NIOS Class 10 Social Science Chapter 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया
NIOS Class 10 Social Science Chapter 22 People’s Participation in the Democratic Process – ऐसे छात्र जो NIOS कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान विषय की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है उनके लिए यहां पर एनआईओएस कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 22 (जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया) के लिए सलूशन दिया गया है. यह जो NIOS Class 10 Social Science Chapter 22 People’s Participation in the Democratic Process दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है . ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए. इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आपNIOSClass 10 Social Science Chapter 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रश्न उत्तरों को ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.
NIOS Class 10 Social Science Chapter 22 Solution – जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया
प्रश्न 1. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जन सहभागिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- जन भागीदारी को चुनावों और निर्णय प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाली गतिविधियों में लोगों की स्वैच्छिक भागीदारी कहते हैं। यह राजनीतिक भागीदारी भी है। वास्तविक लोकतंत्र जन-भागीदारी के बिना काम नहीं कर सकता। इन क्रियाओं से जनता यह सुनिश्चित करती है कि सरकार उसके हित में काम करे। सरकार को भी सत्ता में बने रहने के लिए जनता का समर्थन चाहिए। भारत जैसे विकसित देश में इसका महत्व अधिक है। हमारे देश में विकास कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। देखा गया है कि विकास कार्यों में भागीदारी सफल होती है। हमारे देश में आम लोगों की भागीदारी और भी महत्वपूर्ण है। स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए आम जनता की भागीदारी अनिवार्य है। वास्तविक लोकतंत्र में भागीदारी से औपचारिक लोकतंत्र बदल जाता है। वह जनता को शासन पर अधिकार देती है। सक्रिय भागीदारी से लोग सरकार को संस्था मानने लगते हैं।
प्रश्न 2. जनमत की परिभाषा कीजिए तथा लोकतंत्र में इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए ।
उत्तर – जनमत आम तौर पर जनता या जनसामान्य के विचारों और उनकी अभिव्यक्तियों को कहते हैं; हालांकि, शब्द “जनता” का अर्थ व्यक्ति नहीं है। हम किसी व्यक्ति को जनता नहीं कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में, समाज में कई लोग होते हैं। किसी समरूपी जनता का निर्माण समान विचारों और मतों वाले सभी लोगों से भी संभव नहीं है। जनता कोई स्थायी सभा या समिति नहीं है। जनता समान अधिकारों वाले समाज के एक वर्ग है। इस वर्ग के विचार और लक्ष्य आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर समान हैं। लोकतंत्र में जनमत का निम्नलिखित महत्त्व है-
1. यह सुनिश्चित करता है कि सरकार का एक अंग दूसरे अंग के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करे।
2. यह लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के प्रति जवाबदेही को बढ़वा देता है।
3. एक जागरूक और स्वतंत्र जनमत असीमित शक्ति पर प्रतिबंध लगाता है।
4. यह लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रतिमानों को शक्ति प्रदान करती है।
5. यह सरकार को जनहित में कानून निर्माण की शक्ति प्रदान करता है।
प्रश्न 3. जनमत निर्माण में मदद करने वाली किन्हीं चार एजेंसियों का नाम बताएं। आपके अनुसार जनमत पर किस एजेंसी का सबसे प्रमुख प्रभाव है?
