NIOS Class 10 Social Science Chapter 15 संवैधानिक मूल्य तथा भारत की राजनीतिक व्यवस्था

NIOS Class 10 Social Science Chapter 15 संवैधानिक मूल्य तथा भारत की राजनीतिक व्यवस्था

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NIOS Class 10 Social Science Chapter 15 Solution – संवैधानिक मूल्य तथा भारत की राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
(i) प्रस्तावना को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर- हमारा संविधान प्रस्तावना से आरम्भ होता है जो कि सम्पूर्ण संविधान का सार स्वरूप है। संविधान की प्रस्तावना निम्नलिखित है-
” हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित करते हैं। ”
“हम” प्रस्तावना का प्रारंभिक शब्द है। यहां “हम” का मतलब भारतवासी है। भारत का यह संविधान, देश की जनता द्वारा बनाया गया है, राज्यों और सरकारों की प्रकृति को एक आकार देता है। भारतीयों की लंबी इच्छाओं को प्रस्तावना साकार करती है। गणतंत्र, लोकतंत्र, समाजवाद और सम्प्रभुता प्रस्तावना के मूल सिद्धांत हैं। 1976 के 42वें संविधान संशोधन ने “समाजवादी, पंथनिरपेक्ष व राष्ट्र की अखंडता शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया।”

(ii) भारतीय संविधान को किसने बनाया?
उत्तर- भारत के प्रमुख समुदायों के सदस्यों ने संविधान सभा को बनाया था। सभा में अलग-अलग राज्यों से आए सदस्यों को शामिल किया गया था। प्राय: दस लाख लोग इसमें शामिल थे। 9 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई। संविधान सभा ने सर्वसम्मति से इसका अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को नियुक्त किया। 17 दिसंबर 1946 को, पं. जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया, जो संविधान के दर्शन को शामिल करता था। 22 जनवरी, 1947 को इन प्रस्तावों को संविधान सभा ने स्वीकार कर लिया। इसी आधार पर संविधान बनाया गया था। संविधान सभा में श्री बी. एन. राव संवैधानिक सलाहकार थे। उन्हें विश्व के सभी लोकतांत्रिक देशों के संविधानों की जांच की, फिर प्रस्तावित संविधान का प्रारूप बनाया, जो बाद में प्रारूप समिति के समक्ष पेश किया गया। स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा ने सात सदस्यों की एक प्रारूप समिति बनाई। इसका अध्यक्ष डॉ. बी. आर. अम्बेडकर था।

भारत जैसे विशाल और अनेकतापूर्ण देश का संविधान बनाना एक कठिन काम था। यहां हर धर्म, संस्कृति, भाषा और नस्ल के लोग रहते हैं। संविधान निर्माता इससे पूरी तरह से जानते थे। परन्तु संविधान सभा और प्रारूप समिति दोनों की असली क्षमता थी कि उन्होंने भारत को केवल दो वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों में संविधान की पूर्ण रचना की। संविधान के प्रारूप को संविधान सभा के सदस्यों ने पारित कर दिया और 26 नवंबर, 1949 को इसे स्वीकार कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ। गणतन्त्र दिवस हर वर्ष मनाया जाता है। भारत का संविधान मूलतः 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां है। देश का संविधान जीवित है। इसलिए अब तक इसमें सौ से अधिक बदलाव किए गए हैं।

(iii) सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अर्थ क्या है?
उत्तर- सार्वभौम वयस्क मताधिकार, न्याय और समानता के मूल्यों के साथ संविधान की एक और विशेषता है। यहां प्रत्येक नागरिक को एक निश्चित उम्र पूरी होने पर मतदान करने का अधिकार मिलता है। इसमें धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश और जन्म या निवास स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए-

