NIOS Class 10 Home Science Chapter 11. वस्त्र परिसज्जा
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NIOS Class 10 Home Science Chapter11 Solution – वस्त्र परिसज्जा
प्रश्न 1. वस्त्र परिसज्जा क्या है ? इसका प्रयोग कपड़ों पर करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर- परिसज्जा वे विधियाँ होती हैं जिनके द्वारा कपड़ों के रूप व्यवस्था/स्पर्श या उनके निष्पादन में सुधार होता है तथा कपड़े अधिक उपयोगी हो जाते हैं। जब कपड़े को बुनकर तैयार किया जाता है, तो वह आभाहीन और खराब दिखाई दिखाई देता है। परिसज्जा उन्हें अधिक आकर्षक बना देती है। परिसज्जा कपड़े के रूप-रंग में सुधार करती है। रंगाई व प्रिंटिंग परिसज्जा के द्वारा कपड़े अधिक आकर्षक व उपयोगी हो जाते हैं।
प्रश्न 2. एक ग्रे कपड़ा एक परिसज्जा कपड़े से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर – ग्रे कपड़े से अर्थ पूरे रंग के कपड़ो से नहीं होता, अपितु ग्रे कपड़े अपरिसज्जित कपड़ों को कहा जाता है। अर्थात वस्त्र की बुनाई के बाद जब कपड़ा तैयार होता है, तो उसे ग्रे कपड़ा कहा जाता है। इस प्रकार के कपड़े में कोई परिसज्जा या चमक, रंग वगैराह नहीं होते। परिसज्जा के दौरान कपड़ों को रंग, प्रिंटिंग, मांड आदि किया जाता है, जिससे वे पहनने लायक या सुंदर दिखते हैं।
प्रश्न 3. दो आधारभूत परिसज्जाओं तथा उनके प्रयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर- (i) मंजाई या सफाई- कपड़े बुनते समय तेल के धब्बे, धूल-मिट्टी और अन्य तरह के दाग लगते हैं। इस मैलेपन को दूर करना अनिवार्य है। सफाई करने के लिए कुछ रसायन भी प्रयोग किए जाते हैं। जब कपड़ा धोया जाता है, तो वह चिकना, साफ और अधिक अवशोषी हो जाता है।
(ii) विरंजन- जब कपड़े बनाए जाते हैं, वे सफेद नहीं होते। उन्हें सफेद करने या हल्के रंग में रंगने के लिए विरंजन किया जाता है। कपड़े का रंग उड़ाने के लिए सही विरंजन सामग्री का प्रयोग किया जाता है। विरंजन सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों पर किया जाता है। मानव निर्मित रेशे प्राकृतिक रूप से सफेद होते हैं, इसलिए उन्हें रंगना नहीं पड़ता।
(iii) संदृढ़न – कपड़े पर कड़ापन लाने के लिए परिसज्जा प्रयुक्त की जाती है । सूती वस्त्रों पर कल्फ लगाया जाता है और रेशमी वस्त्रों पर गोंद का प्रयोग किया जाता है । यदि कपड़ा सही प्रकार से कड़ा किया जाए, तो उसमें चिकनापन और चमक आ जाती है ।
प्रश्न 4. रितु जिस धागे को खरीदकर लाई है, उसमें मर्सरीकृत का लेबल लगा हुआ है । मर्सरीकरण के लाभ बताएँ और रितु को मर्सरीकरण की प्रक्रिया समझाएँ ।
उत्तर- मर्सरीकरण- रंगाई और छपाई से पहले सूती कपड़ा चमकहीन और खुरदरा होता है, जिस पर आसानी से सिलवटें भी पड़ सकती हैं । जब वह रसायनों के प्रयोग से मर्सरीकृत किया जाता है, तो यह मजबूत और चमकदार हो जाता है और अच्छी तरह रंगा जा सकता है । यह एक स्थायी परिसज्जा है । यह परिसज्जा किसी क्षार ( सोडियम हाइड्रॉक्साइड) के साथ नियंत्रित स्थितियों में प्रयुक्त की जाती है ।
प्रश्न 5. ‘रंगाई’ से तात्पर्य रंगों से परिसज्जा है। वर्णन कीजिए ।
उत्तर- रंगाई कपड़ों को सुंदर रंग प्रदान करती है। जब कपड़ा तैयार होता है, तो वह सादे या भूरे रंग का होता है। रंगाई द्वारा कपड़ों को सुंदर रंग दिये जाते हैं, जिससे वह अधिक आकर्षक व सुंदर बन जाते हैं। बाजार में रंग-बिरंगे डिजाईन वाले कपड़ों की माँग होती है। रंगाई के लिए प्रयोग किये जाने वाले रंग पक्के होते हैं, जो धुलाई के बाद भी नहीं निकलते।
प्रश्न 6. प्राकृतिक तथा कृत्रिम रंजकों में अंतर बताएँ ।
उत्तर – प्राकृतिक रंजक – प्राकृतिक रंजकों को प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता है; जैसे वनस्पति, पशु तथा खनिज । ये प्रमुख रंजक हैं – हल्दी, मेंहदी, मंजिष्ठा, नील तथा लाख। ये रंजक जल या भूमि को प्रदूषित नहीं करते हैं, किंतु इन रंजकों की प्रक्रिया धीमी, कठिन तथा महंगी होती है।
कृत्रिम रंजक – रासायनिक कृत्रिम रंजक बनाते हैं। ये रंजक प्रदूषण फैलाते हैं और त्वचा को परेशान करते हैं। इन रंजकों का उपयोग आसान है और प्राकृतिक रंजकों की तुलना में उनके रंग अधिक पक्के होते हैं।
प्रश्न 7. आपने अभी एक कमीज खरीदी है, जिसमें लेबल लगा है ” पीस डाइड” इससे आप क्या समझे? कपड़े को रंगने की और कौन-सी पद्धतियाँ होती हैं ?
