Class 12th History Chapter 11. विद्रोही और राज
NCERT Solutions For Class 12th History Chapter- 11 विद्रोही और राज – बहुत से विद्यार्थी हर साल 12th की परीक्षा देते है ,लेकिन बहुत से विद्यार्थी के अच्छे अंक प्राप्त नही हो पाते जिससे उन्हें आगे एडमिशन लेने में भी दिक्कत आती है .जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यहां पर एनसीईआरटी कक्षा 12 इतिहास अध्याय 11 (विद्रोही और राज) के लिए सलूशन दिया गया है.यह जो NCERT Solutions For Class 12th History Chapter- 11 Rebels and Raj दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है .ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए . इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप Ch. 11 विद्रोही और राज के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे .
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | HISTORY |
Chapter | Chapter 11 |
Chapter Name | विद्रोही और राज |
Category | Class 12 History Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)
अथवा
1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के विरुद्ध उभरे भारतीय नेतृत्व के स्वरूप की उदाहरणों की मदद से परख कीजिए।
उत्तर- अंग्रेज़ों से लोहा लेने के लिए नेतृत्व और संगठन आवश्यक था। इस उद्देश्य से विद्रोहियों ने ऐसे लोगों की शरण ली जो अंग्रेजों से पहले नेताओं की भूमिका निभाते थे।
(1) सबसे पहले मेरठ के विद्रोही सिपाही दिल्ली गए और उन्होंने वृद्ध मुग़ल सम्राट से विद्रोह का नेतृत्व करने का आग्रह किया। बहादुर शाह इस समाचार पर भयभीत और बेचैन दिखाई दिए। उन्होंने नाममात्र का नेता बनने की जिम्मेदारी तभी स्वीकार की जब कुछ सिपाही शाही शिष्टाचार की अवहेलना करते हुए लालकिले के मुग़ल दरबार में जा घुसे थे।
(2) कानपुर में सिपाहियों और शहर के लोगों ने पेशवा बाजीराव दुवितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब को विद्रोह की बागडोर सँभालने के लिए मजबूर कर दिया।
(3) झाँसी में रानी को आम जनता के दबाव में विद्रोह का नेतृत्व सँभालना पड़ा।
(4) कुछ ऐसी ही स्थिति बिहार में आरा के स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह की थी।
(5) अवध (लखनऊ) में नवाब वाजिद अली शाह जैसे लोकप्रिय शासक को गद्दी से हटा देने और उनके राज्य पर अधिकार कर लेने की यादें लोगों के मन में अभी भी ताज़ा थीं। अत: लखनऊ में ब्रिटिश राज के ढहने के समाचार पर लोगों ने नवाब के युवा पुत्र बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित कर दिया था।
उत्तर- मौजूदा दस्तावेज़ों के आधार पर इसका जवाब दे पाना कठिन है कि विभिन्न स्थानों के विद्रोहों में एक योजना और समन्वय था। फिर भी, एक घटना इस बारे में कुछ जानकारी अवश्य देती है। विद्रोह के दौरान अवध मिलिट्री पुलिस के कैप्टन हियर्से की सुरक्षा का दायित्व भारतीय सिपाहियों पर था। जहाँ कैप्टन हियर्स तैनात था, वहीं 41वीं नेटिव इन्फेंट्री भी तैनात थी। इन्फेंट्री का तर्क था कि क्योंकि वे अपने सभी गोरे अफ़सरों को समाप्त कर चुके हैं इसलिए अवध मिलिट्री का यह कर्तव्य बनता है कि या तो वह हियर्से को मौत की नींद सुला दें या फिर उसे गिरफ्तार करके 41वीं नेटिव इन्फेंट्री को सौंप दें। मिलिट्री पुलिस ने यह बात नहीं मानी। अब यह निश्चित किया गया कि इस मामले को हल करने के लिए हर रेजीमेंट के देशी अफ़सरों की एक पंचायत बुलाई जाए। | इस विद्रोह के आरंभिक इतिहासकारों में से एक चार्ल्स बॉल ने लिखा है कि ये पंचायतें रात को कानपुर सिपाही लाइनों में होती थीं। इसका अर्थ यह है कि कुछ निर्णय सामूहिक रूप से ज़रूर लिए जा रहे थे। वास्तव में सिपाही लाइनों में रहते थे और सभी की जीवन-शैली एकसमान थी। इसके अतिरिक्त उनमें से अधिकांश सिपाही प्रायः एक ही जाति के होते थे। इसलिए इस बात का अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि वे इकट्ठे बैठकर अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेते होंगे। ये सिपाही अपने विद्रोह के कर्ताधर्ता स्वयं ही थे।
