सबसे छोटी कोशिका कौन- सी है
सबसे छोटी कोशिकामाइकोप्लाज्माहै.कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य रखती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं.कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं,
कोशिका किसे कहते है कोशिका के अंग कोशिका के कार्य
इसमें जीवन देने वाला पदार्थ जीव द्रव पाया जाता है. यह पदार्थ प्लाज्मा झिल्ली अथवा कोशिका झिल्ली से घिरा होता है. कोशिका जीव की संरचना तथा कार्य की इकाई एक है.सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका तंत्र की कोशिका है। सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग के अंडे की कोशिका है।.कुछ रासायनिक तथा उत्सर्जित पदार्थ कोशिका में पाए जाते हैं. यह पदार्थ स्टार्च के कारण शर्करा,वसा,प्रोटीन,खनिज तथा एल्केलाइड होते हैं.
कोशिका के अध्ययन के विज्ञानं को Cytology कहा जाता है. कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने 1665 में की थी उन्होंने स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी से काम की पतली काट को देखा था. जिसमें मधुमक्खी के छत्ते जैसी संरचना दिखाई दी थी लेटिन भाषा में cellulae (कोशिका)का अर्थ छोटा कमरा है. और यही नाम कोशिका के लिए प्रचलित हो गया था.
कोशिका के प्रकार
कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं
प्रोकैरियोटिक कोशिका ( Prokaryotic cells) :प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ प्रायः स्वतंत्र होती हैं. इन कोशिकाओं में हिस्टोन प्रोटीन नहीं होता है . जिसके कारण क्रोमैटिन नही बन पाता है।प्रोकैरियोटिक कोशिका में कोई स्पष्ट केन्द्रक नहीं होता है। केन्द्रकीय पदार्थ कोशिका द्रव में बिखरे होते हैं। इस प्रकार की कोशिका जीवाणु तथा नीली हरी शैवाल में पायी जाती है।
यूकैरियोटिक कोशिका ( Eukaryotic cell) :यूकैरियोटिक कोशिकाएँ, बहुकोशीय प्राणियों में पायी जाती हैं। सभी उच्च श्रेणी के पौधों और जन्तुओं में यूकैरियोटिक प्रकार की कोशिका पाई जाती है। सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओ में संगठित केन्द्रक पाया जाता है जो एक आवरण से ढका होता है।
कोशिका के केंद्रक की संरचना और कार्य
कोशिका के मध्य में विदद्यमान गोलाकार या अंडाकार संरचना को केंद्रक कहते हैं इसकी सर्वप्रथम खोज रॉबर्ट ब्राउन ने की थी प्राय:एक कोशिका में एक केंद्र होता है.
कोशिका भित्ति
यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार बनाये रखने में सहायक होता है.यह सेलुलोज का बना होता है. यह केवल पादप कोशिका में पाया जाता है. जीवाणु का कोशिका भित्ति पेप्टिडोगलकेन का बना होता है.
केंद्रक झिल्ली
केंद्रक के चारों ओर दोहरे परत का एक आवरण होता है. जिसे केंद्रक झिल्ली कहते हैं इसमें छोटे-छोटे अनेक छिद्र होते हैं जिनके द्वारा केंद्रक के भीतर का केंद्रक द्रव्य बाहर जा सकता हैं असीम केंद्र की कोशिकाओं में केंद्रक झिल्ली नहीं होती.
केंद्रक द्रव्य
केंद्रक झिल्ली से घिरे पदार्थ को केंद्रक द्रव्य कहते हैं यह पारदर्शी,कोलॉइजी तरल होता है. जो न्यूक्लियो प्रोटीन से बना होता है. इस में राइबोसोम्ज,खनिज लवण एंजाइम आर.एन.ए. क्रोमेटिन धागे तथा केंद्रिक पाए जाते हैं.
