NIOS Class 10 Arthashastra Chapter 23 पर्यावरण तथा धारणीय विकास
NIOS Class 10 Economics Chapter 23 पर्यावरण तथा धारणीय विकास – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 अर्थशास्त्र विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 23 (पर्यावरण तथा धारणीय विकास) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Economics Chapter 23 Environment and Sustainable Development दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10 Economics Chapter 23 पर्यावरण तथा धारणीय विकास के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 10 Economics Chapter 23 Solution – पर्यावरण तथा धारणीय विकास
प्रश्न 1. नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय संसाधनों में भेद कीजिये । प्रत्येक के कम से कम दो उदाहरण दीजिये ।
उत्तर- नवीकरणीय संसाधन
1. वे संसाधन जिनका नवीकरण तथा पुनः चक्रण सम्भव होता है।
2. ये संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
3. पुनः निर्मित हो सकते हैं।
4. इनका पुनः उत्पादन सम्भव होता है।
5. वायु, सूर्य का प्रकाश, वर्षा, पानी आदि।
क्षयशील संसाधन / गैर-नवीकरणीय संसाधन
1. नवीकरण तथा पुनः चक्रण सम्भव नहीं होता है।
2. ये संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं।
3. एक सीमा तथा समय के पश्चात हैं।
4. पुनः उत्पादन सम्भव नहीं होता।
5. जैसे खनिज पदार्थ और खनिज तेल । समाप्त हो सकते
प्रश्न 2. मानव सभ्यता की उन्नति के साथ पर्यावरण से संबंधित अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। क्या आप सहमत हैं? अपने
उत्तर के लिये कारण दीजिये ।
उत्तर- मानवीय आवश्यकताओं और मानव सभ्यता के विकास ने कई पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। क्योंकि विभिन्न उत्पादों और सेवाओं को बनाने में कई संसाधनों का उपयोग होता है कारखानों और फैक्ट्रियों में उत्पादित सामग्री से निकलने वाला धुआं वायु को प्रदूषित करता है। इसी तरह, फैक्ट्रियों तथा कारखानों से निकलने वाले वज्य पदार्थ और अपशिष्ट जल को प्रदूषित करते हैं। अत: हमारी प्राकृतिक तथा पर्यावरण समस्याएं गंभीर होती जा रही हैं जैसे-जैसे संसाधनों का क्षय होता जा रहा है।
प्रश्न 3. वायु प्रदूषण से क्या अभिप्राय है? वायु प्रदूषण के किन्हीं तीन विभिन्न स्रोतों के नाम दीजिए। इसके हानिकारक प्रभाव क्या हैं?
उत्तर- वायु प्रदूषण, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित स्रोतों से निकलने वाले खतरनाक बाह्य पदार्थों (जैसे रासायनिक पदार्थ, पदार्थों के कण, अपशिष्ट पदार्थ) का वायु या पर्यावरण में घुल जाना है। वायु प्रदूषण के मानवीय और प्राकृतिक स्रोतों में से कई हैं। मानव अपने विकास के लिए वातावरण को प्रदूषित नहीं करते तो भी वायुमंडल स्वचालित रूप से प्रदूषित रहता है। प्रकृति भी इसे नियंत्रित करती है। परन्तु मानव अपने विकास के लिए इस सन्तुलन को बिगाड़ देता है, जिससे वायुमंडल प्रदूषित होता है। संक्षेप में, वायु प्रदूषण के निम्नलिखित स्रोत अथवा कारण हैं-
1. विभिन्न दहन प्रक्रियाएं; वायु प्रदूषण घरेलू कार्यों में, यातायात में, ताप विद्युत ऊर्जा के लिए और अन्य उद्देश्यों के लिए दहन से बढ़ता है।
2. वायु प्रदूषण के लिए भी कई औद्योगिक निर्माण संस्थाएं जिम्मेदार हैं; विभिन्न रासायनिक उद्योग, धातु उद्योग और अन्य उद्योग भी वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं।