उत्तर- जनमत बनाने के लिए कोई निश्चित या स्वचालित विधि नहीं है। समाज के विभिन्न वर्गों ने आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं। ऐसे समय में जनमत के कुछ विचारों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बहुत सी अनौपचारिक और औपचारिक प्रक्रियाओं से जनमत बनाया जाता है। जनमत निर्माण में सहायता देने वाली संस्थाएं हैं-
1. प्रिंट मीडिया/ मुद्रण / प्रिंट माध्यम
2. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
3. राजनीतिक दल
4. विधानपालिकाएं
5. शिक्षण संस्थाएं
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, जैसे सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल फोन और इंटरनेट, ने जनमत को बनाया है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया और जनता की भागीदारी/183 इनके दृश्य और श्रव्य मॉडल देश के दूरस्थ क्षेत्रों में व्यक्त विचारों को भी शामिल करते हैं। वे प्रभावी रूप से विचारों को बहुत प्रतिनिध्यात्मक जनमत में बदलते हैं और इसे सभी संबंधित लोगों तक पहुंचाते हैं।
प्रश्न 4. भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनावों की भूमिका की जांच करें। देश में होने वाले विभिन्न प्रकार के चुनावों की विवेचन करें।
उत्तर- चुनाव लोगों को लोकतांत्रिक सरकार की व्यवस्था में सक्रिय भाग लेने का अवसर देते हैं। जनमत को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम चुनाव है। देश का प्रत्येक नागरिक सरकार बनाने की प्रक्रिया में चुनाव के माध्यम से भाग लेता है। भारत में अक्सर लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, विधानपरिषदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव होते हैं। इसके अलावा स्थानीय निकायों (नगरपालिकाओं, नगर निगमों और पंचायती राज संस्थाओं) के चुनाव भी होते हैं। ये चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित हैं, जिसका अर्थ है कि 18 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु के सभी भारतीयों को किसी भी तरह का भेदभाव किए बिना मतदान करने का अधिकार है। चुनाव एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें सूची, नियम और मशीनरी शामिल हैं। इस प्रक्रिया में चुनाव प्रक्रिया, नामांकन पत्र भरने, उनकी जाँच और चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा किए गए प्रचार की तस्वीर दी जाती है। हमारे देश में आम चुनाव, मध्यावधि चुनाव और उपचुनाव होते हैं।
प्रश्न 5. भारत में निर्वाचन आयोग के प्रमुख काम क्या हैं ? चुनाव प्रक्रिया के प्रमुख चरण क्या हैं?
उत्तर – भारत का निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए निम्नलिखित कार्यों का संपादन करता है-
1. देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना ।
2. चुनाव मशीनरी का निरीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करना तथा मतदाता सूचियां तैयार करना ।
3. चुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न प्रदान करना ।
4. चुनाव के संबंध में राष्ट्रपति को सलाह व सुझाव देना ।
5. राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और चुनाव ड्यूटी पर तैनात चुनाव कर्मियों के लिए दिशानिर्देश और आचार संहित लागू करना।
6. चुनाव कर्मियों की नियुक्ति करना ।
7. राजनीतिक दलों को मान्यता देना तथा उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय / क्षेत्रीय पार्टियों के रूप में पंजीकृत करना ।
चुनाव प्रक्रिया के पांच प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं-
1. राष्ट्रपति और राज्यपाल की घोषणा के बाद निर्वाचन आयोग देश भर में चुनाव करता है।
2. चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन जो परिसीमन आयोग करता है।
3. समय – समय पर निर्वाचन आयोग की देख-रेख में मतदाता सूची की तैयारी और उसका संशोधन ।
4. चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की जाती है, जिसमें नामांकन पत्र भरने की तिथि, उनकी जांच, वापसी, मतों की गिनती तथा चुनाव परिणामों की घोषणा शामिल हैं।
5. उम्मीदवारों तथा राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न का आबंटन निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 6. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का क्या अर्थ है ? इसके महत्त्व की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- यह सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का मतलब है। कि हर वयस्क को बिना किसी भेदभाव के वोट डालने का अधिकार मिलता है। इस प्रणाली में, एक निश्चित उम्र पार करने के बाद प्रत्येक व्यक्ति वोट डालने का अधिकार रखता है। वयस्क मताधिकार ने धीरे-धीरे सामूहिक कानून बन गया है। प्रारंभ में वोट देने का अधिकार सिर्फ उन लोगों को था जो सरकार को कर देते थे या अचल संपत्ति खरीदते थे। कुछ देशों में सिर्फ पुरुषों को वोट देने का अधिकार था। मानवीय अधिकार अब सभी वयस्कों को वोट डालने का अधिकार देता है, बिना किसी संपत्ति या शिक्षा के आधार पर।
बहुत समय तक महिलाओं को वोट डालने का अधिकार नहीं था, यहाँ तक कि विकसित देशों में भी। इस सदी के दूसरे दशक तक किसी भी देश ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार नहीं लागू किया था। 1919 में जर्मनी ने सर्वप्रथम सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त लागू किया। 1918 में ब्रिटेन में कुछ महिलाओं को मताधिकार मिला। 21 वर्ष से अधिक के पुरुषों और 30 वर्ष से अधिक की स्त्रियों को पहले वोट देने का अधिकार था, लेकिन 1928 में यह भेदभाव दूर किया गया।
प्रश्न 7. भारत में जहां हम वर्ग, जाति, लिंग, धर्म पर आधारित अनेक तरह की असमानताएं देखते हैं वहां सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार आपके अनुसार कितना सफल है?
