Class 12 Hindi Antra Chapter 3 – यह दीप अकेला, मैंने देखा एक बूँद
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 3 यह दीप अकेला, मैंने देखा एक बूँद –आज हम आपको कक्षा 12 हिंदी पाठ 3 यह दीप अकेला, मैंने देखा एक बूँद के प्रश्न-उत्तर (Yah Deep Akela, Maine Dekha Ek Boond Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है . यहाँ एनसीईआरटी कक्षा 12 हिंदी अध्याय 3 (यह दीप अकेला, मैंने देखा एक बूँद) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप Class 12th Hindi Antra 3 यह दीप अकेला, मैंने देखा एक बूँद के प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi अंतरा (भाग-2) पद्य खंड |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | यह दीप अकेला, मैंने देखा एक बूँद |
Class 12 Hindi Antra Chapter 3 Question Answer यह दीप अकेला, मैंने देखा एक बूँद
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘दीप अकेला’ के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेहभरा, गर्वभरा एवं मदमाता क्यों कहा है ? (A.I., C.B.S.E. 2009 Set-I, Delhi 2010 Set – II, Delhi 2011, Set – I 2013 Set-III)
अथवा
कवि ने ‘यह दीप अकेला स्नेहभरा है गर्वभरा मदमाता’ क्यों कहा है ? (C.B.S.E. Delhi, 2008 Set-I)
उत्तर- कवि ने इस कविता में ‘दीप अकेला’ को उस अस्मिता का प्रतीक माना है, जिसमें लघुता में भी ऊपर उठने की गर्वभरी व्याकुलता है । स्नेह, या प्रेम का तेल उसमें है। वह गर्व से उठकर अपना प्रकाश चारों ओर फैलाता है। यह गर्वपूर्ण होने के कारण अकेला होकर भी एक आलोक स्तंभ की तरह दिखाई देगा जो समाज को बचाएगा।
प्रश्न 2. यह दीप अकेला है ‘ पर इसको भी पंक्ति को दे दो’ के आधार पर व्यष्टि क समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव है ? (C.B.S.E., Delhi, 2008, Set-III, A.I. C.B.S.E. 2012)
उत्तर- कवि ने कविता में दीप को प्रतीक बनाकर अपना विचार व्यक्त किया है। यह ‘दीप’ अकेला है, बहुत बड़ा नहीं है और अपनी लघुता में आत्महीन नहीं है। उसे अपने आप पर बहुत गर्व है। वह अपने अलग अस्तित्व को सार्थकता देने के लिए “पंक्ति” को निरपेक्ष भाव से समर्पित है। यह निष्ठा उसके लिए स्थायी और निरंतर है। हर चीज उसकी है। वह प्रगति का गीत गाता है जो भविष्य में कोई नहीं गा पाएगा। वह एक गोताखोर है जो असली मोती निकालकर लाता है। यह प्रज्वलित समिधा की तरह है जो सभी समिधाओं से अलग है। उसका पूरा समर्पण सदा अक्षत रहेगा, और इतना सब होते हुए भी वह बाहर नहीं जा सकेगा। कवि इस अकेले व्यक्तित्व वाले दीप को मधु, गोरस और अंकुर कहकर संबोधित करता है, जो एक आलोक स्तंभ के समान है जो समष्टि के हितों के अनुकूल होगा और अपने मदमाते गर्व से अलग-अलग उद्भासित रहेगा। समर्पण ही व्यष्टि को समष्टि में विलय करने का एकमात्र उपाय है।
प्रश्न 3. ‘गीत’ और ‘मोती’ की सार्थकता किससे जुड़ी है ?