3. विलायकों के प्रयोग; जैसे-स्प्रे पेंटिंग, विलायकों की सफाई आदि से प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।
4. विभिन्न कृषि छिड़कावों तथा उर्वरकों के प्रयोग से भी वायु प्रदूषण बढ़ता है।
5. परमाणु ऊर्जा सम्बन्धी क्रियाकलापों से वायु प्रदूषण बढ़ता है। विभिन्न परमाणु परीक्षण भी वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं।
वायु प्रदूषण के प्रभाव – वायु प्रदूषण निम्नलिखित प्रकार से प्रभाव डालता है-
1. वायुमंडल में प्रदूषण का जीव जन्तुओं की संरचना, स्वास्थ्य तथा पैदा होने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे विभिन्न जीव; जैसे-मछली आदि खाने योग्य नहीं रहते।
2. वायुमंडल के प्रदूषण का वनस्पति जगत पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे वनस्पतियों की वृद्धि तथा उनके उगने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
3. मानव के स्वास्थ्य पर प्रदूषित वायु का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा मानव अनेक बीमारियों का शिकार हो जाता है।
4. वायुमंडल में प्रदूषण होने से इसका सन्तुलन बिगड़ जाता है; जैसे मौसम में असन्तुलन, दृश्यता पर प्रभाव, ओजोन परत पर प्रभाव आदि ।
5. वायु प्रदूषण का मानव जीवन में काम आने वाली निर्जीव वस्तुओं पर भी प्रभाव पड़ता है; जैसे- धातु, भवन, चमड़ा, कपड़ा, डाई, रंग, रबड़ आदि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 4. जल प्रदूषण क्या है? जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत बताइए। इसके हानिकारक प्रभाव क्या हैं?
उत्तर – जल स्रोतों (जैसे-झील, नदियां, महासागर तथा भू-जल ) आदि में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हानिकारक यौगिकों का सम्मिक्षण जल प्रदूषण कहलाता है। ऐसी स्थिति में जल संसाधन मानव के प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं रहते । जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत- औद्योगिक रासायनिक पदार्थ तथा स्रोत
1. मल उपचार संयंत्रों तथा मल पदार्थों का पाइपों द्वारा निस्सारण
2. कृषि में कीटनाशकों तथा उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग
3. प्रदूषित वर्षा जल
4. रेडियोधर्मिता
5. जल स्रोतों में शैवालों की वृद्धि ।
जल प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव इस प्रकार हैं-
1. मानव और वनस्पति दोनों को जलीय प्रदूषण नुकसान पहुंचाता है। वनस्पतियां सूख जाती हैं या मर जाती हैं, जबकि लोग विभिन्न बीमारियों से पीड़ित होते हैं।
2. जल प्रदूषण का जीव जन्तुओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. प्रदूषित जल का उपयोग करने से मानव कई बीमारियों का शिकार हो जाता है।
4. प्रदूषित जल में अनेक सूक्ष्म जीव होने से वह पीने er योग्य नहीं रहता।
5. प्रदूषित जल को उपयोगी बनाने में अत्यधिक खर्च आता है।
6. जल में प्रदूषित पदार्थ होने से वह गन्दा हो जाता है। तथा उसमें बदबू पैदा हो जाती है।
7. प्रदूषित जल में झाग अधिक होने से उसके शोधन में बाधा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 5. ध्वनि प्रदूषण क्या है? इसके मुख्य स्रोतों के नाम दीजिए। इसके मुख्य हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिये ।
