कक्षा 12 इतिहास अध्याय 3 नोट्स PDF Download बंधुत्व जाति तथा वर्ग नोट्स PDF question answer Class 12 History Chapter 3 Notes In hindi
दोस्तों आज हम इस पोस्ट में हम बंधुत्व जाति तथा वर्ग के बारे में पड़ेगे और महाभारत और उस समय काल के लोगो के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर चर्चा करेंगे। जो विद्यार्थी 12 कक्षा में पढ़ रहे उनके लिए यह जानकारी बहुत उपयोगी रहने वाली है . इसलिए आज की पोस्ट में आपको बंधुत्व जाति तथा वर्ग नोट्स Notes Class 12 history chapter 3 notes in hindi से संबंधित जानकारी दी गई .यह जानकारी आपके exam और सामान्य ज्ञान के लिए महत्पूर्ण होने वाली है .इसलिए इन्हें आप ध्यानपूर्वक पढ़े .
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | बंधुत्व जाति तथा वर्ग |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
महाभारत उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध ग्रंथों में से एक है।
यह महाकाव्य अपने वर्तमान रूप में एक लाख से अधिक श्लोकों का संकलन है।
यह विभिन्न सामाजिक श्रेणियों का लेखा-जोखा है।
महाभारत की मुख्य कथा दो परिवारों के बीच हुए युद्ध से संबंधित है।
इस ग्रंथ के कुछ भाग विभिन्न सामाजिक समुदायों के आचार-व्यवहार के मानदंड तय करते हैं।
इस ग्रंथ के मुख्य पात्र प्रायः इन्हीं सामाजिक मानदंडों का पालन करते हुए दिखाई देते हैं।
पितृसत्ता के अनुसार पिता की मृत्यु के बाद उसका पुत्र उसके संसाधनों पर अधिकार जमा सकता था।
राजाओं के संदर्भ में इसमें सिंहासन भी शामिल था।
महाभारत बदलते रिश्तों की एक कहानी है।
यह भूमि और सत्ता को लेकर दो समूहों, कौरवों और पांडवों, के बीच संघर्ष का वर्णन करती है।
दोनों समूह कुरु वंश से संबंधित थे जो कुरु राज्य पर शासन करते थे।
उनका संघर्ष अंततः एक युद्ध में बदल गया जिसमें पांडव विजयी हुए।
वंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण होते थे।
इस प्रणाली में पुत्रियों को अलग तरीके से देखा जाता था।
उनका पैतृक संसाधनों पर कोई अधिकार नहीं था।
धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र आठ प्रकार के विवाहों को मान्यता देते हैं।
इनमें से पहले चार को ‘उत्तम’ माना जाता था, जबकि शेष को निंदित माना गया।
संभव है कि निंदित विवाह प्रथाएं उन लोगों में प्रचलित रही हों जो ब्राह्मणों द्वारा बनाए गए नियमों को स्वीकार नहीं करते थे।
लगभग 1000 ई.पू. के बाद, ब्राह्मणों ने लोगों (विशेष रूप से ब्राह्मणों) को गोत्रों में वर्गीकृत किया।
प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था।
उस गोत्र के सदस्य उस ऋषि के वंशज माने जाते थे।
सातवाहन राजाओं को उनके मातृनाम से पहचाना जाता था।
इससे प्रतीत होता है कि माताएँ महत्वपूर्ण थीं।
परंतु इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि सातवाहन राजाओं में सिंहासन का उत्तराधिकार प्रायः पितृसत्तात्मक होता था।
धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र वर्ग आधारित आदर्श व्यवस्था का उल्लेख करते हैं।
इसके अनुसार समाज में चार वर्ग या वर्ण होते थे।
इस व्यवस्था में ब्राह्मणों को पहला स्थान प्राप्त था।
शूद्रों को सबसे निचले स्तर पर रखा गया था।
शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे परंतु कई महत्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्गों से भी हुई थी।
उदाहरण के लिए, मौर्य वंश।
ब्राह्मणों ने शकों को जो मध्य एशिया से भारत आए थे, म्लेच्छ और बर्बर माना।
परंतु एक आरंभिक संस्कृत अभिलेख में प्रसिद्ध शक राजा रुद्रदमन द्वारा सुदर्शन झील के पुनर्निर्माण (मरम्मत) का वर्णन मिलता है।
इससे ज्ञात होता है कि शक्तिशाली म्लेच्छ संस्कृत परंपरा से परिचित थे।
समाज का वर्गीकरण शास्त्रों में प्रयुक्त शब्द जाति के आधार पर भी किया गया था।
ब्राह्मणीय सिद्धांत में वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी।
परंतु जहां वर्गों की संख्या मात्र चार थी, वहीं जातियों की कोई निश्चित संख्या नहीं थी।
एक ही जीविका या व्यवसाय से जुड़ी जातियों को कभी-कभी श्रेणियों (गिल्ड्स) में संगठित किया जाता था।
श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी।
ब्राह्मणों ने कुछ लोगों को वर्ण-व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली का अंग नहीं माना।
साथ ही उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को ‘अस्पृश्य’ घोषित कर सामाजिक विषमता को और जटिल बना दिया।
ब्राह्मणीय ग्रंथों के अनुसार लैंगिक आधार के अतिरिक्त वर्ण भी संपत्ति पर अधिकार का एक आधार था।
शूद्रों के लिए एकमात्र ‘जीविका’ अन्य तीन वर्णों की सेवा थी परंतु पहले तीन वर्णों के पुरुषों के लिए विभिन्न जीविकाओं की संभावना रहती थी।
इतिहासकार किसी ग्रंथ का विश्लेषण करते समय अनेक पहलुओं पर विचार करते हैं; जैसे – भाषा, रचनाकाल, विषय-वस्तु, लेखक और श्रोता आदि।
महाकाव्य महाभारत कई भाषाओं में मिलता है परंतु इसकी मूल भाषा संस्कृत है।
इस ग्रंथ में प्रयुक्त संस्कृत वेदों या प्रशस्तियों की संस्कृत से कहीं अधिक सरल है।
अतः यह कहा जा सकता है कि इस ग्रंथ को व्यापक स्तर पर समझा जाता होगा।
