NIOS Class 10 Psychology Chapter 14 सम्प्रेषण

NIOS Class 10 Psychology Chapter 14 सम्प्रेषण

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NIOS Class 10 Psychology Chapter14 Solution – सम्प्रेषण

प्रश्न 1. उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से संप्रेषण को परिभाषित कीजिए। संप्रेषण के पांच तत्त्वों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर – संप्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच भावों और विचारों का परस्पर संचार है। इस आदान-प्रदान में हाव-भाव, संकेत, शब्द या मुद्रा आदि का प्रयोग होता है। आज भाषा भाव-विचार सम्प्रेषण का मुख्य माध्यम है, लेकिन प्रभावशाली संप्रेषण में हाव-भाव मुद्रा और भाव संकेतों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है, और सफल संप्रेषण में इन सभी उपादानों का समान प्रयोग किया जाना चाहिए।

सम्प्रेषण मूलतः हिन्दी में कम्युनिकेशन शब्द आंग्लिक शब्द का पर्याय है। शब्द “कम्युनिस”, जिसका अर्थ है “समानता”, कम्युनिकेशन का अर्थ है। प्रेषण का अर्थ है भेजना या देना। इसलिए सम्प्रेषण का अर्थ था प्रदान करना। इसलिए सम्प्रेषण की प्रमुख विशेषता समानता है। इसे ध्यान में रखकर सम्प्रेषण की परिभाषा होगी— जब दो या दो से अधिक लोग एक दूसरे को अपने भावों, विचारों, धारणाओं का इस प्रकार आदान-प्रदान करते हैं कि उनमें से प्रत्येक संदेश को समान रूप से ग्रहण करता है, यह प्रक्रिया सम्प्रेषण कहा जाता है। सम्प्रेषण के मुख्य अंग-संप्रेषण के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं-

(i) संप्रेषण परस्पर क्रिया – यह एक दोतरफा प्रक्रिया है: एक प्रेषक है और दूसरा प्राप्तकर्ता है। अक्सर प्रेषक और प्राप्तकर्ता केवल व्यक्ति या समूह हो सकते हैं। यह स्पष्ट है कि संदेश भेजने वाला व्यक्ति प्रेषक है, और ग्राही या प्राप्तकर्ता व्यक्ति है।

(ii) संदेश – प्रत्येक संप्रेषण में संदेश का होना जरूरी होता है । प्रकृति से ये संदेश भिन्न-भिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे प्रश्न करना, भाव प्रदर्शन करना, निर्देश देना, सूचना देना आदि ।

(iii) समान ग्रहण शक्ति सफल – संप्रेषण के लिए प्रेषक और ग्राही दोनों की ग्रहण शक्ति समान होनी चाहिए, जिसका अर्थ है कि दोनों की भाषा, रहन-सहन और संस्कृति समान हैं। व्यक्ति की संस्कृति कहावतों, मुहावरों और लोकोक्तियों से प्रभावित होती है, जो विचारों और भावों की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण होती है। इसलिए, समान भाषा और संस्कृति का संप्रेषण विशेष महत्व रखता है।

(iv) प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रिया – प्राप्तकर्ता कोई संदेश मिलने पर कुछ बदल जाता है। आप इसे अपने उदाहरण से समझा सकते हैं: यदि हमारे घर से पत्र आता है कि माता-पिता को अचानक बुरा लग गया है, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। ऑपरेशन दो दिन बाद होगा। यह खबर मिलते ही हमारी प्रतिक्रिया तीव्र होगी और हमारे चेहरे की रंगत बदल जाएगी। भयभीत होने पर आपको पसीना भी आ सकता है। आंसू भी आ सकते हैं। संप्रेषण के माध्यम से मुद्रा में होने वाले ये बदलाव स्वाभाविक हैं।