उत्तर- वयस्क मताधिकार (अंग्रेजी में “एडल्ट फ्रांसीसी”) जनता का वोट देने और अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। फ्रेंच शब्द ‘फ्रेंक’, जिसका अर्थ होता है स्वतंत्र, से ‘फ्रेंचाइज’ शब्द निकला। इस तरह मताधिकार का मतलब स्वतंत्रतापूर्वक अपने प्रतिनिधि का चुनाव करना था। यह नागरिकों द्वारा अपने मताधिकार का उपयोग करके अपनी पसंद की सरकार चुनने का तंत्र है। प्रतिनिधियों के चुनाव के क्रम में यह भी कहा गया है कि प्रतिनिधियों की चुनाव प्रक्रिया एक निश्चित अवधि तक ही चल सकती है। इससे जनता की शक्ति का महत्व और नीति निर्धारण में उसकी भागीदारी कायम रखने का प्रयास किया गया है। धर्म, वर्ग, जाति, लिंग आदि वयस्क मताधिकार पर प्रभाव डालते हैं।
प्रश्न 8. भारत में निर्वाचन प्रणाली के समक्ष मौजूद चार प्रमुख समस्याओं की विवेचना करें।
उत्तर- भारत की चुनाव प्रक्रिया पूरे विश्व में प्रशंसित हुई है। भारत में चुनाव प्रणाली की जनता ने सराहना की है। फिर भी इसमें कुछ कमियाँ हैं। निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोगों के प्रयासों के बावजूद हमारी चुनाव प्रक्रिया में कुछ कमियां हैं, जो नीचे बताई जाती हैं –
1. धन-बल- पैसे की चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। राजनीतिक दल कई कंपनियों और व्यापारियों से धन जुटाकर इसका उपयोग मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए करते हैं। व्यापारियों का योगदान अक्सर नकद और हिसाब-किताब नहीं होता। चुनाव के दौरान मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए परिवहन और सहायता प्रदान करना, रिश्वत लेना, बेईमानी करना, डराना, धमकाना और जाली वोट डलवाना आदि के सहारे लिए जाते हैं। गरीब लोग चुनाव के दौरान शराब बाँटते हैं।
2. बाहुबल– राजनीति का अपराधीकरण हो गया है, जिससे चुनावों के दौरान हिंसा बढ़ी है।
3. जाति और धर्म – राजनीतिक दल अक्सर उम्मीदवारों को टिकट देते हैं जब वे सोचते हैं कि क्या वे संख्या की दृष्टि से बड़े जातियों और समुदायों के वोट और सहयोग प्राप्त कर सकते हैं या नहीं। जातीय और सामुदायिक आधारों पर भी मतदाता मतदान करते हैं। प्रचार अभियान में लोगों की सामुदायिक निष्ठा भी प्रयोग की जाती है।
4. सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग– संसाधनों तक पहुंचने के लिए सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर नहीं मिलते। सत्तारूढ़ पक्ष हमेशा विपक्षी पक्ष से बेहतर होता है। सत्तासीन दल अक्सर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करते हैं।
प्रश्न 9. क्या भारत में चुनाव सुधारों की तत्काल आवश्यकता है? चुनाव सुधार लाने के प्रमुख सुझाव क्या हैं?
