Class 12th History Chapter 4. विचारक, विश्वास और इमारतें

Class 12th History Chapter 4. विचारक, विश्वास और इमारतें

NCERT Solutions For Class 12th History Chapter- 4 विचारक, विश्वास और इमारतें – बहुत से विद्यार्थी हर साल 12th की परीक्षा देते है ,लेकिन बहुत से विद्यार्थी के अच्छे अंक प्राप्त नही हो पाते जिससे उन्हें आगे एडमिशन लेने में भी दिक्कत आती है .जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यहां पर एनसीईआरटी कक्षा 12 इतिहास अध्याय 4 (विचारक, विश्वास और इमारतें) के लिए सलूशन दिया गया है.यह जो NCERT Solutions For Class 12th History Chapter- 4 Vicharak vishwas aur imarte दिया गया है वह आसन भाषा में दिया है .ताकि विद्यार्थी को पढने में कोई दिक्कत न आए . इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप Ch. 4 विचारक, विश्वास और इमारतें के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे .

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHISTORY
ChapterChapter 4
Chapter Nameविचारक, विश्वास और इमारतें सांस्कृतिक विकास
CategoryClass 12 History Notes In Hindi
MediumHindi

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TextualQuestions)

प्रश्न 1. क्या उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर– हाँ, उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों तथा भौतिकवादियों से भिन्न थे। इनकी भिन्नता का मुख्य आधार बिंदु निम्नलिखित हैं
नियतिवादियों तथा भौतिकवादियों के विचार-नियतिवादी मानते थे कि मनुष्य के सुख-दु:ख निर्धारित मात्रा में दिए गए हैं। इन्हें संसार में बदला नहीं जा सकता। न ही इन्हें घटाया-बढ़ाया न जा सकता है। बुद्धिमान लोग सोचते हैं कि वह सद्गुणों तथा तपस्या द्वारा अपने कर्मों से मुक्ति प्राप्त कर लेगा। परंतु यह संभव नहीं है कि मनुष्य को अपने सुख-दु:ख भोगने ही पड़ते हैं।
इसी प्रकार भौतिकवादी मानते हैं कि संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई चीज नहीं है। दान देने का सिद्धांत झूठा और खोखला है। मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता। मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही कटकर नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य जिन चार तत्त्वों से बना है वे संसार के उन्हीं तत्त्वों में विलीन हो जाते हैं।
उपनिषदों के दार्शनिक विचार-ऊपर दिए गए विचारों में ‘आत्मा’ तथा ‘परमात्मा का कोई स्थान नहीं है। इसके विपरीत उपनिषदों के अनुसार मानव-जीवन का लक्ष्य ‘आत्मा’ को ‘परमात्मा’ (परम ब्रह्म) में विलीन कर स्वयं परम ब्रह्म हो जाना है।

प्रश्न 2. जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं को संक्षेप में लिखिए।
अथवा
“जैन दर्शन द्वारा दिए गए अहिंसा और त्याग के सिद्धांत ने परंपरा को प्रभावित किया है।” इस कथन की महावीर के संदेशानुसार पुष्टि कीजिए।

उत्तर- जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं
(1) जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सारा संसार सजीव है। यह माना जाता है कि पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है।
(2) जीवों के प्रति अहिंसा विशेष कर मनुष्यों, जानवरों, पेड़-पौधों और कीड़े-मकोड़ों को न मारना जैन दर्शन का केंद्र बिंदु | है। जैन मत के अहिंसा के इस सिद्धांत ने संपूर्ण भारतीय चिंतन को प्रभावित किया है। (3) जैन धर्म के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है। इस चक्र से मुक्ति पाने के लिए त्याग
और तपस्या की जरूरत होती है। यह संसार के त्याग से ही संभव हो पाता है। इसीलिए मुक्ति के लिए मनुष्य को संसार का त्याग करके विहारों में निवास करना चाहिए।
(4) जैन साधु और साध्वी पाँच व्रत करते थे : (i) हत्या न करना (ii) चोरी न करना, (iii) झूठ न बोलना, (iv) ब्रह्मचर्य का पालन करना, तथा (v) धन संग्रह न करना।