उत्तर – ‘पीस डाइड’ का अर्थ है कि वस्त्र की सिलाई के पश्चात उसकी रंगाई की गई है। इस प्रकार की रंगाई में कपड़े पर रंग एक समान नहीं हो पाता, विशेषकर चुन्नटों, सीमन तथा प्लेटों में। इसके अलावा रंगाई की निम्नलिखित पद्धतियाँ हैं-
तंतु स्तर – इस पद्धति का प्रयोग मानव निर्मित तंतुओं के लिए अधिक लोकप्रिय है। इसमें रंगाई एक जैसी होती है किंतु इस प्रक्रिया के दौरान रंग युक्त तंतुओं की व्यापक बर्बादी होती है।
सूत स्तर – इसमें करघे में कताई के पश्चात तंतुओं पर रंग चढ़ाया जाता है। बुनाई की ऊन तथा सभी प्रकार के धागे – सिलाई, एम्ब्राइडरी, क्रोशिए आदि की रंगाई इसी स्तर पर की जाती है ।
कपड़ा स्तर – रंगाई की यह पद्धति सबसे अधिक प्रयोग की जाती है। इसमें कपड़े पर समान रंग चढ़ता है। यह पद्धति मिश्रित कपड़ों की रंगाई के लिए भी उपयुक्त है।
प्रश्न 8. बाटिक और ब्लॉक प्रिंटिंग का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- बाटिक– यह प्रतिरोधी रंगाई प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में कुछ स्थानों को रंगा जाता है, जबकि अन्य स्थानों को रंगा नहीं जा सकता। इस प्रतिरोध को मोम से बनाया जाता है। कपड़े में मधुमोम और पैराफिन, जो डिजाइन के आधार हैं, मोम को ब्लॉक या ब्रश से भर देते हैं। जब रंगाई की जाती है, इन भागों पर रंग नहीं लगाया जाता, इससे डिजाईन का प्रभाव होता है। मोम बाद में हटा दिया जाता है। ब्लॉक प्रिंटिंग: लकड़ी के बड़े-बड़े ब्लॉकों में चित्र बनाया जाता है। इन ब्लॉकों का डिजाइन प्राकृतिक है। रंगीन घोल बनाया जाता है। इन ब्लॉकों को उसमें डुबोकर कपड़े पर छाप दिया जाता है। यदि आप ब्लॉक नहीं रखते तो भिंडी, आलू या तोरी का प्रयोग करके सुंदर डिजाइन बना सकते हैं।
वस्त्र परिसज्जा के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. टाई एंड डाई (बाँधनी) में डिजाइन कैसे तैयार किए जाते हैं ?
उत्तर- टाई एंड डाई (बाँधनी) में डिजाइन बनाने की प्रक्रिया निम्नलिखित है-
1. चिवबरी (मारब्लिंग) – कपड़ा लीजिए और उसे मुट्ठी में सिकोड़कर कहीं-कहीं कट-कट बांध दीजिए – कपड़ा बाँधना व रंगाई करना खोलना। इसके बाद कपड़े की रंगाई कीजिए तथा धागे खोल दीजिए।
2. बन्धनकारी (बाइंडिंग ) – कपड़े को एक स्थान से उठा लीजिए और उसे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर धागे से बाँध दीजिए ।
3. गांठ बाँधना-कपड़े पर वांछित स्थानों पर गांठ बाँधिए और रंगाई कीजिए ।
4. तह करना – कपड़े की तह कर लीजिए और इसे बांध लीजिए ।
5. वस्तु बांधना -कुछ मोती या रोड़ियां लीजिए। उन्हें कपड़े में रख लीजिए और बांध दीजिए ।
6. ट्राइटिक – कच्चे टांके से डिजाइन बनाइए । धागा खींचकर बांधिए और रंगाई कीजिए। आप अपनी कल्पना का प्रयोग करते हुए और अधिक नमूने बना सकते हैं ।
प्रश्न 2. रंगाई और छपाई को परिभाषित कीजिए। यह अलग कैसे हैं?