उत्तर- भारत में चुनावों को सच्चे अर्थों में स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए हमें कुछ तौर तरीके खोजने होंगे। चुनाव सुधार के लिए विद्वानों, राजनीतिक दलों, सरकार प्रायोजित समितियों तथा विभिन्न स्वतंत्र स्रोतों से निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं-
1. चुनाव प्रचार में जाति और धर्म के आधार पर अपील करने पर पूर्ण रूप से रोक लगानी चाहिए।
2. चुनाव के दौरान धन और बाहुबल की भूमिका कम करनी चाहिए।
3. सजा का प्रावधान करते हुए चुनावी कानून को सख्त बनाना चाहिए।
4. चुनावों में राजनीतिक अपराधीकरण पर रोक लगानी चाहिए।
5. राजनीतिक दलों की प्रणाली को नियंत्रित करना चाहिए, ताकि वे पारदर्शी और लोकतांत्रिक हों।
6. बदलते परिप्रेक्ष्य से मेल खाते हुए समय-समय पर चुनाव प्रणाली का लोकतंत्रीकरण करना चाहिए।
7. संसद तथा राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का विशेष प्रावधान।
8. मतदाता सूची का कम्प्यूटरीकरण करना ।
जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. भारत की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनमत की भूमिका को जाँचें ।-
उत्तर– जनमत शासन प्रणाली में लोकतंत्र कायम रखने के लिए अनिवार्य है। जनमत आम लोगों की राय है। सरकारों को इसकी उपेक्षा करना असंभव है। तानाशाही भी मजबूत जनमत के सामने टिक नहीं सकती। लोगों के विचारों का सम्मान ही लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का बल है। सामूहिक समस्याओं के समाधान के लिए स्वतंत्र और स्वस्थ विचारों का आदान-प्रदान आवश्यक है। लोकतांत्रिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जनमत की महत्वपूर्ण महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जनमत से लोगों में जागरूकता बढ़ती है और विभिन्न दृष्टिकोणों से उनसे जुड़े मुद्दों को समझने का अवसर मिलता है। हम भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनमत की भूमिका और महत्व को निम्नलिखित आधारों पर समझा सकते हैं:
(क) सरकार का पथ-प्रदर्शक – सरकारी नीतियों का निर्माण करता है। ज्यादातर सरकार चुनावों के दौरान मिलने वाले जनादेशों पर निर्भर करती है और जनता से किए गए वायदों को पूरा करके उन पर अपना प्रभाव बनाती है।
(ख) कानून निर्माण में सहायक – जनमत हमेशा सरकार पर दबाव डालता है, इसलिए कानून बनाते समय इसे विशेष महत्त्व देते हैं। सरकारी नीतियों पर जनमत निरपवाद रूप से प्रभावित है। जनमत सरकार को भी वर्तमान परिस्थितियों में कानूनों का उपयोग करने में मदद करता है।
(ग) पहरेदार के रूप में कार्य- जनमत पहरेदार है। यह सरकार को नियंत्रित करता है और उसे उत्तरदायी होने से भी बचाता है। सरकार की गलत नीतियों की जनता की आलोचना के कारण वह हर समय सतर्क रहती है। सरकार को डर है कि अगर वह जनता की इच्छाओं के खिलाफ जाता है, तो जनता उसे सत्ता से बाहर कर देगी और मतदान नहीं करेगी।
(घ) अधिकारों व स्वतंत्रता का रक्षक – जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता को भी बचाता है। जिस देश में लोकतंत्र है, उसके नागरिकों को अपनी इच्छा से सरकार के कामों की सराहना या आलोचना करने का अधिकार है। न केवल लोगों को अधिकारों और स्वतंत्रता के प्रति जागरूक करता है, बल्कि सरकार को भी इस अधिकार का प्रभावशाली और सकारात्मक प्रयोग करता है।
(ङ) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में – जनमत आज बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरे शब्दों में, जनमत भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों से प्रभावित होती है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय आज वैश्वीकरण के युग में मानवाधिकारों और उनकी सुरक्षा, पर्यावरण, नस्ल, धर्म, लिंग, भेदभाव और बाल श्रम जैसे मुद्दों पर जवाबदेह है। इसलिए सरकार अब जनमत पर ध्यान देती है और उसकी अवहेलना नहीं कर सकती।
प्रश्न 2. जनमत निर्माण की एजेंसियों का वर्णन करें।
उत्तर- जनमत बनाने के लिए कोई स्पष्ट या स्वचालित प्रक्रिया नहीं है। विभिन्न समाजिक वर्गों ने आम लोगों से संबंधित मुद्दों पर अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं। ऐसी परिस्थितियों में जनमत के कुछ मतों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बहुत सारी औपचारिक और अनौपचारिक प्रक्रियाओं से जनमत बनता है।