प्रश्न 3. साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेग़मों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
अथवा
साँची के स्तूप के अवशेषों के संरक्षण में भोपाल की बेग़मों ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।” उचित प्रमाण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर– साँची के स्तूप के अवशेषों के संरक्षण में भोपाल की बेग़मों का निम्नलिखित योगदान रहा
(1) पहले फ्रांसीसियों ने और बाद में अंग्रेजों ने साँची के पूर्वी तोरणद्वार को अपने-अपने देश में ले जाने की कोशिश की। परंतु भोपाल की बेग़मों ने उन्हें स्तूप की प्लास्टर प्रतिकृतियों से संतुष्ट कर दिया।
(2) शाहजहाँ बेग़म और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेग़म ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान दिया।
(3) सुल्तानजहाँ बेग़म ने वहाँ एक संग्रहालय तथा अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया।
(4) जॉन मार्शल ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथ सुल्तानजहाँ को समर्पित किए। इनके प्रकाशन पर बेग़मों ने धन लगाया।
(5) बेग़मों द्वारा समय पर लिए गए विवेकपूर्ण निर्णय ने साँची के स्तूप को उजड़ने से बचा लिया। यदि ऐसा न होता तो इसकी दशा भी अमरावती के स्तूप जैसी होती।
(6) साँची का स्तूप बौद्ध धर्म का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। इसने आरंभिक बौद्ध धर्म को समझने में बहुत अधिक सहायता दी है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और जवाब दीजिए महाराज हुविष्क (एक कुषाण शासक) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्षु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धिमता की बहन की बेटी भिक्षुणी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।
(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?
(ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?
(ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती हैं?
(घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रंथों को जानती थीं?
(ङ) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?

उत्तर- (क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कुषाण शासक महाराज हुविष्क के शासनकाल की सहायता से निश्चित की। यह तारीख हुविष्क के शासनकाल के तैंतीसवें साल की गर्मियों के पहले महीने का आठवाँ दिन (8 तारीख) है।
(ख) धनवती एक भिक्षुणी थीं। उनकी बोधिसत्त में अगाध श्रद्धा थी। इसी कारण उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित करवाई।
(ग) वे अपनी मौसी बुद्धिमता तथा अपने माता-पिता का नाम लेती हैं।
(घ) वे त्रिपिटक नामक बौद्ध ग्रंथों को जानती थीं।
(ङ) उन्होंने ये पाठ अपने गुरु तथा भिक्षु ‘बल’ से सीखे थे। यह भी संभव है कि उन्होंने कुछ पाठ अपनी मौसी बुद्धिमता से सीखे हों जो त्रिपिटक ग्रंथों को जानती थीं।

प्रश्न 5. आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते थे?

उत्तर- स्त्री-पुरुष संभवत: निम्नलिखित बातों के कारण संघ में जाते थे
(1) वे सांसारिक विषयों से दूर रहना चाहते थे।
(2) वहाँ का जीवन सादा तथा अनुशासित था।
(3) वहाँ वे बौद्ध दर्शन का गहनता से अध्ययन कर सकते थे।
(4) कुछ लोग धम्म के शिक्षक (उपदेशक) बनना चाहते थे।
(5) संघ में सभी का दर्जा समान था, क्योंकि भिक्खु अथवा भिक्खुनी बन जाने के पश्चात् सभी को अपनी पुरानी पहचान का त्याग करना पड़ता था।

प्रश्न 6. साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?
अथवा
साँची और अन्य स्थानों की वास्तुकला को समझने के लिए बौद्ध धर्म ग्रंथों का अध्ययन आवश्यक है।” उपर्युक्त कथन की सोदाहरण तर्क-संगत समीक्षा कीजिए।
अथवा
साँची स्तूप की संरचनात्मक और मूर्तिकला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– साँची स्तूप भोपाल राज्य में स्थित एक अद्भुत प्राचीन अवशेष है। इस स्तूप समूह में अर्धगोले के आकार का एक विशाल ढाँचा तथा कई दूसरी इमारतें शामिल हैं।

पहली नजर में उत्तरी प्रवेश द्वार पर एक दृश्य एक ग्रामीण दृश्य को चित्रित करता है, जिसमें फूस की झोपड़ियां और पेड़ हैं। हालाँकि, इतिहासकारों ने मूर्तिकला का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद, इसे वेसंतरा जातक के एक दृश्य के रूप में पहचाना। यह एक उदार राजकुमार की कहानी है जिसने एक ब्राह्मण को सब कुछ दे दिया और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जंगल में रहने चला गया।

बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकार बुद्ध की जीवनियों से परिचित होते हैं। बुद्ध की आत्मकथाओं के अनुसार, बुद्ध को एक पेड़ के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कई प्रारंभिक मूर्तियों ने खाली आसन, स्तूप और चक्र जैसे प्रतीकों के माध्यम से बुद्ध की उपस्थिति को दर्शाया। इस तरह के प्रतीकों को केवल उन लोगों की परंपराओं से समझा जा सकता है जिन्होंने कला के इन कार्यों का निर्माण किया है।

यह उल्लेख किया जा सकता है कि प्रारंभिक आधुनिक कला इतिहासकारों में से एक, जेम्स फर्ग्यूसन, सांची को वृक्ष और नाग पूजा का केंद्र मानते थे क्योंकि वे बौद्ध साहित्य से परिचित नहीं थे – जिनमें से अधिकांश का अभी तक अनुवाद नहीं किया गया था। इसलिए, वह केवल छवियों का अध्ययन करके अपने निष्कर्ष पर पहुंचे।

