NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 9 – चिड़िया की बच्ची
NCERT Solutions Class 7 Hindi (Vasant) Chapter 9 चिड़िया की बच्ची – कक्षा 7 के विद्यार्थियों के लिए जो अपनी क्लास में अच्छे अंक पाना चाहता है उसके लिए यहां पर एनसीईआरटी कक्षा 7th हिंदी अध्याय 9. (चिड़िया की बच्ची) के लिए समाधान दिया गया है. इस NCERT Solutions For Class 7th Hindi Chapter 9. Chidiya Ki Bacchi की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी अच्छे से कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इससे की छात्रों को तैयारी करने में किसी भी मुश्किल का सामना न करना पड़े।इस पोस्ट से आप NCERT BOOK के अध्याय 9 चिड़िया की बच्ची का पूरा हल प्राप्त कर सकते है।
Textbook | NCERT |
Class | Class 7 |
Subject | Hindi |
Chapter | Chapter 9 |
Chapter Name | चिड़िया की बच्ची |
NCERT Solutions For Class 7 हिंदी (वसंत) Chapter 9 चिड़िया की बच्ची
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
कहानी से
माधवदास अपने नगर का बहुत बड़ा सेठ था । वह जिस पर अपना हाथ रख दे उसका भाग्य चमक जाता था । उसके पास बहुत सारी कोठियाँ थीं, बगीचे थे, दास-दासियाँ थे। वह छोटी-सी चिड़िया के लिए संसार की सभी खुशियाँ खरीद सकता था। उसके पास संसार की वे सभी वस्तुएँ हैं, जिससे उसका वैभव व संपन्नता दिखाई देते हैं। सब कुछ होते हुए भी वह अपने जीवन से खुश नहीं था। उसे अपने अंदर कुछ खाली-खाली – सा लगता है । उसके पास बहुत सारे महल हैं परंतु सभी सूने हैं, उसमें कोई नहीं चहचहाता । अपने महल में खुशियाँ लाने के लिए वह उस छोटी-सी चिड़िया की खुशामद करता है, उसे दुनिया के सभी सुख देने के लिए तैयार है । माधवदास की बातों से पता चलता है कि उसका जीवन संपन्नता से भरा हुआ अवश्य है परंतु वह अपने जीवन से खुश नहीं है।
माधवदास उस चिड़िया से यह बगीचा तुम्हारा है इसलिए कह रहा था क्योंकि चिड़िया के आने से उसके बगीचे में रौनक आ गई थी । चिड़िया की चंचलता, सुंदरता और मनमोहक आवाज़ ने सेठ को प्रसन्न कर दिया था। वह चिड़िया को वहाँ से जाने देना नहीं चाहता था । माधवदास के यह कहने के पीछे कि यह बगीचा तुम्हारा है, स्वार्थ की भावना थी | चिड़िया के बगीचे में आ जाने से उसे अपने सूने जीवन में बहार के आने का अनुभव हुआ था । इसीलिए वह अपने स्वार्थवश चिड़िया को तरह-तरह के लालच दे रहा था।
माधवदास चिड़िया को तरह-तरह के लालच दे रहे थे परंतु चिड़िया को उसकी बातें समझ में नहीं आ रही थीं । वह मनुष्य के स्वार्थ को नहीं समझ पा रही थी। माधवदास के लिए संसार के वैभव बहुत महत्त्व रखते थे। वे सोचते थे कि वे किसी को भी कोई लालच देकर अपने वश में कर सकते हैं। सभी लोगों को सांसारिक चीज़ों की तृष्णा रहती है इसलिए वे लालच में फँसकर कुछ भी करने लग जाते हैं। माधवदास ने चिड़िया के लिए भी ऐसे ही सोचा था कि वह उनके दिए लालच में फँस जाएगी। चिड़िया माधवदास के दिए लालच को समझ नहीं पाती है । वह एक छोटी चिड़िया है। उसे दुनियादारी की समझ नहीं है । उसके लिए उसकी माँ ही सब कुछ है। माँ के बिना वह रहने की सोच भी नहीं सकती है। सेठ के मोती से उसे माँ का लाया चुग्गा अधिक पसंद है। उसके पास धूप, हवा, पानी, फूल सब कुछ है उसको कुछ नहीं चाहिए ।
कहानी के अंत में नन्ही चिड़िया का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलना प्रसन्नता की बात है। आज़ादी सबको प्रिय होती है । कोई भी पराधीन रहकर खुश नहीं रह सकता । पक्षी तो खुले आसमान में विचरते अच्छे लगते हैं । सेठ का लालच भी चिड़िया की आज़ादी को नहीं खरीद सका था । चिड़िया को तो अपनी माँ, घोंसला, सूरज की धूप, नदी का पानी, खुली हवा तथा फूल अच्छे लगते थे। इसीलिए वह आने वाले ख़तरे से सावधान थी । उसकी सावधानी ही उसे स्वतंत्र रहने में सहायक हुई ।