उत्तर-
रंगाई | छपाई |
(i) सफेद वस्त्रों को विभिन्न रंग प्रदान करने की प्रक्रिया को रंगाई कहते हैं | (i) छपाई से तात्पर्य कपड़े पर विभिन्न डिजाइनों का निर्माण करना है । |
(ii) रंगाई में वस्त्रों को रंग के घोल में डाला जाता है । | (ii) छपाई में रंग एक पेस्ट के रूप में कुछ विशेष स्थानों पर लगाकर डिजाइन बनाया जाता है । |
(iii) यह प्रक्रिया आधारभूत परिसज्जा के पश्चात की जाती है। | (iii) कपड़ों में छपाई विशिष्ट परिसज्जा से पूर्व की जाती है। |
प्रश्न 3. कपड़े को क्यों रंगा जाता है ? रंगाई के सात चरणों की सूची दें।
उत्तर- कपड़ों पर रंगाई के प्रमुख तीन कारण हैं-
(i) कपड़ों को विविध रंग देने के लिए;
(ii) कपड़ा देखने में अच्छा लगे; तथा
(iii) चौखाने या धारियों जैसे डिजाइनों का प्रभाव प्राप्त करने के लिए ।
रंगाई के सात चरण निम्न प्रकार हैं-
चरण 1. किसी धातु के बर्तन में इतना पानी लीजिए, जिसमें रंगा जाने वाला कपड़ा अच्छी तरह से डूब जाए ।
चरण 2. कपड़े के आकार के अनुसार एक छोटे-से प्याले में रंग लीजिए। यदि कपड़ा हल्के रंग में रंगना है, तो रंग थोड़ा लगेगा। सूखे रंग में थोड़ा-सा पानी मिलाकर मिश्रण बना लीजिए ।
चरण 3. इस मिश्रण को पानी वाले बर्तन में डाल लीजिए और बर्तन को गर्म करने के लिए आग पर रखिए ।
चरण 4. पानी उबलने से पहले ही रंगे जाने वाले कपड़े को उसमें डाल दीजिए ।
चरण 5. पानी तथा कपड़े को लगभग आधा घण्टे तक उबलने दीजिए ।
चरण 6. बर्तन में एक या दो बड़े चम्मच नमक डालिए और मिश्रण को पांच मिनट तक और उबलने दीजिए ।
चरण 7. अब रंगे हुए कपड़े को बर्तन में से निकाल कर ठण्डे पानी में खंगाल लीजिए । कपड़ा छाया में सुखा लीजिए ।
प्रश्न 4. परिसज्जा किसे कहते हैं ? परिसज्जा का वर्गीकरण करो ।
उत्तर- कोई भी प्रक्रिया जो वस्त्र के गुण या उसके अन्तिम प्रयोग अथवा उपयोगिता में सुधार लाने के लिए की जाती है, वह ‘परिसज्जा’ कहलाती है ।
वर्गीकरण -परिसज्जा का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा
सकता है-
(i) आधारभूत परिसज्जा
(ii) विशिष्ट परिसज्जा
आधारभूत परिसज्जा वस्त्रों का रूप सुधारने के लिए प्रायः सभी वस्त्रों पर प्रयुक्त की जाती है । विशिष्ट परिसज्जा कपड़े के किसी विशिष्ट गुण और उपयोगिता में सुधार लाने के लिए की जाती है ।
धोने के बाद कपड़े कड़क होने की भी समस्या होती है। ऐसी स्थिति में, हम कपड़े को धोकर हर बार स्टार्च या कलफ लगाकर प्रैस करते हैं। ऐसी परिसज्जा नहीं रहती । इसे कपड़े धोने के बाद हर बार लगाना चाहिए। कपड़े पर कुछ विशेषताएं हमेशा बनी रहती हैं। इन पर धोने, ड्राइक्लीन या प्रैस करने का कोई असर नहीं पड़ता। स्थायी परिसज्जाएँ हैं। इन्हें घर पर नहीं प्रयोग किया जा सकता। इनके लिए विशिष्ट तकनीक की जरूरत है।
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