(v) संदेश माध्यम – संदेश देने के बहुत से प्रचलित तरीके हैं। जब प्रेषक और ग्राही आमने-सामने, बिल्कुल पास-पास या एक-दूसरे की नजर के दायरे में हैं, तो मुद्रा, हाव-भाव और संकेतों के माध्यम से संदेश भेजा जा सकता है. लेकिन जब दोनों आमने-सामने या नजर के दायरे से परे हैं, तो संदेश सिर्फ शब्दों या ध्वनि से भेजा जा सकता है। संप्रेषण करने का तरीका स्पष्ट है। इसमें प्रेषक, प्राप्तकर्त्ता, संदेश, विधि और प्रतिक्रिया शामिल हैं। असल में, संदेश को प्रेषक देता है और उसे प्राप्तकर्ता लेता है।

वस्तुतः वह जानकारी जिसे कोई व्यक्ति दूसरे तक पहुंचाना चाहता है, संदेश कहलाती है। वह जिस प्रेक्षण विधि का उपयोग करता है, उसे सूचना देता है। याद रखें कि प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया भी संप्रेषण का एक हिस्सा है। आरेख संप्रेषण प्रक्रिया के घटकों को समझाता है-

प्रश्न 2. मौखिक और अमौखिक संप्रेषण किस प्रकार हमारे रोजमर्रा के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, चर्चा करें।
उत्तर- संप्रेषण को प्रकृति व प्रभाव की दृष्टि से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-
(i) शाब्दिक संप्रेषण, (ii) शब्दहीन संप्रेषण |

(i) शाब्दिक संप्रेषण – शाब्दिक सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच पारस्परिक क्रिया का शाब्दिक रूप है। यह संचार लिखित या मौखिक दोनों तरह से होता है। यहाँ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि एक व्यक्ति प्रतिदिन 10-12 घण्टे शाब्दिक संप्रेषण कर सकता है। बोलना, लिखना, पढ़ना-सुनना सभी इसमें शामिल हैं। बातचीत, पत्र-व्यवहार, समाचारपत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें, केसेट, रेडियो, दूरदर्शन, टेलीफोन, टेलीप्रिण्टर, ई-मेल आदि शाब्दिक सम्प्रेषण के प्रमुख प्रकार हैं ।

(ii) शब्दहीन सम्प्रेषण – जब संचार आंख, स्पर्श, नाक, कान आदि ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से नहीं होता, तो संचार शब्दों के बिना होता है. उदाहरण के लिए, सुबह जागने के लिए घड़ी का बजना। जागकर उठकर आदमी खिड़की से बाहर देखता है और सुबह की घटना को देखता है। वह चिड़ियों की चहचहाहट सुनता है। हवा का स्पर्श त्वचा को झुरझुरी देता है, जिससे व्यक्ति थक जाता है और अपने दैनिक कार्यों में लग जाता है। दूसरा उदाहरण चाय है। हम अक्सर चाय का गिलास हाथ में पकड़कर उसका गर्म या ठंडा होना देखते हैं।

उसका स्वाद मीठा या फीका होता है। चाय को मुंह में लाते ही पता चलता है कि इसमें अदरक और तुलसी मिली है, जो सर्दी को दूर करता है। ये सभी संकेत ज्ञानेंद्रियां बिना शब्दों के हमें वस्तुओं के बारे में संदेश देती हैं। हमारी आंखें चेहरे पर भावनाओं को दिखाती हैं, जैसे प्रेम, घृणा, ममता, क्रोध, दुःख, खुशी आदि।

चित्रकार अपनी कला का प्रदर्शन करता है। मानव भी अपने भावों को हाव-भाव से व्यक्त करते हैं। जबकि बिल्ली गोदी में दुबककर प्यार व्यक्त करती है, तो कुत्ता पूंछ हिलाकर चाटकर प्यार व्यक्त करता है। ये शब्दहीन संप्रेषण के कुछ उदाहरण हैं। बिहारी कवि ने दोहे में नायक-नायिका की मौन बातचीत को भी चित्रित किया है: कहत नटत रीझत खिजत, सिलत मिलत लजियात भरे भौन में करत है नैनन ही सों बात।

यहां, नायक नायिका को संकेत में चलने के लिए इशारा देता है, जिससे नायिका नाट जाती है (मना करती है) और इस तरह रीझ जाती है। नायिका खिल उठती है जब नायक दुखी हो जाता है, लेकिन नयन मिलने पर लजा जाती है। नायक-नायिका ने घर-परिवार में नेत्र संकेतों से ही बातचीत करते हैं, जैसा कि बिहारी ने लिखा है। यह शब्दहीन संप्रेषण का सबसे अच्छा और उपयुक्त उदाहरण है।