उत्तर- ध्वनि प्रदूषण एक अत्यधिक तथा अप्रिय पर्यावरणीय ध्वनि है, जो जीवों की गतिविधियों या संतुलन को बाधित करती है। ध्वनि प्रदूषण भी मानव विकास से पैदा होता है। मानव को अनन्त सुविधाएं मिली हैं, लेकिन कल-कारखानों, यातायात के साधनों और मनोरंजन के विभिन्न साधनों ने ध्वनि प्रदूषण पैदा किया है। दूसरे शब्दों में, ध्वनि प्रदूषण शब्द मानसिक क्रियाओं को बाधित करता है। दौड़ने, चलने, खेलने की ध्वनियां भी इसमें शामिल हैं। ध्वनि प्रदूषण मस्तिष्क और मानव शरीर पर प्रभाव डालता है। ध्वनि प्रदूषण का मानव पर असर अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह सुनने और सोचने की क्षमता को बाधित करता है। इसके निम्नलिखित प्रभाव होते हैं-
1. ध्वनि का वाणी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उच्च ध्वनि के कारण मुख्य रूप से वाणी में बाधा उत्पन्न होती है।
2. ध्वनि के अत्यधिक प्रवाह से निद्रा में भी बाधा पड़ती है, जो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
3. इससे श्रवण शक्ति का क्रमशः ह्रास होता रहता है।
4. इससे प्राणघातक दुर्घटनाएं होने की सम्भावनाएं बनी रहती हैं।
5. इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है और मनुष्य अक्षम होने लगता है।
6. मानव स्वास्थ्य पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे तनाव, तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव, हृदयरोग तथा उच्च रक्तचाप जैसी शिकायतें उत्पन्न हो जाती हैं। इसका गर्भवती महिलाओं पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारक तथा स्रोत इस प्रकार हैं-
1. तेज ध्वनि उत्पन्न करने वाले प्राकृतिक कारक और स्रोत-ध्वनि प्रदूषण के प्राकृतिक कारणों में शामिल हैं। इनमें बादल की गर्जना, विद्युत कंपन, तूफानी हवाएं, भयंकर तूफान, भयंकर जल वृष्टि, पहाड़ों से गिरता जल, भूकम्प, ज्वार-भाटा और ज्वालामुखी फटने से होने वाली भयंकर ध्वनि शामिल हैं।
2. कृत्रिम तथा मानव निर्मित कारक: जल, स्थल तथा वायु परिवहन के साधन; मनोरंजन के विभिन्न साधन; नव निर्मित निर्माण कार्यों से उत्पन्न ध्वनि; विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाएं, जैसे लकड़ी काटना, छपाई करना ।
प्रश्न 6. भूमि निम्नीकरण से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख कारण क्या हैं? भूमि पतन के हानिकारक प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर- भूमि निम्नीकरण से अभिप्राय भूमि की उपजाऊ शक्ति तथा गुणवत्ता में अनेक अवांछनीय तथा हानिकारक को परिवर्तनों के फलस्वरूप कमी आना है। भूमि का निम्नीकरण किसी क्षेत्र विशेष के जैविक (पेड़, पौधों, जन्तु) तथा अजैविक (वायु, जल, चट्टान, खनिज लवण ) घटकों प्रभावित करता है। और पारिस्थितिकी असन्तुलन की समस्या का जन्म होता है। भूमि निम्नीकरण के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग |
2. अम्लीय वर्षा तथा जैविक प्रदूषकों तथा केडमियम व लेड जैसे हानिकारक धातुओं में वृद्धि ।
3. अत्यधिक सिंचाई और खेतों से पानी के निकास की अपूर्ण तथा अस्थिर व्यवस्था ।
4. पशुओं द्वारा खेतों में अत्यधिक चराई आदि
भूमि पतन के हानिकारक प्रभाव इस प्रकार हैं-
1. भूमि की उपजाऊ क्षमता में कमी।
2. भू-जल तथा भूगर्भीय जल का जहरीले रसायनों वाले कीटनाशकों तथा खरपतवार के प्रयोगों से प्रदूषित होना ।
3. भूमि का खारापन ।
4. जंगलों का पतन |
5. जल जमाव की समस्या (जललग्नता) अर्थात सिंचाई के अत्यधिक उपयोग से कृषि भूमि में पानी का एकत्रित होना ।
6. खाद्य श्रृंखला में असन्तुलन।
7. जैव विविधता में कमी।
8. मरुभूमि में वृद्धि जो कृषि तथा आवास दोनों के लिए उपयुक्त होती है।
प्रश्न 7. प्राकृतिक आवास के निम्नीकरण से क्या – अभिप्राय है? इसके प्रमुख कारण बताओ। प्राकृतिक आवास के निम्नीकरण के हानिकारक प्रभाव क्या हैं?