इतिहासकार महाभारत की विषय-वस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अंतर्गत रखते हैं – आख्यान और उपदेशात्मक।
आख्यान में कहानियों का संग्रह है, जबकि उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का उल्लेख किया गया है।
Class 12 History Chapter 3 Notes In English
The Mahabharata is one of the richest texts of the subcontinent.
This epic in its present form is a compilation of over one lakh verses.
It is a record of various social classes.
The main story of the Mahabharata is related to the war between two families.
Some parts of this text set the norms of conduct for different social communities.
The main characters of this text are usually seen following these social norms.
According to patriarchy, after the death of the father, his son could take control of his resources.
In the context of kings, this also included the throne.
The Mahabharata is a story of changing relationships.
It describes the struggle over land and power between two groups of cousins, the Kauravas and the Pandavas.
Both groups belonged to the Kuru dynasty which ruled over the Kuru kingdom.
Their struggle ultimately turned into a war in which the Pandavas emerged victorious.
Sons were important to continue the lineage.
In this system, daughters were seen differently.
They had no rights over paternal resources.
The Dharmasutras and Dharmashastras recognize eight types of marriages.
The first four of these were considered ‘good’, while the rest were considered condemned.
It is possible that the condemned marriage practices were prevalent among those who did not accept the rules made by the Brahmins.
After around 1000 BCE, the Brahmins classified people (especially Brahmins) into gotras.
Each gotra was named after a Vedic sage.
Members of that gotra were considered descendants of that sage.
The Satavahana kings were identified by their maternal names.
This suggests that mothers were important.
However, before reaching this conclusion, we should also consider that the succession to the throne among the Satavahana kings was generally patrilineal.
The Dharmasutras and Dharmashastras mention an ideal system based on class.
According to this, there were four classes or varnas in society.
In this system, the Brahmins were given the first rank.
The Shudras were placed at the lowest level.
According to the scriptures, only Kshatriyas could be kings but many important dynasties originated from other classes.
For example, the Maurya dynasty.
The Brahmins considered the Shakas who came to India from Central Asia as mlecchas and barbarians.
But an early Sanskrit inscription describes the reconstruction (repair) of the Sudarshana lake by the famous Shaka king Rudradaman.
This shows that powerful mlecchas were familiar with the Sanskrit tradition.
The classification of society was also based on the term caste used in the scriptures.
In Brahmanical theory, caste, like varna, was based on birth.
However, while the number of classes was only four, there was no fixed number of castes.
Castes associated with the same livelihood or profession were sometimes organized into guilds.
Membership in the guild depended on expertise in the craft.
The Brahmins did not consider some people to be part of the varna-based social system.
Along with this, they made social inequality more complex by declaring some sections of society as ‘untouchable’.
According to Brahmanical texts, in addition to gender, varna was also a basis for property rights.
For the Shudras, the only ‘livelihood was the service of the other three varnas, but for the men of the first three varnas, there were possibilities of various livelihoods.
Historians consider many aspects when analyzing a text; such as language, period of composition, subject matter, author, and audience.
The epic Mahabharata is found in many languages, but its original language is Sanskrit.
The Sanskrit used in this text is much simpler than the Sanskrit of the Vedas or eulogies.
Therefore, it can be said that this text would have been understood on a wide scale.
Historians place the subject matter of the Mahabharata under two main headings: narrative and didactic.
The narrative is a collection of stories, while the didactic part mentions the norms of social conduct.
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