क्रोमेटिन पदार्थ
क्रोमेटिन पदार्थ धागे के समान बारीक रचनाओं का जाल होता है. जब कभी कोशिका का विभाजन होने वाला होता है. तो वह क्रोमोसोम में संगठित हो जाता है. क्रोमोसोम में आनुवंशिक गुण होते हैं जो माता-पिता से DNA अनुरूप में अगली पीढ़ी में जाते हैं डी.एन.ए तथा प्रोटीन से गुणसूत्र बनते हैं और इनमें कोशिका के निर्माण और संगठन की सभी विशेषताएं उपलब्ध होती है. DNA के क्रियात्मक खंड को जिन कहते हैं जिस कोशिका का विभाजन नहीं हो रहा होता है. उसमें DNA क्रोमेटिन के रूप में रहता है. विभिन्न जीव धारियों में क्रोमोसोम की संख्या अलग-अलग होती है. पर एक ही जाति के सभी प्राणियों में इनकी संख्या एक समान होती है. क्रोमोसोम की संरचना में बदलाव होने से जीव जंतुओं में विभिन्नताएं उत्पन्न हो जाती है. रिबोंयुक्लिक अम्ल है. जो केंद्रिका में प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है..
केंद्रीक
कोशिका के केंद्रक में एक या दो केंद्रिका होती है. इसमें प्रोटीन आर.एन.ए तथा DNA होते हैं असीम केंद्रीय की कोशिकाओं में केंद्रीय नहीं होता बैक्टीरिया जैसे कुछ जीवो में कोशिका का केंद्रीय क्षेत्र बहुत कम स्पष्ट होता है. क्योंकि इनमें केंद्रक झिल्ली की अनुपस्थिति रहती है..
केंद्रक के कार्य
1.यह अनुवांशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरण का आधार है..
2.यह कोशिका विभाजन के लिए जिम्मेदार होता है..
3.यह कोशिका की सभी उपापचय पर नियंत्रण रखता है..
4.यह शरीर की वृद्धि के लिए उत्तरदाई होते हैं.
माइट्रोकांड्रिया
माइट्रोकांड्रिया को पहली बार रिचर्ड ऑल्टमान ने देखा था और उन्होंने इस को पहली बार सेल्स में देखा था और सबसे पहले इसको 1894 में देखा गया था और रिचर्ड ऑल्टमान मानने इसका नाम बायोप्लाट्स रखा था लेकिन बाद में 1898 में 4 साल बाद कार्ल्स बेन्द्रा ने इसका नाम इट्रोकांड्रिया रख दिया था. उसके 6 साल बाद 1904 में फ्रेडरिक मेवेस ने इसे सफेद जलकुमुदनी का नाम दिया. और अंग्रेजी में इसका नाम White Waterlily है.और इस का बायोलॉजिकल नाम Nymphaea Alba है.
उसकी पादप कोशिकाओं में माइट्रोकांड्रिया को वास्तविकता में देखा उसके बाद क्लॉडियस रेगुउद रह गया उसने 1908 में उसके 4 साल बाद बताया कि माइट्रोकांड्रिया में प्रोटीन और लिक्विड पाए जाते हैं और उसके बाद 1912 में बेंजामिन फ. किंगसबरी ने माइट्रोकांड्रिया को श्वसन यानी रेस्पिरेशन से संबंध होने की व्याख्या की उन्होंने बताया कि यह श्वसन में हिस्सा लेती है माइट्रोकांड्रिया का इतिहास जो हमने आपको बताया है उसमें बहुत ही अनोखी बात है.
इसमें लगभग हर 4 साल बाद कुछ ना कुछ बदलाव जरूर किया गया बस एक बार 6 साल का गैप आया था और बाकी सभी 4 साल के अंतराल पर इसके अंदर कुछ ना कुछ बदलाव किया गया वह चाहे किसी भी तरह का बदलाव किया गया हो सबसे पहले 1894 फिर उसके बाद 1898 में फिर उसके बाद 6 साल का गैप आया 1898 के बाद 1904 और 1904 के बाद फिर 1908 में और फिर 1912 में इसमें बदलाव किए गए और इस तरह के बदलाव से आपको इसको आसान करना याद करना बहुत ही आसान हो जाता है तो यह था माइट्रोकांड्रिया का इतिहास.
इस पोस्ट में आपको सबसे छोटी कोशिका कौन से है?सबसे छोटी कोशिका किसकी होती है मानव शरीर की सबसे छोटी कोशिका कौन है मानव शरीर में सबसे छोटी कोशिका कौनसी है मनुष्य के शरीर की सबसे छोटी कोशिका कौन सी है सबसे छोटी जीवित कोशिका है Who is the smallest cell smallest part of a human cell largest and smallest in biology से संबधित जानकारी दी है .अगर यह जानकारी आपको फायदेमंद लगे तो दूसरो को शेयर जरुर करे .अगर इसके बारे में आपका कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके बताएं.