उत्तर- प्राकृतिक आवास का निम्नीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें मानवीय गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक जीवन इस प्रकार प्रभावित होता है कि पौधों और जन्तुओं की कई प्रजातियां लुप्त होने लगती हैं और प्राकृतिक खाद्य शृंखला तथा जैव तंत्र में असंतुलन पैदा हो जाता है। प्राकृतिक आवास के निम्नीकरण के कारण हैं-
1. वन कटाई तथा इमारती लकड़ी के उद्योगों के लिए लकड़ी का निष्कर्षण ।
2. वन्य- भूमि का कृषि भूमि में रूपान्तरण ।
3. नगरीकरण ।
4. कृषि में रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग |
प्राकृतिक आवास के निम्नीकरण के प्रभाव-
1. प्राकृतिक आपदाओं, जैसे-अकाल, बाढ़ तथा सूखा आदि में वृद्धि ।
2. जल का अशुद्धीकरण ।
3. भूमि कटाव और भूमि के पोषक पदार्थों का क्षय ।
4. बहुमूल्य जैव तंत्र सेवाओं जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर तथा कार्बन चक्रों की क्षति ।
5. अम्लीय वर्षा, शैवालों की संख्या में वृद्धि।
6. जैव विविधता में कमी और कई पौधों तथा जन्तुओं की प्रजातियों का लुप्त होना ।
7. मनोरंजनात्मक उपयोग; जैसे पर्यटन, मछली पकड़ना आदि क्रियाकलापों का प्रभावित होना ।
प्रश्न 8. संसाधनों के क्षय से क्या अभिप्राय है? उन संसाधनों के उदाहरण दीजिए जिनके भण्डार में पिछले 100-150 वर्षों में तीव्र गति से कमी हो रही है।
उत्तर- मानव की जरूरतों में लगातार वृद्धि और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक उत्पादन से प्राकृतिक संसाधनों का अतिशोषण होता है। कृषि, मछली पालन, खनन आदि क्षेत्रों में संसाधनों का क्षय अधिक प्रचलित है। वर्तमान आर्थिक अर्थव्यवस्था में तेल, खनिज पदार्थों और जीवाश्म ईंधन के भंडारों का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का शोषण बढ़ता जा रहा है। पिछले 100-150 वर्षों में बहुत से प्राकृतिक संसाधनों, जैसे सोना, कोयला, पैट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और यूरेनियम-235 के भंडार बहुत तेजी से घट रहे हैं। नए भंडारों की खोज बहुत खर्चीली तथा असम्भव है, इसलिए हमें इन संसाधनों का प्रयोग कुशलतापूर्वक तथा युक्तिसंगत ढंग से करना चाहिए।
प्रश्न 9. धारणीय विकास से क्या अभिप्राय है? ऐसी विधियां सुझाइए जिनके द्वारा हम धारणीय विकास में योगदान दे सकते हैं।
उत्तर– धारणीय विकास एक नवीन प्रकार का आर्थिक विकास है, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करना है। यही कारण है कि धारणीय विकास एक लंबी अवधारणा है, जिसमें वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भावी पीढ़ी की आर्थिक सुरक्षा को भी प्राथमिकता दी गई है। अतः धारणीय विकास आर्थिक विकास पर बहुत सीमित नहीं है। धारणीय विकास प्राप्त करने हेतु महत्त्वपूर्ण उपाय तथा विधियां-
1. पुनर्चक्रीकरण-पुनर्चक्रीकरण का अर्थ है फिर से संसाधित करना। उदाहरण के लिए, कागज बनाने के लिए बहुत से पेड़ों तथा जंगलों को काटा जाता है। यही कारण है कि कागज का पुनर्चक्रीकरण पेड़ों के अत्यधिक कटाव को कम कर सकता है। जल भी दुर्लभ संसाधन है, इसलिए वर्षा जल का प्रयोग करके हम जल संरक्षण में मदद कर सकते हैं।
2. विकल्पों का प्रयोग – सीमित प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए प्रचुर मात्रा में उपलब्ध एक वैकल्पिक साधन का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, सीमित भंडार वाले पेट्रोल और डीजल की जगह CNG और घरेलू गैस अब मोटर गाड़ियों में उपयोग किया जाता है। तेल के विकल्प सस्ते हैं और पर्यावरण के अनुकूल हैं।
3. नवीकरणीय संसाधनों का विकल्पों के रूप में प्रयोग- कुछ उद्देश्यों में क्षयशील संसाधन की जगह नवीकरण योग्य संसाधन का उपयोग किया जा सकता है, जो प्रकृति में आसानी से उपलब्ध हैं। इससे अनवीकरणीय योग्य संसाधन बच जाते हैं। तेल और कोयले की जगह अब अक्षयशील संसाधन जैसे सौर, वायु और गोबर गैस (जैविक ईंधन) का प्रयोग होता है। भारत में अब सरकार सौर-कुकर, सौर लालटेन और सौर सेल का उपयोग करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रही है। सोलर हीटर और सोलर लालटेन सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं। से पानी निकालने के लिए वायु ऊर्जा का प्रयोग किया जा रहा है।