NIOS Class 10 Psychology Chapter 5 संवेदी प्रक्रियाएं : अवधान और प्रत्यक्षीकरण
NIOS Class 10 Psychology Chapter 5. संवेदी प्रक्रियाएं : अवधान और प्रत्यक्षीकरण – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 मनोविज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान अध्याय 5 (संवेदी प्रक्रियाएं : अवधान और प्रत्यक्षीकरण) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Psychology Chapter 5 Sensory Processes: Attention and Perception दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Psychology Chapter 5 संवेदी प्रक्रियाएं : अवधान और प्रत्यक्षीकरण के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 10 Psychology Chapter5 Solution – संवेदी प्रक्रियाएं : अवधान और प्रत्यक्षीकरण
प्रश्न 1. दैनिक जीवन में प्रत्यक्षीकरण के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर – दैनिक जीवन में प्रत्यक्षीकरण बहुत जरूरी है। व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करता है, और इन समस्याओं का सामना करने में प्रत्यक्षीकरण बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे कुछ प्रत्यक्षीकरण जन्म से होते हैं, जबकि कुछ नहीं होते। पूर्वानुमानों से कुछ प्रत्यक्षीकरण निकलते हैं। संवेदना के बाद प्रत्यक्षीकरण आता है। प्रत्यक्षीकरण के दौरान वस्तु का एक आंतरिक प्रतिनिधित्व बनाया जाता है। यह प्रतिनिधीकरण प्रत्यक्ष करने वाले के बाह्य वातावरण का व्यावहारिक वर्णन देता है।
वास्तव में, प्रत्यक्षीकरण एक वस्तु की संवेदी विशेषताओं को स्पष्ट रूप से संश्लेषित करने की कोशिश करता है, जिससे उसकी पहचान की जा सके। साथ ही, प्रत्यक्षीकरण प्रत्यक्ष को पहचानने, मान्यता देने और अर्थ देने में सहायता करता है। प्रत्यक्षीकरण से वस्तुओं को स्पष्ट रूप से समझना आसान होता है। पहचान और प्रत्यक्षीकरण एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्रक्रियाएं हैं। ये अलग रहकर काम नहीं कर सकते हैं। दूर के उद्दीपन को निकटतम उद्दीपन पर निर्धारित करना प्रत्यक्षीकरण का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।
प्रश्न 2. प्रत्यक्षीकरण की परिभाषा दीजिए और प्रत्यक्षीकरण व्यवस्था के नियम भी बताइए ।
उत्तर- हमारी सांवेदिक अंग हमारे लिए जानकारी एकत्रित करती हैं। इनमें दस सांवेदिक अंग होते हैं। इनमें दो आंतरिक और आठ बाह्य हैं। ये सांवेदिक अंग बाह्य और आंतरिक दुनिया से जानकारी एकत्र करते हैं और फिर इसे संकेत के रूप में मस्तिष्क को संप्रेषित करते हैं। वर्तमान अनुभव और सीखने के आधार पर मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्र सूचनाओं को संसाधित करते हैं, जो वास्तविक दुनिया को बनाते हैं। प्रत्यक्षीकरण इसका नाम है। इस दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखने और समायोजित करने के लिए व्यक्ति को अपने परिवेश के बारे में सही जानकारी प्राप्त करना चाहिए और इसके अर्थ को सही ढंग से समझना चाहिए। व्यक्ति सांवेदिक अंगों से जानकारी लेकर वास्तविक दुनिया बनाता है।
प्रश्न 3. गहराई प्रत्यक्षीकरण और निरंतरता प्रत्यक्षीकरण की संकल्पना बताइए ।