अथवा
1857 के विद्रोह के धार्मिक कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- (i) ईसाई पादरी भारतवासियों को लालच देकर उन्हें ईसाई बना रहे थे। इस कारण भारतीय अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
(ii) विलियम बेंटिंक ने अनेक सामाजिक सुधार किए थे। उसने सती–प्रथा और बाल-विवाह पर रोक लगा दी। हिंदुओं ने इन बातों को अपने धर्म के विरुद्ध समझा।
(iii) अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रसार के कारण भारतवासियों में असंतोष फैल गया। उन्हें विश्वास हो गया कि अंग्रेज़ उन्हें अवश्य ही ईसाई बनाना चाहते हैं।
(iv) ईसाई प्रचारक अपने धर्म का प्रचार करने के साथ हिंदू धर्म के ग्रंथों की निंदा करते थे। इस बात से भारतवासी भड़क उठे।
(v) 1856 ई० में एक ऐसा सैनिक कानून पास किया गया जिसके अनुसार सैनिकों को लड़ने के लिए समुद्र पार भेजा जा सकता था, परंतु हिंदू सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे।
(vi) 1857 ई० में सैनिकों को नए कारतूस प्रयोग करने के लिए दिए गए। इन कारतूसों पर गाय या सूअर की चर्बी लगी हुई थी। इसलिए भारतीय सैनिकों में असंतोष इस सीमा तक बढ़ गया कि वे विद्रोह करने पर उतर आए।
उत्तर- विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए गए
(1) 1857 में विद्रोहियों द्वारा जारी घोषणाओं में, जाति और धर्म का भेद किए बिना, समाज के सभी वर्गों का आह्वान किया जाता था।
(2) बहुत-सी घोषणाएँ मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की ओर से या उनके नाम पर जारी की गई थीं। परंतु उनमें भी हिंदुओं की भावनाओं का ध्यान रखा जाता था।
(3) इस विद्रोह को एक ऐसे युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसमें हिंदुओं और मुसलमान दोनों ही समान रूप से प्रभावित होते।
(4) इश्तहारों में अंग्रेज़ों से पहले के हिंदू-मुस्लिम अतीत की ओर संकेत किया जाता था और मुग़ल साम्राज्य के अधीन विभिन्न समुदायों के सहअस्तित्व का गौरवगान किया जाता था। |
(5) बहादुर शाह के नाम से जारी घोषणा में मुहम्मद और महावीर, दोनों की दुहाई देते हुए जनता से इस लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया गया।
विद्रोही और राज-1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान
रोचक बात यह थी कि आंदोलन में अंग्रेजों द्वारा हिंदू और मुसलमानों के बीच खाई पैदा करने के प्रयासों के बावजूद ऐसा कोई अंतर नहीं दिखाई दिया। अंग्रेज़ी शासन ने दिसंबर, 1857 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित बरेली के हिंदुओं को मुसलमानों के विरुद्ध भड़काने के लिए 50,000 रुपये खर्च किए। परंतु उनकी यह कोशिश असफल रही।
अथवा
1857 के विद्रोहियों को दबाने के लिए अंग्रेज़ों द्वारा अपनाई गई दमनकारी नीतियों की परख कीजिए।
उत्तर- अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए निम्न कदम उठाए:
(i) अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटेन से बड़ी संख्या में सैन्य सहायता मँगवाई।
(ii) इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कई नए कानून जारी किए तथा उत्तर भारत पर मार्शल लॉ लागू कर दिया।
(iii) मेजर रेनांड ने जनरल नाईल के आदेश पर उन सभी क्षेत्रों में घोर अत्याचार किए जहाँ विद्रोह फैला था। उसने अनगिनत लोगों की हत्या की और उनकी लाशों को पेड़ों पर लटका दिया।
(iv) विद्रोही सैनिकों को पकड़कर हजारों लोगों के सामने उन्हें तोप से उड़ा दिया गया।
