उस स्तनधारी का नाम बताइए जो साधारणतया पूरे एशिया में मिलता था और अब केवल कुछ किलोमीटर तक भारत के गिरवन में मिलता है।
उत्तर– एशियाई शेर अब केवल कुछ किलोमीटर तक भारत के गिरवन में मिलता है।

प्रश्न 13. जैव विविधता को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर – जीवन में सभी प्रकार के पौधे, पशु, सूक्ष्म जीव व सभी प्राकृतिक जीव जैव विविधता बनाते हैं।

प्रश्न 14. ‘मरुस्थलीकरण’ क्या है?
उत्तर- मरुस्थलीकरण भूमि की जैवीय क्षमता को क्षति पहुँचाने से मरुस्थल जैसी स्थिति उत्पन्न होना है।

प्रश्न 15. मानव की किन्हीं तीन गतिविधियों को सूचीबद्ध कीजिए, जिनके परिणामस्वरूप मरुस्थल बनते हैं?
उत्तर – मरुस्थल मानव की भिन्न गतिविधियों के कारण बनते हैं, जैसे- अति शोषण, असीमित चराई, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, जल स्रोतों को अत्यधिक और अनार्थिक शोषण जिससे जलस्तर गिरता है तथा कृषि योग्य भूमि का अनार्थिक उपयोग आदि ।

प्रश्न 16. दो प्रांतों के नाम बताइए जहाँ भारत में सबसे अधिक मरुस्थल पाए जाते हैं।
उत्तर- भारत में सबसे अधिक मरुस्थल राजस्थान तथा गुजरात में पाए जाते हैं।

प्रश्न 19. एक स्तनधारी, एक पक्षी और एक पौधे का नाम बताइए जो मरुस्थल में पहले बहुतायत में पाए जाते थे, परन्तु अब उनकी प्रजाति खतरे में है।
उत्तर- स्तनधारियों में जंगली सुअर तथा जंगली गधा, पक्षी में ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड तथा खेजड़ी पौधा मरुस्थल में पहले बहुतायत के पाए जाते थे, परन्तु अब उनकी प्रजाति खतरे में हैं।

वनोन्मूलन के महत्त्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. वनों के कोई तीन कार्य लिखिए। आपकी समझ में कौन-सा कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण है और क्यों ?
उत्तर – वनों के मुख्य तीन कार्य हैं-
(i) उत्पादन,
(ii) रक्षात्मक तथा
(iii) नियामक कार्य ।

हमारे वन उत्पादों में लकड़ी, ईंधन, चारकोल, बीड़ी, पत्तियाँ, रेजिन, फल, एल्केलॉयड, लेटेक्स, खाद पत्ती, घास, बाँस, गोंद और बहुत कुछ शामिल हैं। वन उद्योगों को कागज लुगदी, रेयॉन लुगदी, प्लाईवुड, हार्ड बोर्ड आदि देते हैं। वनों से लेटेक्स, सुगंधित तेल और औषधीय तत्व भी बनाए जाते हैं। रक्षात्मक कार्य में वन जीवों को पर्यावास, मृदा अपरदन से रक्षा, जल का संरक्षण और सूखे से बचाव करते हैं। वन हवा, ठंड, ध्वनि, विकिरण और गंध से बचाव करते हैं। वन मृदा को जलप्रवाह और नदियों से बचाते हैं।

वनों में नियामक कार्य भूमि के पर्यावरणीय और आर्थिक संसाधनों का मूल्य बढ़ाता है और वातावरण और तापमान को नियंत्रित करता है। गैसों (मुख्य रूप से CO2 तथा O2 ) के साथ पानी खनिज तत्वों और विकिरण ऊर्जा को सीखता है, भंडारण करता है और मुक्त करता है। वन भी सूखे और बाढ़ पैदा करते हैं। इस तरह के जैव-भू-रासायनिक चक्र मुख्य हैं। वनों का नियामक कार्य सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि बिना उनके पर्यावरण में जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नहीं होगी।

प्रश्न 2. वनोन्मूलन वन्य जीवन की क्षति के लिए संपूर्ण विश्व में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य क्यों है? व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- वनों में सबसे अधिक जैव विविधता पाई जाती है, जहां कई प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इस तरह, वनोन्मूलन बहुत से वन्य जीवों को उनके पर्यावास को नष्ट करता है। जिन प्रजातियों का पर्यावास नष्ट हो जाता है, वे स्थानांतरित हो जाते हैं। वे जीवित रहते हैं अगर उन्हें आवास मिलता है और उसके अनुकूल अपने आप को ढालते हैं, तो नहीं तो विलुप्त हो जाते हैं। जैव विविधता की कमी से पर्यावरण और जीव दोनों प्रभावित हुए हैं।

