विराम चिन्ह क्या है , इसके कितने प्रकार है
Viram Chinh Ki Paribhasha – आज हम आपको इस पोस्ट में व्याकरण से संबंधित विराम चिन्ह के बारे में जानकारी देंगे .जिसके बारे में जानना आपके लिए बहुत आवश्यक है . क्योंकि विराम चिन्ह व्यक्ति वाक्य को अच्छे से पढ़ नहीं सकता और नही वाक्य को अच्छे से लिख सकता .मनुष्य उसे तभी ही अच्छे पढ़ और लिख सकता है ,जब उसमे विराम चिन्ह का प्रयोग किया गया हो .विराम चिन्ह के बिना वाक्य के भावों और विचारों को स्पष्ट रूप से समझ नहीं सकते .इसलिए हमे विराम चिन्ह के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है .इसलिए इस पोस्ट में नीचे आपको विराम चिन्ह किसे कहते है ,विराम चिन्ह कितने प्रकार के होते हैं ,विराम चिन्ह के भेद ,विराम चिन्हों के प्रयोग ,विराम चिन्ह की परिभाषा के बारे में जानकारी दी गई .
विराम चिन्ह क्या है
विराम चिन्ह (Punctuation Mark) की परिभाषा –भित्र-भित्र प्रकार के भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता है, उन्हें ‘विराम चिह्न’ कहते है।
दूसरे शब्दों में- विराम का अर्थ है – ‘रुकना’ या ‘ठहरना’ । वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।
सरल शब्दों में-अपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है।
विराम चिन्हों का उपयोग जानना अति आवश्यक है इसके बिना व्यक्ति अच्छे तरीके से पढ़ लिख नहीं सकता, क्योंकि अच्छे लेखन के लिए, पढने के लिए, विराम चिन्हों का उपयोग जानना बहुत आवश्यक है . लिखित भाषा अपने कथ्य को तभी पूरा सफलता से व्यक्त कर सकती है, जब उसमें विराम चिन्हों का समुचित प्रयोग हुआ हो . “विराम- का अर्थ है रुकना” जो चिन्ह बोलते या पढ़ते समय रुकने का प्रस्तुत संकेत देते हैं उन्हें विराम चिन्ह कहते हैं | विराम चिन्हों में अब अनेक चिन्ह सम्मिलित कर लिए गए हैं
इन विराम चिन्हों का प्रयोग वाक्यों के मध्य या अंत में किया जाता है।
हिंदी व्याकरण के विशेषज्ञ कामता प्रसाद गुरु ने विराम चिन्हों की संख्या 20 मानी है। कामता प्रसाद गुरु पूर्ण विराम (।) को छोड़ कर बाकि सभी विराम चिन्हों को अंग्रेजी से लिया हुआ माना है।
विराम चिन्हों के प्रकार या भेद
हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिह्न निम्नलिखित है-
पूर्ण विराम (।)
किसी वाक्य के अंत में पूर्ण विराम चिन्ह लगाने का अर्थ होता है कि वह वाक्य खत्म हो गया है। यानी जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम ( । ) चिह्न लगाया जाता है। पूर्ण विराम (।) का प्रयोग प्रश्नसूचक और विस्मयादि सूचक वाक्यों को छोड़कर बाकि सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है।
जैसे —
- पढ़ रहा हूँ।
- तुम जा रहे हो।
- राम स्कूल से आ रहा है।
अर्द्ध विराम (;)
जब किसी वाक्य को कहते हुए बीच में हल्का सा विराम लेना हो पर वाक्य को खत्म न किया जाये तो वहाँ पर अर्द्ध विराम (;) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यानी जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते है, वहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न ( ; ) लगाया जाता है।
जैसे —
- यह घड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी; यह बहुत सस्ती है।
- राम तो अच्छा लड़का है; किन्तु उसकी संगत कुछ ठीक नहीं है।
- कल रविवार है; छुट्टी का दिन है; आराम मिलेगा।
अल्प विराम (,)
जब किसी वाक्य को प्रभावी रूप से कहने के लिए वाक्य में अर्द्ध विराम (;) से ज्यादा परन्तु पूर्ण विराम (।) से कम विराम लेना हो तो वहां अल्प विराम (,) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जहाँ थोड़ी सी देर रुकना पड़े, वहाँ अल्प विराम चिन्ह (Alp Viram) का प्रयोग करते हैं ।
जैसे —
- सुनील, जरा इधर आना।
- राम, सीता और लक्ष्मण जंगल गए ।
अल्प विराम का प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है-
- जहाँ किसी व्यक्ति को संबोधित किया जाय, वहाँ अल्पविराम का चिह्न लगता है। जैसे- प्रिय महराज, मैं आपका आभारी हूँ।
- अंको को लिखते समय भी अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे- — 1, 2, 3, 4, 5, 6 आदि।
- ‘हाँ’ और ‘नहीं’ के बाद — नहीं, यह काम नहीं हो पाएगा।
- जहाँ शब्दों को दो या तीन बार दुहराया जाय, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है। जैसे- वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।
- तारीख और महीने का नाम लिखने के बाद — 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को गाँधीजी का जन्म हुआ।
प्रश्न चिन्ह (?)