उत्तर – महान मनोवैज्ञानिकों काफ्का, कोहलर और वहाइमर के अध्ययनों ने दिखाया कि प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में प्रत्यक्षीकरण (वस्तुत: वस्तु को समक्ष देखने की प्रवृत्ति) को एकत्रित करने की क्षमता है। बच्चा मां के गर्भ से बाहर आकर आंखें खोलता है। वह अपनी आंखों से अपरिमित जगत को देखकर रोने लगता है। बच्चे का रोना अपरिचित परिस्थिति में उत्पन्न भय से होता है। बाद में, जैसे-जैसे वह नए परिवेश से परिचित होता जाता है, भूख और सुरक्षा की चिंताएं उसे अभ्यस्त करने लगती हैं। कोहलर आदि द्वारा उठाए गए प्रत्यक्षीकरण के सिद्धांतों ने कुछ विशिष्ट परिणामों को प्रभावित किया है। यह इन्हीं नियमों से पता चलता है कि व्यक्ति पृष्ठभूमि में स्थित चित्रों को कैसे देखता है और पूरे वातावरण से कैसे जुड़ता है। इन नियमों का अर्थ निम्नलिखित है:
1. अच्छी आकृति – प्रैगनांज के नियम इस मामले में मुख्य नियम है। प्रैगनांज ने बताया कि लोग सबसे सरल संगठन में रहते हैं। ये अनुभव उद्दीपक स्वरूप के अनुरूप हैं और भीतर से संतुष्टि देते हैं। वास्तव में, आकृति पृष्ठभूमि संगठन के अन्य सभी सिद्धांतों में प्रैगनांज सिद्धान्त की ही व्याख्या मिलती है।
2. समीपता का नियम– जब आप पार्क या स्थान पर एक साथ बैठे दो या तीन लोगों को आपस में बात करते हुए देखते हैं, तो उन्हें आसानी से एक समूह के सहायक मानते हैं, यानी जो उद्दीपक समय या स्थान के संदर्भ में साथ-साथ हों या एक-दूसरे के करीब हों, तो वे एक-दूसरे के करीब होंगे, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है-
यहाँ एक शाखा में तीन फूलों का एक समूह है, और चार पौधों में तीन-तीन फूलों के चार समूह हैं। हम एक साथ फूल देखेंगे क्योंकि वे पास-पास हैं। इस तरह, वस्तु की समीपता उसकी अलग पहचान बनाती है।
3. समानता का नियम – जो वस्तुएं एक जैसी या समान रचना की होती हैं, जैसे- लड़के, उन्हें इनकी समान विशेषताओं के कारण एक समूह में देखा जा सकता है। इसी प्रकार कलम व दवात हैं।
4. पूर्ति का नियम – मानवों में अपूर्ण को पूरा करने की आम प्रवृत्ति है। एक अपूर्ण चित्र की तरह दिखाई देगा और रिक्त स्थान स्वयं भर जाएगा। चित्र (अ) एक त्रिभुज के रूप में प्रत्यक्षीकृत अपूर्ण रेखाओं के बीच एक रिक्त स्थान है। पूर्ति के समान गोचर आत्मगत कंटूर या परिरेखायें बनाता है। चित्र (ब) में एक भौतिक रूप से त्रिभुज प्रत्यक्षीकरण करते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि ऐसा त्रिभुज नहीं है। (अ) पूर्ति का नियम ( ब ) आत्मगत समोच्च रेखा
5. सततता का नियम- जब एक चित्र को बिना टूटी हुई (अखंडित) रेखा के रूप में परिभाषित किया जाता है, तो यह एक अस्तित्व के रूप में दिखाई देता है। चित्र में दो निरंतर झुकी हुई रेखाएं हैं, जो शून्य (0) की ओर दिखाई देती हैं। ये सिर्फ सततता के सिद्धांतों को साबित कर रहे हैं।
प्रश्न 4. अतीन्द्रिय प्रत्यक्षीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- अतीन्द्रिय प्रत्यक्षीकरण एक अद्वितीय क्षमता है। यह प्रत्यक्षीकरण हमें ऐसी वस्तुओं और घटनाओं का पता लगाने में सक्षम बनाता है, जिन्हें ज्ञान संवेदी क्षमताएँ भी पूरी तरह से नहीं बता सकतीं। परामनोविज्ञान अतीन्द्रिय प्रत्यक्षीकरण का अध्ययन करता है। अन्तर्ज्ञान से किसी व्यक्ति को लगता है कि उसका भाई, जो दूसरे शहर में रहता है, स्वस्थ नहीं है, यह अतिन्द्रिय प्रत्यक्षीकरण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह अतीन्द्रिय प्रत्यक्षीकरण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका दूसरा उदाहरण हो सकता है; जैसे किसी नगर में भूकम्प आने का अनुभव करना ज्यादातर मनोवैज्ञानिक अतीन्द्रिय प्रत्यक्षीकरण को नहीं मानते, लेकिन कुछ लोग इसे पूरी तरह से मानते हैं।