कुछ जीवों को वनोन्मूलन के कारण ऐसे परिवेश में रहना पड़ता है, जो उनके लिए अनुकूल नहीं है। इस तरह वन कई जीवों को प्राकृतिक पर्यावास प्रदान करते हैं, जो वनोन्मूलन के कारण खो जाता है। संसार भर में वन्य जीवों की क्षति के लिए वनोन्मूलन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है। पिछले दो हजार वर्षों में लगभग 600 प्रजातियाँ मर चुकी हैं। इससे अलग, लगभग तीन हजार पौधों की प्रजातियाँ संरक्षण की मांग करती हैं। जैसे-जैसे हरियाली संकीर्ण होती जाती है, इससे पारिस्थितिकी पर बुरा प्रभाव पड़ता है, भारत में लगभग 45000 पौधों और 75000 पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ हैं।

इस जैव विविधता का संरक्षण पारितंत्र की स्थिरता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वनोन्मूलन के साथ निर्जनता और रेगिस्तान के विस्तार ने पृथ्वी की प्राकृतिक संपदा काफी हद तक नष्ट कर दी है। हाथी, शेर और चीतों की संख्या में भारी कमी आई है। चीता तो लगभग लुप्त ही हो गया है।

प्रश्न 4. निवास स्थान का नाश और वन्य जीवन की क्षति पर एक प्रोजेक्ट बनाइए जिसमें कम से कम 5 पशु प्रजाति और 5 वनस्पति प्रजाति हों।
उत्तर- जब प्राकृतिक पर्यावास नष्ट कर दिए जाते हैं, तो वहाँ की प्रजातियों के जीवन संकट में पड़ जाता है। इस क्रिया में जैव विविधता में कमी के कारण जीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। मानवीय गतिविधियों के कारण औद्योगीकरण व शहरीकरण प्रमुख कारण हैं, जो वनोन्मूलन की वजह है तथा इससे प्राकृतिक पर्यावास नष्ट हो गए हैं। पर्यावास नष्ट करने की मुख्य वजह कृषि योग्य भूमि को बनाना भी है। अन्य कारण खनिज खनन, शहरीकरण, चूना पत्थर, कोयला निकालना आदि हैं। पर्यावास ह्रास के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। इस सबसे प्राकृतिक पर्यावरण में बदलाव आए हैं, जिससे पर्यावास टुकड़ों में बंट गया है, भौतिक क्रियाएं वातावरणीय बदलाव तथा मानवीय गतिविधियाँ जैसे बाहरी प्रजातियों का आगमन पारिस्थतिकी भोजन में कमी आदि पर्यावास ह्रास का कारण हैं।

हम कह सकते हैं जब किसी पर्यावास को नष्ट किया जाता है तो वहाँ रहने वाले पौधे, जीव-जन्तु, जो उस पर्यावास में रहते हैं।
उनकी जनसंख्या कम होने लगती है या वे विलुप्त हो जाते हैं। इस प्रकार पर्यावास नष्ट होना ही जीवों ओर जैव विविधता को खतरा है। पर्यावास ह्रास के कारण 82% पक्षी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार हैं, पर Endemic जीव जो कि बहुत ही सीमित मात्रा में हैं, वे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, क्योंकि वे प्रत्येक स्थान पर नहीं पाए जाते तथा अन्य किसी जगह पर अनुकूलन भी नहीं बिठा सकते। किसी भी जीव के विलुप्त होने के कई कारण हैं, जैसे- पर्यावास ह्रास, अन्य पर्यावरण परिवर्तन आदि । पर्यावास ह्रास जीव की जनसंख्या पर प्रभाव डालता है तथा जैव विविधता पर भी, क्योंकि जीवों को अपनी किस्म के जीव नहीं मिल पाते तथा विभिन्न जीवों से Mating नहीं हो सकती ।

प्रश्न 5. विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं के माध्यम से भारत में लुप्त हुए पशु और पौधों की प्रजातियों की सूची बनाइए
उत्तर– इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर ने खतरे में डाल दी गई प्रजातियों की लाल सूची बनाई है। उनके पास भारत में खतरे में पड़ी 132 प्रजातियां थीं। चीता पहले से ही भारत में विलुप्त हो चुका है। इस सूची में चार स्तनधारी और तीन पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं जो पिछले एक शताब्दी में लुप्त हो गई हैं। इसके अलावा, चालीस स्तनधारी प्रजातियां, बीस पक्षी प्रजातियां और बारह रेप्टाइल (सरीसृप) प्रजातियां खतरे में हैं। पौधों की 141 प्रजातियाँ और 60 प्रजातियाँ अतिसंकट में हैं। 18 एम्फीबियन प्रजातियाँ, 14 मछलियाँ और 10 स्तनधारी बहुत अधिक खतरे में हैं। 15 प्रजातियों के पक्षी भी खतरे में हैं।