(i) संविधान के महत्त्व की विवेचना कीजिए ।
उत्तर- भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण गुण है कि यह अधिकतर लिखित संविधान है। लिखित संविधान को एक निश्चित अवधि में बनाया जाता है और एक दस्तावेज के रूप में एक निश्चित तिथि पर अपनाया जाता है। भारतीय संविधान को बनाने में दो वर्ष, 11 महीने और 18 दिन लगे। 26 जनवरी, 1949 को यह अंगीकृत हुआ और 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसके विपरीत, लिखित संविधान क्रमिक विकास का फल है। यह सदियों से चले आ रहे कानूनों, रीति-रिवाजों और परम्पराओं पर आधारित है। ब्रिटेन का संविधान अपने विकसित और अलिखित संविधान का सबसे अच्छा उदाहरण है।

लिखित संविधान का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इसमें सभी नियम बताए गए हैं, जिनका कोई भी शासक उल्लंघन नहीं कर सकता। जब संविधान और उसके नियम लिखित नहीं हैं, तो कोई भी शासक अपनी इच्छा का पालन कर सकता है या फिर तानाशाह बन सकता है। लेकिन संविधान लिखित होने पर कोई भी इसका उल्लंघन नहीं कर सकता।

(ii) प्रस्तावना में कौन-कौन से प्रमुख सांविधानिक मूल्य सम्मिलित हैं?
उत्तर – प्रस्तावना संविधान के उद्देश्यों को दो तरह से समझाता है: प्रशासन की रचना. दूसरा स्वतंत्र भारत को मिले आदर्शों। यही कारण है कि प्रस्तावना संविधान को समझने में महत्वपूर्ण है। प्रस्तावना में वर्णित लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
1. भारत एक संप्रभु’, ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं लोकतांत्रिक गणराज्य है।
2. सभी भारतीय नागरिकों के लिए प्रावधान है-
(क) न्याय, सामाजिक और आर्थिक तथा राजनीतिक
(ख) स्वतंत्र विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था व उपासना की व्यवस्था ।
(ग) समानता, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता ।
(घ) सम्मान, भ्रातृत्व एकता तथा अखंडता की व्यवस्था ।

(iii) भारतीय संविधान की कौन-कौन सी विशेषताएं हैं?
उत्तर- भारत के संविधान में कई महत्वपूर्ण गुण हैं। भारतीय संविधान लचीला और कठोर है, विश्व का सबसे बड़ा संविधान। अर्द्धसंघीय व्यवस्था के साथ-साथ हमारे संविधान में एक शक्तिशाली केंद्र सरकार भी है। संविधान सर्वोच्च है और राज्यों और केन्द्र में स्पष्ट अधिकार हैं। भारत में संसदीय प्रजातंत्र लागू होता है। प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद् और संसद दोनों की असली शक्तियां हैं। भारतीय संविधान में न्यायसंगत मौलिक अधिकारों का उल्लेख है। संविधान में दस मौलिक कर्तव्यों का भी उल्लेख है। राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्त स्पष्ट रूप से कल्याणकारी हैं।

(iv) भारतीय संविधान की किन्हीं तीन संघीय विशेषताओं की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- भारत एक संघीय व्यवस्था है। संघीय व्यवस्था में दो स्तरों पर सरकारें हैं। पहले, पूरे देश की एक सरकार होती है, जिसे संघ या केन्द्रीय सरकार कहा जाता है, उदाहरण के लिए दिल्ली की केन्द्रीय सरकार। इसके अलावा, हर राज्य या इकाई की अपनी सरकार होती है, जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार या फिर झारखंड की सरकार। इंग्लैंड में एकात्मक सरकार है, जबकि यूएस संघात्मक है। एकात्मक व्यवस्था में एक देश की एक सरकार होती है, जिसमें सब शक्ति एक जगह केंद्रित होती है। भारतीय संविधान में संघीय राज्य का नाम नहीं है। इसमें केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का विभाजन है।

भारत में संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची हैं। इस शक्ति विभाजन के कारण भारत एक संघीय व्यवस्था है। भारत की संघात्मक व्यवस्था ने केंद्र सरकार को अधिक प्रशासनिक, वैधानिक, वित्तीय तथा न्यायपालिका की शक्ति दी है। भारत एक अर्द्ध-संघात्मक संरचना वाला देश है क्योंकि देश में कई एकात्मक तत्व हैं। अर्द्ध-संघात्मक का अर्थ है कि राज्य और केंद्र की सरकारें अलग-अलग होने के बावजूद केंद्र सरकार को अधिक अधिकार है। न्यायपालिका की सर्वोच्चता भी संघीय व्यवस्था की आवश्यक विशेषता है, जिससे संविधान को निष्पक्ष ढंग से समझा जा सके। भारत में भी संविधान को बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय है।