प्रश्न 5. प्रत्यक्षीकरण के विभिन्न प्रयोग बताइए |
उत्तर- प्रत्यक्षीकरण के दैनिक जीवन में विभिन्न प्रयोग हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(1) न्याय प्रणाली में सहायता करना – न्याय प्रणाली को प्रत्यक्षीकरण मिलता है। न्याय प्रणाली गवाहों के स्पष्ट वचनों को मानती है। न केवल पुलिस बल्कि वकील भी गवाहों की बातों पर बहुत जोर देते हैं और उन्हें लगता है कि गवाहों की बातें सही हैं। मनोवैज्ञानिक के अनुसार, प्रत्यक्षीकरण में गवाह की त्रुटियाँ आम हैं।
(2) प्रत्यक्ष जागरूकता और सकारात्मक मनोविज्ञान – कुछ लोगों को अन्य लोगों की तुलना में बातों को अधिक यथार्थवादी मानना पसंद है। मानवतावादी मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ लोग दूसरों से अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण से स्वयं को देखने की कोशिश करते हैं। इस सन्दर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि परिचित उद्दीपनों पर ध्यान नहीं देना अभ्यासिक प्रतिक्रिया है। जब बिना किसी परिवर्तन के एक उद्दीपन होता है, तो हमारी प्रतिक्रिया अभ्यासवत होती है। रचनात्मक व्यक्ति अब बार-बार आने वाले अवसरों पर भी ध्यान देता है।
(3) ध्यान देने का मूल्य– आमतौर पर एक व्यक्ति बातों को साधारण तौर पर लेता है। प्रत्यक्ष बातों की अधिक स्पष्टता के लिए अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है । प्रत्यक्ष आदतों को तोड़ना और आदत निर्माण में बाधा डालना लाभप्रद परिणाम देता है।
संवेदी प्रक्रियाएं : अवधान और प्रत्यक्षीकरण के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. प्रारूप से आप क्या समझते हैं? पृष्ठभूमि से प्रारूप (वस्तु) को आप कैसे अलग करेंगे?
उत्तर – दृष्टि क्षेत्र का विस्तार प्रारूप की आम व्याख्या है। यह दृष्टि सीमा से बाहर है। प्रारूप के लिए यह आवश्यक है कि संदीप्ति की स्थिति में यह स्पष्ट रूप से दूसरे अलग-अलग क्षेत्रों से अलग दिखाई दे। प्रारूप की पहचान नहीं हो सकती अगर यह अंतर नहीं होता। यानी प्रत्यक्षीकरण में प्रारूप को अलग-अलग परिस्थितियों से अलग करना आवश्यक है।
पृष्ठभूमि और आकृति – विचार करें कि यदि आकृति और पृष्ठभूमि अलग-अलग न हों, तो चीजों को पहचानना कितना कठिन हो जाएगा और दुनिया हमारे लिए कितनी अस्त-व्यस्त हो जाएगी। किसी भी रचना के स्पष्ट दिखाई देने वाले रूप के लिए आकृतियों में पृष्ठभूमि का स्पष्ट निर्माण आवश्यक है, क्योंकि हमारा वातावरण बहुत से चीजों से भरा हुआ है और उनसे परिपूर्ण है। ये सब कुछ किसी न किसी पृष्ठभूमि में स्थित है। हम बड़े-बड़े विशाल पर्वतों के पीछे आकाश देख सकते हैं। वृक्षों-पौधों की शाखाओं पर फूल खिलते हुए हरे पत्ते दिखाई देते हैं। स्पष्ट है कि जब हम कुछ देखते हैं, तो हम एक विशिष्ट वस्तु को देखते हैं, शेष पृष्ठभूमि है।
