NIOS Class 10 Psychology Chapter 23 परिवेशीय तनाव

NIOS Class 10 Psychology Chapter 23 परिवेशीय तनाव

NIOS Class 10 Psychology Chapter 23. परिवेशीय तनाव – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 मनोविज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान अध्याय 23 (परिवेशीय तनाव) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Psychology Chapter 23 Environmental Stress दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Psychology Chapter 23 परिवेशीय तनाव के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Psychology Chapter 23 Solution – परिवेशीय तनाव

प्रश्न 1. मानव – पर्यावरण सम्बन्ध के किसी एक प्रारूप की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर– मानव और प्रकृति के बीच सहजीवी संबंधों का मॉडल सबसे अच्छा है कि मानव पर्यावरण संबंधों को समझाए।
मानव तथा प्रकृति के बीच सहजीवी सम्बन्ध: प्रकृति मनुष्य के लिए जीवन की सुविधाएं प्रदान करती है। उसके लिए एक स्वास्थ्यप्रद वातावरण बनाती है। नाइट्रोजन चक्र इसे आसानी से समझने में मदद करता है।

मानव को जीने के लिए प्राणवायु (ऑक्सीजन) की जरूरत होती है, और पेड़-पौधों और वनस्पतियों को अपना भोजन बनाने के लिए प्रकाश-संश्लेषण में कार्बन-डाइऑक्साइड की जरूरत होती है। हम जानते हैं कि प्रकृति में वायुमण्डल में हवा का चार भाग नाइट्रोजन और एक भाग ऑक्सीजन होता है। नाइट्रोजन न जलती है, न जलने में सहायक होती है, लेकिन ऑक्सीजन स्वयं जलती नहीं है। प्राणवायु से ऑक्सीजन लेकर वनस्पति कार्बन-डाइऑक्साइड छोड़ते हैं।

वनस्पतियों को खाद के रूप में नाइट्रोजन चाहिए ही। यह चक्र, जिसमें वायुमण्डलीय नाइट्रोजन वर्षा जल के रूप में पृथ्वी पर आता है और फिर अपघटित अपद्रव्य के माध्यम से फिर वायुमण्डल में आता है, प्राकृतिक वायुमण्डल में नाइट्रोजन का अनुपात स्थिर रखना संभव है, क्योंकि नाइट्रोजन तत्त्व रूप में पौधों में पर्णहरित होता है और मनुष्यों (जन्तुओं) के रक्त में ही यह संतुलन का एक सामान्य लक्षण है।

प्रकृति की शक्ति के दोहन से स्पष्ट रूप से यह संतुलन बिगड़ता है। वृक्षों को काटने से यह सन्तुलन बहुत खराब होने लगा है। इसी के खराब परिणाम भूकम्प और भूस्खलन हैं। आज जल बचाओ, वृक्षारोपण करो जैसे नारे इस संतुलन को बनाने की सार्थक कोशिश को प्रोत्साहित करते हैं।

सार्वभौमिक तापमान बढ़ने और ओजोन परत के बराबर क्षीण होने के पीछे भी पर्यावरण के सन्तुलन में आए व्यवधान का ही कारण है और मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताओं, जिनके लिए वह प्रकृति का पूरा दोहन करना चाहता है, इसके लिए भी जिम्मेदार है। मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे से संबंधित हैं। इसका अर्थ है कि दोनों में से कोई भी अपने आप में पूरा नहीं है। यद्यपि मनुष्य प्रकृति से बहुत कुछ प्राप्त करता है, लेकिन प्रकृति भी मनुष्य से अपने स्वरूप की रक्षा करने की मांग करती है, इसलिए मनुष्य को प्रकृति के प्रति कर्तव्य भावना होनी चाहिए।