उत्तर –“गीत” का अर्थ कवि के कार्य से जुड़ा हुआ है। कवि अपने हृदय की गहराइयों में उतरकर उत्कृष्ट कविता लिखता है और समाज के सामने अपनी भावनाओं को गाकर व्यक्त करता है। इस तरह, समाज ही व्यक्ति की भावनाओं को गीत के माध्यम से व्यक्त कर रहा है।
“मोती” का मूल्य तभी प्राप्त होता है जब कोई गोताखोर सागर की अंधेरे गहराइयों से उसे निकालकर लाता है और उसे परखनेवाले समाज उसकी प्रशंसा करता है।
प्रश्न 4. ‘यह अद्वितीय – यह मेरा – यह मैं स्वयं विसर्जित’ पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए । (C.B.S.E., Delhi, 2008, Set-II, 2010 Set – II, 2013 Set – III) A. I. C. B.S.E. 2011 Set-I)
उत्तर – ‘यह दीप अकेला’ कविता में कवि व्यक्तित्व की विशिष्टता एवं अद्वितीयता को स्वीकार करते हुए भी सर्जक व्यक्तित्व को समाज को अर्पित करने की बात करता है, यथा-
‘यह अद्वितीय ! यह मेरा ! यह मैं स्वयं विसर्जित’
संगठित मानव व्यक्तित्व सर्जनात्मकता और आस्था का महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। कवि का व्यक्तित्व इस कविता में पंक्ति के प्रति समर्पित है। आस्तिकता आत्म-त्याग और आत्म-समर्पण का भाव है। कवि इस कविता में लोक-संपृक्ति को दिखाता है। यह कविता मुख्यतः व्यक्ति और समाज के बीच होने वाले संबंधों पर विचार करती है। कवि का विशिष्ट व्यक्तित्व यह है कि वह समाज को समर्पित है। एक अकेला व्यक्ति समाज से अलग होकर जीवन का कोई लाभ नहीं उठा सकता। वह कितना भी अच्छा है, समाज के बिना उसके सारे गुण व्यर्थ हैं। समाज ही व्यक्ति को अपनी अलग पहचान बना सकता है।
प्रश्न 5. ‘यह मधु है………तकता निर्भय’ पंक्तियों के आधार पर बताइए कि ‘मधु’, ‘गोरस’ और ‘अंकुर’ की क्या विशेषता है ?
उत्तर- मधुमक्खी मधु का संचय बूँद-बूँदकर करती है और इसमें उसे बहुत समय लग जाता है। मधुमक्खी अपना यह कार्य चुपचाप करती चली जाती है। इसी प्रकार से कवि के गीतों की मधुरता युगों से चुपचाप किए जा रहे उसके प्रयासों का संचित फल है । जिस प्रकार कामधेनु सदा अमृत जैसा पवित्र दूध देती है उसी प्रकार से कवि भी समाज को अपने गीतों रूपी पवित्र दूध से पुष्टि प्रदान करता है। जैसे अंकुर स्वयं ही पृथ्वी को फोड़कर निर्भयतापूर्वक सूर्य को देखता है वैसे ही कवि भी अपनी कल्पनाओं को गीतों में ढालकर ऊँची उड़ानें भरता है ।
प्रश्न 6. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) ‘यह प्रकृत, स्वयंभू… ……’शक्ति को दे दो ।’
(ख) ‘यह सदा – द्रवित, चिर- जागरूक………’चिर- अखंड अपनापा ।’
(ग) ‘जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो ।’
उत्तर- (क) कवि ने अंकुर को प्रकृत, स्वयंभू और ब्रह्म समान कहा है क्योंकि वह स्वयं ही धरती को फोड़कर निकल आता है और निर्भय होकर सूर्य की ओर देखने लगता है। इसी प्रकार से कवि भी स्वयं गीत बनाकर निर्भय होकर उसे गाता है । इसलिए इन्हें सम्मान मिलना चाहिए।
(ख) दीपक सदा आग में रहता है और अपने दुःख को जानता है, फिर भी करुणा से द्रवित होकर स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। यह सदा सावधान, जागरूक और सभी को प्यार करता है। वह स्थिर होकर सबको गले लगाने के लिए बाँहें उठाए रहता है। ऐसा ही होता है कि कवि अपने ही दुःख सहकर सभी को अपनाने को तैयार रहता है।
(ग) यह दीपक सदा जानने के लिए उत्सुक, बुद्धिमान और श्रद्धालु है। अतः इसे समाज या भक्ति के देवता को अर्पित कर दो। कवि भी उत्सुक होता है, जानता है और श्रद्धावान है। इसलिए उसे भी समाज कल्याण के कामों में शामिल करना चाहिए।
प्रश्न 7. ‘यह दीप अकेला’ एक प्रयोगवादी कविता है । इस कविता के आधार पर ‘लघु मानव’ के अस्तित्व और महत्व पर प्रकाश डालिए । (A.I.C.B.S.E. 2013, Set-II)