मान लीजिए, ड्राइंग रूम में सोफा और पलंग हैं. कमरे की दीवारें और खिड़कियां इनकी पृष्ठभूमि हैं, जहां वे रखे हैं। यानी देखी जाने वाली वस्तु से सब कुछ अलग है, वही पृष्ठभूमि है। यह भी स्पष्ट है कि वस्तु को पृष्ठभूमि से अलग करने की आदत जन्मजात है, इसलिए परिवेश से एक विशेष चीज की पहचान करना या परिवेश से एक चीज की पहचान करना प्रक्रिया का मूल भाव है।
प्रश्न 2. प्रारूप एवं पृष्ठभूमि में प्रमुख अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- प्रारूप एवं पृष्ठभूमि के अन्तर को निम्नलिखित रूप में अलग करके पहचान सकते हैं-
(1) चित्र में प्रारूप अथवा रूप होता है, जबकि पृष्ठभूमि प्रारूपविहीन होती है।
(2) पृष्ठभूमि चित्र के पीछे फैली हुई प्रतीत होती है।
(3) चित्र में वस्तुओं का स्वभाव होता है, जबकि भूमि बिना आकार की सामग्री के तुल्य प्रतीत होता है।
(4) चित्र में पृष्ठभूमि पीछे और चित्र सामने प्रतीत होता है।
(5) चित्र अत्यधिक प्रभावयुक्त, सार्थक एवं अच्छी तरह याद होने वाले होते हैं।
प्रश्न 3. प्रत्यक्षीकरण में होने वाली त्रुटियों के बारे में बताइए |
उत्तर – जब कोई अपनी आंखों से कुछ देखता है, तो वह हमेशा सही नहीं होता, क्योंकि देखने में भी त्रुटियां होती हैं। वास्तव में देखना एक प्रक्रिया है. इसे इस तरह समझा जा सकता है कि किसी वस्तु का बिम्ब या प्रतिमा किसी व्यक्ति की रेटिना या अक्ष पटल पर पड़ता है। जब वह मस्तिष्क को सूचना देता है, तो मस्तिष्क उसकी व्याख्या करता है। यह देखा गया है कि मस्तिष्क अक्सर रेटिना पर पड़े बिम्ब को सही नहीं समझता। अंश संवेदना देते हैं। मनोविश्लेषण में भ्रम को व्याख्या या संकेत कहते हैं।
ज्यामितीय भ्रम – एक अच्छा उदाहरण इसे समझा सकता है: भ्रम के दो उदाहरण हैं: अंधेरे में गलत प्रत्यक्षीकरण करके रस्सी को सांप समझना या सांप को रस्सी समझकर आगे बढ़ना। मनोविश्लेषकों ने कुछ विशिष्ट ज्यामितीय भ्रमों को इस गलत प्रत्यक्षीकरण या भ्रम की स्थितियों को आधार बनाया है। इस अध्ययन के लिए मनावैज्ञानिकों ने रेखाओं के कुछ आकार बनाए, जिससे निम्नलिखित भ्रम पैदा हुआ: पूर्वोक्त उदाहरणों में ज्यामितीय भ्रम है। ये सभी रेखाओं से दिखाए जाते हैं।
चाक्षुष भ्रम- ये ऐसे परिस्थितियां हैं, जिनमें आंखों से प्रेषित संवेदनाएं मस्तिष्क द्वारा ग्रहीत होती हैं, जिससे आम आदमी भ्रम करता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि पशु-पक्षियों में भी भ्रम होता है। भ्रमात्मक प्रभाव सिर्फ चित्र में होता है, यानी कुछ क्षेत्र लोगों को गलत दिखाने के लिए बाध्य करते हैं।
विभ्रम और अवस्तुबोधन – यह भ्रम से अलग तरह का गलत प्रत्यक्षीकरण है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि भ्रम उद्दीपन से जुड़ा हुआ है और एक आम घटना है। मस्तिष्क में हुई चोटों से विभ्रम और अवस्तुबोधन होते हैं। असल में, विभ्रम वह निश्चित विश्वास है जिसका कोई वास्तविक आधार नहीं है। जैसे कोई होटल या रेस्त्रां में चाय पी रहा है। वह अचानक किसी दूसरे को खूनी लगता है।
इसी प्रकार अवस्तुबोधन सजीव सांवेदिक अनुभव पर आधारित होता है, जिसका भौतिक यथार्थ में कोई आधार नहीं होता है; जैसे सिजोफेनिया के रोगी द्वारा अनुभव किया गया अवस्तुबोधन ।