प्रश्न 2. पर्यावरणीय तनाव क्या है? व्याख्या कीजिए ।
उत्तर– वह सांकेतिक, रासायनिक और शारीरिक अवस्था है। जिससे शारीरिक या मानसिक पीड़ा होती है। पर्यावरणीय प्रतिबल या तनाव को मांग और परिणति के बीच की प्रक्रिया या व्यक्ति और पर्यावरण के बीच सहजीवी (पारस्परिक अन्योन्याश्रित) संबंध भी कहा जा सकता है।

हम सभी जानते हैं कि पर्यावरण सभी के लिए महत्वपूर्ण है और इसे सृष्टि के सभी जीव-जंतु बनाते हैं। मानव पर्यावरण का बहुत बड़ा प्रभाव होता है क्योंकि बुद्धि एक मानव विवेकशील गुण है और सृष्टि की सर्वोत्तम रचना है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मनुष्य ने अपनी बौद्धिक क्षमता के बल पर ही पूरी प्रकृति पर विजय पाने की इच्छा से निरंतर विकास किया है। यहां तक कि चाँद पर पहुंच गया है। कम्प्यूटर भी इसी महान वैज्ञानिक खोज का एक बड़ा उदाहरण है। लेकिन प्रकृति पर विजय का यह भाव है। या विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं ने मनुष्य जीवन को घेर लिया है क्योंकि प्राकृतिक क्षेत्र में हस्तक्षेप हुआ है।

इसका एक उदाहरण छिद्र या ओजोन परत का आकार बदलना है। दुर्भाग्य से, मनुष्य की इस मूर्खतापूर्ण प्रवृत्ति को रोकने का कोई उपाय नहीं है। यह सब बाहरी दबाव का परिणाम है। मनोवैज्ञानिकों ने इन्हीं समस्याओं का समाधान तलाशने के लिए मनुष्य तथा प्रकृति के सम्बन्ध को दर्शाने वाले तीन प्रकार के प्रतिदर्श प्रस्तुत किए हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(क) प्रकृति के दास रूप में मनुष्य
(ख) प्रकृति पर विजेता के रूप में मनुष्य
(ग) प्रकृति के सखा के रूप में मनुष्य

(क) प्रकृति के दास-रूप में मनुष्य- मानव इतिहास के प्रारंभिक चरणों में, सृष्टि के प्रारंभिक चरणों में, लोग अपने आसपास के वातावरण को एक अलग तरह से देखते थे। उसने सोचा कि प्रकृति ने मानव को जन्म देकर नियंत्रण किया है। इसलिए मानव प्रकृति को पूजा करते रहे। भारतीय समाज में सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्रों और पशु-पक्षी और वनस्पति की पूजा का मूल भाव यही रहा है। गाय को पीपल के रूप में पूजा जाना, वट वृक्ष को कामना पूरी करने वाले वृक्ष के रूप में पूजा जाना और सांप को नाग देवता मानने के पीछे भी यही परम्परागत तर्क है। प्रकृति का दास बनकर मनुष्य का यह मॉडल स्पष्ट रूप से काम कर रहा है। यह मानव प्रकृति के संबंध का एक उदाहरण है।

(ख) प्रकृति पर विजेता के रूप में मनुष्य – विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास ने मनुष्य को पर्वतों, नदियों और समुद्र की अतल गहराई से पार करने में सक्षम बनाया है। अब मनुष्य चाँद पर पहुँच चुका है. वह एवरेस्ट की चोटी पर झण्डा गाड़ी है। वह अपने लाभ का तेल और अन्य आवश्यक सामग्री को समुद्र के गहरे खजाने से निकाल रहा है। वह भी सौर ऊर्जा को ईंधन के रूप में प्रयोग करने और उसे बचाने के नए-नए तरीके खोज रहा है। मानव ने आनुवंशिकी की सीमा पार करके शरीर के भीतर के कई गुप्त रहस्यों का पता लगाया है।