प्रश्न 3. प्रभावी संप्रेषण की विभिन्न विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- मानव को संप्रेषण की जरूरत है क्योंकि वे सामाजिक प्राणी हैं। बातचीत जीवन का अनिवार्य हिस्सा है, और शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो। फिर चाहे हम पुस्तक पढ़ें, रेडियो सुनें, टेलीविजन देखें या अखबार पढ़ें। किसी को पत्र लिखें या बात करें, आप हर समय संप्रेषणरत रहते हैं। अक्सर हम बोलते हैं, लेकिन सुनने वाले कुछ अलग समझते हैं या पूरी तरह से नहीं समझते। ऐसी स्थिति में संप्रेषण का सही (पूरा) प्रभाव नहीं पड़ पाता, इसलिए सार्थक संप्रेषण वही है जो अपनी सही विधि से प्राप्तकर्ता की सार्थक प्रतिक्रिया का संकेत देता है। इसलिए, संप्रेषण को प्रभावी बनाने के लिए उसमें कुछ गुण होने चाहिए। प्रभावी संचार की विशेषताएं

(i) समाज संदर्भ- इसका अर्थ है कि संदेश प्रेषक और प्राप्तकर्ता की क्रिया का स्तर समान होना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब मां अपने बच्चे के साथ बातचीत करती है, तो वह बच्चे की समझ के अनुसार बातचीत का स्तर निर्धारित करती है। वह सिर्फ बच्चे के स्तर पर बोलती है। बच्चे के रूठने पर, वह कहती है, “अले, मेरा मुन्ना लूठ गया, चल मैं हाउ को भगाती हूँ।” मेरा राजा हाउ को धन देगा। कैसे पता चलेगा? बच्चे ने हाथ से संकेत करके कहा। वह हर मुद्रा और कला को जानती है, इसलिए मां ही ऐसा कर सकती है। बच्चे उसके शब्दों को समझ सकते हैं। उसी शब्दों का इस्तेमाल करती है, जिनसे बच्चा परिचित है। इस प्रकार, बच्चे के साथ मां का संबोधन सरल और प्रभावी होता है। बच्चा मां के पास अधिक होता है क्योंकि पिता अक्सर अलग से बोलता है।

इसी तरह, बच्चे बड़े-बड़े गंभीर शब्दों का प्रयोग करते हुए शिक्षक को देखते रहते हैं अगर वह अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए विषय की व्याख्या करता है। इस प्रकार का संचार असफल रहेगा। यदि शिक्षक बच्चों के स्तर के अनुरूप अपना पाठ समझाते हैं, तो बच्चे आसानी से समझ लेंगे। ऐसे शिक्षक विद्यार्थियों में लोकप्रिय होते हैं। यह उनके प्रभावी भाषण का ही परिणाम होगा।

(ii) प्रभावशाली सम्प्रेषण में समान रुचि भी होती है। विषय जिसमें प्रेषक और प्राप्तकर्ता की रुचियां मेल खाएं तो संप्रेषण का अनुकूल प्रभाव होगा। किंतु संप्रेषण क्रिया सफल नहीं होगी अगर प्राप्तकर्ता विषय में प्रेषक की रुचि नहीं है। यदि किसी बच्चे को भूख लगी है और हम उसे होमवर्क कराने लगें, तो बच्चा काम नहीं करेगा। ऐसे ही यदि सूखे से पीड़ित किसान को फसल के गिरते-चढ़ते भाव के बारे में बताने लगें, तो हमारी बातचीत का किसान पर अच्छा प्रभाव नहीं होगा। विषय में अवसर अनुकूलता और समान रुचि होने पर ही संचार सफल हो सकता है; अन्यथा, संचार अक्सर प्रभावहीन रह जाता है।