उत्तर – कवि ने अपनी कविता ‘यह दीप अकेला’ में एक छोटे से जलते हुए दीपक को ‘लघु मानव’ कहा है। जैसे एक छोटा-सा दीपक जलता है और अँधेरे को दूर करता है, लघु मानव भी एक इकाई है। यह महत्वहीन नहीं हो सकता। वह अपने कामों से समाज को बहुत अच्छा कर सकता है। पनडुब्बियों ने समुद्र में गोते लगाकर मोती निकालने की तरह, लोगों के सागर में डुबकियाँ लगाकर बहुत कुछ समाज के लिए कर सकते हैं। जैसे एक-एक बूँद मिलकर सागर बनाती है, ऐसे ही बहुत से छोटे लोग मिलकर एक आदर्श समाज बना सकते हैं, इसलिए प्रत्येक छोटा व्यक्ति समाज में महत्वपूर्ण योगदान देता है और उसका अस्तित्व अनदेखा नहीं हो सकता।
प्रश्न 8. कविता के लाक्षणिक प्रयोगों का चयन कीजिए और उनमें निहित सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – कविता के लाक्षणिक प्रयोग
- यह दीप अकेला : इसमें ‘दीप’ व्यक्ति की ओर संकेत करता है। वह अकेला है।
- जीवन-कामधेनु : कामधेनु के समान जीवन से इच्छित की प्राप्ति।
- पंक्ति में जगह देना : समाज को अभिन्न अंग बनाना।
- नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा : मानव लघु होने पर भी काँपता नहीं।
- एक बूँन : लघु मानव।
- सूरज की आग : आग-ज्ञान का आलोक, रागात्मक वृत्ति की ऊष्मा।
प्रश्न 1. ‘सागर’ और ‘बूंद’ से कवि का क्या आशय है ? (C.B.S.E. Delhi, 2010 Set – I, AI CBSE 2014, Set-I)
उत्तर- कवि ने इस कविता में बूँद को मानव और सागर को जगत का प्रतीक बताया है । कवि इस आधार पर यही सिद्ध करता है कि यदि मानव संसार रूपी सागर से बूँद के समान मूलधारा से अलग हो जाएगा, तो उसका व्यक्तित्व उपेक्षणीय होगा; लेकिन यदि विराट चेतना का आलोक उसके अखंड व्यक्तित्व को बूँद के समान रंग देगा, तो वह नश्वरता से मुक्त होकर अमर हो जाएगा।
प्रश्न 2. ‘रंग गई क्षणभर, ढलते सूरज की आग से ‘ पंक्ति के आधार पर बूँद के क्षणभर रँगने की सार्थकता बताइए ।
उत्तर- बहुत सी पानी की बूँदें समुद्री झाग से बाहर निकलकर उसी पानी में विलीन हो जाती हैं। किसी का भी इस तरह छिटकने और फिर चुपचाप पानी में विलीन होने की ओर नहीं जाता है। परंतु जब एक बूँद सागर झाग से अलग हुई और उसपर संध्याकालीन सूर्य की गोल्डन किरणें पड़ीं, तो वह भी गोल्डन हो गई और बहुत आकर्षक लगने लगी। उस एक बूँद का स्वर्णिम होना ही उसे दूसरों से अलग करता है और उसके जीवन को सार्थकता देता है क्योंकि हर बूँद उसकी स्वर्णिम क्रांति से आकर्षित होती है।
प्रश्न 3. ‘सूने विराट के सम्मुख ………दाग से!’ पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- उत्तर के लिए इस कविता का सप्रसंग व्याख्या भाग देखिए ।
प्रश्न 4. क्षण के महत्त्व को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए ।(C.B.S.E. Delhi, 2013, Set-I)
उत्तर – अज्ञेय ने अपने काव्य में क्षण को बहुत महत्त्व दिया है । वे जीवन की सफलता- असफलता को क्षण – विशेष पर निर्भर मानते हैं। उन्होंने उन क्षणों को गरिमामय माना है जो मानव जीवन को गति प्रदान करते हैं । उनके अनुसार ‘अस्तित्व का एक सजीव क्षण सत्य के साक्षात्कार का ऐसा अप्रतिम क्षण होता है जब वे सब कुछ भूलकर उसी में खो जाते हैं।’ वे अंतकाल तक जीने की अपेक्षा एक क्षण आनंद से जीना श्रेष्ठ मानते हैं। ‘मैंने देखा, एक बूँद’ कविता में भी कवि ने क्षण विशेष के चमत्कार को ही प्रस्तुत किया है । सागर की लहरों से अलग हुई एक बूँद पर संध्याकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणें क्षणभर के लिए पड़ती हैं तो वह भी स्वर्णिम हो जाती हैं, परंतु एक क्षण के लिए। इसी प्रकार से मानव-जीवन में भी कुछ क्षण उसे सुखाभूति में निमग्न कर उसके जीवन को आकर्षक बना देते हैं । कवि का मानना है कि सामान्य रूप से समष्टि धारा से छिटककर अलग होना व्यक्ति को उपेक्षणीय बना देता है। परंतु यदि उसके व्यक्तित्व को विराट चेतना अपने आलोक की एक बूँद से रंग दे तो वह व्यक्ति अमर हो जाता है ।
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