(v) अंग्रेजों ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाते हुए हिंदू और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश की।
अथवा “
अवध में विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं ने राजकुमारों, ताल्लुकदारों, किसानों और सिपाहियों के अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 के विद्रोह में हाथ मिला दिया।” इस कथन की परख कीजिए।
अथवा
1857 के विद्रोह में अवध के ताल्लुक़दारों की सहभागिता की जाँच कीजिए।
उत्तर- अवध में विद्रोह के व्यापक होने और किसान ताल्लुकदार और जमींदारों के उसमें शामिल होने के कारण –
- 1856 ई. में अवध को औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य का अंग घोषित कर दिया गया। अवध के विलय से अनेक क्षेत्रों और रियासतों में असंतोष छा गया।
- अवध के अधिग्रहण से नवाब की गद्दी समाप्ति के साथ ताल्लुकदार भी तबाह हो गये। उनकी सेना और सम्पत्ति दोनों खत्म हो गईं। एकमुश्त बंदोबस्त के अंतर्गत अनेक ताल्लुकदारों की जमीन छीन ली गई।
- ताल्लुकदारों से सत्ता हस्तांतरण का परिणाम किसानों की दृष्टि से बुरा हुआ। हालांकि ताल्लुकदार किसानों से खूब राजस्व और अन्य मदों से धन वसूल करते थे। परंतु किसानों के हितैषी भी थे। वे गाहे-बगाहे विभिन्न स्थितियों में सहायता भी करते थे परंतु अब उनकी सारी आशायें समाप्त हो गयीं। इसके परिणामस्वरूप ताल्लुकदार और किसान अंग्रेजों से रुष्ट हो गये और उन्होंने नवाब की पत्नी बेगम हजरत के नेतृत्व में विद्रोह में साथ दिया।
- किसान फौजी बैरकों में जाकर सिपाहियों से मिल गये। इस प्रकार किसान भी सिपाहियों के विद्रोही कृत्यों में शामिल होने लगे।
अथवा
विद्रोहियों ने अपनी घोषणाओं द्वारा प्रत्येक उस चीज़ को पूरी तरह नकार दिया जो ब्रिटिश शासन
अथवा
फिरंगी राज से जुड़ी थी। इस कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर- 1857 के विद्रोह विषयक चित्र महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं और इतिहासकारों ने इनका निम्नवत विश्लेषण किया है –
(1) घोषणाओं में ब्रिटिश राज (जिसे विद्रोही फिरंगी राज कहते थे) से संबंधित हर चीज़ का विरोध किया जाता था। देशी रियासतों पर अधिकार करने और समझौतों का उल्लंघन करने के लिए अंग्रेजों की निंदा की जाती थी। विद्रोही नेताओं का कहना था कि अंग्रेज़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
(2) लोगों में इस बात का रोष था कि ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था ने सभी बड़े-छोटे भू-स्वामियों को ज़मीन से बेदखल कर दिया था और विदेशी व्यापार ने दस्तकारों और बुनकरों को बरबाद कर डाला था। ब्रिटिश शासन के हर पहलू पर निशाना साधा जाता था। फ़िरंगियों पर स्थापित जीवन शैली को नष्ट करने का आरोप लगाया जाता था। विद्रोही अपनी पहले की दुनिया को जीवित करना चाहते थे।
(3) विद्रोही उद्घोषणाएँ इस भय को व्यक्त करती थीं कि अंग्रेज़, हिंदुओं और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने पर तुले हैं। वे लोगों को ईसाई बनाना चाहते हैं। इसी भय के कारण ही लोग चल रही अफ़वाहों पर भरोसा करने लगे। लोगों को प्रेरित किया गया कि वे एकजुट होकर अपने रोजगार, धर्म, इज्ज़त और अस्मिता के लिए लड़े। इसे ‘व्यापक सार्वजनिक भलाई’ की लड़ाई का नाम दिया गिया।
(4) बहुत-से स्थानों पर अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह उन सभी शक्तियों के विरुद्ध आक्रमण का रूप ले लेता था जिनको अंग्रेज़ों का समर्थक या जनता का उत्पीड़क माना जाता था। कई बार विद्रोही शहर के संभ्रांत वर्ग को जान-बूझकर बेइज्ज़त करते थे। गाँवों में उन्होंने सूदखोरों के बहीखाते जला दिए और उनके घर तोड़-फोड़ डाले। इससे पता चलता है कि विद्रोही सब उत्पीड़कों के विरुद्ध थे और परंपरागत सोपानों (ऊँच-नीच) को समाप्त करना चाहते थे।