(iii) भाषा-भाषा सबसे प्रभावी शब्दावली है। यदि संदेश प्रेषक और प्राप्तकर्ता समान भाषा बोलते हैं, तो उनका पारस्परिक संप्रेषण सरल और प्रभावी होता है क्योंकि दोनों मुहावरों और भाषा की सूक्ष्मताओं को समान रूप से समझ सकते हैं। संप्रेषण की अवधारणा खत्म हो जाती है यदि दोनों में से एक भी समान भाषा बोलता नहीं है।

(iv) वातावरण– समान वातावरण भी संप्रेषण में महत्वपूर्ण है। जब कोई कुछ कहना चाहता है, लेकिन कहने वाले और सुनने वाले के बीच कोलाहल, हैलीकॉप्टर, बस हॉर्न या अन्य भारी आवाजें होती हैं, तो सुनने वाला अक्सर कहने वाले की बात पूरी तरह नहीं सुन पाता। इसलिए, समान पृष्ठभूमि में प्राप्तकर्ता प्रेषक का संदेश आसानी से समझ लेता है। इस समान वातावरण के कुछ पक्ष हैं-

(अ) समान राष्ट्रीयता
(ब) समान शिक्षा संस्कृति
(स) समान समाप्त आर्थिक स्थिति
(द) समान आयु, पेशा और व्यवसाय

हम अक्सर देखते हैं कि समान आयुवर्ग के लड़के-लड़की में संप्रेषण सरल और सफल होता है। इन लोगों को अपने मित्र वर्ग में आसानी से समझाया जा सकता है। वयस्क लोगों के जीवन-अनुभव लगभग समान होते हैं, जो इसका एक बड़ा कारण है। उस समुदाय के लोग अभिवादन संकेतों को आसानी से समझते हैं। भाषा के अलावा, इसमें हाव-भाव, भावना, विचार, दृष्टि, परम्परा, रीति-रिवाज, धार्मिक मान्यता आदि की समानता संप्रेषण को सुकर बनाता है। समान रुचि और अनुभव, साथ ही समान वातावरण, संप्रेषण में सहायक होते हैं।

इस अध्ययन से स्पष्ट है कि भाषा संप्रेषण समान भाषा संप्रेषण में सबसे प्रभावी है। इसलिए, दो अलग-अलग भाषाओं बोलने वाले लोगों को संपर्क करने के लिए दुभाषिए का सहारा लेना पड़ता है। आज रेडियो-टेलीविजन विज्ञापनों ने एक नई संस्कृति पैदा की है। विज्ञापन के उपवाक्य इतने प्रचलित हो गए हैं कि मराठी में कहते हैं-आमची मुम्बई, तो स्पष्ट है कि वे हमारी मुम्बई कह रहे हैं। जैसे, आमार सोनार बांग्ला और हमारा सुनहरा बंगाल बहुत पहले से प्रचलित हैं, जो वातावरण को सुधारते हैं।

प्रश्न 4. उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से भारतीय सन्दर्भ में अमौखिक संप्रेषण के अद्वितीय प्रतिमानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- जैसा कि समाज और व्यक्ति के संदर्भ में अक्सर कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसका अर्थ यह है कि मनुष्य सदा से ही प्रकृति की गोद में रहता आया है और प्रकृति ने पंचभूत तत्त्वों जल, अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी को मनुष्य को दिया है. मनुष्य ने प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त नहीं किया है, बल्कि इस भावना को वशीभूत रूप से पूजा यही नहीं, इन तत्त्वों के बिना मानव-जीवन की कल्पना करना भी असंभव है। यही कारण है कि मनुष्य दिन-रात भर सूर्य-चन्द्रमा की पूजा करता आ रहा है, न केवल वृक्षों, नदियों, पर्वतों से।

वास्तव में, पूजा-अर्चना का मतलब है कि मनुष्य प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए वायु, जल, अग्नि आदि तत्त्वों को पूजा ही नहीं, बल्कि उनकी रक्षा भी करता रहेगा। हमेशा से हम धरती की संतान कहते आए हैं। स्मरण रहे कि स्वाधीनता संग्राम के दौरान, भारत मां के सपूतों ने गुलामी से आजाद कराने के लिए अपने जीवन की बाजी लगा दी। यही नहीं, हर बार जब कोई राष्ट्रीय पर्व मनाया जाता है, भारत माता की जय के नारे सुनाई देते हैं। अतः प्रकृति को धरती की मां के रूप में मानना हमारे संस्कार में समाहित है।