आज, रक्त से DNA परीक्षण भी अपराध के क्षेत्र में रहस्योद्घाटन में आगे बढ़ गया है। इस प्रक्रिया का विचार और खोज आज के शल्य-चिकित्सा में हृदय, आंख, गुर्दे और अन्य अंगों का पुनर्निर्माण है (1) आनुवंशिकी अभियांत्रिकी ने मानव जीवन, फसल और औषधियों के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। अब कुछ भी बेमौसम नहीं है। सर्दियों में तरबूज की फसल भी एक वैज्ञानिक उपहार है।

जैसे-जैसे मानव जीवन वैज्ञानिक रूप से विकसित होता जा रहा है, वैज्ञानिकों को अभी भी कई चुनौतीपूर्ण प्रश्नों का समाधान नहीं मिल सका है, जैसे भूकम्प, बाढ़, प्रकृति का सामान्य से बढ़ता हुआ ताप और ओजोन परत का कमजोर होना, जो आज भी प्रमुख चिंता का विषय हैं। परमाणु शक्ति का विनाशकारी प्रभाव सीधे प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप करता है। इन सभी प्रश्नों के लिए तीसरे मॉडल का जन्म हुआ, जो प्रकृति और मनुष्य के बीच सन्तुलन की कल्पना को जन्म देता था।

प्रश्न 3. वायु प्रदूषण की व्याख्या कीजिये और उसका स्वास्थ्य पर प्रभाव बताइये।
उत्तर- हम सभी जानते हैं कि हर जीव को सांस लेने के लिए शुद्ध वायु की जरूरत होती है। और वायु में विषैली गैसें या अपद्रव्यों की अधिक मात्रा होने से वायु में ऑक्सीजन का अनुपात भी प्रभावित होता है। शरीर में ऑक्सीजन फेफड़ों में पहुंचकर रक्त को ऑक्सीकरण करता है, फिर कार्बन-डॉईऑक्साइड (अशुद्ध वायु) के रूप में बाहर निकलता है। श्वसन प्रक्रिया का यही भाग सभी जीवों में होता है।
आज विज्ञान प्रौद्योगिकी के युग में सड़कों पर वाहनों के बढ़ते दबाव, उद्योग-धंधों की भट्टियों, चिमनियों से निकलने वाला धुंआ और अन्य अनेक कारणों से वायु में अपद्रव्यों का मिश्रण बढ़ रहा है, जिससे वायु महानगरों और नगरों में प्रदूषित होती जा रही है।

शाम से रात तक, विशेष रूप से नगरों-महानगरों में, लोग अक्सर आंखों, नाक या गले में अजीब तरह की जलन महसूस करते हैं। इनमें सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन परॉक्साइड, सीसा और अन्य पदार्थ हैं, जो ऑक्सीजन के अनुपात को बदलकर वायु को प्रदूषित करते हैं, जो श्वांस रोग, उच्च रक्तचाप, दमा, आंखों तथा स्नायुतंत्र की बीमारियां पैदा कर सकते हैं। रोगी अक्सर मर जाता है।

बिजली का बढ़ता उपयोग, औद्योगीकरण, धूम्रपान, यातायात, कूड़ा-कचरा जलाना और घरों और सार्वजनिक स्थानों में पेड़-पौधों की कटाई वायु प्रदूषण के कुछ कारक हैं।
भोपाल गैस त्रासदी को वायु प्रदूषण का गंभीर उदाहरण के रूप में कौन भुला सकता है? मिक गैसें (मीथाइल आइसो साइनेट) वायुमण्डलीय हवा में रिसकर तेजी से फैल गईं, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोग मर गए। उस विभीषिका के बुरे प्रभावों से आज तक कोई बच गया है।

यह स्पष्ट है कि जीवन के लिए शुद्ध वायु आवश्यक है, और मनुष्य की उपभोगवादी प्रवृत्ति ने कृत्रिम सुविधाओं के फेर में वायुमण्डल की शुद्धता को इतना प्रभावित किया है कि आज यह एक विश्वव्यापी समस्या बन गया है। वायु प्रदूषण ने बहुत कुछ कर दिया है।

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