प्रश्न 7. वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।

उत्तर-वास्तुकला–जिस समय साँची जैसे स्थानों पर स्तूप अपने विकसित रूप में आ गए थे उसी समय देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए सबसे पहले मंदिर भी बनाए गए। आरंभिक मंदिर एक चौकोर कमरे के रूप में होते थे जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इनमें एक दरवाज़ा होता था जिसमें से उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए अंदर जा सकता था। धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था। मंदिर की दीवारों पर प्रायः भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे। आने वाले समय में मंदिरों के स्थापत्य में कई नई बातें शामिल हो गईं। अब मंदिरों के साथ विशाल सभास्थल, ऊँची दीवारें और तोरण भी बनाए जाने लगे। जल आपूर्ति की व्यवस्था भी की जाने लगी। । शुरू-शुरू के कुछ मंदिर पहाड़ियों को काटकर खोखला करके कृत्रिम गुफ़ाओं के रूप में बनाए गए थे। कृत्रिम गुफ़ाएँ बनाने की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही थी। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफ़ाएँ ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में अशोक के आदेश से आजीविकों के लिए बनाई गई थीं। | यह परंपरा अलग-अलग चरणों में विकसित होती रही। इसका सबसे विकसित रूप हमें आठवीं शताब्दी के कैलाशनाथ के मंदिर में दिखाई देता है। जिसमें पूरी पहाड़ी को काटकर उसे मंदिर का रूप दे दिया गया था।
एक ताम्रपत्र अभिलेख से पता चलता है कि इस मंदिर का मुख्य वास्तुकार (मूर्तिकार) भी मंदिर को बनाकर हैरान रह गया था। वह अपने आश्चर्य को इन शब्दों में व्यक्त करता है, “हे भगवान्, यह मैंने कैसे बनाया।”

मूर्तिकला- कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की भी मूर्तियाँ बनाई गईं। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। परंतु उन्हें कई मूर्तियों में मनुष्य के रूप में भी दर्शाया गया है। ये सभी चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। उनके गुणों और प्रतीकों को उनके शिरोवस्त्रों, आभूषणों, आयुधों (हथियार और हाथ में धारण किए गए अन्य शुभ अस्त्र) और बैठने की शैली से व्यक्त किया जाता था।

प्रश्न 8. स्तूप क्यों और कैसे बनाए जाते थे ?
अथवा
वर्णन कीजिए कि स्तूपों का निर्माण किस प्रकार किया गया? (CBSE 2018)

उत्तर– 1. स्तूप क्यों बनाए गए?:स्तूप का शाब्दिक अर्थ टीला है। ऐसे टीले, जिनमें महात्मा बुद्ध के अवशेषों जैसे उनकी अस्थियाँ, दाँत, नाखून इत्यादि) या उनके द्वारा प्रयोग हुए सामान को गाड़ दिया गया था, बौद्ध स्तूप कहलाए। ये बौद्धों के लिए पवित्र स्थल थे।
यह संभव है कि स्तूप बनाने की परंपरा बौद्धों से पहले रही हो, फिर भी यह बौद्ध धर्म से जुड़ गई। इसका कारण वे पवित्र अवशेष थे जो स्तूपों में संजोकर रखे गए थे। इन्हीं के कारण वे पूजनीय स्थल बन गए। महात्मा बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद ने बार-बार आग्रह करके बुद्ध से उनके अवशेषों को संजोकर रखने की अनुमति ले ली थी।
बाद में सम्राट अशोक ने बुद्ध के अवशेषों के हिस्से करके उन पर मुख्य शहर में स्तूप बनाने का आदेश दिया। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक सारनाथ, साँची, भरहुत, बौद्ध गया इत्यादि स्थानों पर बड़े-बड़े स्तूप बनाए जा चुके थे। अशोक व कई अन्य शासकों के अतिरिक्त धनी व्यापारियों, शिल्पकारों, श्रेणियों व बौद्ध भिक्षुओं व भिक्षुणियों ने भी स्तूप बनाने के लिए ध्यान दिया।

2. स्तूप कैसे बनाए गए– प्रारंभिक स्तूप साधारण थे, लेकिन समय बीतने के साथ- साथ इनकी संरचना जटिल होती गई। इनकी शुरुआत कटोरेनुमा मिट्टी के टीले से हुई। बाद में इस टीले को अंड के नाम से पुकारा जाने लगा। अंड के ऊपर बने छज्जे जैसे ढांचा ईश्वर निवास का प्रतीक था। इसे हर्मिका कहा गया। इसी में बौद्ध अथवा अन्य बोधिसत्वों के अवशेष रखे जाते थे। हर्मिका के बीच में एक लकड़ी का मस्तूल लगा होता था। इस पर एक छतरी बनी होती थी। अंड के चारों ओर एक वेदिका होती थी। अब पवित्र स्थल को सामान्य दुनिया से पृथक रखने का प्रतीक थी।

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