माधवदास सेठ नन्ही चिड़िया को अपने पास रोकने के लिए कई तरह के लालच देता है परंतु उस चिड़िया को सेठ के लालच में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसे अपनी माँ की फ़िक्र हो रही है कि वह उसका घोंसले में इंतज़ार कर रही होगी। पशु, पक्षी हो या मनुष्य सभी को अपनी माँ बहुत प्रिय होती है । माँ के बिना बच्चे का जीवन अधूरा होता है। माँ ही हमें अच्छे-बुरे का ज्ञान करवाती है । वह आने वाले सुख- दुःख से परिचित करवाती है । एक दिन मेरी माँ को कुछ ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ गया। वे मेरे लिए खाना बनाकर रख गई थीं परंतु मेरी लापरवाही से वह खाना बंदर उठाकर ले गया। मुझे बहुत ज़ोर की भूख लगी थी। मुझे खाना बनाना नहीं आता था। कुछ देर तक माँ का इंतज़ार किया; परंतु माँ नहीं आईं। फिर अपने आप खाना बनाने का प्रयास किया । जैसी भी कच्ची-पक्की रोटी बनी, खा ली। खाना बनाते समय कई बार हाथ जला और गर्मी अनुभव हुई। उस दिन मुझे अनुभव हुआ कि माँ हमारे लिए गर्म-गर्म खाना बनाते समय कितनी बार अपना हाथ जलाती होगी। माँ के आते ही मैं अपनी माँ से चिपक गई । उस दिन मैंने मन ही मन अपने आप से वायदा किया कि आगे से माँ के साथ काम करवाया करूंगी और कोई लापरवाही नहीं करूँगी ।
‘चिड़िया की बच्ची’ के अतिरिक्त हम इस कहानी का अन्य शीर्षक ‘नादान चिड़िया’ भी दे सकते हैं । चिड़िया की बच्ची को नादान चिड़िया इसलिए कहा है, क्योंकि उसे दुनियादारी की कोई समझ नहीं है वह दुनिया के छल-कपट से दूर है। माधवदास उसे कई तरह के लालच देता है परंतु उसे अपनी माँ के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए। उसे खुला आसमान पसंद है; प्रकृति की वह सारी चीजें पसंद हैं जो आज़ाद रूप से उसे मिलती हैं । उसे सोना, चाँदी, हीरे-मोती से कुछ लेना- देना नहीं है। उसे न तो इन चीज़ों की समझ है और न ही उसे चाहिए। वह तो अपनी दुनिया में खुश है। उसे सेठ की दुनिया से कोई मतलब नहीं है इसीलिए हम इस कहानी का नाम ‘नादान चिड़िया’ देना चाहेंगे।
कहानी से आगे
उत्तर – हमें प्रकृति के बनाए नियमों में अनुशासनबद्धता दिखाई देती है । सृष्टि के नियम के अनुसार बच्चे का पालन माँ करती है वह चाहे इंसान में हो या फिर जानवरों में, सबमें यह अनुशासन देखने को मिलता है। सूरज का नियम है वह पूर्व से निकलता है और पश्चिम में छिप जाता है। नदियों के बहने में एक अनुशासन है। वे भी अपने शासन को नहीं तोड़ता । यदि वे नियम तोड़ती हैं तो उसका कारण उनके साथ मनुष्यों द्वारा की गई छेड़-छाड़ होती है । अनुशासनबद्धता परिवारों में भी देखने को मिलती है । घर का मुखिया जो नियम बनाता है घर के अन्य लोग अनुशासन में रहकर उनका पालन करते हैं। इसी तरह हमें अपने चारों ओर कई रूपों में अनुशासनबद्धता देखने को मिलती है।
(ख) क्योंकि पराधीन व्यक्ति सुख के सपने देखना ही नहीं चाहता ।
(ग) क्योंकि पराधीन व्यक्ति को सुख के सपने देखने का भी अवसर नहीं मिलता।
उत्तर
– यदि सारी सुविधाएँ देकर हमें एक कमरे में बंदकर दिया जाए, उसे हम स्वीकार नहीं करेंगे। सारी सुविधाओं के आगे हमें हमारी स्वाधीनता अधिक पसंद है। स्वाधीन व्यक्ति अपने अस्तित्व का विकास कर सकता है । पराधीन व्यक्ति को यदि सारे सुख दिए जाएँ, उसे उसके अस्तित्व के विकास में सहायक सभी स्थितियाँ भी उपलब्ध करवाई जाएँ, फिर भी वह सुखी नहीं हो सकता ।
(क) जिस व्यक्ति के मन में दूसरों को पराधीन बनाकर रखने की इच्छा होती है वह स्वयं दुखी होता है और दूसरों को दुखी करता है। यदि उसके दुखी मन को कोई छोटी-सी वस्तु खुशी दे तो वह उसे अपने तक सीमित रखना चाहता है । उसे ऐसा लगता है कि वह उस वस्तु को अपना पराधीन बनाकर सब सुख देकर अपने मनोरंजन के लिए रख सकता है। परंतु उसे यह नहीं पता होता कि पराधीन बनकर वस्तु अपनी स्वाभाविकता खो देती है। I
(ख) जब कोई व्यक्ति किसी का पराधीन बन जाता है उसके सभी सपने समाप्त हो जाते हैं। उसे अपनी आज़ादी में ही सुख अनुभव हो सकता है। परंतु उसे पता है कि उसे पराधीन बनाने वाला व्यक्ति उसे कभी मुक्त नहीं करेगा। इसीलिए वह पराधीनता में जीना सीख जाता इसलिए वह मुक्त होने का सपना देखना भी नहीं चाहता ।
(ग) पराधीन बनाने वाला व्यक्ति, पराधीन व्यक्ति को अपने मनोरंजन केलिए पराधीन बनाकर रखता है । वह उसकी इच्छानुसार उठता, बैठता, जागता, सोता और खाता-पीता है । पराधीन बनाने वाला व्यक्ति उसे इतना भी समय नहीं देता जिससे वह सुख के सपने देख सके या अपनीमुक्ति के विषय में सोच सके।
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