प्रश्न चिन्ह (?) का प्रयोग प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में किया जाता है । अर्थात जिस वाक्य में किसी प्रश्न (सवाल) के पूछे जाने के भाव की अनुभूति हो वहां वाक्य के अंत में प्रश्न चिन्ह (?) का प्रयोग होता है।
यानी जहाँ बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे —
- ताजमहल किसने बनवाया ?
- तुम कहाँ जा रहे हो ?
- यह तो तुम्हारा घर नहीं है ?
उप विराम (अपूर्ण विराम) (:)
जब किसी शब्द को अलग दर्शना हो तो वहां उप विराम (अपूर्ण विराम) (:) का प्रयोग किया जाता है।अर्थात जहाँ वाक्य पूरा नहीं होता, बल्कि किसी वस्तु अथवा विषय के बारे में बताया जाता है, वहाँ अपूर्ण विराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
यानी जब किसी कथन को अलग दिखाना हो तो वहाँ पर उप विराम (Up Viram) का प्रयोग करते हैं ।
जैसे —
- प्रदूषण : एक अभिशाप ।
- उदाहरण : राम घर जाता है।
- कृष्ण के अनेक नाम है : मोहन, गोपाल, गिरिधर आदि।
विस्मयबोधक चिन्ह (!) या आश्चर्य चिन्ह
विस्मयबोधक चिन्ह का प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे —
- वाह! क्या आलिशान घर है।
- रे! तुम यहां।
- ओह! यह तो उसके साथ बुरा हुआ।
- छी! कितनी गंदगी है यहाँ।
- अच्छा! ऐसा कहा उस पाखण्डी व्यक्ति ने तुमसे।
- शाबाश! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।
- हे भगवान! ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने?
निर्देशक चिन्ह (डैश) (-) या संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह
निर्देशक चिन्ह (-) जिसे संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह भी कहा जाता है, कुछ इसे रेखा चिन्ह भी कहते हैं। विषय, विवाद, सम्बन्धी, प्रत्येक शीर्षक के आगे, उदाहरण के पश्चात, कथोपकथन के नाम के आगे किया जाता है
किसी के द्वारा कही बात को दर्शाने के लिए
जैसे —
- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा – सुभाष चन्द्र बोस
- अध्यापक ― तुम जा सकते हो ।
किसी शब्द की पुनरावत्ति होने पर अर्थात एक ही शब्द के दो बार लिखे जाने पर उनके मध्य (बीच में) संयोजक चिन्ह (-) का प्रयोग होता है।
- दो-दो हाथ हो जायें।
- कभी-कभी में ख्यालों में खो सा जाता हूँ।
युग्म शब्दों के मध्य
जैसे —
- खेल में तो हार-जीत होती रहती है।
- कुछ खाया-पिया करो, बहुत कमजोर हो गए हो।
तुलनावाचक ‘सा’, ‘सी’, ‘से’, के पहले
जैसे —
- झील-सी आँखें
- सागर-सा ह्रदय
कोष्ठक ( ) [ ] { }
कोष्ठक चिन्ह (Koshthak Chinh) का प्रयोग अर्थ को और अधिक स्पस्ट करने के लिए शब्द अथवा वाक्यांश को कोष्ठक के अन्दर लिखकर किया जाता है ।
कोष्ठक का प्रयोग किसी शब्द को स्पष्ट करने, कुछ अधिक जानकारी बताने आदि के लिए कोष्ठक ( ) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। कोष्ठक का उपयोग मुख्यतः वाक्यों में शब्दों के मध्य किया जाता है। ( ) को लघु कोष्ठक, { } मझला कोष्ठक तथा [ ] को दीर्घ कोष्ठक कहते हैं। हिंदी साहित्य लेखन में लघु कोष्ठक ( ) का ही प्रयोग किया जाता है। इनका उपयोग हमेशा जोड़ी में ही होता है।
जैसे —
- धर्मराज (युधिष्ठिर) सत्य और धर्म के संरक्षक थे ।
- लता मंगेशकर भारत की कोकिला (मीठा गाने वाली) हैं।
- उच्चारण (बोलना) जीभ एवं कण्ठ से होता है।
अवतरण चिन्ह (‘ ’)(“ ”) या उध्दरण चिन्ह
किसी वाक्य में किसी खास शब्द पर जोर देने के लिए अवतरण या उद्धरण चिन्ह (‘ ’) का प्रयोग किया जाता है।
किसी और के द्वारा लिखे या कहे गए वाक्य या शब्दों को ज्यों-का-त्यों लिखने के लिए अवतरण चिह्न या उद्धरण चिन्ह (“ ”) का प्रयोग किया जाता है।
जैसे —
- महा कवि तुलसीदास ने सत्य कहा है ― “पराधीन सपनेहु सुख नाहीं” ।
- हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ ‘महाभारत’ है।
- भारतेंदु जी ने कहा, “हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान” ।
विवरण चिन्ह (:-)
विवरण चिन्ह (:-) का प्रयोग वाक्यांश में जानकारी, सूचना या निर्देश आदि को दर्शाने या विवरण देने के लिए किया जाता है।
जैसे —
- वनों से निम्न लाभ हैं :-
- भारत में सेब की कई किस्में पायी जाती हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं :-
- इस देश में बड़ी – बड़ी नदियाँ हैं :-
पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „)
पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „) का प्रयोग ऊपर लिखे किसी वाक्य या वाक्य के अंश को दोबारा लिखने का श्रम बचाने के लिए करते हैं।यानी पुनरुक्ति सूचक चिन्ह का प्रयोग किसी बात को दोहराने के लिए किया जाता है.