एजेन्सी ने 310 खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची बनाई, जिसमें 69 मछलियाँ, 38 स्तनधारी और 32 एम्फीबियन शामिल हैं। दो जंगली पौधों की प्रजातियाँ मर चुकी हैं। जैसे यूफोर्बिया मयूरंथानी, केरल। वर्तमान रिकॉर्ड में छह पौधे और एक लीफ फ्रॉग प्रजाति लुप्त हो चुकी हैं। पिछले वर्ष सात भारतीय पक्षी प्रजातियाँ खतरे में हैं। 15 भारतीय पक्षियों में से सबसे खतरे में हैं ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड, साइबेरियन क्रेन और सोशेबल लैविंग।

प्रश्न 6. “ विकास परियोजनाओं से आदिवासी समाज को भारी क्षति पहुँचती है।” इस कथन पर अपने विचार दें।
उत्तर – मुख्यतः जंगलों और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी लोगों को जंगल काटना पड़ा। भारत की जंगलों में रहने वाली आदिवासी जनसंख्या लगभग 7% है। जंगलों को मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए काटा है। आदिवासी समाज को विस्थापित होना पड़ा है और इसके परिणामस्वरूप क्षति हुई है। औद्योगीकरण, नगरीकरण और अन्य विकास परियोजनाओं के संपर्क में है। विशेष भू-भागों में विश्व की 4% जनसंख्या रहती है। ये स्थानीय लोग या आदिवासी लोग एक निश्चित स्थान पर अधिकार रखते हैं। विशेष स्थान से उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक संबंध हैं, और वे अधिकतर उस स्थान या क्षेत्र को रखते हैं और उसे स्वयं प्रबंधित कर सकते हैं।

इस तरह, वे स्थानीय संस्कृति, जैव विविधता और संसाधनों का प्रबंधन करने की क्षमता की रक्षा और संरक्षण करते हैं। उदाहरण के लिए, आदिवासियों को पारिस्थितिकी के अनुकूल कृषि तरीकों का ज्ञान है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हुआ है। वे विभिन्न फसलों की किस्में उगाते हैं, फिर कई वर्षों तक जमीन को जंगल बनने के लिए छोड़ देते हैं। कुछ वर्षों बाद खेती और सफाई का चक्र फिर से शुरू होता है।

प्रश्न 7. ” वनोन्मूलन का परिणाम मरुस्थलीकरण है। ” व्याख्या कीजिए |
उत्तर – किसी क्षेत्र की जैविक क्षमता का क्षय या विनाश इस प्रकार होना कि वह धीरे-धीरे निर्जन होकर मरुस्थल बन जाए। मरुस्थलीकरण का नाम है। शुष्क या अर्धशुष्क वातावरण वाले स्थान पुनर्स्थापना बहुत धीमी है। अतिचारण और खनन निर्जनीकरण के दबाव को बढ़ाते हैं। वृक्षों की अधिक कटाई मरुस्थलीकरण का कारण बनती है। इससे हवा का वेग बढ़ता है, आर्द्रता का संरक्षण कम होता है, तापमान बढ़ता है और प्रभावित क्षेत्र में शुष्कता बढ़ती है। मानव गतिविधि ने पहले से शुष्क क्षेत्रों को अधिक निर्जन और मरुस्थल बनाया। प्राकृतिक कारणों से किसी भी क्षेत्र में निर्जनीकरण हो सकता है, लेकिन मनुष्य द्वारा प्राकृतिक पारितंत्र को तोड़ने से निर्जनीकरण और भी बढ़ा है। निम्नलिखित मरुस्थलीकरण के कारण हैं-

(i) चरागाहों का अनियंत्रित और अतिशोषण, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई तथा वन स्रोतों का बिना सोचे-समझे दोहन सूखा, मृदा अपरदन आदि को बढ़ाता है तथा मिट्टी की उर्वरता शक्ति को कम कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप पेड़-पौधों का विकास धीमा हो जाता है।
(ii) खनिज, कोयला, चूना पत्थर निकालने के लिए खनन करने से वृक्षों को और वन्यावरण को क्षति पहुँचती है।
(iii) भूमि की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है, ऐसा मृदा अपरदन के कारण होता है।
(iv) जलस्रोतों के अनार्थिक और अत्यधिक उपयोग से भू जलस्तर घटता जाता है, रिसाव बढ़ जाता है और मिट्टी में अत्यधिक खारापन आ जाता है।