जब किसान खेत में बीज बोने की कोशिश करता है, तो वह पहले माथे पर धरती की धूल लगाकर प्रार्थना करता है। कि उसका काम निश्चित रूप से सफल होगा। जब अच्छी फसल आई, तो उसका घर संपत्ति से भर गया। इसीलिए नदियों को पूजा जाता है। गंगा को मैया भी कहा जाता है और वह पूजा जाती है। पवित्र और शुद्ध जल होने के कारण गंगाजल को हर शुभ कार्य में उच्च स्थान प्राप्त है।
नदियों को पूजने का अर्थ है कि वे अपने जल से ही धरती की फसलों को सिंचित करते हैं, इसलिए जल जीवन का आधार है। हमारे नदियों के प्रति इसमें कोई शब्द नहीं है।

इसी तरह हमारी परम्परा में प्रकृति के प्रति मनुष्य का आभार व्यक्त करने के लिए अनेक दूसरे पूजा-अनुष्ठान हैं, जो शब्दहीन हैं। इस क्षेत्र में नदी, पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ और पशु-पक्षी सब मिलकर रहते हैं। ग्रामीण लोग अपने पशु को अपने परिवार का एक हिस्सा मानते हैं। पशु मनुष्य को चूम-चाटकर, पूंछ हिलाकर अपना आभार व्यक्त करते हैं, और आदमी पशु की पीठ थपथपाकर, हाथ फेरकर अपनी भावनाएं व्यक्त करता है। ऐसा शब्दहीन संचार मनुष्य और पशु-पक्षियों के बीच संबंधों की गहराई का संकेत है।

पुराने ग्रंथों में कई उदाहरण या संदर्भ मनुष्य या पशुओं के लिए हैं। युधिष्ठिर के कुत्ते ने भी स्वर्गयात्रा की। राम: सीताहरण के बारे में कहानी में जटायु द्वारा रावण के इरादों का विरोध करते हुए सीता को बचाने का प्रयास भले ही असफल हो जाता है, लेकिन जटायु का प्राण रहते हुए रावण का सामना करना इसी भावना को दर्शाता है। प्रकृति भी गौतम बुद्ध को ज्ञान देती थी। इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि मनुष्य और वातावरण (प्रकृति) के बीच शब्द-विहीन संबंध जीवन के रहस्यों को समझाने में काफी उपयोगी हैं। यह आत्मा का विकास बताता है।

प्रश्न 5. समाज पर संप्रेषण माध्यमों की भूमिका एवं प्रभाव का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – सम्प्रेषण माध्यम समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। सम्प्रेषण हमारे जीवन के कई हिस्सों में हमारी मदद करता है, जैसे स्वास्थ्य, मनोरंजन, शिक्षा आदि। विज्ञापनदाताओं द्वारा विभिन्न उत्पादों का प्रदर्शन किया जाता है, जो हमें बहुत प्रभावित करता है। विभिन्न उत्पादों, शहरी जीवन-शैली, फैशन और सम्प्रेषण से बच्चे और किशोर अत्यधिक प्रभावित होते हैं।

समाज पर सम्प्रेषण माध्यमों का प्रभाव – समाज सम्प्रेषण माध्यमों से बहुत प्रभावित होता है। हमारे जीवन में संचार माध्यम बहुत महत्वपूर्ण हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय और अन्य जानकारी सम्प्रेषण माध्यमों से मिलती है। सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को संचारित करने का एक माध्यम संप्रेषण है। यद्यपि सम्प्रेषण के कुछ बुरे पक्ष भी हैं, यह लोगों को एकजुट करके सामाजिक एकता बनाने में भी उपयोगी है। मीडिया को गलत जानकारी फैलाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है, जिससे विभिन्न सम्प्रदायों में नफरत फैल सकती है। कभी-कभी सम्प्रेषण माध्यम व्यक्ति की गोपनीय जानकारी को भी प्रकाशित कर देता है और व्यक्ति की निजता का भी सम्मान नहीं करता। माध्यमों से प्रसारित अश्लील सामग्री बच्चों पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है।

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