(5) विद्रोही वैकल्पिक सत्ता की तलाश में भी थे। उदाहरण के लिए दिल्ली, लखनऊ और कानपुर आदि स्थानों पर ब्रिटिश शासन ध्वस्त हो जाने के बाद विद्रोहियों ने एक जैसी सत्ता और शासन स्थापित करने का प्रयास किया। भले ही यह प्रयोग सफल नहीं रहा, फिर भी इन कोशिशों से पता चलता है कि विद्रोही नेता अठारहवीं सदी की पूर्व-ब्रिटिश शासन-संरचना को फिर से स्थापित करना चाहते थे। इन नेताओं ने पुरानी दरबारी संस्कृति का सहारा लिया। विभिन्न पदों पर नियुक्तियाँ की गईं। भू-राजस्व वसूली और सैनिकों के वेतन के भुगतान की व्यवस्था की गयी। लूटपाट बंद करने के लिए हुक्मनामे जारी किए गए। इसके साथ-साथ अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध जारी रखने की योजनाएँ भी बनाई गईं। सेना की कमान श्रृंखला तय की गई। इन सभी प्रयासों में विद्रोही अठारहवीं सदी के मुग़ल जगत् से ही प्रेरणा ले रहे थे—यह जगत् उन सभी बातों का प्रतीक बन गया जो उनसे छिन चुकी थीं।
उत्तर- 1857 के विद्रोह विषयक चित्र महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं और इतिहासकारों ने इनका निम्नवत विश्लेषण किया है –
1. अंग्रेजों द्वारा निर्मित कुछ चित्रों में अंग्रेजों को बचाने और विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेजी नायकों का गुणगान किया गया है। 1859 में टॉमस जोन्स बार्कर द्वारा बनाया गया चित्र ‘रिलीफ ऑफ लखनऊ’ इसी श्रेणी का उदाहरण है। जब विद्रोही सेना ने लखनऊ पर घेरा डाल दिया तो लखनऊ के कमिश्नर हेनरी लारेंस ने ईसाइयों को एकत्र किया और अति सुरक्षित रेजीडेंसी में शरण ली। बाद में कॉलेन कैम्पबेल नामक कमांडर ने एक बड़ी सेना को लेकर रक्षक सेना को छुड़ाया।
2. बार्कर की ही एक अन्य पेंटिंग में कैम्पबेल के आगमन के क्षण को आनन्द मनाते हुए दिखाया गया है। कैनवस के मध्य में कैम्पबेल, ऑट्रम और हेवलॉक हैं। चित्र के अगले भाग में पड़े शव और घायल इस घेराबंदी के दौरान हुई लड़ाई की गवाही देते हैं। जबकि मध्य भाग में घोड़ों की विजयी तस्वीरें हैं। इससे ज्ञात होता है कि अब ब्रिटिश सत्ता और नियंत्रण बहाल हो चुका है। इस प्रकार के चित्रों से इंग्लैण्ड स्थित जनता में अपनी सरकार के प्रति भरोसा पैदा किया जाता था।
3. ब्रिटिश अखबारों में भारत में हिंसा के चित्र और खबरें खूब छापती थीं। जिनको देखकर और पढ़कर ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग कर रही थी।
4. निःसहाय औरतों और बच्चों के चित्र भी बनाये गये। जोजेफ लोएल पेंटल के ‘स्मृति चित्र’ (In memorium) में अंग्रेज औरतें और बच्चे एक घेरे में एक-दूसरे से लिपटे दिखाई देते हैं। वे लाचार और मासूम दिख रहे हैं।
5. कुछ अन्य रेखाचित्रों और पेंटिंग्स में औरतें उग्र रूप में दिखाई गयी हैं। इनमें वे विद्रोहियों के हमले से अपना बचाव करती हुई नजर आती हैं। उन्हें वीरता की मूर्मि के रूप में दर्शाया गया है।
6. कुछ चित्रों में ईसाईयत की रक्षा हेतु संघर्ष को दिखाया गया है। इसमें बाइबिल को भी दिखाया गया है।
7. इन चित्रों में बदले की भावना के उफान में अंग्रेजों द्वारा विद्रोहियों की निर्मम हत्या का प्रदर्शन है।
8. 1857 के विद्रोह को एक राष्ट्रवादी दृश्य के रूप में चित्रित किया गया। इस संग्राम में कला और साहित्य को बनाये रखा गया। कलाओं में झाँसी की रानी को घोड़े पर सवार एक हाथ में तलवार और दूसरे में घोड़े की रास थामे दिखाया गया है। वह साम्राज्यवादियों का सामना करने के लिए रणभूमि की ओर जा रही हैं।
विद्रोही और राज के अति लघु उत्तरीय प्रश्न
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Sir hamko bseb exam ke liye12th history ka notes chahiye