Class 11 Sociology Chapter 4 – संस्कृति तथा समाजीकरण

Class 11 Sociology Chapter 4 – संस्कृति तथा समाजीकरण

NCERT Solutions For Class 11 SociologyChapter 4 संस्कृति तथा समाजीकरण जो उम्मीदवार 11वी कक्षा में पढ़ रहे है उन्हें संस्कृति तथा समाजीकरण के बारे में पता होना बहुत जरूरी है .संस्कृति तथा समाजीकरण कक्षा 11 के समाजशास्त्र के अंतर्गत आता है. इसके बारे में 11th कक्षा के एग्जाम में काफी प्रश्न पूछे जाते है .इसलिए यहां पर हमने एनसीईआरटी कक्षा 11th समाजशास्त्र अध्याय 4 (संस्कृति तथा समाजीकरण ) का सलूशन दिया गया है .इस NCERT Solutions For Class 11 Sociology Chapter 4. Culture and Socialisation की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. इसलिए आप Ch.4 संस्कृति तथा समाजीकरण के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे.

TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectSociology
ChapterChapter 4
Chapter Nameसंस्कृति तथा समाजीकरण

पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

प्रश्न 1. सामाजिक विज्ञान में संस्कृति की समझ, दैनिक प्रयोग के शब्द ‘संस्कृति’ से कैसे भिन्न है ?

उत्तर- दैनिक प्रयोग के शब्द ‘संस्कृति’ के अर्थ समाजशास्त्र के शब्द संस्कृति से भिन्न है । दैनिक प्रयोग में संस्कृति कला तक ही सीमित है अथवा कुछ वर्गों व देशों की जीवन शैली के बारे में संकेत करती है । परन्तु समाज शास्त्र में इसके अर्थ भिन्न हैं । समाजशास्त्र में इसके अर्थ हैं – व्यक्ति ने प्राचीनकाल से लेकर आज तक जो कुछ भी प्राप्त किया है अथवा ज्ञात किया है वह उसकी संस्कृति है । संस्कार, विचार, आदर्श, प्रतिमान, रूढ़ियां, कुर्सी, मेज़, कार, पेन, किताबें, लिखित ज्ञान इत्यादि जो कुछ भी व्यक्ति ने जो कुछ भी समाज में रहकर प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है । इस प्रकार संस्कृति शब्द के अर्थ समाजशास्त्र की दृष्टि में तथा दैनिक प्रयोग में अलग-अलग हैं।

प्रश्न 2. हम कैसे दर्शा सकते हैं कि संस्कृति के विभिन्न आयाम मिलकर समग्र बनाते हैं ?

उत्तर- संस्कृति के तीन आयाम होते हैं – संज्ञानात्मक, मानकीय तथा भौतिक । अगर किसी मशीन का कोई हिस्सा या पुर्ज़ा काम न करे तो वह मशीन नहीं चलती है। इसी प्रकार अगर संस्कृति का एक भी आयाम नहीं होगा तो संस्कृति पूर्ण नहीं हो पाएगी। उदाहरण के तौर पर हम कपड़े डालते हैं जोकि भौतिक संस्कृति का एक भाग है परन्तु इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि यह समाज तथा हमारे आचरण के अनुरूप हों जोकि अभौतिक संस्कृति का एक भाग है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृति के विभिन्न आयाम मिलकर समग्र बनाते हैं ।

प्रश्न 3. उन दो संस्कृतियों की तुलना करें जिनसे आप परिचित हों । क्या नृजातीय बनना कठिन नहीं है ?

उत्तर- हम भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति के वाकिफ हैं। भारतीय संस्कृति धर्म से प्रेरित है तथा पाश्चात्य संस्कृति विज्ञान तथा तर्क से प्रेरित है। भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति एक दूसरे से विपरीत हैं जहां के संस्कार, रूढ़ियां, व्यवहार के ढंग, रहने-सहने, खाने-पीने, कपड़े पहनने के ढंग एक-दूसरे से बिल्कुल ही अलग हैं। हम कह सकते हैं कि नृजातीय बनना कठिन है क्योंकि हम दूसरी संस्कृति के भौतिक हिस्से को तो तेज़ी से अपना लेते हैं परन्तु अभौतिक संस्कृति को अपनाना बहुत मुश्किल होता है जिस कारण हम दूसरी संस्कृति को पूर्णतया अपना नहीं सकते हैं तथा नृजातीय नहीं बन सकते हैं।

प्रश्न 4. सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए दो विभिन्न उपागमों की चर्चा करें।

उत्तर- सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए प्राकृतिक परिवर्तन का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि प्राकृतिक परिवर्तन किसी भी स्थान की संस्कृति को पूर्णतया परिवर्तित कर सकते हैं। बाढ़, सूखा, भूकम्प, गर्मी, सर्दी इत्यादि किसी भी स्थान की संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इसके साथ ही क्रान्तिकारी परिवर्तनों का अध्ययन भी बहुत आवश्यक है। जब किसी संस्कृति में तेज़ी से परिवर्तन आता है तो उस संस्कृति के मूल्यों तथा अर्थव्यवस्था में तेज़ी से परिवर्तन आते हैं । क्रान्तिकारी परिवर्तन राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण ही आते हैं जिससे उस समाज की संस्कृति में परिवर्तन आ जाता है। इस प्रकार सांस्कृतिक परिवर्तनों के अध्ययन के लिए प्राकृतिक परिवर्तनों तथा क्रान्तिकारी परिवर्तनों का अध्ययन आवश्यक है ।

प्रश्न 5. क्या विश्वव्यापीकरण को आप आधुनिकता से जोड़ते हैं ? नृजातीयता का प्रेक्षण करें तथा उदाहरण दें।