1. राजनीतिक समाजीकरण – राजनीतिक समाजीकरण ही मूल प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति राजनैतिक मुद्दों के प्रति अनुकूल बनता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार, पड़ोस, मित्रों और अलग-अलग स्थानों में रहकर पलता और विकसित होता है। राजनीतिक शासन प्रणाली के प्रति व्यवहार, मान्यताओं और मूल्यों का निर्धारण इनके समूहों के सहयोग से ही होता है। पारिवारिक और मित्र समूहों का व्यक्तित्व निर्माण और चारित्रिक विकास पर सबसे ज्यादा प्रभाव होता है। इन समूहों ने किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत विचारों और दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस प्रक्रिया से एक व्यक्ति के राजनीतिक मुद्दों पर उनके विचार और प्रतिक्रियाओं का निर्धारण होता है।
2. प्रेस – समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पैम्फलेट और इश्तहार प्रिंट मीडिया के उदाहरण हैं। हमारे पास विश्व भर में घटने वाले विभिन्न राजनैतिक और सामाजिक घटनाक्रमों की जानकारी केवल प्रेस और प्रिंट मीडिया है। दूसरे शब्दों में, प्रेस जनता की आवाज को सरकार तक पहुंचाती है। सरकार को जनता केवल अपने लेखों और टिप्पणियों से आलोचना करती है और प्रशंसा प्रेस से करती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सरकार और प्रेस जनता के प्रति जिम्मेदार और उत्तरदायी होते हैं। इसके अलावा, सरकार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को प्रेस के माध्यम से ही प्रचार करती है। यह लोगों को अपनी सफलताओं की जानकारी देकर लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती है।
3. रेडियो और टेलीविजन – रेडियो और टेलिविजन जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सामाजिक जीवन को चित्रित करते हैं। प्रिंट मीडिया से समाज का मात्र शिक्षित वर्ग प्रभावित होता है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अशिक्षित वर्ग के बारे में जानकारी एकत्रित कर उनके विचारों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। दृश्य-श्रव्य मीडिया एक शक्तिशाली साधन है, जो नई सामाजिक व्यवस्थाओं का पथ-प्रदर्शन करता है और समाज को हर प्रकार की सामाजिक बुराइयों से मुक्त करता है। यह भी जातिवाद और साम्प्रदायिक हिंसा के बारे में लोगों को सिखाता है। सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों के प्रति लोगों की भावनाओं और विचारों का एकमात्र स्रोत टेलीविजन और रेडियो है।
4. सिनेमा – सिनेमा ने समाज को मनोरंजन और जागरूकता देने का पारंपरिक माध्यम रहा है। सिनेमा ने लोगों की कलात्मक अभिरुचियों और बौद्धिक आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर नवीन विचारों और सिद्धांतों का ध्यान आता है। फीचर फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री का आम तौर पर लोगों की मानसिकता पर प्रभाव पड़ता है।
5. सार्वजनिक सभाएँ – सभाएँ/सार्वजनिक बैठकें बहुत से सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और राजनीतिक कार्यक्रमों को आकार देते हैं। ये जनकल्याण के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए भाषणों, सेमिनारों, विचार गोष्ठियों, कार्यशालाओं और सम्मेलनों के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को एकत्रित करते हैं। यह लोगों के साथ निजी, भावनात्मक संबंध बनाता है और उन्हें स्वस्थ और सकारात्मक निर्णय लेने की प्रेरणा देता है।
6. राजनैतिक दल और उनके कार्य- राजनीतिक दल जनमत का निर्माण और संगठन करते हैं। इन्हें भी मतों को एकजुट करने वाला कहा जाता है। राजनीतिक दल लोगों को न सिर्फ सार्वजनिक मुद्दों से अवगत कराते हैं, बल्कि उनका मुख्य उद्देश्य लोगों को राजनीतिक रूप से सतर्क करना होता है, जिससे वे सार्वजनिक समस्याओं पर विचार कर सकें। जनता को अपने पक्ष में करने के लिए राजनैतिक दल पत्रिकाएँ, पैम्फलेट, इस्तेहार, घोषणा-पत्र आदि बनाते हैं।
7. मतगणना – विभिन्न आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों पर लोगों के व्यवहार और विचारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का सबसे प्रभावशाली उपाय मतगणना है। व्यवसायिक संस्थाएं इनका संचालन करती हैं, जो लोगों के प्रतिनिधियों को चुनती हैं। हाल के वर्षों में मतगणना एक बहुत उपयोगी और लोकप्रिय माध्यम बन गई है जिससे जनमत को समझना और उसका मूल्यांकन किया जा सकता है। लेकिन मतगणना का यह तरीका कई बार स्थिति को सही ढंग से परीक्षण नहीं कर पाया है, जिससे इसके परिणाम और भविष्यवाणियाँ गलत साबित हुई हैं। लेकिन जनता पर इसका काफी प्रभाव पड़ा है।