(v) भारतीय संविधान अनमनीय तथा नमनीय है। कैसे ?
उत्तर- भारतीय संविधान आम तौर पर लिखित नहीं होता। बार-बार बदलाव करना मुश्किल है। संविधान को संशोधित करने के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया है। ब्रिटिश संविधान जैसे लिखित संविधानों में साधारण कानून बनाने की प्रक्रिया द्वारा ही संशोधन किए जाते हैं, लेकिन संयुक्त अमेरिका जैसे लिखित संविधानों में संशोधन करना बहुत कठिन है। लेकिन भारत का संविधान न तो ब्रिटिश संविधान या अमरीकी संविधान से कम नहीं है। यह निरंतर बदलता रहता है।

(vi) भारत को ऐसा राज्य क्यों कहा जाता है, जिसका स्वरूप संघीय है लेकिन आत्मा एकात्मक है?
उत्तर- 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र का संविधान जारी किया गया था। भारतीय संविधान में संघीयता के गुण हैं, लेकिन यह एक संघीय शासन स्थापित करने का दावा नहीं कर सकता। संविधान सभा के सदस्यों ने भी नहीं कहा कि भारतीय संविधान संघीय संविधान है या नहीं। सभा के अधिकांश सदस्यों ने इसके संघीय रूप से विरोध किया। संघवाद की व्याख्या करने के बाद ही इस प्रश्न का उत्तर मिल सकता है। संघीय व्यवस्था वास्तव में सरकार की एक प्रणाली है, जिसमें देश की प्रत्येक इकाई स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के साथ काम करती है। यह अनेकता में एकता का साधन है। संघीयता की सभी महत्वपूर्ण विशेषताएं भारतीय संविधान में मौजूद हैं। जैसे कि भारतीय संविधान लिखित संविधान है।

भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का विभाजन है। इसके साथ न्यायपालिका और स्वतंत्रता भी दी गई है। लेकिन केंद्र को बहुत शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया गया है, भारतीय संविधान में केंद्रीय सूची में सभी महत्वपूर्ण विषयों को शामिल करके। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का विभाजन तो हुआ है, लेकिन राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की तुलना में बहुत कम शक्ति दी गई है। योजना आयोग की शक्तियों, गतिविधियों और व्यवहारों से स्पष्ट है कि राज्य सरकार कहीं भी प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकती। केंद्र भी राज्य की योजनाओं को नियंत्रित करता है।

उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि राज्यों की शक्तियों को कम करने वाली सभी नीतियाँ केंद्र के पक्ष में हैं। सरकार द्वारा निर्धारित नीतियों के अनुसार राज्य केन्द्रों को कार्य करना होता है। इन बातों से पता चलता है कि भारतीय संविधान संघीय है, हालांकि आत्मिक रूप से एकात्मक है।

(vii) भारत की संसदीय शासन प्रणाली की प्रकृति का परीक्षण कीजिए।
उत्तर – भारत में संसदीय व्यवस्था लागू है। भारत में प्रधानमंत्री की असली शक्ति है, जबकि राष्ट्रपति केवल संवैधानिक प्रधान है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मंत्रिमण्डल के निर्णयों को लागू करता है। मंत्रिपरिषद के फैसले से राष्ट्रपति असहमत हो सकता है। परन्तु प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद अपने निर्णय पर अटल रहते हैं, तो राष्ट्रपति को सिर्फ मंत्रिपरिषद का निर्णय स्वीकार करना ही बचता है। संसद के प्रति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् उत्तरदायी हैं। संसद आम लोगों के विचारों, आकांक्षाओं और आशाओं को दर्शाती है। संसद देश की सर्वोच्च संस्था है। संसद की संरचना जनता की संप्रभुता को बताती है। इसलिए संसद के सर्वोच्च अधिकार के खिलाफ कोई भी नहीं जा सकता।

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