प्रश्न 8. ‘मानव जीवन में वनों का महत्व’ पर निबन्ध लिखो ।
उत्तर – हमारे वन हमारे पारितंत्र और सामाजिक-आर्थिक संसाधन हैं। वन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक कवच हैं और विभिन्न उत्पादों और उद्योगों के कच्चे माल का स्रोत हैं। वनों का लगभग एक तिहाई हिस्सा पृथ्वी का है। वनवासी जंगली जीवों को भोजन देते हैं। वन इमारती लकड़ी, ईंधन और कई औषधियों के स्रोत हैं। वन पर्यावरण सौंदर्यीकरण करते हैं। वन मृदा अपरदन को रोकते हैं, नदियों तथा जलाशयों को गाद से सुरक्षित रखते हैं तथा भूजल के स्तर को सुरक्षित रखते हैं। वन जल, नाइट्रोजन, कार्बन और अन्य तत्वों के चक्रों को सुचारु रूप से चलाने में महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न प्रकार के जंतुओं और पौधों को सहारा देने वाले जटिल पारितंत्र में वृक्ष सबसे महत्वपूर्ण हैं। जंगलों के विभिन्न प्रकारों का निर्धारण जलवायु, मिट्टी, भौगोलिक स्थिति और समुद्री सतह से ऊँचाई करता है। जंगलों की प्रकृति और संरचना उनका वर्गीकरण करती है।

आदिमानव जंगलों में रहते थे। मानव की सभी आवश्यकताओं, जैसे भोजन, कपड़े और आश्रय, पहले वनों पर निर्भर थीं। जलाने के लिए लकड़ी (ईंधन) तथा कई काष्ठ उद्योगों के लिए कच्चा माल वनों से मिलता है। भारतीय वन और भी कई छोटे उत्पादों का स्रोत हैं, जैसे तारपीन, रेजिन, औषधीय पौधे, सुगधित तेल और रेजिन। वन भी मनुष्य के सौंदर्य की जरूरत को पूरा करते हैं। संस्कृति और सभ्यता भी विकसित होने के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। वन में बहुत से पौधे, जानवर और सूक्ष्म जीव रहते हैं। वन जलवायु परिवर्तन से बचाते हैं और वन्य जीवों और उनकी प्रजातियों को भोजन और पर्यावास प्रदान करते हैं। वनों के मूलतः तीन कार्य हैं: उत्पादक, रक्षात्मक और नियामक। वन लकड़ी, फलों और रेजिन, सुगंधित तेल, लेटेक्स और औषधीय तत्वों का उत्पादन करते हैं।

रक्षात्मक कार्य के तौर पर वन मृदा और जल को सूखे, हवा, सर्दी, ध्वनि, शोर, विकिरण और तीव्र गंध से बचाते हैं। वनस्पति का मुख्य कार्य पानी, खनिज तत्वों, विकिरण ऊर्जा और गैसों (मुख्य रूप से CO2 और आक्सीजन) को सोखना, भंडारण करना और मुक्त करना है। ये सभी उपायों से वायुमंडल और तापमान की स्थिति में सुधार होता है, साथ ही जमीन का आर्थिक और पर्यावरणीय मूल्य बढ़ता है। वन भी बाढ़ और सूखे को नियंत्रित करते हैं। इसलिए वन जैव-भू-रासायनिक चक्र के लिए नियामक हैं।

भारत तथा अन्य ऊष्णकटिबंधीय देशों के वनों में मुख्य रूप से लकड़ी और अंतः काष्ठ बहुतायत में मिलने वाला प्राकृतिक संसाधन है। लकड़ी पर आधारित काष्ठ उद्योग हैं-प्लाईवुड निर्माण, दियासलाई, मानव निर्मित रेशे, फर्नीचर, खेल का सामान, कागज, लुगदी आदि ।
वनों से हमें विभिन्न प्रकार की औषधियाँ भी मिलती हैं, जैसे – मलेरिया के लिए कुनैन सिनकोना पेड़ से मिलती है, पुराने हृदय रोग के लिए डिजिटेलिस फाक्सग्लव के पेड़ से मिलती हैं। इसी प्रकार मॉर्फिन, कोकेन जैसी दर्द निवारक दवाएं, ल्यूकेमिया (कैंसर) की दवाई विका रोज़िया से तथा अन्य सैकड़ों एंटिबायोटिक दवाइयाँ वनों से ही मिलती हैं। वैज्ञानिकों ने 5000 से अधिक पुष्पित पौधों की प्रजातियों का विश्लेषण करके प्रमाणित किया है। कि उनमें मूल्यवान औषधीय तत्व हैं।

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