8. शिक्षण संस्थान – शिक्षण संस्थान स्कूलों, कॉलेजों, साहित्यिक मंडलों, अध्ययन समूहों, विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों को शामिल करते हैं। इनके द्वारा जनमत निर्धारित किया जाता है। दूसरे लोगों के विचारों से किशोर जनसंख्या जल्दी प्रभावित होती है। इसलिए इस आयु के किशोरों को उचित प्रशिक्षण की बहुत आवश्यकता होती है। वाद-विवाद, विचार-विमर्श, सेमिनार आदि के माध्यम से जनमत बनाने में प्रसिद्ध नेतागण, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविद सहायता करते हैं। नाटक, विचार गोष्ठियाँ, पेंटिंग, स्लोगन, राइटिंग प्रतियोगिताएँ आदि पाठ्यक्रम के अलावा भी विद्यार्थियों को देश-विदेश के मुद्दों को समझने में मदद करते हैं।
जनमत का उपयोग भी कुछ सीमा है। ऐसा लगता है कि लोगों को स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों में दिलचस्पी है। तार्किक ज्ञान के कारण जनता तर्क और विवेक पर सोचती है। तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेती है। जनता का मत चुनावों और मतगणना के माध्यम से व्यक्त होता है। जनता सरकार को हमेशा अपने नियमों का पालन करने के लिए बाध्य करती है, और सरकार बहुत सावधानी से कानून बनाती है जो सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित होते हैं, जो जनता द्वारा व्यक्त किए जाते हैं। जनमत वास्तव में प्रशासनिक कार्यप्रणाली में रुचि रखने वालों की अभिव्यक्ति है।
हम लोगों के विचारों में विविधता देख सकते हैं। यह कभी-कभी बहुत अनौपचारिक रूप से लिया जाता है। इसलिए यह व्याख्या का विषय बन जाता है। गलती विचार या सिद्धांत में नहीं होती, बल्कि उसकी व्याख्या में होती है। ऐसे समय में नमूने भी अविश्वसनीय हो सकते हैं। आजकल लोग बहुत अधिक पढ़ते, सुनते और देखते हैं, इसलिए असत्य में वास्तविकता का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए लोगों को समाचारों और विचारों को ठीक से अलग करना मुश्किल है। इन सब बातों के बावजूद, यह स्पष्ट है कि जनमत ही सरकार और जनता के बीच संचार का सबसे प्रभावशाली माध्यम है।
प्रश्न 3. एक स्वस्थ जनमत के निर्माण में आने वाली बाधाओं का विश्लेषण करें।
उत्तर – जनमत के निर्माण में निम्नलिखित बाधाएँ हैं, जिनका उन्मूलन लोगों के मतों और विचारों के सही प्रतिबिंब के लिए आवश्यक है-
1. उदासीन रवैया – लोग सामान्यतया राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहना पसंद करते हैं। वे सार्वजनिक मामलों में दिलचस्पी नहीं रखते। उनका मानना है कि उन्हें राजनीतिक निर्णयों में भाग लेने की जरूरत नहीं है। राजनीतिक निर्णयों के निर्माण में उनकी भागीदारी को बढ़ाना आवश्यक है। लोगों को अपने देश में होने वाली राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। उन्हें देश की एकता, अखंडता और विकास से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।
2. निरक्षरता– राजनीति से गरीब लोग हमेशा दूर रहते हैं। सार्वजनिक मामलों पर उनके पास समय नहीं है। वे आसानी से राजनेताओं की बड़ी बातों में आ जाते हैं और बिना सोचे-समझे अपना वोट देते हैं, और कई बार अपना वोट बेच भी देते हैं। इन कमियों को दूर करने के लिए सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं और दबाव समूहों को बहुत कुछ करना होगा। सार्वजनिक संपत्ति का समान वितरण करना होगा और गरीबों और अमीर लोगों के बीच की खाई को कम करना होगा। गरीबी को दूर करने के बिना स्वस्थ जनमत का निर्माण संभव नहीं है।
3. विभिन्न जातियों और संप्रदायों के बीच असमंजस – लोकतंत्र में लोगों और राजनीतिक दलों को जात-पात और संप्रदायवाद से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। धर्म और राजनीति अलग होना चाहिए। किसी भी देश में स्वस्थ जनमत बनाने के लिए सामाजिक एकता आवश्यक है।
4. स्वतंत्र प्रेस – मुक्त, विषयनिष्ठ, स्वतंत्र प्रेस और सभी प्रकार के नियंत्रण से मुक्त मीडिया को एक स्वस्थ जनमत बनाने की जरूरत है। राजनीतिक, धार्मिक या क्षेत्रीय स्वार्थ प्रेस को प्रभावित नहीं करना चाहिए। प्रेमी स्वतंत्र, निष्पक्ष तथा विश्वसनीय विवरण देना चाहिए।
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