जैसे —
- रामेश कुमार, कक्षा सातवीं
- राजेश ,, ,, ,,
लाघव चिन्ह (०)
किसी शब्द का संक्षिप्त रूप लिखने के लिए लाघव चिन्ह (०) का प्रयोग किया जाता है।यानि किसी बड़े शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए कुछ अंश लिखकर लाघव चिन्ह (Laghav Chinh) लगा दिया जाता है । इसको संक्षेपण चिन्ह (Sankshepan Chinh) भी कहते हैं ।
जैसे —
- पंडित का – पंo
- प्रोफेसर को – प्रो०
- डॉक्टर के लिए ― डॉ०
लोप चिन्ह (… , ++++)
जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न (…) का प्रयोग किया जाता है।
जैसे —
- श्याम ने मोहन को गली दी … ।
- मैं सामान उठा दूंगा पर … ।
- गाँधीजी ने कहा, ”परीक्षा की घड़ी आ गई है …. हम करेंगे या मरेंगे” ।
दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ)
जब वाक्य में किसी शब्द विशेष के उच्चारण में अन्य शब्दों की अपेक्षा अधिक समय लगता है तो वहां दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ) का प्रयोग किया जाता है। छंद में दीर्घ मात्रा (का, की, कू , के , कै , को , कौ) और लघु मात्रा (क, कि, कु, र्क) को दर्शाने के लिए इस चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे —
- देखत भृगुपति बेषु कराला।
- ऽ। । । । । । ऽ। । ऽ ऽ (16 मात्राएँ, । को एक मात्रा तथा ऽ को 2 मात्रा माना जाता है)
हंसपद या त्रुटिबोधक चिन्ह (^)
जब किसी वाक्य अथवा वाक्यांश में कोई शब्द अथवा अक्षर लिखने में छूट जाता है तो छूटे हुए वाक्य के नीचे हंसपद चिह्न (^) का प्रयोग कर छूटे हुए शब्द को ऊपर लिख देते हैं। यानी त्रुटिबोधक चिन्ह का प्रयोग लिखते समय किसी शब्द को भूल जाने पर किया जाता है ।
जैसे —
- हमें रोजाना अपना कार्य ^ चाहिए ।
- मैं पिताजी के साथ ^ गया ।
- मैं कल ^ को जाऊंगा
तुल्यता सूचक (=)
किसी शब्द अथवा गणित के अंकों के मध्य की तुल्यता (समानता या बराबरी आदि) को दर्शाने के लिए तुल्यता सूचक (=) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।तुल्यता सूचक (=) चिन्ह गणित में खूब प्रयोग होता है.
जैसे —
- 4 और 4 = 8
- अशिक्षित = अनपढ़
- अ = ब
समाप्ति सूचक (-0-, —)
समाप्ति सूचक (-0-, —) चिह्न का उपयोग बड़े लम्बे लेख, कहानी, अध्याय अथवा पुस्तक के अंत में करते हैं, जोकि यह सूचित करता है कि लेख, कहानी, अध्याय अथवा पुस्तक समाप्त हो चूकि है।
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Good bhai
Thank you bro
Thanku sir
“धन्यवाद” सर, हिन्दी 2nd ईयर “विराम चिन्ह” chapter सम्बंधित ज्ञान प्रकाशन हेतू /
“धन्यवाद”सर,2nd ईयर हिन्दी मे chapter” विराम चिन्ह” है जिसका आपके इस प्रकाशन से कुछ अध्ययन हो सका/
Very helpful sir
Very Nice info
Sir 20 hote hai na viram chinah par yaha to 17 hai…?
. इस चिन्ह को कया कहते हैं