उत्तर- जी हां, हम विश्वव्यापीकरण को आधुनिकता से जोड़ते हैं क्योंकि विश्वव्यापीकरण आधुनिकीकरण के कारण ही सामने आया है। चाहे प्राचीन समय में भी अलग-अलग देशों में सम्बन्ध पाए जाते थे परन्तु वह उतने व्यापक नहीं थे जितने कि आज हैं ।

नृजातीयता – जब अलग-अलग संस्कृतियां एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो ही नृजातीयता उत्पन्न होती है । नृजातीयता का अर्थ अपने सांस्कृतिक मूल्यों का अन्य संस्कृतियों के लोगों के व्यवहार तथा आस्थाओं का मूल्यांकन करने के लिए प्रयोग करने से है । इसका आशय यह है कि इस संकल्प में जिन सांस्कृतिक मूल्यों को मानदण्ड के रूप में दिखाया जाता है उन्हें और संस्कृतियों के मूल्यों तथा आस्थाओं से श्रेष्ठ समझा जाता है।

नृजातीय तुलनाओं में शामिल सांस्कृतिक श्रेष्ठता की भावना उपनिवेशवाद की स्थितियों में स्पष्ट देखी जा सकती है। थॉमस बाबींगटोन मैकाले के भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भेजे गए शिक्षा के प्रसिद्ध विवरण में नृजातीयता के बारे में बताया गया था कि “हमें इस समय एक ऐसे वर्ग को निर्मित करने की कोशिश करनी चाहिए जो हमारे द्वारा शासित लाखों लोगों के बीच द्विभाषियों का कार्य करे, लोगों का ऐसा वर्ग जो रक्त तथा रंग में तो भारतीय हो परन्तु रुचि, विचारों, नैतिकता तथा प्रतिभा में अंग्रेज़ हो ।”

नृजातीयता विश्वबन्धुता के विपरीत है जोकि अन्य संस्कृतियों को उनके अन्तर के कारण महत्त्व देती है । विश्वबन्धुता पर्यवेक्षण में व्यक्ति और व्यक्तियों के मूल्यों तथा आस्थाओं का मूल्यांकन अपनी संस्कृति के मूल्यों के अनुसार नहीं करता। यह अलग-अलग सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को मानता है तथा इन्हें अपने अन्दर समायोजित कर लेता है । यह अलग-अलग संस्कृतियों को समृद्ध करने के लिए उनमें सांस्कृतिक लेन-देन को भी प्रोत्साहित करता है । अंग्रेज़ी भाषा ने विदेशी शब्दों को अपने में शामिल किया है तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय संप्रेषण का मुख्य साधन बन गई है। पुनः हिन्दी फिल्मों में संगीत की लोकप्रियता को पश्चिमी पॉप संगीत तथा साथ ही भारतीय लोकगीतों की विभिन्न परंपराओं तथा भंगड़ा और गज़ल जैसे अर्द्धशास्त्रीय संगीत से ली गई देन का परिणाम मान सकते हैं।

एक आधुनिक समाज सांस्कृतिक विभिन्नताओं की प्रशंसा करता है तथा और संस्कृतियों के पड़ने वाले सांस्कृतिक प्रभावों को रोकने का प्रयास नहीं करता । यह उन सभी प्रभावों को अपने में शामिल करता है जो देशी संस्कृति के तत्त्वों के साथ सामंजस्य बिठा सकें। विदेशी शब्दों को शामिल करके भी अंग्रेज़ी अलग भाषा नहीं बन पाई है तथा न ही हिन्दी फिल्मों के संगीत ने अन्य स्थानों से उधार लेकर अपना स्वरूप खोया है । विश्वव्यापी संस्कृति की पहचान तो अलग-अलग शैलियों, रूपों, श्रव्यों तथा कलाकृतियों को शामिल करके ही प्राप्त होती है । आज सार्वभौमिक विश्व में, जहां संचार के साधनों से अलग-अलग संस्कृतियों में अन्तर कम हो रहा है, एक विश्वव्यापी पर्यवेक्षण हरेक व्यक्ति को अपनी संस्कृति को विभिन्न प्रभावों द्वारा सशक्त करने की स्वतन्त्रता देता है।

प्रश्न 6. आपके अनुसार आपकी पीढ़ी के लिए समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण क्या है ? यह पहले अलग कैसे था, आप इस बारे में क्या सोचते हैं ?

उत्तर- हमारे अनुसार आज की पीढ़ी के लिए समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण स्कूल अथवा विद्यालय है क्योंकि यह ही पशु समान बच्चे को सामाजिक मनुष्य के रूप में परिवर्तित करता है । विद्यालय में एक निश्चित समय के लिए शिक्षा दी जाती है। एक निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षा दी जाती है तथा व्यक्ति को जीवन के हरेक पक्ष के बारे में बताया जाता है । व्यक्ति को अपने सांस्कृतिक तत्त्वों के बारे में विद्यालय में ही पता चलता है । विद्यालय व्यक्ति को अपना अच्छा भविष्य बनाने में सहायता करता है तथा इस कारण ही यह समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण है। प्राचीन समय में विद्यालय नहीं बल्कि गुरुकुल हुआ करते थे जहां व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा दी जाती थी। कोई निश्चित पाठ्यक्रम नहीं होता था तथा धार्मिक ग्रन्थों में से व्यक्ति को शिक्षा दी जाती थी । व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करते समय गुरुकुल में ही रहना पड़ता था । परन्तु यह आधुनिक विद्यालय से बिल्कुल ही अलग है जहां निश्चित समय के लिए, निश्चित पाठ्यक्रम में से तथा आधुनिक पश्चिमी पुस्तकों के अनुसार शिक्षा दी जाती है।

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